Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
Q
०
•
·
O
O
•
तेरसमं सयं : तेरहवाँ शतक
प्राथमिक
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के इस तेरहवें शतक में नरकभूमियों, चतुर्विध देवों, नारकों के अनन्तराहारादि, पृथ्वी, नारकादि के आहार, उपपात, भाषा, कर्मप्रकृति, भावितात्मा अनगार के लब्धिसामर्थ्य एवं समुद्घात आदि महत्त्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
इस शतक में दश उद्देशक हैं, जिनके नामों का उल्लेख शास्त्रकार ने प्रारम्भ में किया है।
प्रथम उद्देशक में सात नरकपृथ्वियों, रत्नप्रभादि के नरकावासों की संख्या, उनके विस्तार, उनकी श्या, संज्ञा, भव्याभव्यता, ज्ञान, दर्शन, वेद, कषाय, इन्द्रिय, मन, योग, उपयोग आदि के सम्बन्ध में ३९ प्रश्नोत्तर, उत्पत्ति, उद्वर्तना, सम्यग्दृष्टि - मिथ्यादृष्टि, विरहित - अविरहित, लेश्या - परिवर्तन आदि का विशद् निरूपण किया गया है।
द्वितीय उद्देशक में चतुर्विध देवों के नाम, उनके आवासों की संख्या, उनके विस्तार, लेश्या, दर्शन, ज्ञान, उत्पत्ति, संज्ञा, कषाय, उद्वर्तना, वेद, उपपन्नता, आहार, लेश्याओं तथा आवासों की संख्या में परस्पर अन्तर, चरम - अचरम, दृष्टि, विविध लेश्या वालों में उत्पत्ति तथा परिवर्तन आदि का सरस वर्णन किया गया है।
तृतीय उद्देशक में प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेशपूर्वक नैरयिकों के उत्पाद - समय में आहार, शरीरोत्पत्ति, लोमाहारादि द्वारा पुद्गलग्रहण, इन्द्रिय आदि के रूप में परिणमन, शब्दादि विषयों के उपयोग द्वारा परिचारणा एवं नाना रूपों की विकुर्वणा आदि का निरूपण है ।
चतुर्थ उद्देशक में पुन: सात नरकपृथ्वियों का उल्लेख करके उनके नारकावासों की संख्या, विशालता, विस्तार, अवकाश, स्थानरिक्तता, प्रवेश, संकीर्णता - व्यापकता, अल्पकर्मता-महाकर्मता, अल्पक्रियामहाक्रिया, अल्पाश्रव - महाश्रव, अल्पवेदना - महावेदना, अल्पऋद्धि-महाऋद्धि, अल्पद्युति- महाद्युति इत्यादि विषयों के तारतम्य का प्रतिपादन किया गया है। इसी सन्दर्भ में तेरह द्वारों की अपेक्षा से वर्णन किया है। अन्त में तीनों लोकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है।
पंचम उद्देशक में नैरयिकों के सचित्त- अचित्त - मिश्राहार-सम्बन्धी प्ररूपणा की गई है।
छठे उद्देशक में चौवीस दण्डकों की सान्तर - निरन्तर, उत्पत्ति - उद्वर्तना सम्बन्धी निरूपण, चमरचंच आवास का स्वरूप, स्थानदूरी निर्देश एवं चमरेन्द्र के आवास का निर्णय एवं तदनन्तर उदायन नरेश, राजपरिवार, वीतिभयनगर आदि का परिचय, भगवान् का पदार्पण, उदायन नृप द्वारा प्रव्रज्याग्रहण विचार, स्वपुत्र अभीचिकुमार के बदले भानजे केशीकुमार के राज्याभिषेक, प्रव्रज्याग्रहण, रत्नत्रयाराधना,