Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
२५८
क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उद्वर्त्तन करते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[ २० उ. ] हे गौतम ! उसी तरह (पूर्ववत्) समझना चाहिए। (अर्थात् पूर्वोक्त नारकावासों से सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि नैरयिक उद्वर्त्तन करते हैं, परन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिक उद्वर्तन नहीं करते ।)
२१. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं सम्मद्दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, मिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया ?
गोयमा ! सम्मद्दिट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, मिच्छादिट्ठीहिं वि नेरइएहिं अविरहिया, सम्मामिच्छा - दिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया विरहिया वा ।
[ २१ प्र.] भगवन्! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तृत नारकावास क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से अविरहित ( सहित) हैं, मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से अविरहित हैं अथवा सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से अविरहित हैं ?
[ २१ उ.] गौतम ! (पूर्वोक्त नारकावास) सम्यग्दृष्टि नैरयिकों से भी अविरहित होते हैं तथा मिथ्यादृष्ट नैरयिकों से भी अविरहित होते हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि नैरयिकों से ( कदाचित् ) अविरहित होते हैं और (कदाचित् ) विरहित होते हैं ।
२२. एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि तिणिण गमगा भाणियव्वा ।
[२२] इसी प्रकार असंख्यात योजन विस्तार वाले नारकावासों के विषय में भी तीनों आलापक कहने. चाहिए।
२३. एवं सक्करप्पभाए वि । एवं जाव तमाए ।
[२३] इसी प्रकार शर्कराप्रभा से लेकर यावत् तमः प्रभापृथ्वी तक के ( संख्यात, असंख्यात योजनविस्तृत नारकावासों के सम्यग्दृष्टि आदि नैरयिकों के) विषय में (तीनों आलापक कहने चाहिए।)
२४. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु जाव संखेज्जवित्थडे नरए किं सम्मि नेरइया० पुच्छा।
गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी नेरइया न उववज्जंति, मिच्छद्दिट्ठी नेरइया उववज्जंति, सम्मामिच्छद्दिट्ठी नेरइया न उववज्जंति ।
[२४ प्र.] भगवन् ! अधः सप्तमपृथ्वी के पांच अनुत्तर यावत् संख्यात योजन विस्तार वाले नारकावासों में क्या सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[ २४ उ. ] गौतम ! (वहाँ ) सम्यग्दृष्टि नैरयिक उत्पन्न नहीं होते, मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न होते हैं और सम्यग् - मिथ्यादृष्टि नैरयिक उत्पन्न नहीं होते ।