Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र परिणमित्ता कण्हलेस्सेसु नेरइएसु उववजंति, से तेणटेणं जाव उववजंति।
[२८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि (वह कृष्णलेश्यी आदि हो कर (पुन:) कृष्णलेश्यी नारकों में उत्पन्न हो जाता है ?
[२८-२ उ.] गौतम ! उसके लेश्यास्थान संक्लेश को प्राप्त होते-होते (क्रमश:) कृष्णलेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं और कृष्णलेश्या के रूप में परिणत हो जाने पर वह जीव कृष्णलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाता है। इसलिए, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्यी आदि होकर जीव कृष्णलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाता है।
२९.[१] से नूण भंते ! कण्हलेसे जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववजंति ? हंता, गोयमा ! जाव उववजंति।
[२९-१ प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होकर जीव (पुनः) नीललेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाते हैं ?
[२९-१ उ.] हाँ, गौतम ! यावत् उत्पन्न हो जाते हैं। [२] से केणटेणं जाव उववजति ?
गोयमा ! लेस्सटाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु वा नीललेस्सं परिणमति, नीललेस्सं परिणमित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववजंति, से तेणेढेणं गोयमा ! जाव उववजंति।
[२१-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि यावत् नीललेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? __[२१-२ उ.] गौतम ! लेश्या के स्थान उत्तरोत्तर संक्लेश को प्राप्त होते-होते तथा विशुद्ध होते-होते (अन्त में) नीललेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं। नीललेश्या के रूप में परिणत होने पर वह नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं, ऐसा कहा गया है।
३०. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नील० जाव भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उववनंति ? एवं जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्सा वि भाणियव्वा जाव से तेणटेणं जाव उववजति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥तेरसमे सए पढमो उद्देसओ समत्तो ॥१३-१॥ [३० प्र.] भगवन् ! क्या वस्तुतः कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होकर (जीव पुनः) कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ?
[३० उ.] जिस प्रकार नीललेश्या के विषय में कहा गया, उसी प्रकार कापोतलेश्या के विषय में भी,