Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दों का अर्थ—चयावेयव्वा—च्यवन सम्बन्धी पाठ कहना चाहिए। णाणत्तं—नानात्व, विभिन्नता । पण्णत्तेसु–सत्ता विषयक आलापक में। गेवेजगा—प्रैवेयक।अभवसिद्धिया—अभव्यसिद्धिक, अभव्य। खोडिज्जति–निषेध किये जाते हैं। चतुर्विध देवों के संख्यात-असंख्यात विस्तृत आवासों में सम्यग्दृष्टि आदि के उत्पाद, उद्वर्तन एवं सत्ता की प्ररूपणा
२५. चोयट्ठीए णं भंते ! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मट्टिी असुरकुमारा उववजंति, मिच्छद्दिट्ठी ? ०
एवं जहा रयणप्पभाए तिन्नि आलावगा भणिया तहा भाणियव्वा। एवं असंखेजवित्थडेसु वि तिनि गमा।
[२४ प्र.] भगवन् ! क्या असुरकुमार देवों के चौसठ लाख असुरकुमारावासों में से संख्यात योजन विस्तृत . असुरकुमारावासों में सम्यग्दृष्टि असुरकुमार उत्पन्न होते हैं अथवा मिथ्यादृष्टि उत्पन्न होते हैं, मिश्र (सम्यग्मिथ्या) दृष्टि उत्पन्न होते हैं ?
[२४ उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार रत्नप्रभा के सम्बन्ध में तीन आलापक कहे, उसी प्रकार यहाँ भी कहने चाहिए और असंख्यात योजन विस्तृत असुरकुमारावासों के विषय में भी इसी प्रकार तीन आलापक कहने चाहिए।
२६. एवं जाव गेवेज्जविमाणेसु। [२६] इसी प्रकार (नागकुमारावासों से लेकर) यावत् ग्रैवेयकविमानों (तक) के विषय में कहना चाहिए।
२७. अणुत्तरविमाणेसु एवं चेव, नवरं तिसु वि आलावएसु मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छद्दिट्ठी य न भण्णंति। सेसं तं चेव। __ [२७] अनुत्तरविमानों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष बात यह है कि अनुत्तरविमानों के तीनों आलापकों में मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि का कथन नहीं करना चाहिए। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए।
विवेचन—देवों के दृष्टिविषयक आलापक—प्रस्तुत तीन सूत्रों (२५ से २७) में चारों प्रकार के देवों में दृष्टिविषयक आलापकत्रय का निरूपण किया गया है। पांच अनुत्तरविमानों में एकान्त सम्यग्दृष्टि हीउत्पन्न होते हैं, च्यवते हैं और सत्ता में रहते हैं। इसलिए शेष दोनों दृष्टियों का निषेध किया गया है।
१. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. ५, पृ. २१६६, २१७१ २. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६०४
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २१७४