Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२४८
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र क्रोधकषायी जीव उत्पन्न होते हैं ? (२६-२८) यावत् कितने लोभकषायी उत्पन्न होते हैं ? (२९) कितने श्रोत्रेन्द्रिय के उपयोग वाले उत्पन्न होते हैं ? (३०-३३) यावत् कितने स्पर्शेन्द्रिय के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (३४) कितने नो-इन्द्रिय (मन) के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? (३५) कितने मनोयोगी जीव उत्पन्न होते हैं ? (३६) कितने वचनयोगी जीव उत्पन्न होते हैं ? (३७) कितने काययोगी उत्पन्न होते हैं ? (३८) कितने साकारोपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? और (३९) कितने अनाकारोपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ?
[६ उ.] गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्येयविस्तृत नरकों में एक समय में (१) जघन्य एक दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उत्पन्न होते हैं । (२) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कापोतलेश्यी जीव उत्पन्न होते हैं। (३) जघन्य एक दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं। (४) इसी प्रकार शक्लपाक्षिक (५) संज्ञी (६) असंज्ञी (७) भवसिद्धिक (८) अभवसिद्धिक (९) आभिनिबोधिकज्ञानी (१०) श्रुत-ज्ञानी (११) अवधिज्ञानी (१२) मति-अज्ञानी (१३) श्रुत-अज्ञानी (१४) विभंगज्ञानी जीवों के विषय में भी जानना चाहिए। (१५) चक्षदर्शनी जीव उत्पन्न नहीं होते। (१६) अचक्षुदर्शनी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। (१७-२१) इसी प्रकार अवधिदर्शनी, आहारसंज्ञोपयुक्त, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त के विषय में भी (जानना चाहिए।) (२२-२३) स्त्रीवेदी जीव उत्पन्न नहीं होते, न पुरुषवेदी जीव उत्पन्न होते हैं । (२४) नपुंसकवेदी जीव जघन्य एक, दो या तीन
और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार (२५-२८) क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी जीवों (की उत्पत्ति) के विषय में जानना चाहिए। (२९-३३) श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त (से लेकर) यावत् स्पर्शेन्द्रियोपयुक्त जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते हैं। (३४) नो-इन्द्रियोपयुक्त जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। (३५-३६) मनोयोगी जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते, इसी प्रकार वचनयोगी भी (समझना चाहिये।) (३७) काययोगी जीव जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । (३८-३९) इसी प्रकार साकारोपयोग वाले एवं अनाकारोपयोग वाले जीवों के विषय में भी (कहना चाहिए)।
विवेचन–रत्नप्रभा नारकवासों में विविध जीवों के उत्पत्ति सम्बन्धी ३९ प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत छठे सूत्र में रत्नप्रभा नरकभूमि के नारकावासों मे विविध विशेषण-विशिष्ट जीवों की उत्पत्ति के विषय में प्रतिपादन किया गया है।
कापोतलेश्या सम्बन्धी प्रश्न ही क्यों ?–रत्नप्रभापृथ्वी में केवल कापोतलेश्या वाले जीव ही उत्पन्न होते हैं, शेष कृष्णादि लेश्या वाले नहीं। इसलिए यहाँ कापोतलेश्या के विषय में ही प्रश्न किया गया है।
कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक : परिभाषा—जिन जीवों का संसार-परिभ्रमणकाल अर्द्ध पुद्गल परावर्तन में कुछ कम शेष रह गया है, वे शुक्लपाक्षिक कहलाते हैं। इससे अधिक काल तक जिन जीवों का संसार-परिभ्रमण करना शेष रहता है, वे कृष्णपाक्षिक कहलाते हैं।
चक्षुदर्शनी की उत्पत्ति का निषेध क्यों?—इन्द्रिय और मन के सिवाय सामान्य उपयोग मात्र को