Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
७१
ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक - ११
[१९-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि इन पल्योपम और सागरोपम का क्षय या अपचय होता है ?
महाबलवृत्तान्त
२०. एवं खलु सुदंसणा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था, वण्णओ । सहसंबवणे उज्जाणे, वण्णओ ।
[२०] (उदाहरण द्वारा समाधान - ) हे सुदर्शन ! उस काल और उस समय में हस्तिानापुर नामक नगर था। उसका वर्णन करना चाहिए। वहाँ समस्स्राम्रवन नामक उद्यान था । उसका वर्णन करना चाहिए ।
२१. तत्थ णं हत्थिनापुरे नगरे बले नामं राया होत्था, वण्णओ ।
[२१] उस हस्तिनापुर में 'बल' नामक राजा था। उसका वर्णन करना चाहिए ।
२२. तस्स णं बलस्स रण्णो पभावती नामं देवी होत्था सुकुमाल० वण्णओ जाव विहरति । [२२] उस बल राजा की प्रभावती नाम की देवी ( पटरानी ) थी। उसके हाथ-पैर सुकुमाल थे, इत्यादि वर्णन जानना चाहिए; यावत् पंचेन्द्रिय संबंधी सुखानुभव करती हुई जीवनयापन करती थी ।
विवेचन—पल्योपम- सागरोपम के क्षय-अपचय की सिद्धि के लिए सुदर्शन श्रेष्ठी की पूर्वभवकथा - प्रारम्भ - प्रस्तुत ४ सूत्रों ( १९ से २२ तक) में पल्योपम - सागरोपम के क्षय और अपचय को सिद्ध करने हेतु भगवान् ने सुदर्शन श्रेष्ठी के पूर्वभव की कथा प्रारम्भ की है। इसमें हस्तिनापुर नगर, सहस्राम्रवनउद्यान, बल राजा, प्रभावती रानी, इनका वर्णन औपपातिकसूत्र द्वारा जान लेने का अतिदेश किया गया है।
क्षय और अपचय —–क्षय का अर्थ है - सम्पूर्ण विनाश । अपचय का अर्थ है— देशतः
अपगम — क्षय ।
प्रभावती का वासगृहशय्या - सिंहस्वप्न-दर्शन
२३. तए णं सा पभावती देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि वासघरंसि अब्भितरओ सचित्तकम्मे बाहिरतो दूमियघट्टमट्ठे विचित्तउल्लोचिल्लियतले मणिरतणपणासियंधकारे बहुसमसुविभत्तदेसभाए पंचवण्ण्सरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु-पवरकुंदुरुक्कतुरुक्क धूवमघमघंतगंधुद्धताभिरामे सुगंधवरगंधिए गंधवट्टिभूते तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि सालिंगणवट्टीए उभयो बिब्बोयणे दुहओ उन्नए मज्झे णय-गंभीरे गंगापुलिणवालुयउद्दालसालिसए ओयवियखोमियदुगुल्लपट्टपलिच्छायणे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंवुए सुरम्मे आइणग- रूय - बूर - नवणीय - तूलफासे सुगंधंवरकुसुमचुण्णसयणोवयारकलिए अद्धरत्तकालसमयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी अयमेयारूवं आरोलं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुविणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा । हार-रयय
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण), भा. २, पृ. ५३७ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५३९-५४०