Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवां शतक : उद्देशक-१
[३] उस श्रावस्ती नगरी में शंख आदि बहुत-से श्रमणोपासक रहते थे। (वे) आढ्य यावत् अपरिभूत थे; तथा जीव, अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता थे, यावत् विचरते थे।
४. तस्स णं संखस्स.समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था, सुकुमाल जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरति।
[४] उस 'शंख' श्रमणोपासक की भार्या (पत्नी) का नाम ‘उत्पला' था। उसके हाथ-पैर अत्यन्त कोमल थे, यावत् वह रूपवती एवं श्रमणोपासिका थी, तथा जीव-अजीव आदि तत्त्वों की जानने वाली यावत् विचरती थी।
५. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पोक्खली नामं समणोवासाए परिवसति अड्डे अभिगय जाव विहरति।
[५] उसी श्रावस्ती नगरी में पुष्कली नाम का (एक अन्य) श्रमणोपासक रहता था। वह भी आढ्य यावत् जीव-अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था यावत् विचरता था।
विवेचन-श्रावस्ती नगरी के दो प्रमुख श्रमणोपासक प्रस्तुत ४ सूत्रों (२ से ५ तक) में श्रावस्ती नगरी में बसे हुए अनेक श्रमणोपासकों में से दो विशिष्ट श्रमणोपासकों का संक्षिप्त परिचय इसलिए दिया गया है कि इन्हीं दोनों से सम्बन्धित वर्णन इस उद्देशक में किया जाने वाला है।
श्रावस्ती नगरी—प्राचीन काल में भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध के युग में बहुत ही समृद्ध नगरी थी। उसका कोष्ठक उद्यान प्रसिद्ध था, जहाँ केशी-गौतम-संवाद हुआ था। वर्तमान में श्रावस्ती का नाम 'सेहटमेहट' है। अब यह वैसी समृद्ध नगरी नहीं रही। भगवान् का श्रावस्ती में पदार्पण, श्रमणोपासकों द्वारा धर्मकथा-श्रवण
६. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। .. [६] उस काल और उस समय में (श्रमण भगवान् महावीर) स्वामी श्रावस्ती पधारे। उनका समवसरण (धर्मसभा) लगा। परिषद् वन्दन के लिए गई, यावत् पर्युपासना करने लगी।
७. तए णं समणोवासगा इमीसे जहा आलभियाए ( स. ११ उ. १२ सु. ७) जाव पज्जुवासंति।
[७] तत्पश्चात् (श्रमण भगवान् महावीर के आगमन को जान कर) वे (श्रावस्ती के) श्रमणोपासक भी, आलभिका नगरी के (श. ११ उ. १२ सू. ७ में उक्त श्रमणोपासक के समान) उनके वन्दन एवं धर्मकथा श्रवण आदि के लिए गए यावत् पर्युपासना करने लगे।
८. तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए० धम्मकहा जाव परिसा पडिगया।
[८] तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर ने उन श्रमणोपासकों को और उस महती महापरिषद् की धर्मकथा कही (धर्मोपदेश दिया) । यावत् परिषद् (धर्मोपदेश सुन कर अत्यन्त हर्षित हो कर) वापिस चली गई।
९. तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ