Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवां शतक : उद्देशक-८
२०५ शीलादि-रहित वानरादि का नरकगामित्त्व निरूपण
५. अह भंते ! गोलंगूलवसभे कुक्कुडवसभे मंडुक्कवसभे, एए णं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए, पुढवीए उक्कोसणं सागरोवमट्टितीयंसि नरगंसि नेरतियत्ताए उववज्जेज्जा ?
समणे भगवं महावीरे वागरेति—'उववजमाणे उववन्ने' त्ति वत्तव्वं सिया।
[५ प्र.] भगवन् ! यदि वानरवृषभ (वानरो में महान् और चतुर), कुर्कुटवृषभ (बड़ा मुर्गा) एवं मण्डूकवृषभ (बड़ा मेंढक) ये सभी नि:शील, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादा-रहित तथा प्रत्याख्यान-पौषधोपवासरहित हों, तो मरण के समय मृत्यु को प्राप्त हो (क्या) इस रत्नप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति वाले नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होते हैं ?
_[५ उ.] श्रमण भगवान् महावीर स्वामी कहते हैं—(हाँ, गौतम ! ये नैरयिक रूप से उत्पन्न होते हैं;) क्योंकि उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न हुआ, ऐसा कहा जा सकता है।
६. अह भंते ! सीहे वग्घे जहा ओसप्पिणिउद्देसए ( स० ७ उ० ६ सु० ३६) जाव परस्सरे एए णं निस्सीला० ?
एवं चेव जाव वत्तव्वं सिया।
[६ प्र.] भगवन् ! यदि सिंह, व्याघ्र यावत् पाराशर (जो कि) सातवें शतक के अवसर्पिणी उद्देशक में (उ.६ सू. ३६ में) कथित हैं—ये सभी शीलरहित इत्यादि पूर्वोक्तवत् क्या (नैरयिकरूप में) उत्पन्न होते हैं ?
[६ उ.] हाँ गौतम ! उत्पन्न होते हैं, यावत् उत्पन्न होता हुआ 'उत्पन्न हुआ' ऐसा कहा जा सकता है। ७. अह भंते ! ढंके कंके विलए मदुए सिखी, एते णं निस्सीला०? सेसं तं चेव जाव वत्तव्वं सिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ।
॥ बारसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो ॥१२-८॥ [७ प्र.] भगवन् ! (जो) ढंक (कौआ) कंक (गिद्ध) बिलक, मेंढक और मोर—ये सभी शीलरहित, इत्यादि हों तो. पूर्वोक्तवत् (नैरयिकरूप से) उत्पन्न होते हैं ?
[७ उ.. हाँ, गौतम ! उत्पन्न होते हैं। शेष सब कथन यावत् कहा जा सकता है, (यहाँ तक) पूर्ववत् समझना चाहिए।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं।