Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२१८
स्व-स्वरूप में पंचविध देवों की संस्थितिप्ररूपणा
२६. भवियदव्वदेवे णं भंते ! 'भवियदव्वदेवे' त्ति कालओ केवचिरं होइ ?
गोयमा ! जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाई । एवं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणा वि जाव भावदेवस्स। नवरं धम्मदेवस्स जहन्त्रेणं एक्वं समय, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी ।
[ २६ प्र.] भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेवरूप से कितने काल तक रहता है ?
[२६ प्र.] गौतम ! (भव्यद्रव्यदेव) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम तक (भव्यद्रव्यदेवरूप से) रहता है। इसी प्रकार जिसकी जो ( भव) स्थिति कही है, उसी प्रकार उसकी संस्थिति भी यावत् भावदेव तक कहनी चाहिए। विशेष यह है कि धर्मदेव की (संस्थिति) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि वर्ष तक है।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
विवेचन — प्रश्न का आशय भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेव - पर्याय को नहीं छोड़ता हुआ, कितने काल तक रहता है ? यानी उसका संस्थिति (संचिट्ठणा) काल कितना है ?१
जिसकी जो भवस्थिति पहले कही गई है, वही उनकी संस्थिति (संचिट्ठणा) अर्थात् —उस पर्याय का अनुबन्ध है ।
धर्मदेव का जघन्य संचिट्ठणाकाल — कोई धर्मदेव, अशुभभाव को प्राप्त करके, उससे निवृत्त होकर शुभभाव को प्राप्त होने के एक समय बाद मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसलिए धर्मदेव का जघन्य संचिट्ठा (संस्थिति) काल परिणामों की अपेक्षा से एक समय का कहा गया है।
पंचविध देवों के अन्तरकाल की प्ररूपणा
२७. भवियदव्वदेवस्स णं भंते ! केवतियं कालं अंतरं होती ?
गोयमा ! जहन्नेणं दस वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अनंतं कालं वणस्सतिकालो ।
[ २७ प्र.] भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव का अन्तर कितने काल का होता है ?
[ २७ उ. ] गौतम ! (भव्यद्रव्यदेव का अन्तर) जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल - वनस्पतिकाल पर्यन्त होता है ।
२८. नरदेवाणं पुच्छा।
गोयमा ! जहन्नेणं सातिरेगं सागरोवमं, उक्कोसेणं अणतंकालं अवड्डुं पोग्गलपरियट्टं देसूणं ।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८६
२. वही, पत्र ५८६
३. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५८६
(ख) भगवती (हिन्दी विवेचन ) भा. ४, पृ. २१०१