Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तदुभयपजवे दुपएसिए खंधे नो आया य, अवत्तव्वं—आया ति य नो आया ति य ६। से तेणद्वेणं तं चेव ज़ाव नो आया ति य।
[२८-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा (कहा जाता है कि द्विप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् सद्प है, इत्यादि।) यावत् कथंचित् असद्रूप है और सद्-असद् उभयरूप होने से अवक्तव्य है ?
[२८-२ उ.] गौतम ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) १-अपने स्वरूप की अपेक्षा से कथन किये जाने पर सद्प है, २-पररूप की अपेक्षा से कहे जाने पर असद्रूप है और ३-उभयरूप की अपेक्षा से अवक्तव्य है तथा ४सद्भावपर्याय वाले अपने एक देश की अपेक्षा से व्यपदिष्ट होने पर (उस देश की वर्णादि रूप पर्यायों से युक्त होने के कारण) सद्प है तथा असद्भाव पर्याय वाले द्वितीय देश से आदिष्ट होने पर, (उसकी वर्णादि पर्यायों से युक्त न होने के कारण) असद्प है। (इस दृष्टि से) कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्प है।५-सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर (सद्भाव पर्याय वाले अपने देश की सद्भाव पर्यायों से) सद्रूप और सद्भाव-असद्भाव वाले दूसरे देश की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध सद्प-असद्प उभयरूप होने से अवक्तव्य है। ६-एक देश की अपेक्षा से असद्भाव पर्याय की विवक्षा से तथा द्वितीय देश के सद्भावअसद्भावरूप उभय-पर्याय की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध असद्प और अवक्तव्यरूप है। इसी कारण (हे गौतम ! ) द्विप्रदेशी स्कन्ध को (पूर्वोक्त प्रकार से) यावत् कथंचित् असद्प और सद्-असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य कहा गया है।
विवेचन—परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध के सद्-असद्रूप भंग प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. २७-२८) में परमाणु-पुद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध के सद्-असद्प सम्बन्धी भंगों का निरूपण किया गया हैं।
परमाणु-पुद्गल सम्बन्धी तीन भंग—इसके असंयोगी तीन भंग होते हैं-(१) सद्प, (२) असद्प एवं (३) अवक्तव्य।
द्विप्रदेशी स्कन्ध सम्बन्धी छह भंग-तीन असंयोगी भंग पूर्ववत् सकल स्कन्ध की अपेक्षा से—(१) सद्रूपं, (२) असद्प और (३) अवक्तव्य। तीन द्विकसंयोगी भंग देश की अपेक्षा से—(४) द्विप्रदेशी स्कन्ध होने से उसके एक देश की स्वपर्यायों द्वारा सद्प की विवक्षा की जाए और दूसरे देश की पर-पर्यायों द्वारा असद्रूप से विवक्षा की जाए तो द्विप्रदेशी स्कन्ध अनुक्रम से कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्प होता है। (५) उसके एकदेश की स्वपर्यायों द्वारा सद्प से विवक्षा की जाए और दूसरे देश से सद्-असद्-उभयरूप से विवक्षा की जाए तो कथंचित् सद्प और कथंचित् अवक्तव्य कहलाता है। (६) जब द्विप्रदेशी स्कन्ध के एक देश की पर्यायों द्वारा असद्प से विवक्षा की जाए और दूसरे देश की उभयरूप से विवक्षा की जाए तो असद्रूप और अवक्तव्य कहलाता है।
कथंचित् सद्प, कथंचित् असद्प और कथंचित् अवक्तव्यरूप, इस प्रकार सातवाँ भंग द्विप्रदेशी स्कन्ध
१. भगवतीसूत्र, अ. वृत्ति, पत्र ५९५