Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवां शतक : उद्देशक-१०
२३३ १९ [१] आया भंते ! रयणप्पभा पुढवी, अन्ना रयणप्पभा पुढवी ?
गोयमा ! रयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिए नो आया, सिय अवत्तव्वं—आया ति य, नो आया ति य।
[१९-१ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी आत्मरूप है या वह (रत्नप्रभापृथ्वी) अन्यरूप है ?
[१९-१ उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् आत्मरूप (सद्प) है और कथञ्चित् नो-आत्मरूप (असद्प ) है तथा (आत्मरूप भी है एवं नो-आत्मरूप भी है, इसलिए) कथञ्चित् अवक्तव्य है।
[२] से केणटेणं भंते! एवं वुच्चति 'रयणप्पभा पुढवी सिय आया, सिय नो आया, सिय अवत्तव्वं—आया ति य, नो आया ति य?'
गोयमा । अप्पणो आदितु आया, परस्स आदितु नो आया, तदुभयस्स आदिढे अवत्तव्वंरयणप्पभा पुढवी आया ति य, नो आया ति य। से तेण?णं तं चेव जाव नो आया ति य।
[१९-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् आत्मरूप, कथंचित् नो-आत्मरूप और कथंचित् आत्मरूप एवं नो-आत्मरूप (उभयरूप) होने से अवक्तव्य है ?
- [१९-२ उ.] गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी अपने स्वरूप से व्यपदिष्ट होने पर आत्मरूप (सद्रूप) है, पररूप से आदिष्ट (कथित) होने पर नो-आत्मरूप (असद्प ) है और उभयरूप की विवक्षा से कथन करने पर सद्असद्रूप होने से अवक्तव्य है। इसी कारण से हे गौतम ! पूर्वोक्त रूप से यावत् उसे अवक्तव्य कहा गया है।
२०. आया भंते ! सक्करप्पभा पुढवी ?० जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सक्करप्पभा वि। [२० प्र.] भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी आत्म(सद्)रूप है ? इत्यादि प्रश्न।
[२० उ.] गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के विषय में कथन किया गया है, वैसे ही शर्कराप्रभा के विषय में भी कहना चाहिए। ·
२१. एवं जाव अहेसत्तमा। [२१] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी (सप्तम नरक) तक कहना चाहिए। २२. [१] आया भंते ! सोहम्मे कप्पे ? ० पुच्छा। गोयमा ! सोहम्मे कंप्पे सिय आया, सिय नो आया, जाव नो आया ति य। [२२-१ प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प (प्रथम देवलोक) आत्मरूप (सद्प) है? इत्यादि प्रश्न है।
[२२-१ उ.] गौतम ! सौधर्मकल्प कथंचित् आत्मरूप है, कथञ्चित् नो-आत्मरूप है तथा कथञ्चित् आत्मरूप-नो-आत्मरूप (सद-असद्रूप) होने से अवक्तव्य है।