Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अबुद्धजागरिया २ सुदक्खुजागरिया ३' ?
गोयमा ! जे इमे अरहंता भगवंतो उप्पन्ननाण-दंसणधरा जहा खंदए ( स० २ उ० १ सु० ११) जाव सव्वणू सव्वदरिसो, एए णं बुद्धा बुद्धजागरियं जागरंति। जे इमे अणगारा भगवंतो इरियासमिता भासासमिता जाव गुत्तबंभचारी, एए णं अबुद्धा अबुद्धजागरियं जागरंति। जे इमे समणोवासगा अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति एते णं सुदक्खुजागरियं जागरंति। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चति 'तिविहा जागरिया जाव सुदक्खुजागरिया।'
[२५-२ प्र.] भगवन् ! किस हेतु से कहा जाता है कि जागरिका तीन प्रकार की है, जैसे कि—बुद्धजागरिका, अबुद्ध-जागरिका और सुदर्शन-जागरिका ? ।
_ [२५-२ उ.] हे गौतम ! जो उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक अरिहन्त भगवान् हैं, इत्यादि (शतक २ उ. १ सू. ११ में उक्त) स्कन्दक-प्रकरण के अनुसार जो यावत् सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हैं, वे बुद्ध हैं, वे बुद्धजागरिका (जागृत) करते हैं, जो ये अनगार भगवन्त ईर्यासमिति, भाषासमिति आदि पांच समितियों और तीन गुप्तियों से युक्त यावत् गुप्त ब्रह्मचारी हैं, वे अबुद्ध (अल्पज्ञ-छद्मस्थ) हैं। वे अबुद्ध-जागरिका (जागृत) करते हैं। जो ये श्रमणोपासक, जीव-अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता यावत् पौषधादि करते हैं, वे सुदर्शन-जागरिका (जागृत) करते हैं। इसी कारण से, हे गौतम ! तीन प्रकार की जागरिका यावत् सुदर्शन-जागरिका कही गई है।
विवेचन—त्रिविध जागरिका—प्रस्तुत सूत्र (२५) में गौतम स्वामी और भगवान् महावीर स्वामी के प्रश्नोत्तर के रूप में त्रिविध जागरिका का स्वरूप बताया गया है।
बुद्ध-जागरिका-केवलज्ञान-केवलदर्शन रूप अवबोध के कारण जो बुद्ध हैं, उन अज्ञान-निद्रा आदि . प्रमाद से रहित बुद्धों की जागरिका अर्थात्-प्रबोध, बुद्ध-जागरिका कहलाती है।
अबुद्ध-जागरिका—जो केवलज्ञान के अभाव में बुद्ध तो नहीं हैं किन्तु यथासम्भव शेष ज्ञानों के सद्भाव के कारण बुद्ध सदृश-अबुद्ध हैं, उन छद्मस्थ ज्ञानवान् अबुद्धों की जागरणा अबुद्ध-जागरिका कहलाती
सुदर्शन-जागरिका—जीवाजीवादितत्त्वज्ञ जो सम्यग्दृष्टि श्रमणोपासक पौषध आदि में प्रमाद, निद्रा आदि से रहित होकर धर्मजागरणा करते हैं, उनकी वह जागरणा सुदर्शन-जागरिका कहलाती है। शंख द्वारा क्रोधादि-परिणामविषयक प्रश्न और भगवान् द्वारा उत्तर ।
२६. तए णं से संखे समणोवासए समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता २ एवं वयासीकोहवसट्टे णं भंते ! जीवे किं बंधति ? किं पकरेति ? किं चिणाति ? किं उवचिणाति ?
संखा ! कोहवसट्टे णं जीवे आउयवजाओ सत्त कम्मपगडीओ सिढिलबंधणबद्धाओ एवं जहा
-भगवती. (जि. प्र. स. ब्यावर) खण्ड १.
१. जाव शब्द यहाँ ..........." अरहा जिणे केवली' आदि पाठ का सूचक है। २. भगवती. अभय. वृत्ति, पत्र ५५५-५५६