Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बारहवाँ शतक : उद्देशक-४
१५५ असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर एक परमाणुपुद्गल और एक ओर दो असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । अथवा एक ओर एक द्विप्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं । इस प्रकार यावत्-अथवा एक ओर एक संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर दो असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं। अथवा तीन असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
चार विभाग किये जाने पर—एक ओर तीन पृथक्-पृथक् परमाणु-पुद्गल और एक असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है। इस प्रकार चतु:संयोगी से यावत् दस संयोगी तक जानना चाहिए। इन सबका कथन संख्यात-प्रदेशों के (विकल्पों के) समान करना चाहिए। विशेष (अन्तर) इतना है कि एक असंख्यात शब्द अधिक कहना चाहिए, यावत्-अथवा दश असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
संख्यात विभाग किये जाने पर—एक ओर पृथक्-पृथक् संख्यात परमाणु-पुद्गल और एक ओर एक संख्यात प्रदेशी स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर संख्यात द्विप्रदेशिक स्कन्ध और एक ओर असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध होता है। इस प्रकार यावत्-एक ओर संख्यात दश-प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात-प्रदेश स्कन्ध होता है। अथवा एक ओर संख्यात-प्रदेशी स्कन्ध और एक ओर एक असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होता है, अथवा संख्यात असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध होते हैं।
उसके असंख्यात विभाग किये जाने पर पृथक्-पृथक् असंख्यात परमाणु-पुद्गल होते हैं।
विवेचन-असंख्यात-प्रदेशी स्कन्ध के विभागीय विकल्प असंख्यात प्रदेशी स्कस्ध में पहले बारह कह कर फिर ग्यारह-ग्यारह बढ़ाने से कुल ५१७ भंग होते हैं। वे इस प्रकार हैं-द्विकसंयोगी १२, त्रिकसयांगी २३, चतुष्कसंयोगी ३४, पंचसंयोगी ४५, षट्संयोगी ५६, सप्तसंयोगी ६७, अष्टसंयोगी ७८, नवसंयोगी ८९, दशसंयोगी १००, संख्यात-संयोगी १२ और असंख्यात-संयोगी एक। ये सब मिलकर ५१७ भंग हुए। अंनन्त परमाणु-पुद्गलों के संयोग-विभाग निष्पन्न भंग प्ररूपणा
१३. अणंता णं भंते ! परमाणुपोग्गला जाव किं भवति ?
गोयमा ! अणंतपएसिए खंधे भवति। से भिज्जमाणे दुहा वि, तिहा वि जाव दसहा वि, संखिजअसंखिज-अणंतहा वि कज्जइ।
दुहा कजमाणे एगयओ परमाणुपो०, एगयतो अणंतपएसिए० खंधे जाव अहवा दो अणंतपएसिया खंधा भवंति।
- तिहा कज्जमाणे एगयओ दो परमाणुपो०, एगयओ अणंतपएसिए० भवति, अहवा एगयओ परमाणुपो०, एगयओ दुपएसिए०, एगयओ अणंतपएसिए० भवति; जाव अहवा एगयओ परमाणुपो० एगयओ असंखेजपएसिए०, एगयओ अणंतपदेसिए खंधे भवति; अहवा एगयओ परमाणुपो०, एगयओ दो अणंतपएसिया० भवंति; अहवा एगयओ दुपएसिए०, एगयओ दो अणंतपएसिया भवंति; एवं जाव १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५६६