Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र __ हंता गोयमा ! असतिं अदुवा अणंतखुत्तो। __[५-१ प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप से यावत् वनस्पतिकायिक रूप से, नरक रूप में (नरकवासरूप पृथ्वीकायिकतया), पहले उत्पन्न हुआ है ?
[५-१ उ.] हाँ, गौतम ! (यह जीव पहले पूर्वोक्तरूप में) अनेक बार अथवा अनन्त बार (उत्पन्न हो चुका है)।
[२] सव्वजीवा वि णं भंते ! इमीसे रसणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरया०? त चेव जाव अणंतखुत्तो।
[५-२ प्र.] भगवन् ! क्या सभी जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, नरकपने और नैरयिकपने, पहले उत्पन्न हो चुके
हैं?
[५-२ उ.] (हाँ गौतम ! ) उसी प्रकार (पूर्ववत्) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं। ६. अयं णं भंते ! जीवे सक्करप्पभाए पुढवीए पणवीसाए.? एवं जहा रयणप्पभाए तहेव दो आलावगा भाणियव्वा। एवं धूमप्पभाए।
[६. प्र.] भगवन् ! यह जीव शर्कराप्रभापृथ्वी के पच्चीस लाख (नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में, पृथ्वीकायिक रूप में यावत् वनस्पतिकायिक रूप में, यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ?) .. . [६ उ.] गौतम ! जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी-विषयक दो आलापक कहे हैं, उसी प्रकार (शर्कराप्रभापृथ्वी के विषय में) दो आलापक कहने चाहिए। इसी प्रकार यावत् धूमप्रभापृथ्वी तक (के आलापक कहने चाहिए।)
७. अयं णं भंते ! जीवे तमाए पुढवीए पंचूणे निरयावाससयसहस्से एगमेगंसि०? सेसं तं चेव।
[७ प्र.] भगवन् ! क्या यह जीव तमःप्रभापृथ्वी के पांच कम एक लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में पूर्ववत् उत्पन्न हो चुका है ?
[७ उ.] (हां, गौतम! ) पूर्ववत् ही शेष सर्व कथन करना चाहिए।
८.अयंणं भंते ! जीवे अहेसत्तमाए पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहालएसु महानिरएसु एगमेगंसि निरयावासंसि०?
सेसं जहा रयणप्पभाए। [८ प्र.] भगवन् ! यह जीव अधःसप्तमपृथ्वी के पांच अनुत्तर और महातिमहान् महानरकावासों में क्या