Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
१९४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
एक्कं वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं अयासहस्सं पक्खिवेज्जा; ताओ णं तत्थ पउरगोयराओ पउरपाणियाओ जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे परिवसेज्जा, अत्थि णं गोयमा ! तस्स अयावयस्स केयि परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जे णं तासिं अयाणं उच्चारेण वा पासवणेण वा खेलेण वा सिंघाणएण वा वंतेण वा पित्तेण वा पूएण वा सुक्केण वा सोणिएण वा चम्मेहि सा रोमेहि वा सिंगेहि वा खुरेहिं वो नहेहिं वा अणोक्कंतपुव्वे भवति ? 'णो इणट्ठे समट्ठे । ' होजा वि णं गोयमा ! तस्स अयावयस्स केयि परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जे णं तासिं अयाणं उच्चारेण वा जाव नहेहिं वा अणोक्कंतपुव्वे नो चेव णं एयंसि एमहालयंसि लोगंसि लोगस्स य सासयभावं, संसारस्स य अणादिभावं जीवस्स च निच्चभावं कम्मबहुत्तं जम्मण-मरणाबाहुल्लं च पडुच्च नत्थि के परमाणुपोग्गलमेत्ते वि पएसे जत्थ ण अयं जीवे न जाए वा, न मए वा वि। से तेणट्टेणं तं चेव जाव न मए वा वि ।
[३-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि इतने बड़े लोक में परमाणुपुद्गल जितना कोई भी आकाशप्रदेश ऐसा नहीं है, जहाँ इस जीव ने जन्म-मरण न किया हो ?
[३-२ उ.] गौतम ! जैसे कोई पुरुष सौ बकरियों के लिए एक बड़ा अजाब्रज ( बकरियों का बाड़ा) बनाए। उसमें वह एक, दो या तीन और अधिक से अधिक एक हजार बकरियों को रखे। वहाँ उनके लिए घासचारा चरने की प्रचुर भूमि और प्रचुर पानी हो । यदि वे बकरियाँ वहाँ कम से कम एक, दो या तीन दिन और अधिक से अधिक छह महिने तक रहें तो हे गौतम ! क्या उस अजाब्रज ( बाड़े) का कोई भी परमाणु- पुद्गलमात्र प्रदेश ऐसा रह सकता है, जो उन बकरियों के मल, मूत्र, श्लेष्म (कफ), नाक के मैल (लींट), वमन, पित्त, शुक्र, रुधिर, चर्म, रोम, सींग, खुर और नखों से (पूर्व में अनाक्रान्त) अस्पृष्ट न रहा हो ? ( गौतम — ) ( भगवन् !) यह अर्थ समर्थ नहीं है। (भगवान् ने कहा — ) हे गौतम! कदाचित् उस बाड़े में कोई एक परमाणु- पुद्गलमात्र प्रदेश ऐसा भी रह सकता है, जो उन बकरियों के मल-मूत्र यावत् नखों से स्पृष्ट न हुआ हो, किन्तु इतने बडे इस लोक में, लोक के शाश्वतभाव की दृष्टि से, संसार के अनादि होने के कारण, जीव की नित्यता, कर्मबहुलता तथा जन्म-मरण की बहुलता की अपेक्षा से कोई परमाणु- पुद्गल - मात्र प्रदेश भी ऐसा नहीं है जहाँ इस जीव ने जन्ममरण नहीं किया हो। हे गौतम ! इसी कारण उपर्युक्त कथन किया गया है कि यावत् जन्म-मरण न किया हो।
विवेचन — प्रस्तुत सूत्र (स. ३) में बकरियों के बाड़े में उनके मल- - मूत्रादि से एक परमाणु- पुद्गलमात्र प्रदेश भी अछूता न रहने का दृष्टान्त देकर समझाया गया है कि लोक में ऐसा कोई परमाणुपुद्गलमात्र प्रदेश अछूता नहीं है जहाँ जीव ने जन्ममरण न किया हो ।
परमाणुपुद्गलमात्र प्रदेश अस्पृष्ट न रहने के कारण - (१) लोक शाश्वत है— यदि लोक विनाशी होता तो यह बात घटित नहीं हो सकती थी। लोक के शाश्वत होने पर भी यदि वह सादि (आदिसहित) हो तो भी उपर्युक्त बात घटित नहीं हो सकती, इसलिए कहा गया- (२) लोक अनादि है—अनन्त जीवों की अपेक्षा से प्रवाहरूप से संसार अनादि हो, किन्तु विवक्षित जीव अनित्य हो तो भी उपर्युक्त अर्थ घटित नहीं हो