Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
एक जीव या सर्वजीवों का माता आदि के, शत्रु आदि के, राजादि के तथा दासादि के रूप
में अनन्तशः उत्पन्न होने की प्ररूपणा
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२० [ १ ] अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं माइत्ताए पितित्ताए भाइत्ताए भगिणित्ताए भज्जत्ताए पुत्तत्ताए धूयत्ताए सुण्हत्ताए उववन्नपुव्वे ?
हंता, गोयमा ! असई अदुवा अनंतखुत्तो ।
[२०-१ प्र.] भगवन् ! यह जीव, क्या सभी जीवों के माता-रूप में, पिता-रूप में, भाई के रूप में, भगिनी के रूप में, पत्नी के रूप में, पुत्र के रूप में, पुत्री के रूप में, तथा पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? [२०-१ उ.] हाँ गौतम ! (यह जीव पूर्वोक्त रूपों में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो
चुका है।
[२] सव्वजीवा णं भंते ! इमस्स जीवस्स माइत्ताए जाव उववन्नपुव्वा ?
हंता, गोयमा ! जाव अनंतखुत्तो ।
[२०-२ प्र.] भगवन् ! सभी जीव क्या इस जीव के माता के रूप में यावत् पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ?
[२० - २उ.] हाँ, गौतम ! सब जीव, इस जीव के माता आदि के रूप में यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं ।
२१.[ १ ] अयं णं भंते ! जीवे सव्वजीवाणं अरित्ताए वेरियत्ताए घायगत्ताए वहंगत्ताए पडिणीयत्ताए पच्चामित्ताए उववन्नपुव्वे ?
हंता, गोयमा ! जाव अनंतखुत्तो ।
[२१-१ प्र.] भगवन् ! यह जीव क्या सब जीवों के शत्रु के रूप में, वैरी रूप में, घातक रूप में, वधक रूप में, प्रत्यनीक रूप में तथा प्रत्यामित्र (शत्रु- सहायक) के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ?
[ २१-१ उ.] हाँ गौतम ! (यह जीव, सब जीवों के पूर्वोक्त शत्रु आदि रूपों में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है।
[२] सव्वजीवा वि णं भंते !०
एवं चेव ।
[२१-२ प्र.] भगवन् ! क्या सभी जीव (इस जीव के पूर्वोक्त शत्रु आदि रूपों में) पहले उत्पन्न हो चुके
हैं ?
[२१-२ उ. ] हाँ गौतम ! (सभी कथन) पूर्ववत् (समझना चाहिए।)