Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
बारहवाँ शतक : उद्देशक-४
१६३ अतीया ?
अणंता।
[३०-१ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के पृथ्वीकाय के रूप में अतीत में औदारिकपुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए?
[३०-१ उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [२] केवतिया पुरेक्खडा ?
कस्सइ अत्थि, कस्सइ नत्थि। जस्सऽत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेज्जा वा अणंता वा।
[३०-२ प्र.] भगवन् ! भविष्य में कितने होंगे?
[३०-२ उ.] किसी के होंगे, और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगे।
३१. एवं जाव मणुस्सत्ते। [३९] इसी प्रकार (अप्कायत्व से लेकर) यावत् मनुष्य भव तक कहना चाहिए। ३२. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियत्ते जहा असुरकुमारत्ते।
[३२] जिस प्रकार असुकुमारपन के विषय में कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तरपन, ज्योतिष्कपन तथा वैमानिकपन के विषय में कहना चाहिए।
३३. एगमेगस्स णं भंते ? असुरकुमारस्स नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? एवं जहा नेरइयस्स वत्तव्बया भणिया तहा असुरकुमारस्स वि भाणियव्वा जाव वेमाणियत्ते। [३३ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के नैरयिक भव में अतीत औदारिक-पुद्गलपरिवर्त्त कितने हुए
[३३ उ.] गौतम! जिस प्रकार (प्रत्येक) नैरयिक जीव की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार (प्रत्येक) असुरकुमार के विषय में यावत् वैमानिक भव-पर्यन्त कहना चाहिए।
३४. एवं जाव थणियकुमारस्स। एवं पुढविकाइयस्स वि। एवं जाव वेमाणियस्स। सव्वेसिं एक्को गमो।
[३४] इसी प्रकार (प्रत्येक असुरकुमार के समान नागकुमार से लेकर प्रत्येक) स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक पृथ्वीकाय के विषय में भी (पृथ्वीकाय से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त सबका एक (समान) आलापक (गम)कहना चाहिए।