Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पसत्थदोहला संपुण्णदोहला सम्माणियदोहला अविमाणियदोहला वोच्छिन्नदोहला विणीयदोहला ववगयरोग-सोग-मोह-भय परित्तासा तं गब्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। . [३६] तदनन्तर प्रभावती देवी ने स्नान किया, शान्तिकर्म किया और फिर समस्त अलंकारों से विभूषित हुई। तत्पश्चात् वह अपने गर्भ का पालन करने लगी। अब गर्भ का पालन करने के लिए वह न तो अत्यन्त शीतल (ठण्डे) और न अत्यन्त उष्ण, न अत्यन्त तिक्त (तीखे) और न अत्यन्त कडुए, न अत्यन्त कसैले, न अत्यन्त खट्टे और न अत्यन्त मीठे पदार्थ खाती थी परन्तु ऋतु के योग्य सुखकारक भोजन आच्छादन (आवास या वस्त्र), गन्ध एवं माला का सेवन करके गर्भ का पालन करती थी। वह गर्भ के लिए जो भी हित, परिमित, पथ्य तथा गर्भपोषक पदार्थ होता, उसे ग्रहण करती तथा उस देश और काल के अनुसार आहार करती रहती थी तथा जब वह दोषों से रहित (वियुक्त) मृदु शय्या एवं आसनों से एकान्त शुभ या सुखद मनोनुकूल विहारभूमि में थी, तब प्रशस्त दोहद उत्पन्न हुए, वे पूर्ण हुए। उन दोहदों को सम्मानित किया गया।
किसी ने उन दोहदों की आवमानना नहीं की। इस कारण वे दोहद समाप्त हुए, सम्पन्न हुए। वह रोग, शोक, मोह, भय, परित्रास आदि से रहित होकर उस गर्भ को सुखपूर्वक वहन करने लगी।
विवेचन—प्रभावती रानी द्वारा गर्भ का परिपालन—प्रस्तुत ३५-३६ सूत्र में दो तथ्यों का निरूपण किया गया है—(१) प्रभावती रानी द्वारा स्वप्न का शुभ फल जान कर हर्षाभिव्यक्ति एवं (२) गर्भ का भलीभांति पालन।
_ 'पसत्थदोहला' आदि शब्दों का भावार्थ-पसत्थदोहला-उसके दोहद अनिन्द्य थे। संपुण्णदोहला—दोहद पूर्ण किये गये। सम्माणियदोहला-अभिलाषा के अनुसार उसके दोहद सम्मानित किये गये। अविमाणियदोहला—क्षणभर भी लेशमात्र भी दोहद अपूर्ण न रहे। वोच्छिन्नदोहला गर्भवती की मनोवाँछाएँ समाप्त हो गईं। विणीयदोहला—सब दोहले सम्पन्न हो गए। हियं मियं पत्थं गब्भपोसणंगर्भ के लिए हितकर, परिमित, पथ्यकर एवं पोषक। उउभयमाणसुहेहिं—प्रत्येक ऋतु में उपभोग्य सुखकारक। विवित्तमउएहि-विविक्त—दोषरहित एवं कोमल।' पुत्रजन्म, दासियों द्वारा बधाई और उन्हें राजा द्वारा प्रीतिदान
___३७. तए णं सा पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीतिक्कंताणं सुकुमालपाणि-पायं अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरं लक्खण-वंजण-गुणोववेयं जाव ससिसोमागारं कंतं पियदंसण सुरूवं दारयं पयाता।
१. पाठान्तर—"सुहंसुहेणं आसयइ सुयइ चिट्ठइ निसीयइ तुयट्टइ।" अर्थात्-गर्भवती प्रभावती देवी सुखपूर्वक आश्रय
लेती है, सोती है, खड़ी होती है, बैठती है, करवट बदलती है। -भगवती अ. वृत्ति, पत्र ५४३ २. वियाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५४४-५४५ ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४३