Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्खाप्रज्ञप्तिसूत्र लिए पधारे तथा बहुत से लोगों में परस्पर (मुद्गल परिव्राजक को अतिशय ज्ञान-दर्शनोत्पत्ति की उपर्युक्त) चर्चा होली हुई सुनी। शेष सब वर्णन पूर्ववत् (श. ११, उ.७, सू. १२ के अनुसार) कहना चाहिए, यावत् (भगवान् से गौतमस्वामी द्वारा पूछने पर उन्होंने इस प्रकार कहा-) गौतम ! मुद्गल परिव्राजक का कथन असत्य है। मैं इस प्रकार प्ररूपणा करता हूँ, इस प्रकार प्रतिपादन करता हूँ यावत् इस प्रकार कथन करता हूँ—"देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति तो दस हजार वर्ष की है; किन्तु इसके उपरान्त एक समय अधिक, दो समय अधिक, यावत् उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है। इससे आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हो गए हैं।"
विवेचन-मुद्गल परिव्राजक के कथन की सत्यासत्यता का निर्णय प्रस्तुत २० वें सूत्र में गौतमस्वामी द्वारा मुदगल परिव्राजक के कथन की सत्यता-असत्यता के विषय में पछे जाने पर भगवान द्वारा दिये निर्णय का निरूपण है।
२१. अत्थि णं भंते ! सोहम्मे कप्पे दव्वाइं सव्वण्णाई पि अवण्णाई पि तहेव (स० ११ उ० ९ सु० २२) जाव हंता, अत्थि।
[२१ प्र.] भगवन् ! क्या सौधर्म-देवलोक में वर्णसहित और वर्णरहित द्रव्य अन्योऽन्यबद्ध यावत् सम्बद्ध हैं ? इत्यादि पूर्ववत् (श० ११, उ० ९, सू० २२ के अनुसार) प्रश्न।
[२१ उ.] हाँ, गौतम ! हैं। । २२. एवं ईसाणे वि। एवं जावं अच्चुए एवं गेविजविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु विं, ईसिपब्भाराए वि जाव हंता, अत्थि।
[२२ प्र.] इसी प्रकार क्या ईशान देवलोक में यावत् अच्युत देवलोक में तथा ग्रैवेयक विमानों में और . ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में भी वर्णादिसहित और वर्णादिरहित द्रव्य हैं ?
[२२ उ.] हाँ, गौतम ! हैं। २३. तए णं सा महतिमहालिया जाव पडिगया। [२३] तदनन्तर वह महती परिषद् (धर्मोपदेश सुन कर) यावत् वापस लौट गई।
विवेचन—समस्त वैमानिक देवलोकों में वर्णादि से सहित एवं रहित द्रव्यसंबंधी प्ररूपणाप्रस्तुत दो सूत्रों (२१-२२) में सौधर्म देवलोक से लेकर अनुत्तरविमानों तक तथा ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में वर्णादिसहित एवं वर्णादिरहित द्रव्यों की सम्बद्धता की प्ररूपणा की गई है तथा २३वें सूत्र में महती परिषद् के लौटने का वर्णन है। मुद्गल परिव्राजक द्वारा निर्ग्रन्थप्रव्रज्याग्रहण एवं सिद्धिप्राप्ति
२४. तए णं आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिय० अवेससं जहा सिवस्स (स० ११ उ० ९ सु० २७-३२) जाव सव्वदुक्खप्पहीणे, णवरं तिदंड-कुंडियं जाव धाउरत्तवत्थपरिहिए परिवडियविन्भंगे आलभियं नगरि मझमझेणं निग्गच्छति जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवक्कमति, उत्तर० अ० २
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५५८