Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-११
__ [३७] इसके पश्चात् नौ महीने और साढ़े सात दिन परिपूर्ण होने पर प्रभावती देवी ने, सुकुमाल हाथ और पैर वाले, हीन अंगों से रहित, पांचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाले तथा लक्षण-व्यञ्जन और गुणों से युक्त यावत् चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति वाले, कान्त, प्रियदर्शन एवं सुरूप पुत्र को जन्म दिया।
___ ३८. तए णं तीसे पभावतीए देवीए अंगपडियारियाओ पभावतिं देविं पसूयं जाणेत्ता जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति, उवा० २ करयल जाव बलं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, ज० व० २ एवं वदासी—एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावती देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव दारयं पयाता, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पियट्ठताए पियं निवेदेमो, पियं ते भवउ।
[३८] पुत्र जन्म होने पर प्रभावती देवी की अंगपरिचारिकाएँ (सेवा करने वाली दासियाँ) प्रभावती देवी को प्रसूता (पुत्रजन्मवती) जान कर बल राजा के पास आईं, और हाथ जोड़कर उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया। फिर उन्होंने राजा से इस प्रकार निवेदन किया—हे देवानुप्रिय ! प्रभावती देवी ने नौ महीने और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर यावत् सुरूप बालक को जन्म दिया है । अत: देवानुप्रिय की प्रीति के लिए हम यह प्रिय समाचार निवेदन करती हैं। यह आपके लिए प्रिय हो।
३९. तएणं से बले राया अंगपडियारियाणं अंतियं एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ जाव धाराहयणीव जाव रोमकूवे तासिं अंगपडियारियाणं मउडवजं जहामालियं ओमोयं दलयति, ओ० द० २ सेतं रययमयं विमलसलिलपुण्णं भिंगारंपगिण्हति, भिं० प० २ मत्थए धोवति, म० धो० २ विउलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयति, वि० द० २ सक्कारेइ सम्माणेइ, स० २ पडिविसज्जेति।।
[३९] अंगपरिचारिकाओं (दासियों) से यह (पुत्रजन्मरूप) प्रिय समाचार सुन कर एवं हृदय में धारण कर बल राजा हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ; यावत् मेघ की धारा से सिंचित कदम्बपुष्प के समान उसके रोमकूप विकसित हो गए। बल राजा ने अपने मुकुट को छोड़ कर धारण किये हुए शेष सभी आभरण उन अंगपरिचारिकाओं को (पारितोषिकरूप में) दे दिये। फिर सफेद चांदी का निर्मल जल से भरा हुआ कलश लेकर उन दासियों का मस्तक धोया अर्थात् उन्हें दासीपन से मुक्त-स्वतंत्र कर दिया। उनका सत्कार-सम्मान किया और विदा किया।
विवेचन-पुत्रजन्म, बधाई, राजा द्वारा प्रीतिदान–प्रस्तुत तीन सूत्रों (३७ से ३९ तक) में तीन घटनाओं का निरूपण किया गया है—(१) प्रभावती रानी के पुत्र का जन्म, (२) अंगपरिचारिकाओं द्वारा बल राजा को बधाई और (३) बल राजा द्वारा दासियों का मस्तक-प्रक्षालन अर्थात् पुत्रजन्म के हर्ष में उन्हें दासत्व से मुक्त करना, जीविकायोग्य प्रीतिदान देना और सत्कार-सम्मानपूर्वक विसर्जन।'
कठिन शब्दों का भावार्थ-अद्धट्ठमाण य राइंदियाण—साढ़े सात रात्रिदिन ।अंगपडियारियाओअंगपरिचारिकाएँ—दासियाँ, सेविकाएँ। पियट्ठताए–प्रीति के लिए। मउडवजं—मुकुट के सिवाय। जहामालियं जिस प्रकार (जो) धारण किये हुए (पहने हुए) थे। ओमोयं आभूषण। दलयति दे देता है।'
१. वियाहपण्णत्तिसुतं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५४५ २. (क) भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. ४, पृ. १९४३ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ५४३