Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
करके राजा से निवेदन किया ।
विवेचन—उपस्थानशाला को सुसज्जित करके सिंहासनस्थापन का आदेश — प्रस्तुत २७-२८ सूत्रों में राजा द्वारा कौटुम्बिक पुरुषों को बुला कर उपस्थानशाला की सफाई तथा सजावट आदि करके सिंहासन रखने को दिये गये आदेश आदि का निरूपण है ।
बल राजा द्वारा स्वप्नपाठक आमंत्रित
२९. तए णं से बले राया पच्चूसकालसमयंसि सयणिज्जाओ समुट्ठेति, स० स० २ पापीढ पच्चोरुभति, प० २ जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ अट्टणसालं अणुपविसइ जहा उववातिए तहेव अट्टणसाला तहेव मज्जणघरे जाव ससि व्व पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ डिनिक्खमति, म० प० २ जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमु निसियति, नि० २ अप्पणो उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भासणाई सेयवत्थपच्चत्थुयाई सिद्धत्थगकयमंगलोवयाराइं श्यावेइ, रया० अप्पणो अदूरसामंते णाणामणिरयणमंडियं अहियपेच्छणिज्जं महग्घवरपट्टणुग्गयं सण्हपट्टभत्तिसयचित्तताणं ईहामियउसभ जाव भत्तिचित्तं अब्भिंतरियं जवणियं अंछावेति, अ० २ नाणामणि- रयणभत्तिचित्तं अत्थरयमउयमसूरगोत्थगं सेयवत्थपच्चत्थुतं अंगसुहफासयं सुमउयं पभावतीए देवीय भद्दासणं रयावेइ, र० २ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, को० स० एवं वदासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अटुंगमहानिमित्तसुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खणपाढए सद्दावेह |
[ २९] इसके पश्चात् बल राजा प्रातःकाल के समय अपनी शय्या से उठे और पादपीठ से नीचे उतरे। फिर वे जहाँ व्यायामशाला (अट्टनशाला) थी, वहाँ गए। व्यायामशाला में प्रवेश किया । व्यायामशाला तथा स्नानगृह कार्य का वर्णन औपपातिकसूत्र के अनुसार जान लेना चाहिए, यावत् चन्द्रमा के समान प्रिय-दर्शन बन कर वह नृप, स्नानगृह से निकले और जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी वहाँ आए । ( वहाँ रखे हुए) सिंहासन पर पूर्वदिशा की ओर मुख करके बैठे। फिर अपने से उत्तरपूर्व दिशा (ईशानकोण) में (अपनी बायीं ओर) श्वेतवस्त्र से आच्छादित तथा सरसों आदि मांगलिक पदार्थों से उपचरित आठ भद्रासन रखवाए। तत्पश्चात् अपने से न अतिदूर और न अतिनिकट अनेक प्रकार के मणिरत्नों से सुशोभित, अत्यधिक दर्शनीय, बहुमूल्य श्रेष्ठ पट्टन में निर्मित सूक्ष्म पट पर सैकड़ों चित्रों की रचना से व्याप्त, ईहामृह, वृषभ आदि के यावत् पद्मलता के चित्र से युक्त आभ्यन्तरिक (अन्दर की) यवनिका (पर्दा) लगवाई। (उस पर्दे के अन्दर ) अनेक प्रकार के मणिरत्नों से एवं चित्रों से रचित विचित्र खोली (अस्तर) वाले, कोमल वस्त्र (मसूरक) से आच्छादित, तथा श्वेत वस्त्र चढ़ाया हुआ, अंगों को सुखद स्पर्श वाला तथा सुकोमल गद्दीयुक्त एक भद्रासन रखवा दिया। फिर बल राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उन्हें इस प्रकार कहा हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही अष्टांग महानिमित्त के सूत्र और अर्थ के ज्ञाता, विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्न शास्त्र के पाठकों को बुला लाओ।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ५४० - ५४१