Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र खीर-सागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहासेलपंडुरतरोरुरमणिजपेच्छणिज्जं थिरलट्ठपउट्ठवट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबितमुहं परिकम्मियजच्चकमलकोमल-माइयसोभंतल?उटुं रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगतावितआवत्तायंतवट्टतडिविमलसरिसनयणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविपुलखंधं मिउविसदसुहमलक्खणपसत्थवित्थिण्ण-केसरसडोवसोभियं ऊसियसुनिमितसुजातअप्फोडितणंगूलं सोमं सोमाकारं लीलायंतं जंभायंतं नहयलातो ओवयमाणं निययवदणकमलसरमतिवयंतं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा।
[२३] किसी दिन वह प्रभावती देवी उस प्रकार के वासगृह के भीतर, उस प्रकार की अनुपम शय्या पर (सोई हुई थी।) (वह वासगृह) भीतर से चित्रकर्म से युक्त तथा बाहर से सफेद किया हुआ, एवं घिस कर चिकना बनाया हुआ था। जिसका ऊपरी भाग विविध चित्रों से युक्त तथा अधोभाग प्रकाश से देदीप्यमान था। मणियों और रत्नों के कारण उस (वासभवन) का अन्धकार नष्ट हो गया था। उसका भूभाग बहुतसम और सुविभक्त था। (फिर वह) पांच वर्ण के सरस और सुगन्धित पुष्पपुंजों के उपचार से युक्त था। उत्तम कालागुरु (काला अगर), कुन्दरुक और तुरुष्क (शिलारस) के धूप से वह वासभवन चारों ओर से महक रहा था। उसकी सुगन्ध से वह अभिराम तथा सुगन्धित पदार्थों से सुवासित था। एक तरह से वह सुगन्धित द्रव्य की गुटिका के जैसा हो रहा था। ऐसे आवासभवन में जो शय्या थी, वह अपने आप में अद्वितीय थी तथा शरीर के स्पर्श करते हुए उदाधान (पार्श्ववर्ती तकिये) से युक्त थी। फिर उस (शय्या) के दोनों (सिराहने और पादतल की) ओर तकिये रखे हुए थे। वह (शय्या) दोनों ओर से उन्नत थी, बीच में कुछ झुकी हुई एवं गहरी थी, एवं गंगानदी की तटवर्ती बालू अवदाल (पैर रखते ही नीचे धस जाने) के समान (अत्यन्त कोमल) थी। वह परिकर्मित (मुलायम बनाए हुए) क्षौमिक (रेशमी) दुकूलपट (चादर) से आच्छादित तथा सुन्दर सुरचित रजस्त्राण से युक्त थी। रक्तांशुक (लालरंग के सूक्ष्म वस्त्र) की मच्छरदानी उस पर लगी हुई थी। वह सुरम्य आजिनक (एक प्रकार के कोमल चर्मवस्त्र), रूई, बूर, नवनीत (मक्खन) तथा अर्कतूल (आक की रूई) के समान कोमल स्पर्श वाली थी; तथा सुगन्धित श्रेष्ठपुष्प, चूर्ण एवं शयनोपचार (शयनोपकरण) से युक्त थी।
ऐसी शय्या पर सोती हुई प्रभावती रानी, जब अर्धरात्रिकाल के समय कुछ सोती-कुछ जागती अर्धनिद्रित अवस्था में थी, तब स्वप्न में इस प्रकार का उदार, कल्याणरूप, शिव, धन्य, मंगलकारक एवं शोभायुक्त (सश्रीक) महास्वप्न देखा और जागृत हुई।
प्रभावती रानी ने स्वप्न में एक सिंह देखा, जो (मोतियों के) हार, रजत (चांदी), क्षीरसमुद्र, चन्द्रकिरण, जलकण, रजतमहाशैल के समान श्वेत वर्ण वाला था, (साथ ही) वह विशाल, रमणीय और दर्शनीय था। उसके प्रकोष्ठ स्थिर और सुन्दर थे। वह अपने गोल, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट और तीक्ष्ण दाढाओं से युक्त मुंह को फाड़े हुए था। उसके ओष्ठ संस्कारित जातिमान् कमल के समान कोमल, प्रमाणोपेत एवं अत्यन्त सुशोभित थे। उसका तालु
और जीभ रक्तकमल के पत्ते के समान अत्यन्त कोमल थी। उसके नेत्र, मूस में रहे हुए एवं अग्नि में तपाये हुए तथा आवर्त करते हुए उत्तम स्वर्ण के समान वर्ण वाले, गोल एवं विद्युत के समान विमल (चमकीले) थे। उसकी जंघा विशाल एवं पुष्ट थी। उसके स्कन्ध (कन्धे) परिपूर्ण और विपुल थे। वह मृदु (कोमल), विशद, सूक्ष्म एवं