Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
वह जन्म परम्परा के साथ ममत्व परम्परा का उल्लंघन नहीं कर पाता। इसी कारण कर्मबन्धन की शृंखला से मुक्त नहीं हो पाता।
___ पूर्वोक्त गाथाओं में बन्धन और उसके कारणों का स्वरूप बताया गया, अब 'कि वा जाणं तिउट्टइ' इस प्रश्न को ध्यान में रख कर शास्त्रकार समाधान करते हैं
मूल पाठ वित्त सोयरिया चेव, सव्वमेयं न ताणइ । संखाए जीवियं चेव, कम्मणा उ तिउटइ ।। ५ ।।
संस्कृत छाया वित्तं सोदर्याश्चैव सर्वमेतत्न त्राणाय । संख्याय जीवितञ्चैव कर्मणस्तु त्रुट्यति ॥ ५ ॥
अन्वयार्थ (वित्त) धन-सम्पत्ति (चेव) और (सोयरिया) सहोदर भाई, बहन, आदि (सव्वं एयं) ये सब, (न ताणइ) रक्षा नहीं कर सकते । (संखाए) यह जान कर (जीवियं चेव) तथा जीवन को भी स्वल्प जानकर जीव (कम्मुणा उ) कर्म से (तिउट्टइ) पृथक हो जाता है।
भावार्थ चल-अचल, सचित्त-अचित्त, धन-सम्पत्ति एवं सगे भाई-भगिनी आदि ये सब रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं तथा जीवन भी स्वल्प है—यह भलीभाँति जानकर ही जीव कर्म से पृथक हो जाता है।
व्याख्या
बन्धन तोड़ने का उपाय
इस अध्ययन की प्रथम गाथा में यह पूछा गया था-'क्या और किस को जानकर व्यक्ति बन्धन को तोड़ पाता है ?' इसके उत्तर में इस गाथा में बन्धन तोड़ने और कर्मबन्धन से पृथक होने का सरल उपाय बताया है-'संखाए जीवियं
१. 'वित्त ण ताणं न लभ पमत्त इमम्मि लोए अदुवा परत्थ' (प्रमादी मनुष्य सचित
अचित या चल-अचल धन से इस लोक में या परलोक में कोई त्राण-शरण या सुरक्षा नहीं पा सकता)।
----उत्तराध्ययन
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