Book Title: Haribal Macchino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुनि लब्धि विजयजी कृत हरिबल महीनो रास. जीवदयाफलमाहात्म्यरूप. ए रासने यथामति शुरू करी करुणामय सम्यक्दृष्टि जनोने वांचवाने अर्थे श्रावक नीमसिंह माणके श्री मोहमयी पत्तन मध्ये निर्णयसागर नामक मुद्रा यंत्रमा छपावी प्रसिद्ध करयो छे. संवत् १९४५ सने १८८९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अथ पंमित लब्धिविजय विरचित श्री हरिबलमचीनो रास प्रारंभः ৯ ॥ दोहा ॥ ॥ प्रथम धराधव जगधणी, प्रथम श्रमण पण एह ॥ प्रथम तीर्थंकर जग जयो, प्रथम गुरू पनणेह ॥ १ ॥ विश्व स्थिति कारक प्रथम, कारक विश्व उद्योत ॥ धा रक अतिशय व्यादि जिन, तारक नवनिधि पोत ॥ २ ॥ लघुवय वा इकुनी, पारण दिन पण तेह ॥ मिष्ट इष्ट जेहने सदा, नानिनंदन प्रणमेह ॥ ३ ॥ सिद्धव धूना संगमें, बक बक्यो दिन रात ॥ हुं तस पदपंक ज नमुं, नित्य नठी परजात ॥ ४ ॥ हंसासन जे स रसती, वरसति वचन विलास ॥ कविजन केरा हृद यमें, करती बुद्धि प्रकाश ॥ ५ ॥ ते हुं प्रणमुं नारती, वारति जड अंधार ॥ मुऊ मन मंदिरमें वसी, करवा मुऊ उपगार ॥ ६ ॥ माता मुऊ महोटो करी, देजे व चन रसाल ॥ रंगरंगीली जनसना, सांजले थइ नज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) माल ॥ ७ ॥ जे हुं चाहुं चित्तमें, ते तूं करजे मात ॥ वचननी रचना रस दियो, वाधे तुक याख्यात ॥ ॥ ८ ॥ गुरु ज्ञाता माता पिता, गुरुथी अधिक न कोय ॥ देवधर्म गुरु उलख्या, बलिहारी गुरु सो य ॥ ए ॥ ते गुरु चरण नमी करी, नवियाने हित कार ॥ रास रचुं हरिबन तणो, पुण्य उपर अधि कार ॥ १० ॥ पुण्यें वंबित पामीयें, पुण्यें लहि नव नीध ॥ पुष्यें महिला संपजे, पुण्यें ६ समृ-६ ॥ ११ जीवदया पाली जिणें, तिल उपराज्यं पुष्य ॥ सुर नर तस सानिध करे, माने ते दिन धन्य ॥ १२ ॥ जीव दयाथकी पामियो, हरिबल मही राय ॥ तास संबंध सुतां थकां सघलां पातक जाय ॥ १३ ॥ रासस रस सुतां थकां जे को करशे वात ॥ तेहने तस व नन तणा, सम देनं बरं सात ॥ १४ ॥ जिम मृग नाद लिलो रहे, निसु थइ एकरंग ॥ तिम सुणजो नवि यण तुमें, प्राणी चित्त अनंग ॥ १५ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ रसीयानी देशी ॥ लक्ष योजननो रे जंबुद्दीप ए कह्यो, शाश्वत वर्तुलाकार || सोनागी ॥ तेहमें दे त्र ए नंद सोहामणुं, कुलगिरि सात कह्या सार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) सो० ॥ १ ॥ जाव धरीने रे नवि तुमें सांजलो ॥ रसि या देई रे कान || सो० ॥ सुतां सुतां रंग रस क पजे, मुखमें राख्यां जिम पान ॥ सो० ॥ २॥ ना० ॥ क्षेत्र तिनमें करमी वसे तिहां, यसि मशि कृषी रोजगार ॥ सो० ॥ याजीविकायें जीव जीवाडवा, याख्या ए तीन व्यापार || सो॥३॥ ना० ॥ बीजां क्षेत्र जे जुगलां धर्मनां, जाख्यां कर मि उदार ॥ सो० ॥ तिहां को व्यापार तीनमें नवि लहें, बे कल्पवृदना चाहार ॥ सो० ॥४॥ ना० ॥ तेहमें पटयुगला दिक क्षेत्र जे, भरत ने ऐरवत विदेह || सो० ॥ ए नव देत्र जंबुद्धीपमां, शो जित शोने ने एह ॥ सो० ॥ ५॥ ना० ॥ ए नव क्षेत्र सात बे कुल गिरि, तेहनो प्रतिही विस्तार ॥ सो० ॥ देत्र समास में गुरुमुख सांगली, धायो तास विचार || सो० ॥ ६ ॥ ना० ॥ पण इहां हरिबल मी रायनुं, चरित्र सु यो चित्त लाय ॥ सो० ॥ लोक खाणो जगमां इम कहे, जे परणे ते गवाय ॥ सो० ॥ ७ ॥ ना० ॥ हवे इहां जंबुद्दीपें यति नलुं, जरत क्षेत्र कहाय ॥ सो० ॥ पांचों वीरा योजन पटकला, धनुषाकारें सोहा य ॥ सो० ॥ ॥ ना० ॥ सहस बत्रीश ते जन पद तेहमां, तेहना खत खंम होय ॥ सो० ॥ तिल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) वचमें पड्यो वैताढ्य रजतनो, जोयल पचासनो जोय ॥ सो० ॥ ए ॥ ना० ॥ पटखंरुमें खंरु तिन तिन तेणें करया, दक्षिण उत्तर श्रेणि ॥ सो० ॥ सो ल सोल सहस ए जनपद में रहे, वसती अनार्य नी तेा ॥ सो० ॥ १० ॥ जा० ॥ साढा पचवीश धारय प्रति नला, केकै अर्ध समेत ॥ सो० ॥ श्रीजि नधर्मनो वास तिहां जहे, सहस बत्रीश मध्य एत ॥ ॥ सो० ॥ ११॥ ना० ॥ ते माटे इहां धारय देशमां, कनकपुरी निधान ॥ सो० ॥ साव सोनामय सुंदर शोजती, अमरपुरी उपमान ॥ सो० ॥ १२ ॥ जा० ॥ नलिनीगुल्म विमान तणी परें, एकविश भूमि श्रा वास ॥ सो० ॥ रतन जटितमें गोरख विराजता, कर ता तेज प्रकाश ॥ सो० ॥ १३ ॥ जा० ॥ कुंतीया व परें हटश्रेणि राजती, बाजती विजयनी पंक्ति ॥ सो० ॥ देश देशांतर विराज करे बहु, वरसे वसु धारा शक्ति || सो० ॥ १४ ॥ ना० ॥ धनवंत धनद जंमारी सारिखा, बसे तिहां नगरीमां लोक ॥ सो०॥ पंच विषयना रसमेंलीया रहे, जोगी चातुर लोक ॥ ॥ सो० ॥ १५ ॥ जा० ॥ षट दरशनना पोषक जन बहु, पाले निज निज धर्म ॥ सो० ॥ घर घर शत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) कार करे घणा, लेहवा शिव सुख हर्म ॥सो॥१६॥ ॥ना॥ जिनशासनना- देवल दीपतां, बत्रीश थडा प्रासाद ॥ सो॥ चोराशी मंम्प अति चोपगुं, कर ता स्वरगा वाद ॥ सो० ॥ १७ ॥ ना०॥ दंमधजा अतिपवनें फरहरे, नाचे माचे मनरंग ॥ सो ॥ध न्य दिवस मुज जिन शिर ढुं चढी,पावन करवा मुफ अंग ॥ सो० ॥१७॥ना ॥ श्रीजिन केरी जगति करे सदा, नविक जीव अपार ॥ सो ॥ तीर्थकर पद ते उपराजता, रावनी परें सार ॥ सो॥१॥ना॥ वरण अढार वसे तिण नगरीयें, जाणियें सुर अव तार ॥ सो० ॥ गढ मढ मंदिर पोलि शोना घणी, नू रमणी तरहार ॥ पानंतर॥नगर कनकपुरनामें शोन तुं, स्वर्गपुरी अनुहार ॥ सो॥२॥जा॥ नंदनवन सम परिमल वाटिका, चिटुंदिशि नगरीनी पास ॥ ॥ सो॥ वापी कूप सरोवर जल नयां,खटकतु फलें सुखास ॥ सो॥ २१ ॥ ना०॥ काल उकाल ते को नवि उलखे, अहोनिश सुखनी ने वात ॥सो॥ इति नपश्व सुपनें नवि जाणे, पुहवीयें प्रगटीए ख्यात ॥ सो० ॥ २२॥ ना० ॥ कनकपुरीना ए गुण सां नली, लाजी संका तिवार ॥ सो ॥ जलनिधिमां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जइबूडी बापडी, जाणे सकल संसार ॥ सो॥ ॥ २३ ॥ जाण ॥ स्वर्गपुरी पण ननमा जइ रही, नि सुपी तेहना अवाज ॥ सो० ॥ एह नगरी कनक पुरी तणी, दिन दिन चढती लाज ॥ सो॥ २४ ॥ ॥ना०॥ कनक पुरीनां रे वयण वखाणतां, पनणी पहेली ए ढाल ॥ सो ॥लब्धिविजय कहे नवियण सांनलो, आगल वात रसाल ॥ सो० ॥श्याना॥ ॥दोहा॥ ॥तिण नगरीयें राजवी,वसंतसेन नूपाल ॥ न्यायि निपुण वसुदेव ज्यु, करुणावंत कपाल ॥१॥ वाक्य वबल हरिचंद जिस्यो,नुजबलि नीमसमान ॥ अरिय सघला वश करी, कृतास्यां तस मान ॥ ३ ॥ पर जाने पाले सदा, करे हथेली बांह ॥ दाण जगात दिसे नही, करदंम बंधन क्यांह ॥३॥ करदम मुनि देनल शिरें, बंधन स्त्रीशिरकेश ॥ वसंतसेन नृप णि परें, पाले राज्य विशेष ॥४॥ तस पटराणी पद मिनी, रूपें रंन समान ॥ शील सुरंगी गुनमती. व संतसेना अनिधान ॥ ५॥ मालती मधुकरनी परें, प्रीतडी जिम जल मीन ॥ तिम नृपराणी एकमना, रंगें रहे लय लीन ॥६॥ दोगुंउक सुरनी परें, पंचविषय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) सुख जोग ॥ नृपराणी विलसे सदा, पूर्वपुण्य संयोग ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ ॥ रहो रहो रहो रहो वाल्हा ॥ जगजीवन ॥ ए देशी ॥ विलसे जोग ते राजवी, वसंतसेना साथ लाल रे ॥ जन्म सफल लेखे गणे, जाणे पाम्यो याथ लाल रे ॥ १ ॥ सुगुण सनेहा सांगतो, यागल वात रसाल ना० ॥ जीवदया पाली जिणें, ते लह्यो मंगल माल ला०॥ ॥ २ ॥ सु०॥ राज ऋद्धि रमणी घणी, पूरव पुण्यपसाय ला० ॥ सुरपतिनी परें राजवी, पुहवीयें ते गवराय ला० ॥ ३ ॥ सु० ॥ पण तस पुत्र ते को नही, तेणें चिंतातुर होय जा० ॥ प्राय उपाय करे घणा, टेकी न लागे को ला ० ॥ ४ ॥ ० ॥ देव दाणव लख जो मजे, तो पण तिथी न थाय ला० ॥ कर्म आागल चाले नही, जो करे लक्ष उपाय ला० ॥ ५ ॥ सु० ॥ माहा देव महोटो महीयजें, लोकमांहे परसिद्ध जा० ॥ पार्वती सरखी नारीने, करमें पुत्र न दीध ला० ॥ ॥ ६ ॥ सु० ॥ तो बीजानुं गुं गजुं, ए सवि कर्मनां काम ला० ॥ कर्म सखाई जो दुवे, मनवंबित फले ताम जा० ॥ ७ ॥ सु० ॥ एकनें शुभ कर्मे करी, पुत्र तणे घरे पुत्र जा० ॥ नाम करे चिहुं खूंटमां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) राखे घरनां सूत्र जा० ॥ ८ ॥ सु० ॥ एकने पुत्र विना सही, सूनां तस यागार जा० ॥ प्रेत मंदिर सम जालीयें, पुत्र विना घरबार ला ०॥ ए ॥ सुं० ॥ पुत्र विना गति को नही, पुत्र विना नही स्वर्ग जा०॥ लौकि क मतना शास्त्र में, जापे ऋषिजन वर्ग ला० ॥ १० ॥ सुं ॥ उक्तंच ॥ गाथा ॥ गेहं तंपि मसाणे, जब न दीसंति धूलि धूसर वाया ॥ उवंत पडंत रडंत, दो तिनि मिंना नदीसंति ॥ १ ॥ ॥ श्लोक ॥ पुत्रस्य गतिर्नास्ति, स्वर्गोनैवच नैवच ॥त स्मात्पुत्रमुखं दृष्ट्वा, पश्चात् धर्म समाचरेत् ॥ ॥ पूर्व ढाल ॥ ॥ होनिश इम चिंता करे, वसंतसेन नूपाल जा० ॥ तिए अवसर एक ज्योतिषी, यावी मव्यो ततकालला ० ॥ ११ ॥ सु० ॥ श्रागम नीगमनी कहे, शास्त्र तणे य नुसार जा० ॥ एहवो पंमित देखीने, नरपति हर ख्यो अपार जा० ॥ १२ ॥ उठीने प्रणीपत करें, नाव धरी मनमांहि ला० ॥ मुझ सहित फल फू ल, पुस्तक पूजे वाहिला० ॥ १३ ॥ सु० ॥ वे कर जोडी वीनवे, कीजें करुणा कृपाल जा० ॥ प्रश्न जुवो प्रभु माहरे, होशे बाल गोपाल जा० ॥ १४ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) सु० ॥ तव पंमित तक जोश्ने, वेला साधी सार ला ॥ १५ ॥ सु० ॥लमनबलें कहे रायने, सान लजो सुविचार ला॥ पुत्र तो तुज करमें नही, पूरव नावी जोग ला॥ पण एक पुत्री ने सही, पूरव पुण्य संजोग ला०॥ १६ ॥सु० ॥ रूपें रंजासारिखी,नंदिनी तोहोशे तुज ला ॥ जाणीयें बीजी शारदा, प्रगट होश्ते गुश ला॥१७॥सु॥एम कहीने विप्र ते गयो, से वंबित दान ला०॥ नृप मनमें हरख्यो घणु, जिम रवि कज इकतान ला ॥ १७ ॥ सु० ॥ विप्र वचन ते योगथी, राणी गर्न धरेय ला० ॥ वसंत ऋतु फल फूलगुं,शोनित सुपना लक्ष्य ला॥सु॥१एाजागी तव नृपने कहे, सुपना तणो अधिकार ला ॥ सांजली नृप हरख्यो घणुं, त्रूता श्रीकिरतार ला० ॥ २० ॥ ॥सु० ॥ हरखित थइ राणी हवे, करे ते गर्नजतन ला॥अनुक्रमें मास पूरा थई,जन्मी पुत्री रतन ला ॥ २१ सु॥ दुवां हरख वधामणां,घर घर मंगलमाल ला॥लब्धिजय रंगें करी, पनणी बीजी ढाल ला॥ ॥दोहा॥ ॥जन्मोचव अति हे करे, वसंतसेन नूपाल ॥ मणि माणक मोती घणा, वरसे ज्युं वरसाल ॥ १ ॥ कुंकुम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) केशर बाटणां,हीज करेह विशालासोहव सवि टोलें म ली,गावे गीत रसाल ॥ ॥ घर घर गूडी नहले, घर घर शेणी माल ॥ घर घर तोरण बांधीयां, दीसे का क ऊमाल ॥३॥ नृत्य करे नटुवा नला,खेले नवनव खेल ॥ बंदीजन मूक्या परा, उपजावे रंगरेल ॥ ४ ॥ इम बव करतां थकां, वोट्या दिन ते बारानगरीजन सदु पोषीया, देई मिष्ट आहार ॥ ५ ॥ निज कुटुंब मेली करि, पुत्री नाम वीज ॥ सुपन तणा अनु सारथी, वसंतसिरी ते कहीज ॥ ६ ॥ कुमरी ते दिन दिन वधे,ज्यु वधे श्छदंम॥ चंकलाजिम बीजथी,वाधे तेज अखंम॥ ७ ॥श्म करतां वधती थइ, पंचवरसनी बाल ॥ गुनलन लेई करी, लइथापी नीशाल ॥ ७ ॥ खटदरशननां शास्त्र जे, तेहमां थई प्रवीण॥रंग राग ना टक कला, यंत्रवाजिब मिलीन ॥ ए ॥ षट नाषा लह ती मुखें, चोशठ कलानिधान।अनिनव जाणे शारदा, प्रगट थर सावधान ॥ १० ॥श्म करतां ते अनुक्रमें, वरस थयां जब शोल ॥ नवयौवन नारी तणा,उलट्या काम कलोल ॥११॥ मात पिता हरखे घj,पुत्री देखी ॥ रतन्ना वरनी चिंता चित धरे, करतां कोटियतन्न ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ सुमति सदा दिलमां धरो ॥ देश ॥ ॥ ति नगरी में इक रहे, धीवर हरिबल नाम ॥ सनेही ॥ जलचर जीव हणे सदा, मेले दुष्कृत गम ॥ सनेही ॥ १ ॥ हवे सुराजो तेहनी कथा, मूकी सघलो प्रमाद ॥ स० ॥ साकर दाख तली परें, विण पइसे व्यो स्वाद || स० ॥ २॥ ० ॥ धीवर ते जाणे नही, जीवदयानो धर्म ॥ स० ॥ उद्यम उदर ने कारणें, करे नित्य करणीकुकर्म ॥स०॥३ ॥ ६० ॥ धिधि डरनर पेटने, पेट करावे वेठ ॥स०॥ उत्तम म ध्यम प्राणीने, पेट ते हरावे नेट || स० ॥ ४॥ ह० ॥ पेटने कारणें जीवडा, जावे देश प्रदेश ॥ स० ॥ जावे जलनिधिमारगें, पेटने हेतविशेष ॥ स०॥५॥हणाय गम्यांनी करणी करे, चोरी हेरी प्रत्यक्ष ॥स० ||पेटना अर्थी जे अबे, न गणे नह अन ॥ स०॥ ६ ॥ ६० घात कला खेले घणुं, नटुया नटवी जोर ॥ स० ॥ मावीत्र वेचे बोरुने, पेटने अर्थे घोर ॥ स०॥७॥ ॥ जिनवरयादि मुनिवरा, नावें जे लीये दिरक ॥ स० ॥ ते पण पेटने कारणें, घर घर मागे नीख ॥ स० ॥ ॥ ए ॥ ० ॥ पांव पांचे रडवड्या, पेटने कारणें धीर ॥ स० ॥ हरिचंद सरिखा राजवी, मुंब घरे For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) वह्यां नीर ॥ स० ॥ ए॥ह ॥ तिम ए उदरने कार d, हरिबल मही जेह ॥ स ॥ धीवरकुल जनम ल ही,जीव हणे ने तेह ॥स॥१०॥हा हलुवाकरमी में घj, पण ते लयुं कुल नीच ॥सण॥ कुलाक सब आ वी पड्यो, मेले ते कर्मना कीच ॥सण॥११॥ ह ॥ एक दिन हरिबल महीयें, जलमें नारखी जाल ।स॥ ते जलकंठें मुनिवरु, बेठगे सुकतमाल ॥ स० ॥ ॥ १३॥ ह ॥ हवे जल में जाल नाखी तदा, मुनि बोल्यो ततकाल ॥ स ॥ धीवरने प्रतिबोधवा, दे उ पदेश रसाल ॥ स ॥ १३॥हणारे प्राणी ए तुं गुंक रे, विण अपराधे कर्म स०॥ महोटो संसारमां, जी वदयानो धर्म ॥स॥१॥हा॥ जीवदया पाली जिणे, लहे कुल उत्तम सार ॥ स० ॥ उर्गति पडतां जी वने, धर्म निचे आधार ॥ स० ॥ १५॥ ह ॥ पारे, शरणे राखवा, काप्युं ते निज अंग ॥स॥ जो तुं मेघरथ राजवी, दो पदवी सही रंग ॥ स० ॥१६॥ ह० ॥ शिवादेविनंदन नेमजी, तजि निज राजुल नार ॥स॥१॥हा॥ पशुवाडो बोडावियो,आणीमन नपगार ॥स॥ जीवदया जे पाले नही,पामे ते सुख अपार॥स॥१॥हासुनूम ब्रह्मदत्त चकी दो,पडीया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) नरक मकार ॥ स॥१॥ह ॥ माता पितादिक बंधवा, पामे वियोग ते मंद ॥ स ॥ दालिइ दोहग नवि टले, मले न वन्ननवंद ॥ स ॥ २० ॥ ६ ॥ हेम दिये को दिन प्रतें, देवे को दान सुपात्र॥स॥ तेहथी दश गणो लान , जीवजतन करे गात्र ॥ स० ॥ १॥ ह ॥ श्म उपदेश ते सांजली, बोले मडी तिवार ॥ स० ॥ शुं करीयें अमें साधुजी, अम कुल आचार स० ॥ २२ ॥ ह ॥ धीवर कुलें आ वी पड्या, क्यां रहे गुरुनुं ज्ञान ॥ स० ॥ आजी विका ए पेटनी,दीधी करमें निदान ॥स॥२३॥॥ ॥ पण गुरुजी तुम वचनथी, आजथी में पण लीध ॥ स० ॥ पहेली जालमां जीव जे, तेहने में जीवित दीध ॥ स० ॥ २४ ॥ ४० ॥ इणि परें अनि ग्रह ादरी, हरिबल वलियो ताम स॥ मुनि पण ईर्ष्या शोधता, पहोता बीजे गम ॥स ॥२॥ह॥ हलुया करमी जीव जे, तरत लहे उपदेश ॥ स॥ जारे करमी जीवडा,माने नही लवलेश॥स ॥२६॥ ह० ॥ पापीने प्रतिबोधतां, पत पोतार्नु जाय ॥ स० ॥ टपलो सराणे चडावायें, आरसी नाव थाय॥सा ॥ २७ ॥ ह ॥ दरिबलनी परें प्राणीया, गुरुमुखें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) होवे जेह ॥ स० ॥ गुरुनां वचन हृदय धरे, मनवं बित नहे तेह || स० ॥ २८ ॥ ६० ॥ लब्धि विजय रंगें करी, नाखी ए त्रीजी ढाल ॥ स० ॥ हरिबल जीवदयाथकी, लेहरों मंगलमाल ॥ स० ॥ २९ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हरिबल अनिग्रह जेइने, पाठो वलियो जाम ॥ तिए अवसरें सुर प्रगटियो, सुस्थित जलनिधि स्वाम ॥ १ ॥ यवधी ज्ञानी देवता, रूप करे ततकाल ॥ धीवरनुं मन खोजवा, मह दुवो मुंबाल ॥ १ ॥ धीव र ते जलमें जर, लांबी नाखी जाल ॥ याव जरा यो जालमां, लांबो मब पुबाल ॥ २ ॥ तव धीवर ते महने, मूके करुणावंत ॥ गुरुनुं वचन हृदे धरी, पा जे ते उलसंत ॥ ४ ॥ वली बीजे थानक ज‍, नंमा इहमां जाल ॥ नाखी तव फरि म ते, याव्यो जा ल मबराल ॥ ५ ॥ ते पण वलि मह मूकीयो, नीय म निज संचार ॥ नाखी धीवर जलधिमा, जाल ते त्रीजी वार ॥ ६ ॥ वलि फरीने मठ यावियो, जाल मां त्रीजी वार ॥ ते पण धीवर मूकीयो, आणी म न उपगार ॥ ७ ॥ तव धीवर कहें फरि फरि, यावे ए जलमव ॥ तो सहिनाणी ढुं करूं, जिम उलखाये Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) वन्न ॥ ७ ॥ हरिबल चित्त श्म चिंतवी, कर ग्रहियो जलजात ॥ कोटें उलखवा सही, कोडी बांधी सात ॥ ॥ ढाल चोथी॥ -- ॥ इमर आंबा आंबली रे ॥ए देश॥ हरिबल हवे आयो गयो रे, नहुँ ले जल ज्यांह ॥ उरनर नदरने का रणे रे, जाल नाखी जर त्यांह ॥ १ ॥ सूरिजन सां जलजो अवदात ॥ एतो रंग रसीली वात ॥ सू० ॥ फरी पालो ते जालमा रे, आव्यो चोथी वार ॥ कोटें कोडी देखी करी,मूक्यो म विचार ॥२॥ सूरि ॥ पांचमी बही सातमी रे, फरि फरि नाखे जाल ॥तेम तेम ते भावी रहे रे,जालमां मह मुबाल ॥३॥ सू० ॥तिम तिम ते मबलखी रे.मकी ये ततकाल ॥ हरिबल व्रत महेन्यु नही रे, गुरु उपदेश रसाल ॥ सू० ॥ ॥श्म करतां दिन निर्गम्यो रे, मेहेनत करतां तेह ॥ तोही पण दोन्यो नही रे,मन्ही हरिबल जेह ॥ ॥ ५॥ सू० ॥ महीनी परीक्षा लही रे, प्रगट थयो सुरराज ॥ सुर कहे हरिबल माग तुं रे, हुँ तूगे तुज आज ॥ ६ ॥ सू० ॥ सुर वाणी ते सांजली रे, हरि बल बोल्यो तिवार ॥ दालिइ सुःख दूरें करी रे, सम स्था करजो सार ॥ ७ ॥ सू० ॥ सांजलि धीवर सुर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) कहे रे, आणी मन नन्नास ॥ संजारिश मुज जे घ डी रे, ते घडी ढुं तुज पास ॥॥ सू०॥एम वचन देई करी रे, ते सुर गयो निज थान ॥ मही पण निज मंदिरें रे, वलियो थर साव धान ॥णासू॥धीवर म नमें हरखियो रे, धन धन गुरुनु वचन्न ॥ फलि यो अनिग्रह माहरे रे, तो सुर दिन धन्य ॥ १० ॥ सू॥सागर देव पसायथी रे, ढुं थयो महोटो सनाथ ॥ आजथी जीव हणुं नही रे,जो ग्रही महोटी बाथ ॥ ११ ॥ सू० ॥ श्म करतां संध्या थई रे, याव्यो न यर नजीक ॥ पण निज मंदिर नारीनी रे, मनमें या पी बीक ॥१२॥ सू०॥ पेट जरा जडी नही रे, नांमंशे राम कुहाडजाइश जो खाली घरे रे, बेस शे लेई राड ॥ १३॥ सू० ॥ काली नागणनी परें रे, रोषे नरी ने चंग ॥डोकरडांने मारे घणुं रे, बोले ज्युं खोखर नंम ॥१४॥ सू०॥ मुखमाथी नोंता पडे रे, कोई बोलावे बोल ॥ वलगे वाघणनी परें रे, राखे नहि तस तोल ॥ १५ ॥ सू० ॥ दीवालीनो परोडी यो रे, दीसंती जाणे अलह ॥ आंगण आवे को मा नवी रे, देखी जाये गल ॥ १६॥ सू० ॥ कूडा बोली कर्कशा रे,दे वली अबतां आल ॥ गुण अवगुण जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) णे नहीं रे, परिणामें विकराल ॥१७॥ सू० ॥ उ तरे जे वर्ष सातनी रे, जेद पनोती कहाय ॥ पण लागि पनोती जन्मनी रे, ते किम उतरी जाय ॥१७ ॥ सू० ॥ जाणी बंबुल कोयला रे, एहवू रूप नीहा ल॥ खाधानी संख्या नही रे, जाणीयें पेटमें काल ॥ १५ ॥ सू० ॥धीवर कहे मुफ नारीनां रे, केतांक रुंद वखाए॥ प्रर्ण पापना जोगथी रे, मली ए कर्म प्रमाण ॥२०॥ सं० ॥ हरिबल चितझुं चिंतवे रे, न जड्यो जलचर जीव ॥ घरे जावू तो बोकडी रे, रूठी करशे रीव ॥ २१ ॥ सू० ॥ ते माटे वनमें रही रे, रजनी ले विशराम ॥ दिन उगे घर जाश्यं रे, जडशे जीविक ताम ॥ ३२ ॥ सू० ॥ श्म जाएं। ते वन्नमें रे, हरिबल रहियो ताम ॥ कालीकाने देवलें रे, लीधो तिहां विश्राम ॥ २३ ॥ सू० ॥ धीवर सू तो चिंतवे रे, धन धन जीवदया धर्म ॥ एक में जीव नगारीयो रे, तो वाधी मुफ शर्म ॥ २४ ॥ सू० ॥तो में निश्चे बाजथी रे, हणवो नही कदि जीव ॥ जल निधिनो धणी देवता रे, फलशे मुफ सदीव ॥ २५॥ सू०॥ परतख देखी पार रे, धीवर हरखें पच्छ । जीवदया धर्म नपरें रे, बेठो रंग मजीठ ॥॥ २६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) सू० ॥ रजनी मध्य गई तिहां रे, हरिबल सूतो ज्यां ह॥ तिण अवसरें जे नीपजे रे, ते सुणजो उन्हाह ॥सू० ॥ २७ ॥ चोथी ढाल पूरी थई रे, प्रगटी पु एयनी वेल ॥ लब्धि कहे गुरु देवथी रे, नाखीयें कुखने तेल ॥ २७ ॥ सू० ॥ ॥-दोहा सोहरिबल ॥ हवि तिण नगरीमा वसे,बीजो हरिबल नाम ॥ वडवखती सुखीयो सदा, व्यवहारी अनिराम ॥ १॥ पठित गुणित सघली कला, शीख्यो रे सावधान ॥ रूपें रतिपति सारिखो, उपे रूप निधान ॥ २ ॥ च तुरा तो चकोर ज्यु, कंठे कोकिल कंठ ॥ जोगी केत की बंग ज्युं, वाको वंस निगंठ ॥३॥ इक दिन चढ़ टे संचयो, लेइनिज परिवार ॥ नजरें हरिबल निर खियो, कुमरीयें गोख मकार ॥ ४ ॥ वसंतसिरी नृ पनी धुश्रा, उत्लखी हरिबल तेह॥ बिहुँनी दृष्टि मिली तिहां, वाध्यो नवलो नेह ॥ ५ ॥ कुमरीनुं मन वेधि युं, देखी हरिबल रूप ॥ कामातुर अतिही थई, वर वानी थइ चूंप ॥ ६ ॥ राजनुवनने मारगें, हरिबल चाल्यो जाय ॥ गोखतले आव्यो जिसे, खिए एक तिहां विलमाय ॥ ७ ॥ गोखेंथी पत्री लखी, पडती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) मेहली तेह ॥ हरिबल वांची समझियो, वस्य तुं मुक ससनेह ॥ ७ ॥ उंची दृष्टि जोइने, करी समस्या सा र ॥ वाचा देश बावियो, हरिबल निज आगार ॥॥ कुमरीयें पत्री जे लखी, ते सुणजो अधिकार ॥राम नुं सुहणुं जरत परि, फलशे ते श्रीकार ॥ १० ॥ ॥ ढाल पांचमी॥ ॥ निड्डी वेरण दुश्रही ॥ ए देशी ॥ हांजी काली चनदशने दिने, कालिकानुं हो देवल ने ज्यांह के ॥ अखुट खजानो लेश्ने, मध्यरात्रै हो ढुं आबुं बुं त्यां ह के ॥१॥ कुमरीयें पत्रीयें लखी, हरि बलने हो तिहां कीधो संकेत के ॥ शीघ्रगति तुमें बावजो, व रवाने हो घणुं याणी देत के ॥ कु०॥ ॥ व्यवहा री हरख्यो घj, कुमरीनु हो देखीने चित्त के ॥ एतो साचें बावशे, निज घर, हो लेईने वित्त के ॥ कु०॥ ॥३॥ पण ए नृपनी नंदिनी,मुझथी केम हो निरवाहो थाय के ॥ किहां शशली किहां सिंहनी, किहां हंसि पी हो किहां बगलं कहाय के ॥ कु० ॥ ॥ किहां अ लसी किहां नागणी,किहां हाथणी हो किहां अज बल वंत के ॥ किहां कुमरीने ढुं कीहां, किहां सरशव हो किहां मेरु महंत के ॥ कु० ॥ ५ ॥ जाति गरीब वणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) क तणी, मर राखे हो सघले संसार के ॥ तो किम कुं वरी हुं वरुं, उठी जावे हो जेह बे व्यवहार के ॥ कुं० ॥ ॥ ६ ॥ जो नृप जाणे वातडी, घडि एकमें हो नाखे तस वेर के ॥ सबल कुटुंब जे पलकमें, लुसी मूके हो तेहमें नही फेर के || कु० ॥ ७ ॥ तो किम वात ए हुं करूं, कुल लाजे हो निज तातनुं जेह के ॥ मुऊ घ रमें बे पदमणी, किम देहुं हो तेहने हुं बेह के ॥ ८ ॥ कुं० ॥ कडुवां फल बे एहनां, परनारी हो साथै घरे राग के || पग पग दोष लहे घणो, नवि पामे हो कि हां बेठानो जाग के ॥ ए ॥ कुं० ॥ किंपाकनां फल सारिखां, देखतां हो घणुं फूटडां जोर के | पण ते फल चाख्याथकी, जीव पामे हो मरणांत कठोर के ॥ १० ॥ कुं० ॥ जगमें चाले वातडी, करे हासी हो सहु मलीने लोक के | जिन वचनें पण जाणीयें, दुर्गतिनां हो फल पामें रोक के ॥ ११ ॥ कुं० ॥ राव ए मुंऊ तणी परें, शीश रडवडे हो भूमितलें जेह के ॥ परनारीना संगथी, बीजानी हो गति निपजे एह के ॥ १२ ॥ कुं० ॥ इम जाणी मन वालियुं, व्यवहारी हो निज कुल संभाल के || तिहां जावुं नही माहरें, जिहां कीधो हो संकेत विशाल के ॥ १३ ॥ कुं० ॥ हवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) कुमरी विरहें करि, थाये व्याकुल हो जावाने तेह के ॥ केइ घडी बे एहवी, जइ देखूं हो हरिबल ससनेहके ॥ १४ ॥ कुं० ॥ जेहनें जागे प्रीतडी, जाणे तेहने हो लाग्युं बे प्रेत के ॥ शूनी फरे तस देहडी, विरहानल दो चूसी बल लेत के ॥ १५ ॥ कुं० ॥ मन लाग्युं जस उपरें, तस चागल हो बीजो न सुहाय के ॥ खि घर में खि प्रांगणे, रहि न शके हो जाणे लागी बलाय के ॥ १६ ॥ कुं० ॥ बुद्धि कल जाये परी, नवि नकले हो निज घरनुं काम के ॥ कुरि फुरि पंज र कुश करे, कामी मन हो लुब्धयुं जे वाम के ॥ १७ ॥ कुं० ॥ मात पितादिक नवि गणे, नवि माने हो निजकुल मरजाद के || गुरु गोत्रज पण नवि गणे, विरहें करि हो मांगे उनमाद के ॥ १८ ॥ कुं० ॥ कु मरी कामातुर थई, हरिबलनो हो विरहो न खमाय के ॥ यन्न उदक दो नवि रुचे, वरवाने हो घणुं या कुली याय के ॥ १९ ॥ कु० ॥ मणि माणिक हीरा घ पा, हेम रजत ने दो मुगलाफल लेय के ॥ थरमां पा मरी सावटु, जरतारी हो जलां वस्त्र नरेय के ॥ २० ॥ कुं० ॥ सामग्री सघली करी, जावाने दो जिहां की धो संकेत के ॥ उंट सात नरिया जला, अश्व रतन हो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) कुमरी दो लेत के ॥ १॥ कुं० ॥ रजनी मध्य समे वही, दास दासी हो वलि साथै लीध के ॥ दरवाजे दरवानने, इव्य पापी हो घणुं राजी कीध के ॥ २२॥ कु० ॥ पोल उघाडी पोलीये, वहि कुमरी हो जिहां संकेत कीध के ॥ कालीकाने देउलें, तिहां पहोती हो मनवंडित सिम के ॥ १३ ॥ कु० ॥ धीवर सूतो ने जिहां, तिहां कुमरी हो यावी उजमाल के॥ ल ब्धि विजय रंगे करि, ढाल पांचमी हो कही रंग रसाल के ॥ कु० ॥२४॥ ॥दोहा॥ ॥कुमरी कहे जागो प्रनु, मूको निश दूर॥आपण वही बे जणां, आगल पंथ सनूर ॥ १ ॥ अखुट खजानो लेश्ने,आवी टुं नरपूर ॥ करहा सात इव्ये न स्या, एह में तूम हजूर ॥ ५ ॥ अश्व रत्न दो लेश्ने, आवी बुं तुम कऊ ॥ संघ तजी उतावला, आची च डो थ सऊ.॥३॥ हरिबल वणीक ते जाणीने, विन वे कुमरी ताम॥धीवर सूतो जागीयो, केहने कहे अ अभिराम ॥॥ हरिलंकी अप्सर समी, देखी कुमरी रूप ॥ धीवर मन विव्हल थयुं, ए झुं दीसे सरूप ॥ ॥ ५॥ चमत्कार चित्तमें लही, धीवर चिंते ताम ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) कोश्क वात विचार , मौन कस्यानुं काम ॥६॥ अणबोल्यो ऊल्यो तुरत, करी असवारी सार ॥ कुम री मन हर खित थई, चाव्यां पंथ विचार ॥ ७ ॥पा णीपंथा घोडला, तेहQ करहा जोर ॥ पंथें चाव्या चडवडी, पहोतां जे वन घोर ॥ ७ ॥ वसंतसिरी कु मरी हवे, टाली सघनी बीक ॥ हरिबलने बोलाववा, आवी पास नजीक ॥ ए॥ ॥ ढाल बही॥ ॥पारकर देशथी आयो । ए देशी ॥ हवे हरिबल प्रनुजी बोलो, मनवनन मनडु खोलो रे ॥ माहरा जीवनजी तुमें बोलो॥हवे कोई मर मत आणो, प्रचुं मेंढ्यो तुम अम टाणो रे ॥ मा० ॥ १ ॥मुज सरखी तुम नारी, विण पैसे मलि सुख कारी रे ॥ मा० ॥ कनक रयण के साथें, तुमें वावरो सुखें निज दाथें रे॥मा०॥ ॥ पेहरो नव नवा वाघा, जरतारी बां धो पाघा रे ॥मा ॥ खटरस रसवती सारी, करी पीरसुं मोहनगारी रे॥ मा॥३॥ तुम संगें रहूं क र जोडी, करूं टेहल ते बालस बोडी रे॥मा॥ ९ तुम प्रेम विलुही, आवी तुम सूधी रे ॥ मा० ॥ ॥४॥ हवे तुम वयण न लोपुं, जीवित लगें वरमा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) ला रोपुं रे ॥ मा० ॥ करहा जे साते उप्या, लेई तुम गुं जे सोप्या रे ॥ मा० ॥ ५ ॥ तन मन धन तुम केरुं, करि लेखवजो ए नजेरुं रे ॥ मा० ॥ एक तुम मेहे रनी याशा, में राखुं प्रेमना पाशा रे || मा० ॥ ६ ॥ इणि परें कुमरी बोले, पण हरिबल वाचा न खोजे रे ॥ मा० ॥ तव तिहां कुमरी विमासे, गुं बे ए वणि क न नासे रे || मा० ॥ ७ ॥ इम करतां थयुं ते वा हाएं || दीतुं मुख श्याम ज्युं जाएं रे ॥ मा० ॥ दिन नगमतें ते दीठो, दीन वस्त्र विद्वणो धीठो रे ॥ मा० ॥ ॥ ८ ॥ जाणे आलोकनो पिंग, जाणे पाड्यो देवें दंग रे ॥ मा० ॥ देही बे गलीयल वान, वलि जाये को किल मान रे ॥ मा० ॥ ए ॥ जाती धीवर जाणी, त व कुमरी मन उलजाली रे | मा० ॥ सुंदरी थई ते निराशी, चिंते थर हाणी ने हासी रे ॥ मा० ॥ १० ॥ सहकारज केरे जरूसे, फल चाख्यां याक आलूसे रे ॥ मा० ॥ जाएयुं सुरतरु पामी, पण निमड्यो कनक निकामी रे ॥ ११ ॥ मा०॥ प्रभुयें मेरुयें चढावी, पण दैवें नूयें थडावी रे ॥ मा० ॥ कुल मरजादा मूकी, पण पानीयें मति चूकी रे ॥ मा० ॥ १२ ॥ करस ए टोतां सोई, गोला गोफण पण खोई रे ॥ मा० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) तिम ए उखाणो मेव्यो, निज मंदिर कुल अवहेव्यो रे ॥ मा० ॥ १३ ॥ जाण्युं जोबनवेशे, लेद्यं ते ला हो विशेषे रे ॥ मा० ॥ उत्तव्यो मदन एराकी, तव वणिकें मूकी न बाकी रे ॥ मा० ॥ १४ ॥ विटल वणिज विमासी, दीधी ज्युं कूपके फांसी रे ॥मा॥ वणिकनो जे करे संग, तस जनम ते खोटो ढंग रे ॥ मा०॥ १५ ॥ जाएयुं जे वणिकने वरद्यु, निज ज नम ते सफलो करयुं रे ॥मा॥ पापीयें वाचान पाली, विण गुनहे मूकी बाली रे ॥मा० ॥१६॥ जननी तात मूकावी, मूकी ते विरह जगावी रे ॥ ॥ मा० ॥ जो तुज खोटा दिलासा, तो शाने दीजें अाशा रे॥ मा० ॥१७॥ फिट रे देव तुं हेव्यो, धी वरने किहां ते मेव्यो रे ॥ मा० ॥ तें किहां रची ए गोडो, कस्यो अण मलतो ए जोडो रे॥मा ॥१॥ दीसे ए धोबड धिंग, वलि जाणे जबके कोटिंग रे ॥ मा० ॥ जगती जोतां जडियो, मुफ करमें ए वर घडियो रे॥मा० ॥ १५ ॥शी विधे मुफ मन बेसे, माहारुं जोबन एलें वहेशे रे।मा॥ श्म सुंदरी विल पंती, सही मूळ पडी ते धरती रे ॥ मा० ॥ २० ॥ तव तिहां धीवर पूरे ॥ भनझुं ते पुण्य अधूरे रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) ॥ मा० ॥ में ते ए गुं कीचूं, निज मंदिर मूकी दीg रे ॥ मा० ॥ २१ ॥ लवलेश पोंक न खाधो, निजकमैं हाथे दाधो रे ॥ मा॥ जे कहे लोक उखाणो, ते में तो नजरें पिडाण्यो रे ॥ मा० ॥२॥ फोगट सुंदरी सा थ, आवी खोई घरनी आथ रे॥ मा० ॥ ए फुःख के हने दा, एहवो नही कोइना रे॥ मा०॥२३ ॥ सुख दुःख जे लख्यां पाने, ते नोगवे जीव एक ताने रे ॥ मा० ॥ धीवर मनमें विमासे, रोइ राज न पामे उन्नासें रे ॥ मा० ॥ २४ ॥ एतो सुंदरी मोहोटी, कि म रांक घरे रहे त्रोटी रे ॥ मा ॥ रूपें रंजसमान, किम सुंदरी दे मुफ मान रे ॥ मा॥ २५ ॥ धिग मुफ जीवित एह,धीवर पणुंलयुं में जेह रे ॥मागमा हरु कुरूप देखी, कुमरीयें नाख्यो उवेखी रे॥मा॥ ॥२६॥ धिग धिग जाति अकामी, मुफ देखी मूर्ना पामी रे ॥ मा० ॥ धीवर फुःखीयो अपार, वहे नय णें आंसु धार रे ॥ मा० ॥ २७॥ किहां गयो सागर देव, मुफ काम पडे इहां हेव रे॥मा ॥ सुंदरी जे मूरवाणी, करे जीवित ते सुख खाणी रे ॥ मा० ॥ ॥ ॥ जलनिधि सुर तव आवे, धीवरने हर्ष उपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 --------------------------------------------------------------------------  Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) पय प्रणमी हरिबल तणा, देई वर ससनेह ॥ सागर सुर निज थानकें, पहोतो ते गुणगेह ॥ १०॥ मान व नव सफलो करी, दंपती नोगवे नोग ॥ रामनुं सु हणुं नरतने, फलियुं पुण्य संयोग ॥ ११ ॥ ॥ ढाल सातमी॥ ॥ शीयालो नलें आवियो ॥ ए देशी ॥ दुआ हे ह रख वधामणां, बेदु जणनां हे मनवंबित सीध के ॥ कुमरी हरिबल वर वरी, मनुनवनो हे फल लाहो लोध के ॥१॥ दु० ॥ किहां नृपनंदिनी सुंदरी, किहां हरिबल हे मही अवतार के ॥ अणमलतो ए ताक डो, पुण्यजोगें हे मेल्यो किरतार के ॥ २॥ दु० ॥ एक में जीव उगारीयो, तस पुण्यथी हे तो निधि राज के ॥ परतख दीतुं पारखू, गुरुवयणथी हे मुफ वाधी लाज के ॥ ३ ॥ दु०॥धन धन गुरुनां वयण ने, मुफ कीधो हे महोटो उपगार के ॥ कीडीथकी कुंजर कस्यो, जलें प्रगट्यो हे सद्गुरु संसार के ॥४॥ दु० ॥ श्म चिंतवतां बे जणां, पंथें चाव्यां हे ते वन हमकार के ॥ रंग विनोदनी वातडी, वहे करतां हे एक चित्त उदार के ॥ ५॥ दु०॥ वाट विषम जे आकरी, गिरि गव्हर हे वली विषमा घाट के ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ऊगि काडी जे रूंखनी, परि उतस्या हे निज पुण्यने थाट के ॥ ६ ॥ दु० ॥ तिण समे कुमरी चिंतवे, न वि जाणुं हे पियुनी कुल नाति के ॥ तो हवे जोवू एहनी, करूं परीक्षा हे ए शी ने जाति के॥॥ ॥ जोवु वली तस पार,पराक्रमें हे केहवो डे सधीर के॥ जीवित सूधी माहरो, मन राखी हे केहवो मेले दीर के ॥ ७ ॥ दु०॥ तव प्यारी पियुने कहे, सुणो प्री तम हे थया खरा बपोर के ॥ पाणीनी तिरषा घ पी, पीयु लागी हे घj अति हे जोर के बाद। तव हरिबल तिहां सज थयो, अबलानां हे सुणी दीन वचन के ॥ केड बांधी काठी खरी, नीर जोवा हे निकल्यो ते वन्न के ॥ १०॥ दु०॥ अटवीमां जो तो फरे, नवि दीसे हे क्यांह नदी नवाण के॥ तव एक तरु कपर चढी, दृष्टं जोवे हे चिढुं दिशि जल ग ण के॥११॥ दु० ॥ तव तिहां दूरथी पेखियो, सरो वर हे जल नरियुं नीर के ॥तिहां ज जल नरि पो यणें, लावि पावे हे निज प्यारीने नीर के ॥ १२ ॥ दु० ॥ अंग तस्यां जल पीवतां, मनथी लह्यो हे पियु माहाबलवंत के ॥ हर खित थइ तव सुंदरी, मुज व खतें हे पियु मलियो संत के ॥ १३॥ दु० ॥ धन्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) दिवस धन ते घडी, धन वेला हे मुज प्रगट्यां नाग्य के ॥ मनवंडित पियुडो मल्यो, थयां परगट हे मुफ सुख सौनाग्य के ॥ १४ ॥ दु०॥ सुरवाणी साची मली, जेवीनावी हे तेहवी नजरें दीठ के॥ मुह मा ग्या पासा ढव्या, राजकुमरी हे मन हरख पश्ठ के ॥ १५ ॥ दु ॥ दंपती बेहुने प्रीतडी, एकतारी हे ब नी ज्युं नख मांस के ॥ एकंगी जल मीन ज्यु,तिम बे दुने हे बनीयुं तन हंस के ॥ १६ ॥ दु० ॥ श्म क रतां ते अनुक्रमें, विघनाटवी हे परि उतस्यां तेह के॥ दूरथी दीढं सोहामएं, एक मोटकुं हे शोनित किं ग जेह के ॥ १७ ॥ दु॥ कनकजडित इिंग उर्ग , कोशीसां हे मणिमय दीपंत के॥ जाणीयें नूरमणी करें, सोहे कंकण हे रवितेज फिपंत के॥१॥दु०॥नं दन वन सम वाटिका,फलि फूली हे चिढुं दिशि सोहंत के ॥ सजल सरोवर जल जयां, देखीने हे वर नारी मोहंत के ॥ १९ ॥ दु० ॥ नगर समीपें भावीयां, वाडीमां हे उतारा कीध के ॥ तिण समे तिहां एक आवियो, वैताल कहे नलि आशिष दीध के॥२०॥ दु ॥ पूछे हरिबल तेहने, कहो बारोट हे ा नग रीनुं नाम के ॥ कुण नृप राज्य करे इहां, अधिकारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) हे बे कुण अनिराम के ॥ २१ ॥ हु० ॥ तव हरि बलने ते कहे, वेतालक हे सुप्पो पंथी साथ के ॥ म नवेग बे नूपति, वीशाला हे नगरी नो नाथ के ॥१२॥ दु० ॥ यरियण सघला वश करी, राज्य जोगवे हे सुरपतिनी समान के ॥ पायक गज तुरी बे घणा, सप्त लकनी हे ठकुराइएं मान के || १३ || हु० ॥ व रण अढार वसे इहां, पुण्य करणी हे करतां सहु लो क के ॥ पापनी बुद्धि मजे नही, जोगीजन हे बसे चा तुर कोक के ॥ २४ ॥ ० ॥ बार जोया पोली कही, नव जोयण हे दीर्घ शोजित पोल के ॥ कनक रयणमय मालियां, चोराशी हे चटानी उल के ॥ २५ हु० ॥ जालीयें स्वर्गपुरी जली, वीशाला हे नगरीनुं नाम के ॥ सुखीयां लोक वसे सहु, दुःखीयानुं हे नवि दीसे वा म के ॥ २६ ॥ ० ॥ एहवो व्यतिकर मांगीने, वैता लकें हे कह्यो थर जमाल के ॥ सांजलि बेहु राजी थयां, लब्धि कहे हे ए तो सातमी ढाल के ॥ २७ ॥ हु ० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नगरी नृपनी वारता, वैतालें कहि जाम ॥ वात वधामपि हरिबलें, दीधी मुद्दा ताम ॥ १ ॥ चित व रियुं वैतालनुं, देखी पीली वस्त ॥ हरिबलने चरणे न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) मी, जइ दिधि स्त्रीने हस्त ॥ २॥ हवे कुमरी पियुने कहे, सांजलो जीवन प्राण ॥ वास वसीयें शहां कणे, इण नगरी इण गण ॥३॥ तव हरिबल कहे नारी ने, सुणो प्रिया मुफ वाच ॥तुमअम मनडे एक ने, जे कहेशो ते साच ॥ ४ ॥ एम कही कन्यां तुरत, लेई निज परिवार ॥ नगरीमां जातां थकां, शकुन थयां श्रीकार ॥ ५ ॥ उर्गा काक ने श्वान गुन, माबी नैरव संत ॥ सांढ सारस खर तुरी, जिमणां लाली हुँत ॥६॥अंगज दशरथ सुततणो,बांधे तोरण सार ॥ शकुन थयां जमणी दिशे, करतां पुर पेसार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बाठमी॥ ॥ बन्यो रे सगुरुजीनो कलपडो॥ ए देशो ॥जीरे गुन लगनें गुन मुहूरतें, एतो नगरीमें कीध प्रवेश रे ॥ सुजाण ॥ तिण समे सनमुख वली थया, शुन कारी शकुन विशेष रे ॥सु॥१॥ गुण॥ कन्या पांच स हामी मली, एतो लेश दीप नद्योत रे ॥ सु०॥ गज रथ शणगाया नला, मलि सनमुख रयणनी ज्योत रे ॥सु० ॥ २ ॥ शुन ॥ जीरे एहवे शकुनें नग रीमें, एतो हरिबलें पगलुं दीध रे॥ सु० ॥ तिण समे एक व्यवहारियो, मल्यो सनमुख प्रणिपत कीध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) रे ॥ शु० ॥३॥सु० ॥ तव हरिबल पूजे वणिकने, श्र म कोई वतावो गेह रे ॥ सु० ॥ वास करुं थमें ज ईतिहां, एतो लहीयें सुख ससनेह रे ॥ सु० ॥४॥ ॥ शु० ॥ जीरे तव कर जोडी वणिक ते, हरिबलने करे मनुहार रे ॥ सु० ॥ थम घरे श्रावो प्रादुणा, अमें देयं मोहो, धागार रे॥ सु० ॥ ५॥ गु० ॥ जीरे आग्रह करीने वणिक ते, तेडी याव्यो निज थागार रे ॥ सु० ॥ जगति जुगति नलि साचवी, ए तो देश मीठा आहार रे ॥ सु० ॥ ६ ॥ शु० ॥ जीरें वणिक हरीबल कारणें, रहेवाने दीधा थावास रे ॥ सु० ॥ कनकरयणमय मालीयां, एतो सोहे रवि ज्यु प्रकाश रे॥ सु० ॥७॥ गु०॥ एता वास करा जा तेहमें, एतो हरिबलें याणि नलास रे ॥ सु०॥ शकुनतणा परनावथी, एतो पुण्य लहियो सुवास रे ॥ सु०॥ 6 ॥ शु० ॥ हवे हरिबल पूछे वणिकने, तुम नाम कहो गुणवंत रे ॥ सु० ॥ तव व्यवहारी कहे प्रनु, मुफ नाम के श्रीपति संत रे ॥सु०॥ ए॥ ॥ शु० ॥ एतो नाम सुणी तव हरिबलें, श्रीपति बं धव कीध रे ॥ सु० ॥ व्यवहारी सनमानीयो, एतो सिरपाव देश प्रसिह रे ॥ सु० ॥ १० ॥ शु०॥ हवे ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) रिबल सुख जोगवे, एतो वसंतसिरीनी साथ रे ॥ सुरू ॥ मानवनव सफलो करे, एतो जाणे पामीाथ रे ॥ सु० ॥ ११॥ गु० ॥ एतो शत्रुकार मांझयो घणो, एतो देवे दान उदाह रे ॥ सु० ॥ बंदीजन बिरुदाव ली, ए तो हरिवलनी बोले अथाह रे ॥सु०॥१२॥ शु०॥ ताल कंसाल मृदंगना, एतो वाजे नाद अचंन रे ॥९॥ हरिबल वागल शोनता, एतो होवे नाटा रंन रे ॥१०॥ १३ ।। शु०॥ चाली पुरमें वातडी, ए तो हरिबलनी श्राख्यात रे॥सु ॥ मदनवेग नृप बागलें, एतो हरिबलनी थर वात रे ॥सु०॥१४॥ शु०॥ एतो त्रीवंशे राजवी, एतो वीरबल केरो धी र रे ॥ सु० ॥ नुजबली नीम समो वडी, एतो दाने विक्रम वीर रे॥सु॥१५॥गु०॥ याव्यो श्रापणा नय रमां,एतो परदेशी प्रादुणो जोर रे॥ सु०॥ वसंतश्री तस जारजा, एतो रूपें रंज चकोर रे ॥ सु० ॥१६॥ शु०॥ एहवीथ दरबारमां, एतो हरिबल केरी वा त रे ॥ सु॥ दत्री वंश शिरोमणी, एतो वीरबल के रो जात रे ॥ ९ ॥१७॥ गु०॥ मदनवेग नृप सां नली, एतो मनमें दुर्ग हेराण रे॥ सु० ॥ तो बोला बुं एहने, एतो जोवु ते अदिनाए रे ॥सु० ॥१७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) शु० ॥ इम जाणीने नृप तदा, एतो सचिवनें दीध यादेश रे ॥ सु० ॥ याग्रह करि तस तेडीने, तुमें यावजो यत्र विशेष रे ॥ सु० ॥ १९ ॥ गुं० ॥ तत खिण सचिव तिहां जई, हरिबलने कीध प्रणाम रे ॥सु०॥ नृपनुं तेडुं तुम अबे, तुमें यावो यातमराम रें ॥ सु० ॥ २० ॥ ० ॥ उठी हरिबल ततखिणे, च यो यश्व रत्न गुण गेह रे ॥ सु० ॥ नेट जली नृप बागलें, जइ मूकी नृप प्रणमेह रे ॥ सु० ॥ २१ ॥ ० ॥ नृप पण हरिबलने तदा, एतो उठीने दीधी बांह रे सु०॥ बेठा एक गादीयें, एतो हरिबल नृप बा हरे ॥ सु०॥२२॥ ० ॥ श्रागम नीगमनी करी, एतो बे घडी वातनी गोठि रे ॥ सु० ॥ अन्यो अन्य राजी थया, जिम कर चढे साकर पोठ रे || सु० ॥ २३ ॥ ० ॥ सागर देव प्रसादथी, एतो हरिबल केरुं तेज रे ॥ सु० ॥ राज्यसनादिक नृप तपुं, एतो देखी वा धुं हेज रे ॥ सु० ॥ २४ ॥ ० ॥ बंदीजन बि रुदावली, एतो बोले छत्री वंश रे ॥ सु० ॥ माता वीरायें जनमीयो, एतो वीरबल कुल अवतंस रे ॥ सु० ॥ २५ ॥ ० ॥ हरिबल गुण नृप सांजली, एतो मंत्रीसर पद दीध रे ॥ सु० ॥ श्रानूषण अंगें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) वी, एतो नृपें निजबंधव कीध रे ॥ सु०॥ २६ ॥ गुं० ॥ अश्व अमूलक पालखी, एतो हरिबल च ढवा काज रे॥ सु० ॥ एतो आपे नृप हर्षे करी, एतो प्रबल वधारी लाज रे ॥ सु० ॥ २७ ॥ शु० ॥ एतो जलें आव्या तुमें नयरमें, तुम आवे वध्युं हम हेज रे ॥सु॥ नगरी अम पावन थई, एतो दिन दिन चढते ते जरे ॥सु० ॥ २७॥ शु०॥ म सनमानी बोलावियो, एतो वसंतसिरीने गेह रे ॥ सु० ॥ लब्धि कहे ढाल बातमी, एतो पुण्यें लगे एह रे ॥सु० ॥ ए॥ गु०॥ ॥दोहा॥ ॥हरिबल ते निज मंदिरें, याव्यो करी आमंग ॥ वसंत सिरि हरखित थई, देखी पियुनो रंग ॥१॥ म दन वेग नृपनी सदा, सारे निशदिन सेव ॥ बांध बो ड दरबारनी, हरिबल करे ततखेव ॥ २॥ हाल दुकु म दरिबल तणो, थयो विशालामन ॥जीरण सचिव कोरें रह्या, अलगा थई अकऊ ॥३॥ हरिबल नृपर्नु एक मन, दीसंता तन दोय ॥ बाकी पूरण प्रीतडी, ज्यु नख मांसने होय ॥ ४॥ वसंतसिरि अपर स मी, पामी पुण्य संयोग ॥ दोगुंडक सुरनी परें, हरिब स नोगवे लोग ॥ ५ ॥ एक दिन बेग रंगमें, दंपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) " करे विचार ॥ नृप नगरीने नोतरी, दीजें जोजन सार ॥ ६ ॥ तव प्यारी पियुने कहे, सांगली प्राणा धार ॥ इण वातें कुण ना कहे, करतां पुण्य उपचा र ॥ ७ ॥ पण एक वात विचार बे, धारो चित्त म कार || दीपक लेइ देखाडवो, तेडी नृप यागार ॥ ८ ॥ नृप मंत्री ने चाडीयो काग यही सोनार ॥ एता नोहे आपणां, कीजें कोडि प्रकार ॥ ए ॥ ते माटे तुमने कहुं, करजो समजी काम ॥ नृप नगरी ने नोतरी, यो जोजन अभिराम ॥ १० ॥ सांजल गोरी मादरी, साच कही तें वात ॥ जो बे दाहाडा पाधरा, शुं करशे नृप घात ॥ ११ ॥ पुष्यें वैर यां धला, पुण्यें पाप विलाय || पुण्य प्रबज जो कीजियें, तो सघलां दुख जाय ॥ १२ ॥ ते माटे सांजन प्रि या, जो प्रभु दीधी याथ ॥ जिमणे हायें दीजियें, तो ते यावे साथ ॥ १३ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ ॥ गणधर दश पूर्वधर सुंदर ॥ अथवा; एम कही श्राव्यो जब रातें || ए देशी ॥ हवे हरिबल मनहरख धरीने, खातमरंगें नेली रे || गोधूम तंडुल मिशिरी खंमा, घृत सामग्री मेली रे ॥ १ ॥ खटरस नोजन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) सार निपाई, सागर देव प्रजावें रे ॥ नोतरुं देवा नृप दरबारें, हरिबल पोतें जावे रे ॥ ख० ॥ २ ॥ श्राय द करि निज श्रासन थापे, हरिबलने नृप हेतें रें ॥ मदनवेग कहे हरिबलने, तुमें बो जीवन जेते रे ॥ ॥ ख० ॥ ३ ॥ तव नृपने हरिबल कर जोडी, नांखे सांजलो स्वामी रे || हुं सेवक बुं तुम पद केरो, तुमें मुज अंतरजामी रे ॥ ख० ॥ ४ ॥ तुमथी महोटा थावं में महोटा, तुमें बो वंबित पोटा रे ॥ तुमें बो गिरुवा सायर पेटा, तुम नजरें थानं घेटा रे ॥ ख० ॥ ॥ ५ ॥ तुम शिर महोटो बे परमेसर, जगशिर प्रभु तुमें सहुना रे ॥ तुमें बो जगमें कर्ता हर्ता, शुं कहीये किं बहुना रे ॥ ख० ॥ ६ ॥ इणिपरें मीठे वचने नृपने, रीजची हरिबल बोले रे | अरज सुणो एक प्रभुजी अमारी, नोतरुं वचन ते खोले रे ॥ ख० ॥ ७ ॥ नग र सहित तुमें राज पधारो, यम घरे जोजन करवा रे ॥ हुं व्यो बुं तेडवा सारु, तुमने जमण याचर वा रे ॥ ख० ॥ ८ ॥ तव हरखित थइ नृप परिवारें, हरिबल मंदिर यावे रे ॥ सोवन थाल कचोलां मां मी, निजस्त्री पासें परसावे रे || ख० ॥ ए ॥ कुमरी नवनवा शणगार पेहरी, नृपने जोजन प्रीसे रे ॥ ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) रिबल पण नृप जमता नाखे, पंखे पवन जगीसें रे॥ख०॥ १०॥ एकविश जातनी सुखडी पिरसी, फलने मीठा मेवा रे ॥ सिंहकेसरीया मोदक महो टा, देव थारोगे एहवा रे ॥ ख० ॥ ११ ॥ अमृत पाक ने अांबां पोली, श्रीखंम सीरा मुंहाली रे ॥ शा ल दाल ने घृत परनालि, पिरसे ज्युं गंगा वाली रे॥ ॥ख०॥१॥ खारा खाटा तीखां व्यंजन, बत्रीश जातिनां धामे रे ॥ नृप आदें नगरीमहाजन ते, जम तां तृप्ति न पामे रे ॥ ख० ॥ १३ ॥ जमतां जमतां अन्योअन्ये, रसवती जीने वखाणे रे ॥ के गुं देव आकर्षी रसोइ, हरिबलें करि ण टाणे रे ॥ ख० ॥ ॥१४॥ रसीयावाले मल्यो जन ऊपर, फूफे मन था ल्हा रे ॥ अमली नंगी जंगी जन ते, कीधा जोजन स्वादें रे ॥ ख०॥ १५॥ पान सोपारी तंबोल रंगें, दें मुखवासनी ब्रूकी रे ॥ण परि नगरी सारी जमाडी, जागोलें चोखा मूकी रे ॥ ख० ॥ १६ ॥. पुरमें जस पडहो वजडावी, हरिबलें ते जस लीधुरे ॥ धीवर कुल लहि हरिबल पोतें, सुकत कारज की, रेखा ॥ १७ ।। मदने वेगें रसवती जमतां, वसंतसिरी ते दोती रे ॥ मृगनयणीनु रूप सुकोमल, देखत लागी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) मीठी रे || ख० ॥ १८ ॥ नृपनुं मन विह्वल थयुं ज मतां, कामें कीधो जोरो रे । नृप चिंते मुऊ स्त्री बेन लेरी, पण नहि एहवो तोरो रे ॥ ख० ॥ १७ ॥ ख टरस जोजननी सुघडाई, नृपना मनमें बेठी रे ॥ कामज्वरथी नोजन नूल्यो, स्त्रीनी चिंता पेठी रे ॥ ॥ ० ॥ २० ॥ खाधुं न खाधुं करीने नृपते, मन विमनो थ कठ्यो रे ॥ सेनियो थ नृप घरे वली यो, जाणे जगदीश रूठ्यो रे ॥ ख० ॥ २१ ॥ चमकी चितमें चतुरा ततखिण, दीतुं नृप मन बिगड्युं रे ॥ तव प्रीतमने कहे निज प्यारी, चेतो नृप देत उघ ड्युं रे ॥ ० ॥ २२ ॥ तव हरिबल कहे सांगल प्यारी, जावी हशे ते थाशे रे ॥ खणशे ते पडशे खाईमां, श्रापणुं कां न जाशे रे ॥ ख० ॥ २३ ॥ चिहुं जगमें हरिबलनी कीर्त्ति, बोले गुणिजन जीहा रे ॥ सुखें समाधें दंपति दोये, सुखमें काढे दीहा रे ॥ ॥ ख० ॥ २४ ॥ जोजो नविया धीवर जाति, एक जो जीव लगायो रे ॥ सुरसानिध मनवंबित फलि युं, जगमें जस विस्तारयो रे ॥ ख० ॥ २५ ॥ शुद्ध परं पर सोहमस्वामी, हीरविजय सुरिराया रे ॥ साह कब्बर जे प्रतिबोधी, जैनमार्ग दीपाया रे ॥ ख० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) ॥ २६ ॥ तस शिष्य धर्मविजय धर्मधोरी, सयल गु करि बाजे रे ॥ कोविदशिर मुकुटामणि सोहे, तस शिष्य धनहर्ष राजे रे ॥ ख० ॥ २७ ॥ तस शिष्य कु शलविजय कविराया, दिनमणि तेज सवाया रे ॥ तस बंधव गणि कमल विजय गुन, तस श्रुतज्ञान सुहाया रे ॥ ख० ॥ २८ ॥ तस शिष्य पंमित लक्ष्मी विजय गुरु, सोहे साधु नगीना रे ॥ ज्ञान क्रिया दो विधि खाराधी, यातम साधन कीना रे ॥ ख० ॥ ॥ २५ ॥ तस शिष्य दो दुवा साधु शिरोमणि, कुमती मद जीपंता रे | पंमित केशर खमर दो जाता, रवि शशिपरें दीपंता रे ॥ ख० ॥ ३० ॥ ते गुरुचरण प सायें लब्धि, पुष्य उपर परबंध रे ॥ पहेलो उल्लास को नव ढालें, हरिबल केरो संबंध रे ॥ ख ० ॥ ३१ ॥ ॥ इति श्री हरिबलचरित्रे हरिबल राजर्षि पुरवर्णन नृपवर्णनादि प्रथमउल्लासः संपूर्णः ॥ १ ॥ ॥ अथ द्वितीउल्लासः प्रारम्यते ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ परम ज्योति परकाश कर, त्रिभुवन तिलक स मान || गरिब निवाज गोडी धणी, जयनंजन नम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) वान ॥ १ ॥ अविनाशी अव्यय धरुप, अशरीरी य अरिहंत ॥ ज्योतिरूप जगदीश जे, ते प्रणमुं शुन सं त ॥ ॥ कविजन हृदय महीतलें, शारद मात वि शाल ॥ वचनामृत वरसे सदा, प्रगट थई उजमाल ॥३॥ मूरख मूंगां बोबडा, अकलविहूणा जेह ॥ त स घटनीतरमें वसी, सुरगुरु सम करे तेह॥४॥ परउपगारी मातजी, बाला त्रिपुरा सोय ॥ ते ९प्रण मुंजारती, जिम मुज वंडित होय ॥ ५ ॥ कोविद के शर अमरना, चरण कमल नमि तास ॥ हरिबलम हीरायनो, पजणुं बिजो उदास ॥ ६ ॥ रंग रंगीली जनसना, सांजल वेधक जाण ॥ मधुकरनी परें रस लीए, गुणवंत नाव प्रमाण ॥ ७ ॥ सरस नीरस र सिया लहे, चातुर वेधक जेह ॥ पण मूरख पशु बा पडा, झुं जाणे रस तेह ॥ ॥ सरस निरस मधुक र लहे, जे सेवे वनराय ॥ घूण गुंजाणे जीवडो, सू कां लक्कड खाय ॥ ए ॥ खटपद सरिखा चतुर नर, वेधक वचन रसाल ॥ राचे सरस कथा सुणी, विक था तजी विचाल ॥ १०॥ वक्ताने श्रोता सुणी, सा हामो साहामी दृष्ट ॥ एक सरीखी जो दुवे, सु गतां उपजे मिष्ट ॥ ११॥ तेमाटे जावुक तुमें, सां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) जलजो चित लाय ॥ पण ते सुणतां मत करो, महि षी किन्नर न्याय ॥ १२ ॥ नृपने तेडी हरिबलें, की धी नक्ति विख्यात ॥ ते सुणजो नवियण तुमें,शीशी निपजे वात ॥ १३ ॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ आले लालनी देशी॥ तेडी नृपने आगार,नोयण देश सार ॥ बाळे लालाहरिबलें कीध पहेरामणी॥ मणि माणक लख लेय, अंग याजूषण देय ॥या॥ वोलाव्यो नृप गृह नणी ॥ १ ॥ मदनवेग नृप ताम, मंदिर वलियो जाम ॥ आ ॥ वसंतसिरी मनमें व सी॥ अंगनारूप निहालि, मनमां था चकचाल ॥ था ॥ नृप मननी मंगली खसी ॥ २ ॥ जीव रह्यो सलचाय, ज्युं मधु खगलपटाय ॥ ०॥ काम व शें करी जूरियो ॥ कामातुर थयो राय, आकुल व्या कुल थाय ॥ श्रा० ॥ कामज्वरें नृप पूरियो॥३॥ परवश था नृप देह, असमंजस बोले तेह ॥धा० ॥ विकलमूर्ति परें जयो॥खिण बाहिर खिण मांहि,जक न पडे खिण क्यांहि ॥ श्रा० ॥ कामिनीवाहण वहि गयो॥४॥न गमे कुसमनी सेज, न गमे अंतेनरी हेज ॥या॥ राज काज पण नवि गमे । न गमे पान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) तंबोल, न गमे वात टकोंन ॥ ० ॥ अन्न उदक म न नवि रमे ॥ ५ ॥ दत्री परजापाल, मदनवेग म बराल ॥ ० ॥ वीराधि वीर हतो खरो ॥ मोह बा य लागां अशेष, पड्यो गिडंदा पेच ॥ श्रा० ॥ का मिनीयें कस्यो जाजरो ॥ ६ ॥ नृप थयो मूरबा अचे त, जापीयें लाग्यो केत ॥ ० ॥ सघना सचिवने तेडीया || पहेरी नव नवा वेश, धव धव धाइ अ शेष ॥ या० ॥ आया मंत्री न जेडिया ॥ ७ ॥ जा एया जोषी विशेष, पट्टा जे खाता हमेश ॥ श्रा० ॥ तेडया ते वैद राजने ॥ दशो दिशें दोडया सर्व, जाल प्रवीण ते सर्व ॥ ० ॥ याव्या तेडी लवाजने ॥ ॥ ८ ॥ नरडा नूवा जेह, कारण काढे तेह ॥ श्रा० ॥ खाया ते शीश धुणावता | जडी बुट्टीना जाए, गा ash करता वखाण ॥ या० ॥ खाया ते याप वखा यता ॥ ए ॥ वीराला जे कहाय, हनुमंत हाक ब जाय ॥ ० ॥ याया ते शक्ति उपासनी ॥ जगत वेरागी धाय, लांब टीलां बनाय ॥ था० ॥ याया ते दंत नवासनी ॥ १० ॥ इणि पेरें मलिया लोक, उद रने कारण फोक ॥ श्रा० ॥ चिकित्सा करवा नृप त पी ॥ निज निज ते कला सर्व, करवा मांमी गर्व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) ॥या॥ निज निज जश लेवा नणी ॥११॥ कहे एक नाडी देख, नृपने तो रोग अशेष ॥ श्रा० ॥दा ह ज्वर मूर्जा सही। हांकी. बोले वैद्य, ने मुफ गो ली सद्य ॥ा ॥ बत्रीश रोग हणे सही ॥१२॥ जे हता वैद्य ते सर्व, मना राखता गर्व ॥ आ॥ पाली मठ पोषी रह्या ॥ बहु ते कीध उपाय, पण नृपरोग न जाय ॥ आ० ॥ वैद्य प्रमुख पोथी वह्या ॥ १३ ॥ बोल्या जोषी जाण, नांखे लगन प्रमाण ॥ आ ॥ ग्रह पीडा के रायने ॥ ते माटे करो होम, जाय ज्यु रोगनो जोम ॥ आ० ॥ गोदान द्यो तुम्हें लायने ॥ १४॥ जाप जपो सवा लद, जिम ग्रह होवे प्रत्यक्त ॥ या०॥ ते ग्रह नृपनी रक्षा करे ॥ बोल्या जगतजन एम, मानो ते विष्णु जेम ॥ ॥ हम णां नृप मुख उच्चरे ॥ १५॥ एक कहे पेटमें नार, ने अजीर्ण आहार ॥ आ० ॥ रेचनी गोली कीजि ये ॥ कहे एक गांठनो रोग, पीहो बनी योग ॥बाण ॥ चूरण ब्रूकी दीजियें ॥ १६ ॥ नूवा बोले जगीश, नृपने जोटिंग खवीस ॥ आ० ॥ वेलाबली विलगण थ॥ धूणे धूणावी शीश,पाडे बदुली चीस ॥ आ० ॥ वाण तारे चिंता ज॥१७॥ मांमयां मामलां के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) य, वाज्यां मांकलां जेय ॥श्रा०॥ पण लेखे को ना वियां ॥ जेणे कयुं जे जेम,तेणें कयुं ते तेम ॥था०॥ पण नृप चित्त न नावियां ॥१७॥ एम अनेक नपा य, जलनला जाण कहाय ॥ आ॥ जाणपणुं पट की वल्या ॥ विराउता हता जेह, परबंधी पण तेह ॥ या० ॥ सिह साधक सघला गल्या ॥ १५ ॥न गत संन्यासी कूण, गलिया ज्युं पाणी खुण ॥या॥ फोगट गाल फुलावता ॥ जडी बुट्टीना जाण, वादी गर गया गण ॥ आ॥ जाणपणुं जे दुलावता॥ ॥ २० ॥ तिणसमे मंत्री एक, जाणे शास्त्र विवेक ॥ ॥ आ॥ मेहर नामें मंत्रीसरु ॥ जिहां पोढया डेरा य, तिहांकिण आव्यो धाय ॥ आ० ॥ नाडी जो तिहां गुणकरु ॥१॥ साधो नाडी जेद,मंत्री लह्यो ते उमेद ॥ ७ ॥ कामज्वरें ते नृप नडयो ॥ मूरा सह्यो तिण योग, पूरव कर्मना नोग ॥ आ॥काम अनल कुंम पडयो ॥ २२ ॥ जेह नृपने रोग, तेह डं जाणे लोग ॥ ॥ अंतरगतनी कुण लहे ॥ कामनुं फेहर अथाद, नृपने ते लाग्यो दाह॥या०॥ कहो ते रोगने कुण ग्रहे ॥१३॥ जिहांथी प्रगटयुं : ख, तिहाथी दोये सुख ॥ा ॥अगनि बल्यो अग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) नी रे॥ विरहानलनी बाफ, जेहने रहि तन व्याप ॥श्रा० ॥ ते शीतल रमणी करे ॥ २४ ॥ श्म चिंती मनमांहे, सना समद नबाहे ॥ था ॥ मेहर मंत्री श्म नणे ॥ नृपने रोग न काय ॥ फोगट कीधा उपा य॥श्रा० ॥ जाण प्रवीणने अवगुणे ॥ २५॥ यां ख, उषध कान, की, तेम निदान ॥ या ॥ सिम साधक मूरख मल्या ॥ अंतरगतनी पीड, कामज्वर नी रीड ॥आ॥ ते कुणे नवि अटकल्या ॥ २६ ॥ जे लहे शास्त्र विचार, होवे जे गुरु मुख सार ॥या॥ ते जाणे सघली कला ॥ शुं करे चिकित्सा कर्म, न जा णे शास्त्रनो मर्म ॥ था॥ ते करे बाराने बाकला ॥ २७ ॥सना विसर्जी ताम,सदु पोहोता निज धा मा०॥ मंत्री दवे वैदूं करे ॥ बीजा उन्नासनी ढाल, पहेली कही उजमाल ॥ आ० ॥ लब्धिविज य श्म उच्चरे ॥ २७ ॥ आ० ॥ इति ॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे मेहर मंत्रीसरु, लोकोने दे शीख ॥ नृप नी पीडा टालवा, बेठो याद नजीक ॥ १ ॥कामा तुर नृपने लही, सचिव करे उपचार ॥ राणी संघ ली तेडीयो, शोल सजी शणगार ॥ ॥ रम जम क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (36) रती आवीनं, रूपें अपरबर सार ॥ मदन तणी जे वाटिका, कामीने सुखकार ॥३॥श्रावी नपना प ग तलां, उसासें उल्लास ॥ पवन करे रंनादलें, आं जे नेत्र बरास ॥ ४ ॥ पटराणी जे पदमणी, नृपर्नु नीडीअंग ॥ शयन कघु घडि दो लगें, उतखो ताम अनंग ॥ ५॥ कोकशास्त्र तणे बलें, कीधो ए.नप चार ॥ अांख उघाडी ततविणे, महिपतियें तिण वार ॥ ६ ॥ कामज्वर हलको थयो, पाम्यो चेतन सार॥ मेहर मंत्री जस लह्यो; वरत्यो जयजय कार ॥ ७ ॥ मदनवेग हरख्यो घणुं, देखी बुद्धि निधान । सन्मान्यो मंत्रीसरु, देई बदुलुं मान ॥ ७ ॥ बीजा सचिव दूरें कस्खा, राख्यो एह प्रधान ॥ मुझने मोहोटो गुण कयो, दीधं जीवितदान ॥ ए ॥ नृप कहे मंत्री तुं थयो, म हारा उखनो जाण ॥ में राख्यो तुजने सही,तन मन करिने प्राण ॥ १० ॥ तव कहे मंत्री नृप सुणो, ढुं बुं तुमारो दास ॥ केहशो ते करयुं अमें, तन मन क रि एकरास ॥ ११ ॥ पण मुमने साची कहो, ए का रण थयु केम ॥ अंतरगतनी वातडी, जाणी जाए जे म ॥ १२ ॥ वगर कहे किम जाणिये, पारका मननी वात ॥ तव नृप मंत्रीने कहे,मांमी सघली घात॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ ढाल बीजी॥ ॥ नदी जमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ नृप कहे सानल मंत्री,कढुं तुझ नीपनी ॥ हरि बल केरे मंदिर,जमतां जे कपनी ॥ हरिबल केरी नारि, वसंतसिरी सदा॥प्रीसवाावी नोजन,में दीठी तदा ॥ १॥ रूप अनोपम जाणीयें, अनिनव अपरी॥ के रंजा के उर्वशी, के विद्याधरी ॥ नागकुमारी ए जाएं के, लखमी किन्नरी॥ एहवी रूप निधान में, दीठी ए सुंदरी ॥ २ ॥ ए रूप पागल बीजी, स्त्रीयो बापड़ी । मान गुमान ते मूकी,दशो दिशि त्रापडी ॥ रंजा उर्वशी अपसर, जश् ननमें रही ॥ पद्मश्हमें लखमी, रही अंबुज ग्रही ॥ ३ ॥ नागकुमारी किन्नरी, नूतलें जश वसी ॥ वैताढयें विद्याधरी, रही जश्ने खसी ॥ जे रमणीनी उपमा,ते देतां सही॥ वसंतसिरी को आग ल, मामि शकी नही ॥ ४ ॥ ते अंगनानुं रूप, देखि हुँ वश थयो। खटरस नोजन जमतां, ते नूली गयो। मन ललचाणुं मुज,नमर जिम केतकी ॥ जिम मधु ख गलपटाय, थयुं तिम एथकी ॥ ५ ॥ कोश्क चोघडी यानी जे, आवी हिये चडी ॥ खिण खिण सांज रे वीसरे, नही ते अध घडी ॥ चित्रलिखित जो माव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) त, गजथकी उतरे ॥ तो मुफ हृदयथी वसंत,सिरी ते वीसरे ॥ ६ ॥ ते विण जे घडि जाय ते, मास स मान ज्युं॥ मास ते जाणीयें होवे, वरस प्रमाण ज्यु ॥ मोहविलुको जीव, पूरे दिन रातडी ॥ साले साल समान, खुई निज जातडी॥ ७॥ मत कोश्ने प्रजुला गो, एकांगी प्रीतडी ॥ बाले सुरंगी देह, पतंग ज्यु रीतडी ॥ अगनी ऊंपापात, करेवी सोहिली॥ पण वि रहानल बाफ, सहेवी दोहिली ॥७॥ संग्राम करतां लागे ते,नलकांसोहिलां॥ पण ते कामिनी नलका,ख मवां दोहिलां ॥ जिम रोगी ज्वरयोगथी, सेजें तडफ डे ॥ तिम विरही नर काम, ज्वरथी लडथडे ॥ ५ ॥ चिंता चिता दोमें, अधिकी कुण वहे ॥ चिता दहे नि र्जीव, सजीव चिंता दहे॥ जिहां सधी ते नयों न, निरखे अति जले॥ घरनां कारज तिहां सुधी, कांहि न ककले ॥ १० ॥ लोनीनी परें जीव, रहे निज ते क ने॥ खाधा पिधानी सूध, नही ते जीवने ॥ शूनी फरे तस देह के, मन विण मानवी ॥जय लागी घ | जोर जे, ललना अभिनवी ॥ ११ ॥ विरुन विष य विकार के, दृष्टि लागे जिका ॥ वीषयीनो दिल दाह, जाणे केवली तिका। मदिरा पीधे जीव,घुमाई ज्युं रहे। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) विरहनो लीणो जीव, मुंजाइ त्युं वहे ॥ १२ ॥ जोजो नवियां प्रीतडी, लागे जेहने ॥ होये एह हवाल के, मानव तेहनें ॥ विरहनी वारता वीती,दशे ते जाणशे ॥पण निसनेही मूरख, झुं ते पिडाणशे ॥१३॥ मननी सालचरात,दिवस रहे तेहशुं॥न गणे सुख कुःख जीव, बंधाणो जेहगुं ॥ प्रीतिनो लीणो जीव, पडे ते कूप मां ॥ तन धन सोंपे नेही ने, सरवे ते चूपमां ॥१॥ रमणी तणां जे नेत्र ते, कऊल पंकथी॥ प्रगटे कंदर्प मत्त, वराह निःशंकथी ॥ कामी जन मनवनें, वराह ते संचरी॥मानलता खिण एकमें,जाये ते चरी॥१५॥ कामी जनने काम, सुअर के. पडे ॥ विरही जनने अह निशि, विण खूनें नडे ॥ काम वराह ते कामिनी, संग थीसरे ॥ वीरहीजननां मन ते, तव शीतल करे । १६ ॥ सबल पुरुष गढ कोट ते, जीते पराक्रमें ॥ कामिनी जीते त्रीजग, एक कटाक्ष्य ॥ कामगा रीनारी ते, सहुने वश करे॥रागना लीगा सुरनर,स्त्री के. फरे ॥ १७ ॥ सबला ते नबला थई, स्त्री वश रहे बदु ॥ तो माहरो कोण आशरो,मंत्री तुज कहूँ ॥ रेमंत्री तुकागल,मामी में कह।॥ वसंतसिरीन कार ण,ए नीपसही ॥१७॥ नोजन करवा गया तव, ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) फल साविया ॥कारण करीने कारण,लोकने लाविया॥ करण विंधावतां नाक, विंधावी आवियो । ए रखा यो लोकमें, साचो करावियो ॥ १५ ॥ ते माटे हवे कोक, उद्यम कीजियें ॥ वसंतसिरीमुख देखि, सु धारस पीजियें ॥ जो कोई विद्या होय तो, पलकमें जश् मयूँ॥राचुं माचुं मन,तिहांथी न नीकलुं ॥२०॥ बुद्धि अकल परपंच, करी कोय केलवे ॥डे कोय प्रनु नो वाहालो, मुमने मेलवे ॥ तन मन करूं खुरबान, के जो मुझने मले॥यापुं कोडि पसाय,करीनले जले ॥१॥ए अधिकार ते सघलो,मंत्री सांजव्यो॥कामा तुर थयो राय, ते मंत्रीयें अटकल्यो । घणुं बलीयो पण सिंह, अजाडीमें पड्यो ॥ तिम रमणी मोह जालमा, नृप पूरी जड्या ॥ २२ ॥ तो हवे कोश्क बोल, सुबोल कही जला ॥ नृपना मनमें स्त्रीनी, फि कर काढुं बला ॥ सवलृ कमल हशे तो, कह्यं नृपमा नशे॥ तो शीखामण सघली, लेखें आणशे॥ २३॥ सांजलजो नवि आगल, मीठी वारता ॥ सोनलतां खुशियाल, श्रोता दिल गरतां ॥ बीजा नन्नासनी ढाल, ए बीजी पूरी करी ॥ नेहीने मन गमती ए, लब्धियें उच्चरी ॥ २४ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) . ॥दोहा॥ .: ॥ हवे मंत्री नृपने कहे, सांजलो प्रनु महारा ज॥ अंतरगतनी जे कही, ते में निसुणी बाज ॥ ॥१॥ पण ए वात दलकी नहीं, वे नारे महिनाथ ।। गणवा दशन यमदंमना, नना जरवी बाथ ॥ २ ॥ तिम ए स्त्रीगुं नेहलो, करवो अति उखन ॥ बंमो सं गति एहनी, ज्युं लहो सुख सुलंन ॥ ३ ॥ जे कीधे तुमने प्रनु,खामी लागे अपार ॥ वाड जो गलशे ची जडां, क्यां होय तास पुकार ॥ ४ ॥ परःखनंजन राजवी, परजन पाले लाड ॥ वाहार जोश्य जिहां मकी,तिहां किम कवे धाड॥५॥अणघटती ए वातडी, किम कीजें प्रनु नाथ ॥ देखी पेखी वाघना, मुखमें घालवो हाथ ॥ ६ ॥ वसंतसिरी नारी तणो, जो की 'जें प्रतिबंध ॥ बानी वातो नवि रहे, हिंग तणी जे मगंध ॥ ७ ॥ पोतानी परणी प्रिया, नपजावे रंग रेल ॥ जगमें वे परणी नली,पर परणी विषवेल ॥७॥ काणी कोची करबली, काली कुबडी जाण ॥ परणी ह पनोतडी, पदमिणी तेह पिडाण ॥ ए ॥ आप सी गावडी चश्मा, जे दोही पीवाय॥ तूं कीजें पर ती नली, जे दोही नवि जाय ॥ १७ ॥ परस्त्री संग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) ति जे करे, तेहनांपूरण पाप ॥ ऊंप करी बेसे नही, न मिटे तास संताप ॥ ११ ॥ घृतकुंज सरिखा नर क ह्या, अगनि सरीखी नार ॥ मधु खरडी असिधार ज्यु, तिम स्त्रीसंग विचार ॥ १२॥ परनारीना लाल ची, जे थया विषयाबंध ॥ नरकनिगोदे रडवड्या, सुजो तास संबंध ॥ १३ ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ नणदलनी देशी ॥ राजन हे राजन, रावण स रिखो राजवी, जे बलीयो कहेवाय॥हे राजन ॥ ला ख बेहेंतालीश गज तुरी, सेवे सोल सहस राय॥ हेरा जन ॥ १ ॥ धिक धिक काम विडंबना, कामें लुब्धा जेह ॥ हे रा० ॥ जस अपजस कांश नवि गणे, न गणे सुख दुःख तेह ॥ हे रा० ॥२॥ धि० ॥ ब त्रीश सहस अंतेनरो, रूपें अपर प्राय ॥ हे राण ॥ ते सरखीने अवगुणी, रावण सीता हराय ॥ हे राम् ॥ ३ ॥ धि० ॥ राम ने लखमण बेदुमली, मेली कटक अपार ॥ हे रा० ॥ बार वरस लगें आकरा, जू ज्या नर कुंजार ॥ हे रा॥४॥ धि॥ सीताकारणें रावणे, के सुनट हणाय ॥ हे रा०॥ अंतें पण रा वण तणां, दश मस्तक बेदाय ॥ हे रा०॥५॥धि०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) त्रिजगमें कंटकेश्वरी,नाम धरावतो जेह॥ हे रा०॥ चो थी नरकें ते गयो, परस्त्रीनां फल एह ॥ हे रा०॥ ॥ ६ ॥ धि०॥ लंका परलंका करी, निजनारीने लेय ॥हे रा० ॥ निज नगरीयें रघुपति वव्यो, जितना में का देय ॥ हे रा० ॥ ७॥ धि० ॥ बाणुं लख मालव धणी, जे थयो राजा मुंज ॥ हे रा० ॥ ते पण दासी मृणालथी, लुब्ध्यो कामीनि पुंज ॥ हे रा० ॥ ७ ॥ धि ॥ ते दासीना संगथी, घर घर मागी नीख ॥ हे रा० ॥ अंते यूलि रोपण थयो, कामथी लयो ए शीख ॥ हे रा ॥ ए॥ धि०॥ लुब्ध्योपदी ऊपरें, कीचकें कीयो चूक ॥ हे रा ॥ घालियो देवल कुन मां, नीमें कीधो नूक ॥ हे राण॥ १० ॥ धि० ॥ सर सति नामें साधवी, कालिकसूरिनी बेन ॥ हे रा० ॥ गर्धनिल नृपें तस अपहरी, कीg ए कामी चेन ॥ हे रा० ॥११॥ धि० ॥ कालिकसूरिये ततखिणे, मे ली प्रबल खंधार ॥ हे रा॥ गर्धनिल नृप शिर बेदी युं, वाली निज बहेन सार ॥ हे रा० ॥१२॥ धि ॥ इत्यादिक कामीजना, पाम्या कुःख अपार ॥हे रा० ॥ परस्त्रीगमन कस्वाथकी, पडिया नरक मकार ॥ हे रा०॥ १३ ॥ धि० ॥ कामिनी जे संसारमां, नां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) खी पापनी राश ॥ हे रा॥ कामी जनने पाडवा, मोहकू धखो पाश ॥ हे रा० ॥ १४ ॥ धि० ॥ नय में देखाडी प्रीतडी, बोली मीठा बोल ॥ हे रा ॥ प्राण हरी लीये कामीनां, देखाडी रंग चोल ॥ हे राम ॥ १५ ॥ धि० ॥ आंसूं पाडी नयणथी, कुःख देखाडे आप ॥ हे रा ॥ आ नवमें मुफ तुम विना, बीजा नाश्ने बाप ॥ हे रा० ॥ १६ ॥ धि० ॥ कडकडता करि आकरा, खाये खोटा संस ॥ हे रा ॥ थे पर मेसर साचलो, बेतरे जलनला पुंस ॥ हे रा॥१७॥ धि० ॥ जोलवे नोला नामिनी, राखी ते कूडी बुदि॥ हे रा०॥नक प्राणी बापडा, माने ते धोलु दूध ॥ हेरा॥१७॥ धि० ॥ कूड कथन चाले घj, स्त्रीनो एह सनाव ॥ हे रा० ॥ चरित्र रमे के जातिनां, पा मी ते निज दाव ॥ हे रा॥ १ए ॥ धि० ॥ कूड क पटनी उरडी, गोरडी निगुण निटोल ॥ हे रा० ॥ नया राणी तगि परें, कोई न राखे तोल ॥ हे राम ॥२॥धारमणी तणां मन एहवां,जेहवां पाकां बोर ॥ हे रा० ॥ बाहिर सुंदर देखणां, मांहे कठिण कगे र ॥ हे रा ॥२१॥ धि०॥ महिला केरो नेहलो, जेहवो संध्या राग ॥ हे रा॥ यासोमासनो मेहलो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) तेहवो स्त्रीनो राग ॥ हे रा॥ २२ ॥ धि० ॥ स्वारथ पहोंचे जिहां लगें, तिहां लगें करे रंग रेल ॥ हे रा० ॥ ती तन धन हरि लिये,रूठी विषनी वेल ॥ हे रा ॥ २३॥ धि० ॥ सुरीकंतायें कंतने, हणियो देई फेर ॥ हे रा ॥ नारी उष्ट होवे सदा, न जुवे करतां केर ॥ हे रा॥ २४ ॥ धि० ॥ ब्रह्मदत्तने मारवा, लाख नां मंदिर कीध ॥ हे रा० ॥ चुन्नणीयें निज पुत्रने, स्वहस्तें वन्दि दीध ॥ हे रा ॥ २५ ॥ धि० ॥ पायुं रक्तनुजात, खवराव्यु नरमांस ॥हेरा० ॥ ते जितशत्रुने राणी, नाख्यो जलधिमें तास ॥ हे रा॥ २६ ॥ धि० ॥ नारी न होवे आपणी, वानां जो करिये लद ॥ हे रा ॥ दूधने मांग दो नामिनी, देखाडे परतद ॥ हे रा० ॥२७॥ धि० ॥ मोह देखा डी दगो करे, स्त्रीनो ने ए ढंग ॥ हे रा॥ ते माटेतु में राजवी, म करो परस्त्री संग ॥ हे राम् ॥ २॥ धि० ॥ इणि परें नृपने मंत्री, दाख्या के दृष्टांत ॥ हे रा० ॥ पण नृपर्नु मन नवि मले, वसंतसिरी चित्त आंत ॥हे रा॥२॥धि॥मन लागुंजेह उपरें, विसामु नवि जाय ॥ हे रा॥ मोहनी मदिरा डाकमां, उप देश नावे दाय ॥ हे रा० ॥ ३० ॥ धि०॥ लब्धि बी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) जा उल्लासनी, ए कही त्रीजी ढाल ॥ हे रा॥ श्रा गल नवि तुमें सांजलो, सरस कथा उजमाल ॥हेरा ॥दोहा॥ ॥ वलि मेहर मंत्रीसरु, नृपने दे उपदेश ॥ जाणे किम करि नृप वले, होवे लान विशेष ॥ १ ॥श्म जा णी मंत्री कहे, सांजलो तुमें माहाराज ॥ चिहुं जगमें ने अति घणी, तुमची महोटी लाज ॥ २ ॥ साचवी यें जल आपणुं, अणसाचवियुं जाय ॥ नालीकेर परें साचव्यु, अधिक अधिक जल थाय ॥ ३॥परः ख नंजन राजवी, जगमें इम कहेवाय ॥ परनारी ते सहोदरु, बिरुद एम देवाय ॥ ४ ॥ ते मारग किम मू कीयें, आपणि जे कुलवट्ट ॥ शील सुरंगुं सेवतां, ल हियें सुख परगट्ट ॥ ५ ॥ शीलें सुर सांनिध करे, शी लें शीतल आग ॥ शीलें अरि करि केशरी, जय जाये सवि नाग ॥ ६ ॥ शीलें मनवंबित फले, शीलें लहे सौनाग्य ॥ शील धर्म जे चित धरे, जाए कुःख दौर्नाग्य ॥ ७ ॥ शील प्रनाउ नविजना, चढे चनद गुण ठाण ॥ केवल कमला ते वरे, पामे पद नि र्वाण ॥ ७ ॥ शीलयकी कुण कुण तस्या, ते सुण ज्यो दृष्टांत ॥ मदन वेगने बूजवे, मेहर मंत्रि विख्यात ॥ ए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ॥ ढाल चौथीं ॥ ॥ बिंदलीनी देशी ॥ एतो शीलनो महिमा म होटो, सहि नांखे त्रिशलानो ढोटो रे ॥ नरपतिजी निसुणो ॥ ए तो शीलथी लील विलास, शीलें पहों चे सघली याश रे ॥ न० ॥ १ ॥ ए तो जे नर शी लने पाले, ते खातम नव अजुवाले रे ॥ न० ॥ जे धरे शीलयं राग, ते पामे नवोदधि ताग रे ॥ न० ॥ २ ॥ ए तो शील ने कुलनुं यानरण, शीज टाले कर्म यावर रे || न॥ एतो शील बे कुलनुं रूप, शीजें माने सुर नर नूप रे ॥ न० ॥ ३ ॥ ए तो शीलयी शुक्त ध्यान, शीलें पामे केवल ज्ञान रे ॥ न० ॥ ए तो शील रहे एक तान, शिव रमणी दे तस मान रे ॥ न० ॥ ४ ॥ ए तो शील बे गुणनुं निधान, शी लें पामे स्वर्ग विमान रे ॥ न० ॥ ए तो शीलें संकट जांजे, शीलें ते हरि ज्युं गाजे रे || न० ॥ ५ ॥ ए तो शीजें कुंअर श्रीपाल, तस कोढ गयो ततकाल रे ॥ न० ॥ ए तो शीजें सुदर्शन शेठ, शूलि फीटी सिंहा सन बेठ रे ॥ न० ॥ ६ ॥ ए तो शीलें जंबू स्वामी, लघुवयमें थयो शिवगामी रे ॥ न० ॥ ए तो शीजें नेम कुमार, थयो शिवरमणी नरहार रे ॥ न० ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) ॥ ए तो शीजें मेघकुमार, जेणें ढंकी आठे नार रे ॥ न० ॥ ए तो शीलें गयसुकुमाल, शिवपदवी नही सुरसाल रे ॥ न० ॥ ८ ॥ ए तो शीलें यूलिन‍ ना म, राख्युं चिहुं जगमें अभिराम रे ॥ न० ॥ ए तो शी लें श्री मल्लिनाथ, ए तो मुगतिवधू करि हाथ न० ॥ ए ॥ ए तो शीलें सीता नारी, करी धीजतां शीलें समारी रे | न० ॥ ए तो शीलें सुना सुहाडी, जेणे चंपा पोल उघाडी रे ॥ न०॥१०॥ ए तो डुपदी पां म केरी, जेणें कौरवें लगा नवेरी रे | न० ॥ ए तो तेहने शील प्रजावें, सुर सत ऋष्ट चीर पहेरावे रे ॥ न० ॥ ११ ॥ ए तो शीलवती सुकुमाल, यहि फीटी थइ फुलमाल रे ॥ न० ॥ ए तो शीलें चंदनबाला, वीरें करी जाक जमाला रे ॥ न० ॥ १२ ॥ ए तो इ त्यादिक यवदात, कहुं शीलनी केती व्याख्यात रे ॥ ॥न० ॥ जे पाले शील नर नारी, हुं जावं तस बलिहा रीरे ॥०॥१३॥ कुशीलियो किहां न खटाय, कुक्कर ज्युं धक्का खाय रे ॥०॥ कुशीलने काढे कूटी, जिम घर मांथी हांमी फूटी रे ॥ न० ॥ १४ ॥ कुशीलनो नावे विसास, कुशीलियो फरे थ दास रे ॥ न० ॥ कुशी लियो गति नवि पामे, जाये नरक निगोदने में रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) ॥ न० ॥ १५॥ कुशीलियो सघले नमाय, चोविश दमकें दंमाय रे ॥ न ॥ कुशीलनां कर्म अघोर, न वो नवें फिरे थई चोर रे ॥न ॥ १६॥ मंत्र यंत्र में विद्या जेह, कुशीलने न फले तेह रे ॥ न० ॥ सिम साधक नाम धरावे, कुशीलने जस कदि नावे रे ॥ न ॥ १७ ॥ माहादेव जे देव कहाय, सरगथी मरि नरगुं जाय रे ॥ न ॥ अहिव्यायें इं जे लुब्धो, तो सहसनगो नाम दीधो रे॥ न० ॥१७॥ कुल वालु साधु कहातो, गुरु शेहित किम जातो रे॥ न ॥ ते गयो गणिका संगें, बही नरकें कुशीलने ढं गें रे॥ न ॥ १ ॥ वर्ष सहस ते चारित्र पाली, कुं मरीके तप परजाली रे ॥ न० ॥ ते मरीने एकण रा तें, जइ बेठो नारकी पांत २॥ न० ॥ २०॥ कुशाल नी करणी खोटी, करतो फरे नानी महोटी रे ॥न ॥ कुशीलनुं तप जप फोक, वध बंधन लहे फल रोक रे ॥ न० ॥१॥ स्वदारा दिल नवि आवे, कुशीलियो उखर खावे रे ॥ न० ॥ए तो जेहने जे पडी हेवा,तेह नीजाए टेव मरेवा रे॥न॥२॥ ते माटे तुमें मही नाथ, बंको परस्त्रीनो साथ रे ॥ न ॥ कुशीलनुं नाम धराशो, लोकोमें हांसुं कराशो रे॥ न०॥ १३ ॥ दिल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) साबुत राखो राजा, खत्रीवटनी राखो माजा रे ॥ न० ॥ए तो तुमें दो प्रजुने वाला, इण वातें मत था काला रे ॥ न० ॥ २४ ॥ ए तो वसंतसिरीजे बा ला, तुमें न करो एहयुं चाला रे ॥ न० ॥ जाये जन म ते जशने कमातां, पण वार न लागे जश जातां रे ॥ न ॥२५॥ए तो परदेशी थई बूटे, पण मही मां तुम जग खूटे रे॥ न० ॥इम मत्र। तं परचाव,प ण नृपने दिल कांइ नावे रे॥०॥२६॥ मंत्री जे कही वातो,ते सांजली नृप दु तातो रे ॥ न०॥ तव मंत्री थयो खिसियाणो, साहामुं नृप रोषे नराणो रे ॥ ॥न॥२॥ हवे सुजो जे नृप बोले, मंत्री आगल पोथु खोले रे॥ न० ॥ ए तो बीजा नन्नासनी ढाल, कही चोथा लब्धे रसाल रे ॥ न० ॥ २७ ॥ इति॥ ॥ दोहा॥ ॥वयण सुणी मंत्री तणां, नृपने लागी हिंग ॥ नूतनराड ते नृप थयो, जाणे लागु विंग ॥१॥ हित शीखामण देवतां, नृपने कती काल ॥ आगे अहि बंजेडियो, तिम दुवो नृप विकराल ॥ २ ॥ आगे वा नरने वली.विडीयें चटको कीधागें केशरीने वली, श्वाननु बिरुद ते दीध ॥ ३ ॥ तिम नृप मंत्री उपरें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) कोपाकुल थ राय ॥ मदनवेग तिहां सचिवद्यु, बो व्यो व्रकुटी चढाय ॥ ४ ॥ रे मंत्री हुँ जाणतो, तुक ने चातुर कोक ॥ बे दाणा तुझमें नही, जे बोले ते फोक ॥ ५ ॥ तें किम जाण्या कुशीलिया, करणी हीणा जेह॥परस्त्रीगमन किया पर्नु, स्वर्गे पहोता केह ॥ ६ ॥ ते सांजल तुमने कडं,शास्त्र तणे अनुसार ॥ व्रत नांगी ते मुनिवरा, पाम्या नवनो पार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥जीणा मारुजीरी करहलडी ॥ ए देशी ॥ ननेता कहे सचिवने,सांनल तुं एकंगो थश्ने कान उघाडी हो राज ॥ चोविश वर्ष घरे रही, मुनिवर आईकुमारें व्र तने लाज लगाडी हो राज ॥१॥ ते गयो ज्योति आगा रमें, सि६ वधूना संगमें जश् सुख जोगवे पूरा हो राज ॥ साख नली तस ए कही, श्रीवसुदेवनी हिंम में अदर जो तुं सनूरा हो राज ॥ २॥ श्रेणिक रायनो कुंवरूं, नामें नंदिखेण जे बलियो थइ व्रतली नो दो राज ॥ तेणे पण व्रत नांजाने,गणिकायुं घर मामि रह्यो रंग नीनो हो राज ॥३॥ बार वरस सुख जोगवी, अजरामर पद लहियो करणी सदु ज ग जाणे हो राज ॥ माहानिशीथ जे सूत्रमां, साख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६४ ) नली जाएणजे मंत्री लिखित प्रमाणें हो राज ॥ ४ ॥ पापी चिलाती पुत्र जे, स्त्री हत्या जिणें कीधी महोटी कामें व्याप्पो हो राज || ते गयो सुर लोक धाम्मे, साख नली तुं जाणजे श्री योगशास्त्रें उपायो हो राज ॥ ५ ॥ याषाढसूति अणगार जे, नाटकणीने सायें बार वरस घर मांड्यो हो राज ॥ साख नली तस चरित्रमां, ते गयो शिवगति मांहे जाणी जे व्रत खंड्यो हो राज ॥ ६ ॥ चंदशेखर विद्याधरु, ते निज नगि नि साथै निशिदिन रंगें रमतो हो राज ॥ ते लह्यो मुगतिवधू प्रिया, श्रीसेतुंजो माहातम साखी बे मन गमतो हो राज ॥ ७ ॥ चक्री नरत नरेसरु, गंगा वे वीने घेर रहियो यइ सुखवासी हो राज ॥ सहस व रस सुख जोगवी, नुवन यारीसामांहे पाम्या ज्ञान उल्लासी हो राज ॥ ८ ॥ अष्टापद गिरि उपरें, कूपन जिलेसर साथै मुगति पुरीयें पुहता हो राज ॥ तेनी साख तुं जाणजे, जंबुदीवपन्नत्तिमांहे अक्षर सुहता हो राज ॥ ए ॥ नामें एलाची जाणीयें, नाटकणीनी लारें नटक्यो प्रेम विलुदो हो राज ॥ केवल रयण ते पामिने, मुगति पुरी में जइने बेगे नि जय सूधो हो राज ॥ १०॥ गज सुकुमालिका साधवी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पू.) शशक मसक दो जाइ तेहनी बहेन कहाणी हो राज ॥ चिरकाल सुधी ते साधवी, सारथवाहनी घरणी थइ रही उपगार जाणी दो राज ॥ ११ ॥ ते थार्या कुशीनणी, असा खंमी पहोती ते हिज नव सुरलोकें हो राज || तेहना परगट अक्षरा, श्री उपदेशनी मालामांदे वांची जोकें हो राज ॥ १२ ॥ ब्रह्मा ध्यानें चुकव्या, नाटारंज देखाडी रंगायें जो लव्यो ब्रह्मा हो राज || चिहुंदिशि चनमुख नी पनां, गर्दननुं मुख प्रगटधुं पांचमुं उपजे शर्मा हो राज ॥ १३ ॥ मारग जातां ब्रह्मायें, वनमें दीवी रीं बडी मीठी मनमें लागी हो राज || तेहयुं अनिताष सेवता, ऋषि तें बडी पेटें उपनो सागी हो राज ॥ १४ ॥ ब्रह्मपुराणें ते ब्रह्माने, परमेसर करि माने डुनियां एक ध्यानें हो राज || तारक जग परमेसरु, निज पुत्री विलसे रंगें थइ एक तानें हो राज ॥ १५ ॥ उमया नारी नवेखीनें, जटामध्यें बानी राखी ईश्वरें गंगा हो राज || तारक जाणी शंत्रुने, वरण अढार जे मानविरुड्ने पूजे एकंगा हो राज ॥ १६ ॥ पुत्री लेखा देखीने, त्रिनेत्री थयो शंकर तिएा दिनथी गव रायो हो राज || लिंगपूजा या तिल दिनथी, लिंग ५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) पुराणें चावो अदर ले सपराणो दो राज॥१७॥ विष्णु पुराणें विष्णु जे, कान गोवाल थश्ने लोकमांहे पूजा यो हो राज ॥ बत्रीस सहस अंतेरी, ते बंमी मही यारी राधा साथें गवाणो हो राज ॥१॥ कुंता पांकु नृप तणी,लघुवयमें कुमारी सुरज देवे विलसी हो रा ज॥करण थयो ते उदरनो,जग चतु ते देवनी सदु जग माने उलसी हो राज ॥१॥ ए अवदात जे में कह्या, करमां दीपक लेइ देखी कूप के पडिया हो राज ॥ बल वंतमाहे शिरामणि, ते सरिखा पण बलिया गलिया कम नडिया हो राज ॥ २० ॥ तो माहारो कोण आशरो, तिन नुवनमें सर्वने कमै मुक्या चूणी हो राज ॥ जे पवनें गज नडिया, तेणे पवनें करी धाई मोकरी लेवा पूणी हो राज ॥ १ ॥ कुगति सुग ति जे पामवी, ते करणी सघतीनवितव्यताने हाथें हो राज ॥ जे जे समय प्राणीयें, गुनागुनना बंध जे बांध्या ते आवे साथें हो राज ॥ २२ ॥ उग्र त पस्यानो धणी, जितारि नृप जिननो रागी पूरण दु तो हो राज ॥ ते मरीने थयो सूअडो, किहां गई कर णी तेहनी तिरियंच गतिमां पहोतो हो राज॥२३॥ ॥ए अधिकार तुं जाणजे, श्री शेजा माहातम माहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) ने ए साखी दो राज ॥ करणीनुं कारण को नही, नवितव्यतानुं कारण सघले जिन वाणी नांखी हो राज ॥२॥ नवस्थिति पूरी थया विना, उद्यम जीव करे पण लेखे कदिय न आवे हो राज ॥ माली सी चे सोगणां,पण तेहनी ऊतावलें तु विना फल नवि पावे हो राज ॥२५॥ तिम आपणी कतावलें, समकि त रयण विना किम नवस्थिति पाकी जाय हो राज ॥ घjष नूरख्यो पण युं करे, लाख उतावल करी ये बे करथी न जमाय हो राज ॥ २६ ॥ तिम इव्य क्रियाथी न घडे, नाव क्रिया जब ज्यंतर प्रगटे तब शिव पावे हो राज ॥ जिहां सुधी समकित नविल युं, तिहां सूधी ते जीवने चिटुं गति कर्म नमावे दो राज ॥ १७॥ व्यथी उघा चरवला,एकठा कीधा जी वें मेरु जेवडा ढगला हो राज ॥ तो पण गरज सरी नही, जाव विना जे किरिया कीधी दंनी ज्युं बगला हो राज ॥ २ ॥ ते माटें मंत्री तुमें, शील कुशील नु कारण कोई हां मत गणजो हो राज ॥ पांचे कारण जब मिले, नवितव्यताने जोगें शुनागुन तव नएजो हो राज ॥ श्ए । एहवो उत्तर मंत्रीने, मद नवेगें दीयो चोखो हाथमें लाडु हो राज ॥ वली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६७) कहे सांनल मंत्रवी, तुज करणी विगतावी ताहरा का न उघाडं हो राज ॥ ३० ॥ लब्धं बीजा नन्नास मां, मंत्रीने समजाव्यो नलि परें पांचमी ढालें हो राज ॥ हवे सुपजोनवियण तुमें, आगल शीशी वा त निपजे ते उजमाले हो राज ॥३१॥ • ॥दोहा॥ ॥रे मंत्री हुँ ताहरां, जाणुं सयल चरित्र ॥ पा पड खाई पदमशी, तुं थयो महोटो पवित्र ॥१॥ पट्टा खाउँ अम तणा, व्यो वलि लोकां लांच ॥ ले वा देवा मापलां, राखो कूडां साच ॥२॥ कूड कप ट हृदयें धरी, बोलो मीठा बोल ॥ धोले दिन धूतो घj, राखी कूडां तोल ॥३॥ परनिंदा करता फरो, पारकुं ताको बिश्॥साची जूठी करो घणी, काढो जुना दुइ ॥४॥अम उपरालें लोकने, यो लेखणनो मार ॥ धेरें वीट। परजने, देवो कुःख अपार ॥५॥ अमें उसरीयें पापथी, तुमें न उसरो कोय ॥ मरण बीक राखो नही, बाती दृषद ज्युं होय ॥ ६ ॥ पर उपदेश देवाघj, माहापण राखो ठीक ॥आप न जा ये सासरे, दिये परायां शीख ॥ ७॥ निज अवगुण जोवो नही, पर अवगुण तुम लेय ॥ पापनी बांधी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) गांवडी, ह्रींमो शीश धरेय ॥ ८ ॥ चंदन नार गर्दन शिरें, जाणे लोकें दीध ॥ नारोद्दाह गर्दन थयो, प ए चंदन स्वाद न लीध ॥ ए ॥ तिम मंत्री तुं जाएग जे, तुजमां एह सनाव ॥ मुऊ उपगार जास्यो नहीं, गर्दन सम थयो ठाव ॥ १० ॥ एह वचन महिपति तणां, सांजलि चमक्यो चित्त ॥ मनमां बीनो मंत्र बी, राजा केहना मित्त ॥ ११ ॥ हित शीखामण दें यतां, साहामुं देवे दोष ॥ गोलो गर्दजने हणी, गाम शुं राखे रोष ॥ १२ ॥ महिपतिनुं मन उलखी, बो व्यो मंत्रि तिवार || हा स्वामी तुमें जे कही, मानुं ते निरधार ॥ १३ ॥ राजा के परमेसरु, जे बोले ते स त ॥ एहमें जूठन संपजे, दोमें बे दैवत्त ॥ १४ ॥ मुखथी साकर घालीने, नृपने को प्रसन्न ॥ महिपति ये पण मंत्रीने, सनमान्यो सुवचन्न ॥ १५ ॥ सिरपा व देश वोलावियो, मंत्रीने निज ठाय ॥ राज काज शुन चालवे, मदनवेग तिहां राय ॥ १६ ॥ इति ॥ ॥ ढाल बही ॥ ॥ का बिजरो पाणी लागणो, काबिल मत चाले ॥ अथवा, धन मेतारज मुनिवरु ॥ ए देशी ॥ एक दिन बेगे मालीये, नृप मदन वेग ॥ वसंतसिरी चित्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) सांजरी, तस थयों नदवेग ॥१॥धिग धिग काम विटं बना, मोहें जोबन जागे॥ए अांकणी॥मोदनी उर्जय जीततां, घणुं दोहेलुं लागे ॥॥धि॥ तिण अवसरें एक मेहेतलो, कालसेन ते नामें ॥ नृपने नमि अति इकडो, बेठो अनिराम ॥३॥ धि० ॥ मननो मेलो मायावियो, मद नसो कंठ सूधी॥ पण ते सर्प तणी परें, माहा उष्ट कुबुद्धि ॥४॥ धि० ॥ नगद आसा मी घणुं, जाणे जरनो मेल ॥ चाडी चुगली क री घणी, काढे लोकनां तेल॥ ५॥ धि०॥ एहवो कु बुद्धि मंत्रीसरु, पेठो नृपने कानें ॥ हरिबल केरी वा रता, मांमी एक तानें ॥ ६ ॥ धिम् ॥ हरिबल कीर्ति विस्तरी, नगरी जन मांहे ॥ ते सांजली मन मेंतलो, रीशे बले तांहे ॥ ७ ॥ धि० ॥ अवसर ले। कालसेन ते, नृपकान नंनेखो ॥ उर्जन मुख बाणे करी, नृपर्नु दिल फेयो ॥ ७॥ धि॥ लटपट नृप आगे करे,पा पी परपंच ॥ हरिबलने उबापवा, ममियो सूधो सं च ॥ ए॥ घि० ॥ स्वामी गुं जाणो अबो, हरिबलनी वातो ॥ नगरजन सदु वश करी, करशे तुम घातो॥ ॥ १० ॥ धि० ॥ त्रीश राजकुली करे, हरिबलनी सेवा ॥ कूडो रचे में एक मली, तुमचो राज लेवा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१ ) ॥ ११ ॥ धि० ॥ चेतवुं होय तो चेतजो, घाट घडी यो बे करो ॥ पढें कहेशो जे कयुं नहीं, मुजने ते कूर्णे ॥ १२ ॥ धि० ॥ परदेशी खजाने, तुमो ata बंधावी ॥ ते किम होवे यापणा, सुपो नूपति ठावी ॥ १३ ॥ धि० ॥ वसंतसिरी अप्सर समी, हरि बलनी बे लाडी ॥ निज हायें प्रभुयें घडी, कामिज ननी ए वाडी ॥ १४ ॥ धि० ॥ ए स्त्री जेणें दीवी न हीं, तस जनम लेखे ॥ बे हाथे प्रभु पूजीया, तें स्त्रीने ए देखे ॥ १५ ॥ धि० ॥ धन्य दिवस धन्य ते घडी, धन्य वेला तेह ॥ एहवी स्त्री जेने घरे, तस पुस्य विशेह ॥ १६ ॥ धि० ॥ इणि परें हरिबलनी करी, चुगली बल ताकी ॥ मेतले डुष्ट कुबुद्धियें, कां बाकी नराखी ॥ १७ ॥ धि० ॥ महिपतियें तें सांजली, चमक्यो चितमांहे || पगथी मांगी माथा लगें, नृप परजल्यो दाहें ॥ १८ ॥ धि० ॥ श्रागें वेरी कर चढ्यो, वली करथकी लूटो ॥ खगें जुहारीने बली, मव्यो साथी जूगे ॥ १५ ॥ धि० ॥ खागें सर्प बेडिने, कस्यो पुंथी बांगो ॥ यगें अनि जालमां, सिंच्यो घृत मांगो ॥ २० ॥ धि० ॥ तिम नृप हरिबल ऊपरें, घणुं रोषें जराणो ॥ रे मंत्री हरिबल हणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) तस स्त्री घर यणो ॥ २१ ॥ ६० ॥ तव मंत्री का लसेन ते, कहे नृपने वाणी ॥ स्वामी हरिबलने ह ऐ, जनमां जाय पाणी ॥ २२ ॥ धि० ॥ पण एक स्वामी उपाय ने, तुम बुद्धि बतावुं ॥ हरिबलने तुमें मोकलो, लंका गढ ठावुं ॥ २३ ॥ धि० ॥ जलनिधिमें जातां थकां वहेशे एह बोलें ॥ तव नारी तुम मं दिरें, श्रावशे रंगरोनें ॥ २४ ॥ धि० ॥ ठाकर चाक रनी इहां, साची खबर ते पडशे ॥ तुम थापा ते शिर धरी, लंका गढ चडशे ॥ २५ ॥ धि० ॥ ते माटे तेडी तुमें, हरिबलने पूढो || एम कही घरे मेंहेंतलो, गयो घाली ढूंढो ॥ २६ ॥ धि० ॥ लब्धें बीजा उल्ला सनी, कही बही ढाल ॥ यागल नवि तुमें सांजलो, मीठी वात रसाल ॥ २७ ॥ धि० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ इणि परें नृप मंत्रीसरु, एक मतो करि दोय ॥ महिपति पहोतो महेलमां, मंत्री गयो घर सोय ॥१॥ बीजे दिन रवि ऊगियो, प्रगट्यो राग विनास ॥ शकु नियें बांह पसारीयां, कैरव कीध विकास ॥ २ ॥ वा ari वलगां जई, धावाने हर्षेण ॥ दोवा बेसे जा मिनी, जेहने बे घर घेण ॥ ३ ॥ देवल सघले वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३ ) जियां, जालरना ऊणकार ॥ तास शबद सुणतां थकां, रजनी नाति तिवार ॥ ४ ॥ सुल्लन बोधी जीवडा, मांगे निज खटकर्म ॥ साधूजन मुख मोमती, बांधी हे जि नधर्म ॥ ५॥ मंगल वाजां वाजियां, वाज्यां गुहिर नि शाण ॥ ए करणी परजातनी, जब कगे शुन जाए ॥ ६ ॥ मदनवेग नृप ति समे, परखद मेली एकत्र ॥ बेगे सिंहासन हसी, माथे धरावी छत्र ॥ ७ ॥ खटत्रीस राजकुली मली, वडवडा सोहे सामंत || शेठ सेना पति मंत्रवी, परखद मेलि अत्यंत ॥ ८ ॥ हरिबल पण मंत्रीसरु, बेठो नृपनी पास || बिरुदावलि नृप जन तणी, कविजन बोले उल्लास ॥ ए ॥ रंग विनो दनी वारता, परखदमें करें सार ॥ ति अवसर नृप बोलियो, मदनवेग तिथि वार ॥ १० ॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥ कुंमखडानी देश ॥ सना समदें नृप कहें रें, सांजलजो सामंत ॥ सनेहा सांगलो ॥ माहरे काम घणं रे, अध्यवसाय अत्यंत ॥० ॥ १ ॥ वैशाख शुदि पांचम दिने रे, लीधुं बे लग्न विशेष ॥ स०॥ अंग जने परणाववा रे, मांमयो विवाह विशेष ॥ स ० ॥ २ ॥ उम्मर मध्यें तुम तणुं रे, काम पड्धुं बे याज ॥ स ० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) ॥ स्वामी जक्ता जे दुवो रे, ते सारो मुज काज ॥ स० ॥३॥ लंका गढ जावू बडे रे, कहो ते जारी कोण॥स॥ बीटुंबबो एमाहरूं रे,जे खाता होय खूण ॥स ॥ ४ ॥ लंकापतिने नोतरी रे, तेडी यावे जेह ॥स॥ माहरी री पामशे रे, लाख वधामणी तेह ॥ स ॥५॥ राय बिनीषण तेहगुं रे, माहरे ने बहु नेह ॥ स० ॥ शीघ्र जई लगन दिने रे, तेडी आवो गेह ॥ स०॥ ६ ॥जो ममता माहरी करो रे, तो मत करजो ढील ॥ स ॥ शीघ्र थइ बीडं ग्रही रे, पंथें वहो मेली ढील स॥॥ इणि परें महिपति ये कह्यु रे, सना समद वचन्न ॥ स ॥ पण बीडं ग्रहवा जगी रे, कोई न दीये तन्न ॥ स०॥ 6 ॥स र्ग मटा मटिनी परें रे, मौन करी रह्या सर्व॥ स मरण तणी बीके करी रे, मूक्यो सघले गर्व ॥ स० ॥ ए॥अधोदृष्टि करी रही रे, सघली परखदा सो य ॥ स० ॥ उंची दृष्टे नवि जुवे रे, लजाणा सदु कोय ॥ स० ॥ १० ॥ तव कर जोडी मंत्री कहे रे, कालसेन ते उष्ट ॥ स ॥ स्वामी जे कही वारता रे, सांजली दुया संतुष्ट ॥स०॥ ११ ॥ पण विषम पंथ आकरो रे, जलधिमें केम जवाय ॥ स० ॥ पग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) वटें सिम न संपजे रे, जुजाथी न तराय ॥ स०॥ १५ ॥ गज पाखर जंबुकशिरें रे, नाखी तुमें राजान ॥स०॥ ते किम तिणथी कंधरा रे,नंची थावा निदान ॥ स ॥१३॥ मतकोटनी कटि उपरें रे, मूकी गोलनी गुण ॥ स० ॥ गात्र विना केम उपडे रे, जे करे गजा विहूण ॥ स॥ १३ ॥ तिम स्वामी संका गढ़ें रे, शक्ति विना कुण जाय ॥ स ॥ पूरो पराक मी जे होवे रे, ते जावा अंगमाय ॥ स ॥ १५ ॥ के वहे लंका देवता रे, के विद्याधर होय ॥ स ॥ के तपसी साधु जना रे, तो तरे जलनिधि तोय ॥ स० ॥१६॥ बीजानो शो आशरो रे, जलनिधिनोलहे ताग ॥ स० ॥ दशरथसुत एक सांजव्यो रे, जलधियें बां धी पाग ॥ स० ॥ १७ ॥ केवली हरिबलने सुण्यो रे, जे बेगे तुम पास ॥ स ॥ जावे ए लंका गढें रे, बीडं बबीने नन्नास ॥ स० ॥१७॥ सबल पुरुष ए जाणियें रे, एहमां ने जगदीश ॥ स ॥ काज तुमा संसारशे रे, पूरशे मननी जगीश ॥ स० ॥१५॥ इणि परें कुमति मंत्रिय रे, नृपने विनति कीध ॥ ॥ स० ॥ सुनट शिरोमणि इण समे रे, दीसे हरिबल सिम ॥ स० ॥ २० ॥ ते निसुणी नृप तिण वेला रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) हरिबलने कहे राय ॥ स०॥ शीघ्र थई बीडं ग्रहो रे, जिम मुफ वंबित थाय ॥ स० ॥ २१॥ राय बि नीषणने जई रे, तेडि आवजो हि ॥ स ॥ मान गुं मुजरो तुम तणोरे, जीवित सूधी उहाहि ॥स॥ ॥ २२ ॥ तव हरिबल श्रवणें सुणी रे, मनगुं विमा से आज ॥ स ॥ जो नाकारो हां करूं रे, तो नर हे मुफलाज ॥स० ॥ १३ ॥साजें कप्पड पहेरीय रे, लाजें दीजें दान ॥ स० ॥ लाजें पंचमें बेसीयें रे, लाजें वाधे मान ॥ स ॥ २४ ॥ लाजें गढ कोट लीजियें रे, साजें राखीयें सत्त ॥ स०॥ लाज वधी मुज चिहुँ जगें रे, किम कर्दु ना हवे जत्त ॥ स०॥ ॥२५॥ इणिपरें मनमां सोचीने रे, बोल्यो हरिबल ताम ॥ स० ॥ लावू जइ लंकाधणी रे, तो हुँ खरो मुफ वाम ॥ स० ॥ २६ ॥ मेलq तुम लंकापति रे, तो मुज देजो शाबास ॥ स० ॥ एम कही बीडं ग्रही रे, हरिबल आव्यो आवास ॥ स ॥ २७॥ थनि जपति मुख देखिने रे, वसंतसिरी उजमात ॥स ॥ बीजा नन्नासनीए कही रे,लब्धियें सातमी ढाल २७ ॥दोहा॥ ॥हरिबल कहे निज नारीने,सांजल प्यारी मुफ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) जावू के लंका नणी, मा{ आणा तुज ॥ १॥ थिर चित्त करी रहेजो तुमें, देजो दान सुपात्र॥ शील सुरं गुं पालीने,करजो निर्मल गात्र ॥२॥धरजो ध्यान नव पद तपुं, चनद पूरवनुं सार ॥ समस्या जिम सांनिध करे, आपे शिवसुखकार ॥ ३ ॥ सेवजो गुरु देव एक मने, जेणे वधारी शर्म ॥ कीडीथी कुंजर कस्या, उल खावी जिनधर्म ॥॥ प्रीतम वचन ते सांजली,व संतसिरी कहे एम ॥ शे कारण जावं पडे, ते कहो जाणुं जेम ॥५॥ तव मामी हकिगत कही, प्यारीया गल तेह ॥ तिण कारण जावू पडे, सांजल तुं ससनेह ॥६॥पियुनु गमन तेसांजली,कुमरी थइ दिलगीर॥जाणे नाइव मेह ज्यु, वरसे आंसु नीर ॥७॥कालजेकौ घाली वहो, प्रीतम तुम निसनेह ॥ निशि दिन विरहें तुम विना, बले सुरंगी देह ॥॥ सघलुं कुःख खमीय प्रनु, पण विरहो न खमाय ॥ विरहानलनी बाफ जें, पियु विण केम उलाय ॥ ए॥ तेमाटे प्रीतम तुमें, मत जा परदेश ॥ मन किम वहशे मूकतां, मुजने बाले वेश ॥१०॥ नृपन कारज पियु तुमें, महोटं लाव्या विंग॥ लंकापतिनो जाणज्यो, जिहां गयां उंटनां शिंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) ॥११॥ जो प्रितम चालो तुमें,तो मुज तेडो संग ॥ टेह ल करेगुं तुम तणी, जोगुं लंका रंग ॥१२॥ . ॥ ढाल आठमी॥ ॥ आसणरा योगी ॥ ए देशी ॥ तव प्रीतम कहे सांजल प्यारी, मुफ तुं मोहनगारी रे ॥ सुंदरी स सनेही ॥ तुज मुख देखि ढुं सुख पावं, तुज निशि दि न चितमें ध्यानं रे ॥ १ ॥ सुं० ॥ प्राणथकी ले तुं मुक वाहाली,जिम चंइने रोहणी वाहाली रे ॥सुं॥ तुं मुफ चित्रावेल समानी, तुं मुफ बुद्धि निधानी रे ॥ २ ॥ सुं० ॥ जव थइ ते प्रनुनी महेरबानी, प्री तडी तुमझुं बानी रे ॥ सुं० ॥ लेख लिखित थयो तुमगुं मेलो,थयो संबंध पुण्ये नेलो रे ॥३॥ सुं॥ अहोनिश लालच रहे तुफ केरी, घj घणुं करि कडं { फेरी रे ॥ सुं॥ तुमने मुकतां मन नथी कहेतो, पंथें चालतां पग नथी वहेतो रे ॥ ४॥ सुं०॥ पण झुं करीयें नृपनी सेवा, करवी पडे पेटनी हेवा रे ॥सुं॥ जो नृपर्नु कह्यु नवि करियें, तो नृपनो जश किम वरिये रे ॥ ५॥ सुं० ॥ जेहना घरनो को लियो खावो, तस घरनो धोलो बंधावो रे ॥ सुं० ॥ ए संसारमें रीति जे सघले, काम कीधे जस वधे स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) बजे रे ॥ ६ ॥ सुं० ॥ ते माटे तुं सुंदरी मोरी, मुने आणा दे हवे तोरी रे ॥ सुं० ॥ शीघ्रगतें जई या विश वहेलो, नृपनुं जगन ते पहेलो रे ॥ ७ ॥ सुं० ॥ तव रमणी कहे सांजल प्यारा, तुम हेज लताना क्यारा रे ॥ प्रीतम ससनेही ॥ मु वखतें तुमे सुरप ति सरिखा, मल्या हो पुण्यें आकर्ष्या रे ॥ ८ ॥ प्री० ॥ जगती जोतां प्रभु तुमें जडिया, सुरमणि सम मुज कर चडिया रे || प्री० ॥ सुकृतवहिन फली सुखदा यी, यश तुमची साची सगाई रे ॥ ए ॥ प्री० ॥ में तु मधुं जे पालव बांध्यों, जीवित सुधी नेहलो सांध्यो रे ॥ प्री० ॥ हवे मुऊ प्रेम पयोधिमें नाखी, केम जा न बेहलो दाखी रे ॥ १० ॥ प्री० ॥ वसी मुफ हृदयें थया परदेशी, तन मनना सोदागर वेशी रे ॥ प्री॥ नाखी मुकने प्रेमनी फांसी, बेठा चालवा मूकी निरा शी रे ॥ ११ ॥ प्री० ॥ मुफ सरिखी नारी कां मूको, नृप मंत्रीने वयणें कां चूको रे ॥ प्री० ॥ एहवो कुण मूरख बे फांजी, जे पय मूकी पीये कांजी रे ॥ १२ ॥ प्री० ॥ ते नखाणो प्रभु तुमें मेल्यो, पछे बीजानो श्र विहेलो रे ॥ प्री० ॥ में तुमने कहि धागे चितारो, नृप जमतां वात संजारो रे ॥ १३ ॥ प्री० ॥ ते फल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) उग्यां तुमारां वाव्यां, निज करनां घड्यां हए चाव्यां रें ॥प्री० ॥ ते कारण लंकायें जावं, नृपें की, चूक ते चावू रे ॥ १४॥ प्री० ॥ उर्जन नृप मंत्री पड्यो केडे, पण कोक दिन ते वेडे रे॥प्री० ॥ सजिलो प्रीतम ढुं तुम नाखू, नीतिशास्त्र में जे कयुं दाखं रे॥ १५॥जी॥ एतां सूनां कदीय न मूके, जे माह्या ते नवि चूके रे ॥ प्री०॥ स्त्रीधन पुत्र जेराज सुहर्म, सूनां मूक्यां ए न रहे शर्म रे ॥ १६ ॥त्री० ॥ तेमा टे तुमें सांजलो स्वामी, तुम वीन अंतरजामी रे ॥प्री० ॥ बहुश्रुतने करी वचनें वहीजें, उर्जनथी दूर रहोजे रे ॥ १७॥प्री० ॥ निज नारीने साथें लीजें, पीयु प्रेम सुधारस पीजें रे॥ प्री० ॥ कामिनी जाणे कंथ विहगी, जेम दीसे नांगी दूगी रे ॥१॥ प्री० ॥ कंत विना नारी नवि शोने, पग पग लहे दो ष ते बोने रे॥ प्री०॥कंथ विना स्त्री दीन समान, जिहां जाय त्यां न सहे मान रे ॥ १५॥प्री० ॥ पियु विण स्त्रीने मंदिर मांहे, घडी जंप वले नहिं क्यांहे रे ॥प्री० ॥ पियु विण पहेरवा जे शणगारा, ते तो लागे जाणे अंगारा रे ॥ २० ॥ प्री० ॥ पियु डा विण ते सुखनी सेज, जाणे लागे कौथच रेज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) रे॥प्री०॥ केश लख लाख मंदिर जन नरिया, के कोडि सखि परवरीया रे ॥ २१॥प्री० ॥ पण ते प्रि य विण न लागे नीका, जिम घृत विण नोजन फी कां रे ॥प्री० ॥ धन्य ते नारीनो अवतार, जस मं दिर रहे जरतार रे ॥ २२॥प्री० ॥ शा अवगुण तु में मुझमें दीवा, विण खुनें वहो थधीवा रे॥जी॥ तुमथी तिरियंच पंखी रूडां,दूरें न रहे स्त्रीथकी सूडा रे॥ २३॥प्री० ॥ चार पहोरनो रह्यो जो अंतर, तो फूरे खग निरंतर रे ॥प्री० ॥ तो केम तुमें निसनेही थावो, निज स्त्री विण संका जावो रे ॥ २४ ॥जी॥ के गुं माहरो मोह उतारी, नौतन कोई नारी संजारी रे॥प्री० ॥ के गुलका मसलं काढी, जान परगवा दूजी लाडी रे ॥ २५ ॥ प्री० ॥ तुम चित्तनी पियु क -ल नवि सूजे, ए तो केवली विण कुण बजे रे॥प्री०॥ तो हवे तुमने वेगला न मूकुं, निज स्वामीनी सेवान चूकुं रे ॥ २६ ॥ प्री० ॥ जो मुझने साथै नवि तेडो, पण ढुं किम मेलिश केडो रे ॥जी॥ कायानी बाया पेरें वलगी, केम रही शकुं तुमथी अलगी रे ॥ २७ ॥त्री० ॥ एणी पेरें नारी प्रेम विलुही, करी विनति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८२ ) पियुने सूधी रे ॥ प्री० ॥ बीजा उल्लासनी आाठमी ढा लें, कहीं लब्धि रंग रसालें रे ॥ प्री० ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे हरिबल कहे नारीने, सांजल तुं गुण गेह ॥ प्राणजीवन मुफ तुं खबे, हुं केम देश बेह ॥ १ ॥ पाल व बांधी ताहरो, डुर्मन केम यवाय ॥ राखुं जो वहे रो तुऊथकी, तो मुऊ प्रभु डहवाय ॥ २ ॥ ते किम हुं करूं सुंदरी, तुकथी दिल बदलाय || देखी पेखी म दिका, जीवति केम गलाय ॥ ३ ॥ पण कोय दैवना योगथी, पूरव नव मेलाप ॥ अचिंतित जो स्त्री मले, तो तस कर माफ ॥ ४॥ तुथी उपर वट थइ, नवि जांगुं तुम प्राण ॥ बेह न दाखुं तुऊ नणी, कगे पश्चिम जाल ॥ ५॥ साधें तुमने तेडतां, नथी पूरव तुं गुद्ध ॥ स्त्री ते पग बंधण य, पंथें हुं कहुं तु ॥ ६ ॥ मत जाणे तुं मन्नमें, प्रीतम देशे बेह ॥ एकज मास ने अंतरे, प्राविश हुं ससनेह ॥ ७ ॥ ते माटे थिर चित्त करी, रहेजो थइ सावधान ॥ दान सुपात्रे पोखजो, धर जो अरिहंत ध्यान ॥ ८ ॥ शीख जलामण इणि पेरें, वसंत सिरीने दीध || लंका गढ जावा नली, हरिबल मुहूरत जी ॥ ए ॥ चैत्र शुदि एकम दिनें, गुन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८३ ) कारी नृगुंवार ॥ रमणीने राजी करी, हरिबल चा जे तिवार ॥ १० ॥ तव कुमरी कहे कंथने, वरसति यांसुधार || पियुजी पूरण प्रीतडी, मत मूको विसार ॥ ११ ॥ मंदिर एकलां नवि गमे, सुतां सूनी सेज | अवधी उपर आवशो, तो जाशुं तुम हेज ॥ ॥ १२ ॥ प्राणवल्लन नहि वीसरो, अथ घडी यात मराम || शीघ्रगतें तुम श्रावजो, करीने रूडां काम ॥ १३ ॥ प्रीतमजी तुमें सिद्ध करो, वड ज्युं विस्तर जोह | नंबर केरां वृक्ष ज्युं, थडथी तुमें फलजोह ॥ १४ ॥ इम प्राशिष ते देइने, वोलाव्यो जरतार ॥ हरि बल पण शिख मागवा, पहोतो नृप दरबार ॥ १५ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ 4 ॥ राम सीताने धीज करावे रे | ए देशी ॥ नृपने जर ज‍ प्रणिपत कीधी रे, सहु साथनी यागना लीधी रे ॥ हवे हरिबल लंकायें चाले रे, नृप जन बहु वोलावा हाले रे ॥ १ ॥ शकुने पण बांहिज दीधी रे, लोधी वाट लं कानी सीधी रे ॥ घणी नूयें बोलावी वलिया रे, नृप मंत्री दो हर्षे नलिया रे || २ || पय मंजारी देखी ज्युं हरखे रे, तिम महीपति मनमें वरशे रे ॥ जाणे नृ प चिंतव्युं थाशे रे, मुऊ वसंतसिरी घेर याशे रे ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) ३॥ जे कहेशे ते विध करगुं रे, मनवंडित सुख ते वरगुंरे ॥ एम चिंतवी नृप घरे आवे रे, निज मन युं बुद्धि उपावे रे ॥ ५ ॥ मन गमता मीठा मेवा रे, जेह खाता लागे हेवा रे ॥ शख रायण आंबा केला रे.दीनां दाढ गले तिण वेला रे॥॥ बेअ बदाम नि मजां पिस्तां रे, मुख देतां न लागे सस्तां रे ॥ इत्यादि क मेवा वारु रे,मेले वसंतसिरीनी सारु रे ॥६॥ करे मिशरीना पकवानरे, बेठा जोग लिये जगवान रे ॥ दूध पेंडाने घृत पूर रे, चढे खातां दांते शुर रे ॥ ७ ॥ सिंह केसरीया ने जलेबी रे,खातां नूर वधे ते सतेबी रे॥ एम सुखडी मेली ताजी रे, जिम वसंतसिरी दोवे रा जी रे ॥ ॥ चुवा चंदन अरगजा ताजां रे, मुखमू सां अंतर जाजां रे ॥ केश सुगंध इव्य अणायां रे, श तपाक ते तेल बणायां रे ॥ ए॥ तिल मात्र जो व स्त्र लगावे रे, चिटुं दिशि परिमल पसरावें रे ॥ जाणे सुगंधपुरी वसाई रे, जोगी जनने सुख दाई रे ॥ १०॥ एणी पेरें सुगंधी चूवा रे, सीसा जरिया नव नवा जूवा रे ॥ नृप जाणे कुमरी रोजे रे, मुज कारज शीघ्र ते सीफे रे ॥ ११ ॥ बदु नारे चीर अ पाये रे, जरतारी शालु मगावे रे ॥कसबी मशरु एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) तारी रे, पंचरंगी मसजर जारी रे ॥ १२ ॥ हेम रयण में घाट सुघाट रे, मेजे यानूषराना थाट रे ॥ रम लीना जे शृंगारा रे, नृप मेले ते श्रीकारा रे ॥ १३ ॥ एली पेरें सामग्री मेली रे, जरी बाबमें सघली नेली रे ॥ ते उपर बाड ढांकी रे, करी मुझ को न जाय कांखी रे ॥ १४ ॥ हवे दासी जे चतुरा माही रे, कामी जनने मूके जे वाही रे || तेहने तेडी नृप जां खे रे, निज चित्तनी वारता दाखे रे ॥ १५ ॥ तुमें जावो हरिबल गेहें रे, जिहां वसंतसिरी के नेहें रे ॥ जश्ने तुमें बाब ए पो रे, कहेजो नृपें मूकी ए चूपो रे ॥ १६ ॥ सुललित वचनें कर कहेजो रे, तेहनुं म न वश कर लेजो रे ॥ घणी शीरे जलामण दीजें रे, तस अमृतफलरस लीजें रे ॥ १७ ॥ ते वात वधाम वहेली रे, लेइ श्रावजो दी बतां पहेली रे ॥ एम शीख मलामण दीधी रे, दोय दासीने विदाय कीधी रे ॥ १८ ॥ दासी पण बाब ने लेई रे, पहोती हरिब ल घेरें बेईरे ॥ जिहां बेठी हरिबल नारी रे, मूकी बा ब ते खागल सा रे ॥ १५ ॥ कहे दासी मधुरी hari रे, नृप मूकी ए तुमने जाली रे | तुम उपर बे घणो नेह रे, घणुं शुं कहियें गुणगेह रे ॥ २० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) जिण दिनथी तुम घेर आव्या रे, तिण दिनथी तुमें दिल नाव्यां रे ॥ नलां नोजन जव तुमें प्रीस्यां रे, तिण वेलाथी नृप दिल हीस्यां रे ॥ १ ॥ देखी तु मची सुघडाइरे, नृप चाहे तुमने सदायरे ॥ ए कला लच रहे तुम केरी रे, जिम लोनीने नाणा केरी रे ॥ २२ ॥ तुम विरहें करीनृप रे रे, राज काज ते मू क्यां दूरे रे ॥ जेम योगी प्रजुने ध्यावे रे, तेम नृप तुम नाम जपावे रे ॥ २३ ॥ श्म राखे एकंगी तुम शुं रे, मन मेल करो तुमें नृपयुं रे ॥ सरिखा सरि खो मल्यो जोडो रे, नृपयुं तुमें तान म तोडो रे ॥ ॥ २४ ॥ बाइ तुम मोहोटी पुण्याई रे, नृपशुं यात्री त सगाई रे ॥ ए वात विधातायें मेली रे, जाणे पय मां साकर नेली रे ॥२५॥ तुमें जो कहो सारंगनय पी रे, नृप आवे तुम घरे रयणी रे ॥ण वातें ला न तुमने रे, राजी करी वोलावो अमने रे ॥२६॥ एम दासीनी सांजली वाणी रे, तव कुमरी रोषे जरा णी रे ॥ जिम लागे विंबीनो चटको रे, तिम कुमरी ने लागे नटको रे ॥ २७ ॥ हवे सुगजो कुमरी व्या पे रे, शेर सुखडी दासीने आपे रे ॥ एतो बीजा उ हलासनी ढाल रे, लब्धं कही नवमी रसाल रे॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) ॥दोहा॥ ॥ हवे कुमरी को करी, दे दासीने मार ॥ निं दे तिम जीवित लगें, गडदा पाटु प्रहार ॥ १ ॥ ना ती जीवित लेश्ने, चतुरा माही जेह ॥ नृप आगल यावी कहे, सघली मांमी तेह ॥॥ नासंत नू नारे थइ, केती कहुं माहाराज ॥ लहेणेथी देणे प डी, ए फल लडं तुम काज ॥३॥ स्वामी तुम प रसादथी, जडियो कुंदीपाक ॥ साजी हलदर सेवगुं, तव होशे तन चाक ॥४॥ स्वामी हरिबलनी प्रिया, दीती बडी कुपात्र ॥ जाणे कौअचवेलडी, घर सर खी नही यात्र ।। ५॥ ते माटे प्रनुजी सुंगो, ए नावे तुम हाथ ॥ एहथी मनडुं वाल जो, कर जोडी कहूँ नाथ ॥ ६॥ एह वचन दासी तणां, सांजलि नृप नलकाय ॥ हा हा में ए झुं कडे, इम नृप धोखो क राय ॥ ७ ॥ शी मनमें धारी हती, दैवें शी करी वा त ॥ नृप करए परसादथी, व्याने हिज नदात ॥७॥ जाण्युं हतुं व३. यावशे, हरिबल केरी नारि ॥ पण साहामुं इणि नारियें, उतायुं नृपवारि ॥ए ॥ हाणि अने हांसी बह, था नृप चिंते एम ॥ एह उख के हने दाखवू, दो- दाधो जेम॥१०॥ इम नरपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (GG) फूरण करे, सांजलि दासी वेण ॥ ते दिन क्यारें या वशे, देखच्चं ते स्त्री ने ॥ ११ ॥ वलि बीजी फरि मोकलुं, जेह विचक्षण होय ॥ दृषा - सरीखा मान वी, जिंजवी खाणे सोय ॥ १२ ॥ तवे टराणी नि जप्रिया, प्रीतिमती गुण गेह ॥ तेहने तेडी नृप क हे, सांजल तुं ससनेह ॥ १३ ॥ कारज एक तुमचं बे, सुगुण नहीं करूं तु ॥ हरिबल केरी जे प्रिया, मेलव खाणी गुरू ॥ १४ ॥ तव राणी कहे कंतने, सांजलजो महिनाथ ॥ प्रीति वधारी पलकमें, लेइ सोंपुं तुम हाथ ॥ १५ ॥ एम कही ऊठी तुरत, बीर्ड बबि ति वार ॥ चाली हरिबल मंदिरें, राणी लेइ प रिवार ।। १६ ।। ॥ ढाल दशमी ॥ ॥ सूरती महिनानी देशी || हवे कुमरी यमरी प रें, बेठी महोल मकार || निज सखीयांचं परवरी, करती के लि पार || तिए अवसर नृपराणी रे, जे गुणखाणी रे सार ॥ यावती दीठी रे मीठीयें, वसंत सीरीयें तिवार ॥ १ ॥ कुमरीयें जाएयुं जे में हणी, दा सीने काढी रे सोथ ॥ क्रोध वरों जे में हणी, तेहनी यावी ए लोथ ॥ खीज्यो नृप तव जाणी रे, मूकी ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) राणीने धाय ॥ श्म कुमरी मन चिंतवी, लटपट मांमयो उपाय ॥२॥ तव कुमरी सनम् । णीने जीडी रे बाथ ॥ अंगोयंग मलीन रे, चरणे नमे सदु साथ ॥ ागत स्वागत राणीनी, कुमरीयें कीधी रे जोर ॥ राणीनुं मन रीजवे, वसंतसिरी ति पगार ॥३॥ चवदनं। दो बेनी रे, वात एका था न ॥ जाणे स्वर्गयी ऊतरी, रंजा नरवशी मान ॥ रूप अनूपम बेहुनां, ९ करूं केतां वखाण ॥ जाणे कंद 4 वाडीयें, प्रगटी पुण्य प्रमाण ॥३॥ एहवी ए राज कुमारी रे, प्यारी दो गुणवंत ॥ सरखा सरखी रे जोडी, मलि करी वातडी संत ॥ वसंतसिरी गुन सुं दरी, कहे पटराणीने आज ॥ नलें रे पधास्यां राणी जी, कोडी सुधास्यां रे काज ॥५॥ तुम आवे अममं दिर, पावन दुवो जी चंग ॥ अम सरि जे काम दु वे, ते कहोजी सुरंग ॥ तव राणी कहे कुमरीने, वे एक तुमगुंजी काम ॥ बहिन करीने थापवा, यावी बुं गुणधाम ॥ ६ ॥ एम कहीने रे आपे रे, नवलखो नवसरो दार ॥ वली बीजां बहु मूलां, नूषण आपे श्रीकार ॥ तव कुमरीये जाण्यु जे, राणीयें मांमयो जी पास ॥ जो नवि राखं तो बागल, होवे महो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) टो विनाश ॥ ७॥ नृपनी राणीने उहवतां, पूरवे नहि ण गम ॥ ते जाणीने कुमरीयें, जूषण रा ख्यां जी ताम ॥ मुखनी मिगरों करी कहे, कुमरी राणीने नेह ॥ बहेन करीने थापो,ते अमें जाण्युं जी तेह ॥ ७ ॥ ते मत जाणजो राणीजी, वसंतसिरी जे नोलाय ॥ ते नही कोट जे आकरा, पवनें करी मो लाय ॥ उगमणी दिशि मूकी जो, कगे पछिम नाण॥ ससिहर जो अग्नि करे, तो सती न चूके ताण ॥ए॥ पण झुं करीये राणी जी, अंतें तुमझुंजी काम॥ नृपने जो अमें उहवीयें, तो वली फेडेजी गम ॥ ते जाणी अमें राखीयें, राणीजी तुमयुं ८र ॥ आजथी रा खीयें तुम', बहेनपणुं निरधार ॥ १० ॥ पण एक सांजलो विनती, राणीजी कहूं तुम वात ॥ में व्रत लीधुं ने सुव्रत, नामें तप विख्यात ॥ ते तप ने एक मासमुं, ते जव पूर्वी रे थाय ॥ तव नरपतिनी राणी जी, मननी हाम पूराय ॥ ११ ॥श्म सत्य राखवा कुमरीये, मुखथी साकर घोल ॥ दीधो दिलासो रा खीने, उपजावी रंगरोल ॥ तव हरखित थ राणी ए, सांजली कुमरी बोल ॥ राणी जाणे मुफ याव्या नो, कुमरीयें राख्यो जी तोल ॥१२॥ अवसर लही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए१) कुमरीयें, राणीने हर्ष उपाय ॥ अशन वसन करी रीजवी, रापीने कीध विदाय ॥राणीये पण जान पने, शीघ्र वधाई दीध ॥ आजथी एक मासांतरें, नृ प तुम मनोरथ सि ॥१३॥ मास, तप कुमरीयें, मांमधु महोटे मंमाण ॥ ते तप पूरण थइ रहे, कुम री मल सुजाण ॥ तिहां लगें नाथजी बेठा, प्रनुनुं नजन करेय ॥ निश्चे मलशे कुमरी, जीवने धैर्य धरे य॥१५॥ इणिपरें राणीनी सांजली, वाणी नृप ह रखंत ॥ नाग्य दिशा मुफ जागी, जांगी नावट चां त ॥ नृपना मनमें गंग, तरंग ज्यु उलट्यो रंग ॥ जा णे माणा मासने, अंतरे कुमरीयुं चंग ॥ १५ ॥ सागर पव्योपमनां जे, कह्यां महोटां रे आय ॥ ते सरखा पण जीवने, जोगवतां वही जाय ॥ तो गुं शणमें मासन, जावु केतिक वार ॥ आजने काल क रंतां, वहेशे मास विचार ॥ १६॥ इणिपरें आशा वासमें, मदनवेग नन्नास ॥ निशिदिन रहे मगन थ ३, ज्युं मद पीध विलास ॥ आशायें जीव जीवाडवा, जीव रुले संसार ॥ पण चनलख जोजन लगें, नर वहे आशा मकार ॥ १७॥ आशा अंबर जेवडी, क हे उनियां सङ कोय ।। आशायें मां अनल तणां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ते पण वृचज होय ॥ तिम ए नरपति आशामें, कू ले दिन ने रात ॥ वसंतसिरीनुं ध्यान, धरे ते उठी प्रनात ॥ १७॥ आंगुलीना वेढा गणे, निशिदिन मासना दीह ॥ पाशा पासमें विचरे, नरपति जेह अबीह ॥प्रीतिमती पट्टराणी, प्रीति वधारी रेजे ह।। नृपनी रे मननी सुविधा, दूर विदारी तेह ॥१॥ नृप राणी दो रंग,विनोदमें काढे रेदीह ॥राजनां का ज सधारे, मदनवेग ते सिंह ॥ वसंतसिरी पण पोता ने, मंदिरे करे गहगाट ॥ निज सखीयोगुं परवरी, नि जपतिनी जो वाट ॥ २०॥ हवे सुण जो नवियण तु में, जे थई आगल वात ॥ हरिबल चाल्यो संकायें, ते सुणजो अवदात ॥ बीजा नन्नासनी पनणी, पूरण दशमी ढाल ॥ शास्त्रतणे अनुसारें, लब्धि कही उजमाल ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥हवे नृप आणा लेग्ने,हरिबल चाल्यो लंक ॥ वि षम पंथ जे आकरो, ते कापे निःशंक ॥ १ ॥ गिरिग व्हर महोटां घणां, विकटां घाटां जेह ॥ मानवनो जि हां पग नही, ते पण उतरे तेह ॥ २ ॥ जंगी काडी वनतणी, चिहुँ दिशि वंशनि जाल ॥ जटाजूट जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए३ ) वनलता, तिमें वहें उजमाल ॥ ३ ॥ वाघ सिंहने चीतरा, अजगर महोटा व्याज ॥ अष्टापद वलि गज घटा, देता मृग र फाल ॥४ ॥ नूत प्रेतने व्यंतरा, कोटिंग मोहोटा खवीस ॥ हरिबलने बलवा नली, पाडे महोटी चीस ॥ ५ ॥ पण ते मन बीये नही, बा ती वज्रसमान ॥ लोह पंजर सम चालतो, धरतो अरिहंत ध्यान ॥ ६ ॥ सूपडकन्ना हयमुहा, वलि इकटंगा जेह || काला हबसी काबरा, हरिबल निर खे तेह ॥ ७ ॥ अजबगुल मेहरी घणी, निरखे वा मो गम ॥ ऊडपी ले नर पंखमें, सेवे तेहयुं काम ॥८ ॥ हवि वि उजाडमां, हरिबल चाल्यो जाय ॥ ध्यान धरे नवपद तणुं, जेहथी विघन पुलाय ॥ ए ॥ देश नगर जोतो थको, पुर पाटण केइ गाम ॥ धरती के उल्लंघतो, याव्यो दरिया ठाम ॥ १० ॥ जाणे याषाढो गाजतो, गाजतो जाइव मास ॥ तिम ग रव जलनिधि, करतां दीठो तास ॥ ११ ॥ कालामंबर नवली, जलना लोढ चलंत ॥ जाणे हिमाला टूक ज्युं, जल कनोल करंत ॥ १२ ॥ जोजन एंसी सहस्सनो, कोरण विशेष जेण ॥ लवणनिधीनी वेल ते, सगरें आणी ते ॥ १३॥ जल जेहवा मला घणा, दीसे नव न For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) वरूप ॥ वाघ सिंह जलमाणसां, जलमें देखे सरूप ॥ १४॥ एहवो लवणसमु ते, देखी कंपे काय ॥ हरिबल पगलुं जल नणी, देतां सग पच थाय॥१५॥ हाल अग्यारमी॥ ॥कपूर दुवे अति कजलो रे ॥ ए देशी ॥ हरिबल मनमें चिंतवे रे,शो हवे करूं उपाय॥ सहस एंसी जोय ए जलनिधि रे,टथुल उमो देखाय॥१॥प्रनुजी ते केम मुफथी तराय ॥ पगवट पण न जवाय॥प्रानुज बलें पण न तराय॥प्रातो संका केमहलाय रे॥प्राते॥ एयांकणी॥जलना लोढ वहेघणारे,श्यामला जलक जास ।।ज्वाला वडवानल तणी रे, निकसे प्रबल आ काश ॥॥॥ न वहे पंखी मानवी रे,न वहे तारु जहाज ॥ मारग को दीसे नहिं रे, नवि दीसे किहां पाज रे ॥३॥.प्र ॥ शीतल पवन वहे घणो रे, जा णे शीतल हेम ॥थरहर कंपे देहडी रे,खडहडे अस्थि सेम रे॥४॥०॥ एहवो खारो सागरु रे, उबले जलें असमान ॥ ते देखी धीवर घणुं रे, मरप्यो ग तस शान रे॥५॥॥जो फरी पाडो घर नणी रे,जान तो न रहे मान ॥ बीडुं बबी हुँ आवियो रे, की, अजाण्यं काम रे ॥ ६ ॥ ॥ नागें ग्रही ज्युं बुंदरी रे, मूके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( एप ) तो अंध थाय ॥ नथी जीव संहरे रे, ए दृष्टांत बनाय रे ॥ ७ ॥ प्र० ॥ वली चरकलीयें ग्रह्यं रे, मुखमां चणियुं बोर ॥ श्रधुं पातुं न कतरे रे, करे पस्तावो जोर ॥ ८ ॥ प्र०॥ इम धीवर फूरें घणुं रे, सागर कांठे बना य ॥ धीवरें जाएयुं श्रावी बन्यो रे, वाघ न दीनो न्याय रे ॥ ९ ॥ प्र० ॥ किहां गयो माहरो इण समे रे, प्राणवल्लन मुऊ इष्ट ॥ समस्यां सार करे घणुं रे, टाले सघलां रिष्ट रे ॥१०॥ प्र० ॥ इम चिंतवतां तत खिरों रे, श्राव्य सागर देव || कहे सुर शी तुं चिंता करे रे, मुकुं लंका तुफ हेव रे ॥ ११ ॥ प्र० ॥ शुं वब तुमने इहां कणे रे, यावतुं थयुं हो केम ॥ सुर कहे कहो मुऊ मांकिने रे, जाएयुं जाये जेम रे॥ १२ ॥ प्र० ॥ तव हरिबन कहें देवने रे, सांजलो तातजी मुझ ॥ नृप देतें बीडं बबी रे, श्राव्यो कहुं हुं तु रे ॥ १३ ॥ प्र० ॥ ते सांजली जलपति थयो रे, देव स्वरूपी व ॥ हरिबल ते वें चढी रे, जलधि तरी लह्यो विश्व रे ॥ १४ ॥ प्रभुजी नलें याव्या तुमें नाथ ॥ सुर तरुनी यही बाथ ॥ प्र० ॥ मुऊ शरण थयो तुम हाथ ॥ प्र०॥ तव डुं थयो महोटो सनाथ रे ॥ प्र०॥१५॥॥॥ यांकए। ॥लं का बागमें मूकीने रे, देव थयो परगट्ट | काम पडे तुं सं For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए६ ) चारजे रे, मुऊने करी गद्गट्ट रे ॥ १६ ॥ ॥ प्र० ॥ एम कहीने सुर गयो रे, पहोतो ते निज गम ॥ हरिबल लंका देखीने रे, मनमें लह्यो याराम रे ॥१७॥ प्र० ॥ तेजें फलामल फलकती रे, हेममय लंका पीठ ॥ जेहवी जनमुखे सांजली रे, तेहवी नजरें दीव रे ॥ १८ ॥ प्र० ॥ नंदन वन सम वाटिका रे, देखी थयो सुप्रस न ॥ परिमल पस्यो चिहुं दिशें रे, कुसुम तणां जि हां वन्न रे ॥ १९ ॥ प्र०॥ चंपा गुलाब ने केतकी रे, मोगरा मालती जेह ॥ जाणे सुरवाडी फुली रे, हरिबल निरखे तेह रे ॥ २० ॥ प्र० ॥ खंब कदंब ने सुरतरु रे, सुरलता मोहन वेल ॥ हेम रजतनी उषधी रे, पस री चिहुं दिशें रेल रे ॥ २१ ॥ प्र० ॥ नागरवल्ली श खना रे, मांवा प्रति सोहंत ॥ केलि जंबेरी फालसां रे, दाडिम पक्क मोहंत रे ॥ २२ ॥ प्र० ॥ जातीफ़ ल जावंतरी रे, तज ने तमाल ते पत्र ॥ एके तरुथरें नी पजे रें, चातुरजातक तत्र रे ॥ २३ ॥ प्र० ॥ देव कु सुम ने एलची रे, सुंदर केसर बोड ॥ निमजां पिस्तां चारोजी रे, बेय बदाम खोड रे ॥ २४ ॥ प्र० ॥ पूगी श्रीफल सेलडी रे, सीताफल सह तूत ॥ खार क रायण करमदां रे, लिंबू जांबू जूत रे ॥ २५ ॥ प्र० For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए ) श्म अनेक ते जातिनी रे, वणसरगनार अंढार ॥ जोगी जनने कारणे रे, प्रगट थई संसार रे॥ २६ ॥ प्रणा वापी कूप सरोवरु रे, नरियां अमृततोय ॥ हंस चकोर ने सारसा रे, जलक्रीडा करे सोय रे ॥ २७॥ प्र॥ श्म हरिबल जोतो वहेरे,संकावन सुरसालाल ब्धि बीजा उन्नासनी रे,पनणी ग्यारमी ढाल रे॥२॥ ॥दोहा॥ ॥ लंकापरिसर वाटिका, सोहे अति रमणीक ।। जाणे नंदनवन तणी, नगिनी प्रगटि नजीक ॥ १ ॥ कनक रयणमें जलकता, महोटा मेहेल अत्यंत ॥ खंमोखली जलयुंजरी, कारिंऊ तिम नबलंत ॥२॥ नर नारी विद्याधरी, किन्नर अप्सर बाल ॥ सरखे स्वरें टोलें मली,गावे गीत रसाल ॥ ३॥ मधुरी ध्वनि आ राममें,थइरह गमो ताम॥हारबल ते श्रवणे सुर्णी, मगन थयो अनिराम ॥॥ मानव जव जलें में लह्यो, नलें लह्यो गुरु उपदेश ॥ सागरदेव पसायथी, लंका दीति विशेष ॥५॥ वन उपवन जोतो थको, हरिबल हर्ष कलोल ॥ श्राव्यो यतिही चूंपयुं, लंकागढनी पोल ॥ ६ ॥ साव सोवनमय उर्ग ते, उपे मणिमय शीर्ष ॥ जाणे नूरमणी करे, उपे कंकण नीर्ष ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) एहवो वप्र विराजतो, नगरी राखण चंग ॥ जाणे जंबु दीपनो, जगती कोट उत्तंग ॥ ॥ इणिपरें गिनो ऊर्ग ते, निरखी हरखित होय ॥ पेसारो पुरमें करे, गुन लगनें करि जोय ॥.ए॥ ॥ ढाल बारमी॥ ॥ढणीनी देशी ॥ सासु काठा हे गहुँ पीसाय, या न जाशो हेमाल ते सोय नारी नणे॥ए देशी॥ पेठो इिंगतणी वर पोले, निरखे रे हाट मंदिर बहु ॥ सदु कोय सुणो॥ जाणे दक्षिण उत्तर उत्त, नुवनपति मंदिर सदु ॥१॥स०॥ ए तो साव सोवनमय धन, कनक रयणमें मालीयां ॥ स ॥ तेजें काफळमाल, अचंन दीसे मोतिनां जालियां ॥ २ ॥स ॥ जाणे ननथी दिनकर सार, आवी घर घर प्रगटीया ॥स ॥ नवि दीसे तिमिर लगार,उद्योत सघले उलटीया॥३॥ स० ॥ एतो कोरणी धोरणी जोर, जाणे देवपुरी वसी स॥ सोहे राय बिनीषण ठोर, राज करे मन उनसी ॥ास॥ वसे वसती वरण अढार, रास रूपें मानवी ॥सण॥ एतो न गणे नह अनद, एवी लंका जाणवी ॥ ५ ॥ स ॥ घोडा गज रथ ने सुख पाल, राज्य मारगमें वहे घणा ॥स०॥ देखे महोटा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (যয) नव नवा ख्याल, हास्य कुतूहल नही मणा ॥ ६ ॥ स०॥ जोतो इणि परें नगरी मजार, हरिबल यागन संचरे ॥ स० ॥ दीतुं तव एक तेज जंमार, सुंदर मं दिर नलि परें ॥ ७ ॥ स० ॥ सोहे सुंदर पोल प्रकार, रमलिक दृष्टें देखे सही ॥ स० ॥ पण देखे ते शून्य खागार, माणस को दीसे नही ॥८॥ स०॥ ए तो तव तिहां चरिज देखि, पेगेहे मंदिर पोलमें ॥ स ० ॥ नखां निरखे रयण विशेष, जरा जेरी उनमें ॥॥ास ॥ इम जो तो सातमी चूमि, हरिबल चढीयो चूपशुं ॥ स ० ॥ जाये स्वर्गविमाननी भूमि, रचना ते दीठी रूपचं ॥ १०॥ ॥ स० ॥ तिहां निरखे अचरिज एक, हिंमोला खाट सोहामणी ॥ स० ॥ तेह उपर सूती विवेक, सुंदर स्त्री रजियामणी ॥ ११ ॥ स० ॥ जाणे देही कुंकुम वर्ण, अप्सर सम करी उपती ॥ स० ॥ पण दीसे तें मृतक समान, चेतन रहित ते कोनती ॥ १२ ॥ स० ॥ चिंते हरिबल निरखि रे तास, विस्मय पाम्यो मन्नमें ॥ स० ॥ एसो दीसे देव अन्यास, सास नही ए तन्नमें ॥ १३ ॥ स० ॥ इम चिंतवी धीवर धिंग, खरहूं पर डुं विजोकतां ॥ स० ॥ दीवी तुंबडी जल नरी चंग, खाट तजे नही ढोकतां ॥ १४ ॥ स० ॥ तिणें तुंबीनुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०० ) जल लेय, बांटयुं स्त्रोतन कपरें ॥ स०॥ कठी ततखि एए लऊ धरेय, हिंमोला खाटथी सूपरें ॥ १५॥ स०॥ मी चिंतवे चित्त मऊार, ए शुं कौतुक नीपनुं ॥ स०॥ ए तो थs नवजोबन नारि, मनोहर ज्युं तेज दीपनुं ॥ १६ ॥ स० ॥ दीसे रंजा उर्वशी रूप, कामिनी काम जगावती ॥ स० ॥ मोहे सुर नर किन्नर नूप, कामी जन मन जावती ॥ १७ ॥ स० ॥ इम चिरज लहिने तास, पूढे हरिबल उनासी ॥ स० ॥ किम रहे तुं शून्य यावास, एकली शबपणें वसी ॥ ॥ १८ ॥ स० ॥ किहां गया तुम सयण संबंध, मात पितादिक ताहरां ॥ स० ॥ तव कहे अबला प्रबंध, सांगलो पंथी माहरा ॥ १९ ॥ स० ॥ नलें याव्या तुम इहां स्वामि, उपगारी दीसो जला ॥ सोय नारी जणे ॥ बेसो यासन्न गुन ताम, कहुं तुमने सघली कला ॥२०॥ तो ० ॥ इहां राय बिभीषण सार, राज करे लंका धणी ॥ सो०॥ वाडी बे तस वृद्ध श्रीकार, वल्लन ते नृप ने घणी ॥ २१ ॥ सो० ॥ तेह वाडीनो ए रखवाल, नीम नामें आरामी अबे || सो० ॥ हुं हुं तेहनी पुत्री जी बाल, कुसुमसिरी मुऊ नाम बे ॥ २२ ॥ सो० ॥ जब हुँ थई जोबनवेश, तब मुफ जनक चिंता करे ॥ सो० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) कुण वरशे ए पुण्य विशेष, अहोनिशि श्म चिंता धरे ॥ २३॥ सो० ॥ तव तिहां एक जोषी जाण, फिरतो ते आव्यो मंदिरें ॥ सो० ॥ पूढे तेहने पिता गुण खाण, तेडी जई घर अंदरें ॥ २४ ॥सो० ॥ जु जोषी ज्योतिष जोय, कहो मुफने तुमें पुःख खसे ॥ सो० ॥ जिम मुफ मन वंडित होय, मुफ पुत्री वर कु ण दशे ॥ २५ ॥ सो ॥ तव जोषी कहे वनपाल, सांनलो जोषथी ढुकढुं॥सो॥ तुम पुत्रीनो तो मही पाल, पति होशे गुणवंत लढुं॥ २६ ॥ सो ॥ तव हरख्यो पिता मनमांहे, सांजली जोषी वयगडां ॥ सो० ॥ दी, जोषीने दान नन्हाह, मूठ जरी शुन रय गडां ॥ २७ ॥ सो० ॥ इम कही गयो जोषी थान, वंबित दान ते लेईने ॥सो ॥ चिंते जनक ए पुत्री निधान, शंकरं परने देईने ॥ २ ॥ सो० ॥ राखं मुफ घर पुत्री रतन्न, परणी ढुं था नरपती॥सो॥ लोनी लंपट था एक मन्न, वात करी इण उरमती ॥ ए॥ सो० ॥ मुफ जनकीय जाणी वात, फिट फि ट करखो मुफ तातने ॥ सो० ॥ लागी वव समान नो घात, जाल चढी कमजातने ॥ ३०॥ सो० ॥ पंयी सांजलो मोहनी जाल, महोटी ए निपनी कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०२ ) मी ॥ सो० ॥ ए तो बीजा उल्लासनी ढाल, लब्धियें नांखी बारमी ॥ ३१ ॥ सो० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वलि करूं पंथी सांजलो, महारा तातनां चिन्ह || न्याय करे जइ नृपकने, माली नीम खदीन ॥ १ ॥ कहो स्वामी जे करपणी, मसकत करी निपाय ॥ ते कण फलने करपणी, जोगवे के न जोगाय ॥ २ ॥ तव नरपति कहे मालिने, जे करे मसकत अंग ॥ ते कण फल सुखें वावरे, न्यायी यइ ते अनंग ॥ ३ ॥ ए हवो न्याय ठरावियो, मानियें परषद मांह ॥ पंचनी साखें ए न्यायनुं, लिखित कस्युं ते बाह ॥ ४ ॥ तेह लिखत लेई करी, व्यो जनक ते गेह ॥ वात नही मुफ जनकियें, मौन धरी रहि तेह ॥ ५ ॥ ऊ जनक संबंधियें, जास्यो महोटो अन्याय ॥ गृह मू की तव निकलियां, वसियां बीजे जाय ॥ ६ ॥ तिल दिनथी गृह शून्य में, मुऊने राखे तात ॥ मृतकसमा न करी वहे, मंत्रबलें ते प्रजात ॥ ७ ॥ सारो दिन वाडियें रहे, करे तें वननुं काज ॥ नृपने फल फुल दे इने, यावे मुजकनें सांऊ ॥ ८ ॥ तुंबी जल जेई करी, तव मु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) बांटे मुफ तनु जाम॥ चेतन लहि जायं तदा, करे मुफ जनक ए काम ॥ ए॥ ॥ढाल तेरमी॥ ॥ मुजरो व्योने हे जालिम जाटणी ॥ ए देशी ॥ ॥सांजलो पंथीमाहरा तातनी,कढुं करणी वली एक॥ पूर्व पण एक उतुं देग्नें, कीधो न्याय विवेक ॥१॥ श्रेयांसनाथ ग्यारमा, तेहने जे वारे कहाय ॥ पर जापति नामें राजवी, मिणवा राणी सुहाय ॥ २ ॥ सां० ॥ तेहनी कूखें पुत्री उपनी, पदमिनी रूप अ त्यंत ॥ अनुक्रमें थ नव यौवना, कामिनी काम ल हंत ॥ ३ ॥ सांग ॥ ते परजापति पुत्रीनू, दीतूं रूप सरूप ॥ जाण्यु ए फल बीजे जायशे, जोगवशे अन्य जूप॥४॥ सां० ॥ तो ए पुत्री माहरे राखवी, नहि देवं बीजे ए क्यांह ॥ पंचमें न्याय करावीने, परण्यो पुत्री उहाह ॥ ५ ॥सांग ॥ पंचनी सावं ए सही करूं, मेली परखदा सार ॥ जिम मुज लोकमें नवि दु वे, निंदा विकथा लगार ॥ ६ ॥ सांग ॥ श्म जाणी नृप तिणि वेलमां, मेलवी पंच समद ॥ पूछे परजा पति परजने, करो न्याय विचद ॥ ७ ॥ सां० ॥ जे बीज वावे वाडी खेतमें, ते ऋतुसमे फल देय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) ते फलने मसकतीनो धणी, जोग लीये के नवि लेय ॥ ॥ सांग ॥ तव ते बोली परजा एकमतें, सांजलो नाथजी एम ॥ जे फल वावे ते फल बीजने, जोग ते नवि लीए केम?॥ ए॥ सां० ॥ पंच मलीने जे करी थापना, ते उबापी न जाय ॥ स्थिति के अ नादि ए कालनी,एहवो ते न्याय उराय॥१०॥सां०॥ तव परजापति हरखिने, लीधुं पुत्री लगन्न ॥ परण्यो ते निज पुत्रीने, थ रह्यो तेगुं मगन ॥११॥सां०॥ तेहनी कूखेंजी कपनो,हरि ते नामें त्रिष्टष्ठ ॥ श्रीजिन वीरनो जीव ते, जाणे सयल ते शिष्ट ॥१॥सां॥ त्रेशठ शिलाका चरित्र में, तेहनो अधिकार ॥ ते न्या यधारी लंकापति, कने जश् चढयो दरबार ॥ १३ ॥ सां० ॥ ए करणी माहारा तातनी, में कही पंथिजी तुम्म ॥ लालची लोनी जेलंपटी, न वले ते कदि जुम्म ॥१४॥सां०॥ माहरो तात ते लालची, यहनि शराखे निराश॥ःखदायी कुःख देयतां,तेहने थया खट मास॥१५॥सां॥ कहुँ ए पंथी ढुंहवे केहने,ना मो होटो निशास॥जयी बीजे मासडे, वरशे मुजने उ लास ॥ १६ ॥ सां॥ माहरा मननी पंथी में कही, सघली मामीने गुफ ॥ जलें तुमें व्याजी मंदिरें, सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (304) खशाता थइ मुक्त ॥ १७ ॥ सांचलो पंथी जीवन मा हरा ॥ ए यांकणी ॥ कुसुमसिरी कहे सांजलो, पंथी क रुणा कृपाल ॥ नाग्य बली में तुम्ह उलख्या, साहसिक महोटा मयाल ॥ १८ ॥ सां० ॥ सघनी वातें पूरा जा एलीने, में तुम्ह काव्यो जी हाथ ॥ दुःखनिधि पार न तारवा, नलें याव्या तुम्हें नाथ ॥ १९ ॥ सां० ॥ मन ललचाएं तुम देखतां, जिम मन केतकी चंग ॥ बेकर जोडीने वीनवुं, मुऊने परणो सुरंग ॥२०॥ सां० ॥ सूरज चंद साखें करी, परणी पूरो जी लाड ॥ नि ज नारीने सुख देयतां, शोते चढावुं जी पाड ॥ २१ ॥ सां० || माहरे वखतें तुम्हें याणीया, ताली पुण्य विशेष ॥ ते हुं टाली ते किम दलुं, लखीया पानें जे लेख ॥ २२ ॥ सां० ॥ इलि परें वयण वेधालुयें, कु मरीये नाख्यां जे बा ॥ वेधक बाणें ते वेधियो, हरि बल चतुर सुजाण ॥ २३ ॥ सां० ॥ परस्यो तेह कु सुम सिरी, हरिबल पाम्यो ते चेन ॥ जाणे परस्यो बीजी अप्सरा, वसंत सिरीनी ते बेन ॥ २४ ॥ सां० ॥ लंका धणीने तेडवा, मी बीडं बबेय || गडदो ते गुण या वियो, लोक खाणो कहेय ॥ २५ ॥ सां० ॥ माली नीमो जोतो रह्यो, परस्यो पुत्रीने कोय ॥ नुतयां जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) षी कोली जम्या,ए उखाणो ते होय ॥ २६ ॥ सां० ॥ सिंहनो नद ते जंबुकें,कहो ते केम कराय॥कलिंगमहो टुं कीडी मुखें, कहो ते कम समाय ॥ २७ ॥सां० ॥ हरिबल केरा जे नाग्यमें, कुसुम सिरी लखी जेह ॥मा लीने किम मोलवे, लख्या विधातायें लेह ॥ ॥ सा॥हरिबल पुण्यना जोगथी, पाम्यो मंगलमाल ॥ लब्धि बीजा उन्नासनी, पनणी तेरमी ढाल ॥ ५ ॥ ॥दोहा॥ ॥हवे कुमरी कहे कंतने,निसुणो प्राणाधार ॥ आ पण वहियें बे जणां, जिहां ले निज धागार ॥१॥ सांकें माली आवशे, आखें पडशे खूण ॥ आपण बे दुने दूवशे, तो ते राखशे कूण ॥॥ तव हरिबल क हे नारिने, सांजल प्यारी मुज ॥ लंकापतिने तेडवा, आव्यो बुं कहूँ तुज ॥ ३ ॥ विशाला पुरनो धणी,मद नवेग ते नाम ॥ अंगजने परणाववा,मेले नृप अनि राम ॥४॥ वैशाखे सितपंचमी, लीधां लगनज जेह॥ सघला देशना राजवी, तिण दिन मिलशे तेह॥५॥ तव वीशालानो धणी,बोल्यो सना समद ॥ को ले लं का रायने, तेडी आवे विचद ॥ ६॥ तव तिहां को इन बोलियो, बीडुं न बबे कोय ॥ तव तुज नाग्यब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) में करी, बीडं में बब्यु सोय ॥ ७ ॥ ते नृप आणा लेने, ढुं याव्यो बुं बांहि ॥ लंकापति तेड्या विना, किम जवराए त्यांहि ॥ ७ ॥ कुसुमसिरी वलतुं कहे, सांजलो महारी वात ॥ लंकापति मदिरा वशे, उंघमें के युग जात ॥ ए॥ ते सांधो किम बाऊशे, आप ऐ जावं गेह ॥ लंकापति कने जाय,, कठिण कह्यु तुम्हें एह ॥ १० ॥ जो प्रीतम मुझने कहो, जावं बी नीषण पास ॥ देवनमी एक खड्ग ,लावं ते जश्तास॥ ॥ढाल चन्दमी॥ ॥धणरा ढोला ॥ ए देशी ॥ तव हरिबल कहे ना रीने रे, जा उतावला त्यांहि ॥मोमन प्यारी॥ला वजो तुमें संजारीने रे, खड्ग जे चंदास यांहि ॥ ॥मो॥१॥ लावो लावो रे सुगुण जई लावो,तुमें ढील म करशोक्यांहि ॥मो॥ए आंकणी॥ वैशाख शुदि दि न पंचमी रे,लगन उपर जवराय ॥मो॥ तो गणे मु ऊने साचमें रे, मदनवेग ते राय ॥ ॥ मो० ॥ ते सहिनाणी खड्गनी रे, संकाधणीनी जेह ॥ मो०॥ लाज वधे निज वर्गनी रे, ते विधे लावजो तेह ॥ ॥३॥ मो० ॥ पण शिर बदलामी चढे रे, जगमें हां सुं होय ॥ मो० ॥ लेहणेनी देणे पडे रे, ते मत कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) जो कोय ॥ ४ ॥ मो० ॥ करतां होय ते कीजियें रे, अवर न कीजे कग्ग ॥ मो० ॥ मुंमी रहे सेवालमा रे, ऊंचा रह्या दो पग्ग ॥ ५ ॥ मो॥ ते मत करजो कामिनी रे, सांनति ते दृष्टांत ॥ मो० ॥ श्म शीखाम ण स्वामीनी रे, धारी ते चितमें खांत ॥ ६ ॥ मो॥ हवे कुमरी गई तिहां कणे रे, राय बिनीषण ज्यांहि ॥ मो० ॥ नर निशमें सूतो लह्यो रे, मदिरा बकनी मांहि ॥ ७ ॥ मो० ॥ कल विकल करीने ग्रयुं रे, खड्ग जे ने चंदास ॥मो० ॥ जात वलत कोणे नवि लयुं रे, आवी प्रीतम पास ॥७॥ मो० ॥ ल्यो स्वामी या खड्गनी रे, जे कहि सहिनाणी एह ॥ मो० ॥ देवनमी खड्ग स्वर्गनी रे, उलखे मही विशे ह॥ए ॥ मो० ॥ हवे सामग्री दंपती रे, मेलवे जावा गेह ॥ मो० ॥ सार रयण ते सोंपती रे, पियुने जे कोश नरेय ॥ १०॥ मो० ॥ तुंबी जलसाथै ग्रही रे, दंपती चाव्यां दोय ॥ मो॥ याव्यां जे संका वही रे, लहे मनोनित सोय ॥ ११॥ मो० ॥ समस्यो सागर देवता रे, महीयें थई उजमाल ॥ मो०॥ या व्यो सुर पण देवता रे, करुणावंत कपाल ॥१२॥ मो० ॥ किहां मूकुं हवे तुऊने रे, सुर बोल्यो ततका Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०५) ल॥ मो० ॥ मूको स्वामी मुऊने रे, निज नगरी वि शाल ॥१३॥ मो० ॥ अश्व चढावी दो जणा रे, मू क्या नगर नजीक ॥ मो० ॥ चिंतव्युं दोशे तुम तणुं रे, सुर कहे जाणजो तीक ॥ १४ ॥ मो॥ एमक हीने ते गयो रे, नाखी जे निज थान ॥ मो० ॥मन वंबित सफलृ थयुं रे, दंपतिपुण्य निधान ॥ १५ ॥ मो० ॥ नगरीनी जे वाटिका रे, तेहमें उतारो की ध॥ मो० ॥ दंपति करे गहगट्टिका रे, जाणे मनो रथ सि॥ १६ ॥ मो० ॥ हवे माली संध्या समे रे, आव्यो निज घर हेत ॥ मो० ॥ शय्या खाली दृष्टि में रे, यावी ते नजरें रेत ॥ १७॥ किहां गई प्यारी, मोमन प्यारी॥ए आंकणी॥हल फलतो जोतो फरे रे, संघले मंदिर मष्न ।। कि० ॥ पुत्रीन दीठी झुं करे रे, वलि थयो जोवा सऊ॥१७॥ कि० ॥ वलि नवि दीती तुंबडी रे, जे नरी अमृत तोय ॥ कि० ॥ ले ग ई साथें तुंबडी रे, कोश्क पुरुषने जोय ॥१॥कि॥ पगलुं जोवा नीकट्यो रे, पग पग जोतो वाट ॥कि०॥ परहीपनो पग अटकल्यो रे, तव थयो तेहने उच्चा ट ॥ २०॥ कि० ॥ पग जोयो जलधि जणी रे, पुत्री गइ करि नाथ ॥ कि० ॥ बारामिक ते नीमना रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) नूमि पडया दोय हाथ ॥ २१॥ कि ॥ जोतो रोतो ते वल्यो रे, आव्यो ते निज घेर ॥ कि० ॥ पुत्री विर हे ते चल्यो रे, गुं हवे करूं ते पेर ॥ २२ ॥ कि० ॥ पुत्री तुंबी गत थ रे, जाणे गरण र हरण खेत ॥ रंमानी रंमा गई रे, टपसुं पण गइ लेत ॥ २३॥ कि० ॥ रां क तणे घरे सुरमणी रे, रहे कहो केती वार॥कि०॥ पूरव नवनी वेरणी रे, दे ग महोटो खार ॥ २४ ॥ कि० ॥ पुत्री परणे जाणतो रे, पामगुं महोटुं राज ॥ कि० ॥ होंश घणी मन आणतो रे, माणगुं पुत्री रा ज ॥ २५॥ कि० ॥ तेहमें एके न संपजी रे, फोक फजेती कीध ॥ कि० ॥ दैवना मनमां शीनजी रे, एको वात न सीध ॥ २६ ॥ कि० ॥ पण पुत्री पर घरें जई रे, वसति जाणे संसार ॥ कि० ॥ एक एकने देवरे रे, पुत्री पर घर बार ॥कि० ॥२७॥ ते में खोटी आदरी रे, लोनें खोयो कार ॥ कि० ॥ तो किम आवे पाधरी रे, लोप्यो म्हें व्यवहार ॥ २७॥ मो० ॥ नीतिनी चाल में नवि गणी रे, कीधोअनीति विचार ॥मो० ॥ तो किम रहे ए पदमणी रे, रांक घरे मुफ सार ॥ ए॥ मो० ॥ जेहनो संबंध ते ले गयो रे, बाना करीने लोच ॥मो॥ जे था हतुं ते थयुं रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शो हवे करवो शोच ॥३०॥ मो० ॥ मालीयें एम मन वालीयु रे, नावीनो ग्रह्यो पन्न ॥ मो० ॥था तम कुल संजालीयु रे, काढी नाख्युं शन ॥३१॥ मो० ॥ सगां संबंधि नारीने रे, रीश नतारी तास ॥ मो॥ मालिये वात विसारीने रे, तेडी श्राव्यो आवास ॥३२॥ मो० ॥ सघला वियोग ते नांगियां रे, उपन्यो रंग रसाल ॥ मो० ॥ पूरव सुकत जागीयां रे, नांगीया कुःख जंजाल ॥ ३३ ॥ मो०॥ हवे हरिब लनी जे थरे, सांजलो पुण्यविशाल ॥ मो० ॥ बीजां उनासनी एकही रे, लब्धे चौदमी ढाल ॥ ३४ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे हरिबल रजनीसमे, वाडिये कीg ठाम ॥ कुसुमसिरी मूकी तिहां, पहोतो ते निजधाम ॥ १ ॥ वसंतसिरी पेहेली प्रिया, जो तेहy चरित्र ॥ मुक कपर पण केह, राखे मनह पवित्र ॥ २ ॥ श्म जा णी निज मंदिरें, आव्यो रजनी मध्य ॥ तस्करनी परें सांजले, देई कान ते गु६ ॥ ३ ॥ तिण अवसर जे विरहिणी, वसंतसिरी ते बाल ॥ पीयु नाव्यो मा संतरें, तेहनी थइ चकचाल ॥४॥ तव एक पंखी सूवटो, पाल्यो ने घरमांहि ॥ तस बागल कहे विरह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११२) णी, वसंतसिरी जे उबांहि ॥ ५॥ रे पंखी मुफ पीयु डो, गयो लंका गुन काज ॥ अवधि कही एक मास नी,ते थइ पूरी आज ॥ ६॥ केशरनख पिया कह चले, बांझ गयंदनखमांहि ॥ जलनख रयण पोका रियो, मोजख जावत नांहि ॥ हजीब लगण आव्यो नही, नाव्यो को संदेश ॥ नाह नितुर नहली गयो, मुझने बाले वेश ॥ ७ ॥ तो दीहा किम निर्गमुं, किम करि राखुं शील ॥ मदनवेग ते जूधणी, के. पडियो कुशील ॥ ॥ आज लगण तो माहरु,में पण राव्यु एह ॥ पण ते अवधि पूरी थइ, कुमति चूकशे ते ॥ शुकवाक्यं ॥ दधिसूता सुत तास रिपु, ता त्रिय वा हनाहार ॥ सो सुंदर तुममें नहिं, कीधो कौन वि चार ॥ ए॥ ते माटे तुं सूडला, जा मुफ प्रीतम पा स ॥ संदेशो मुफ घरतणो,जश्ने कहेजे तास ॥१०॥ ॥ ढाल पन्नरमी॥ .. ॥ विंजाजीनी ए देशी ॥ सुडाजी हो अमीरस पा उ तुमने रे ॥सु० ॥ चखवू दाडिम शख ॥ सूडा सयण वारु ॥ ए बांकणी ॥ सुडा० ॥ चांच नरावं चूरमे रे ॥ सु०॥ देवं वली आंबा साख ॥ सु०॥ ॥१॥ सु० ॥ संदेशो मुज दाखवी रे ॥ सु०॥ मेल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११३) व तुं मुज जीव ॥ सु० ॥ सु०॥ गाइश ढुं गुण ताह रा रे ॥ सुं० ॥ जीवित सुधी सदीव ॥ सु॥२॥ ॥सु०॥ दूधे नरीश तुज पेटने रे ॥सु ॥ देश क हीश ते लांच ॥सु॥सु० ॥ जे ढुं बोलुं ते सही रे। सु०॥ मानजे करीने साच ॥ सु॥३॥९॥ हुँ कर जोडी वीन रे ॥ सु० ॥ सांजल माहरी वात ॥ सु०॥सु०॥ सघला पंखीमें कही रे ॥सु॥ नत्तम ताहरी जात ॥ सु॥४॥ सु० ॥ सदु पंखी शिरसेहरो रे ॥ सु॥ तुं छे चतुर सुजाण ॥ सु॥ ॥ सु०॥ रूपें तुं रलियामणो रे ॥सु०॥ मीठी ता हरी वाण ॥ सु० ॥ ५॥ सु० ॥ लीली ताहरी पांख डी रे ॥ सु०॥ चांच राती तुज चंग ॥ सु॥सु०॥ रूडी ताहरी आंखडी रे ॥ सु० ॥ राती केशू रंग ॥ ॥सु॥ ६ ॥ सु॥ सोने मढावं चांचडी रे ॥सु॥ दूधे पखालुं पंख ॥ सु०॥ सु०॥ दार तवं गले मो तीनो रे ॥ सु ॥ लाख टकानो अटंक ॥सुगा ॥ ॥ सु०॥ विरहिणी नारी तुं देखीने रे ॥ सु०॥ दया धरे मनमाहे ॥ सु० ॥ सु०॥ संदेशो मुज नाहने रे॥ सु० ॥ तुं जश् कहेजे उबांहे ॥९॥ ॥सु०॥ मानिश तुज उपगारडो रे ॥ सु०॥ थाइश नही गुण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) चोर ॥ सु० ॥ सु० ॥ कीधो गुण जाणे नही रे ॥ ॥ सु० ॥ माणस नही ते ढोर ॥ सु० ॥ ए ॥ सु० ॥ ऊठीने तुं पंखीया रे ॥ सुं० ॥ तुं मत करजे ढील ॥ ॥ सु० ॥ ० ॥ कहेजे मुऊ संदेशडो रे ॥ सु० ॥ सु० जिहां होये नाह रंगील ॥ सु० ॥ १० ॥ सु० ॥ अब ला तुम घर एकली रे ॥ सु० ॥ बे विरहिणीने वेश ॥ सु० ॥ सु० ॥ कुरि जूरि ऊंखर थइ रे ॥ सु० ॥ थइ नारी नरवेश ॥ सु० ॥ ११ ॥ सु० ॥ प्रीतमना विर हाथकी रे ॥ सु० ॥ मुर्ज न दीसे कोय ॥ सु० ॥ सु०॥ पण तंबोली पान ज्युं रे ॥ सु० ॥ दिन दिन पीलां होय ॥ ० ॥ १२ ॥० ॥ पियु विरहें करि नारियें रे ॥ सु० ॥ तजियां तेल तंबोल ॥ सु० ॥ सु० ॥ खाणां पीणां परणां रे ॥ सु० ॥ तजीयां सखीगुं टकोल ॥ सु० ॥ १३ ॥ ० ॥ पियु विल शागार पहेरतां रे ॥ सु० ॥ लागे अंगारा समान ॥ सु० ॥ सु० ॥ चं दन चूवा गीठियो रे ॥ सु० ॥ नागिणी नागर पान ॥ सु० ॥ १४ ॥ ० ॥ पियु विरहें घडी मासडो रे ॥ ॥ सु०॥ मास ते वरसज होय ॥ सु०॥ सु० ॥ खिय घरमें खिल यांगों रे ॥ सु० ॥ पियु विष ए गति जोय ॥ सु० ॥ १५ ॥ सु० ॥ नयणें नावे निड्डी रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) ॥ सु०॥ नावे न अन्न ने पान ॥ सु० ॥ सु० ॥ नाह विना घेली नगुं रे ॥ सु० ॥ कहीयें केतु सया ॥ ॥ सु० ॥ १६ ॥ सु० ॥ पूरव पापना योगथी रे ॥ ॥ सु० ॥ पामी स्त्री जमवार ॥ सु० ॥ सु० ॥ नरजो बन पियु घर नही रे ॥ सु० ॥ तस एलें गयो अव तार ॥ सु० ॥ १७ ॥ सु० ॥ ए मंदिर ए मालियां रे ॥ सु० ॥ पियु विना शून्य आगार ॥ सु० ॥ सु० ॥ रस कस खारां फेरशां रे ॥ सु० ॥ लागे ते चित्त मजार ॥ सु० ॥ १८ ॥ सु०॥ यौवन करवत धार ज्युं रे ॥ सु० ॥ विरहिणी नारीने रोष ॥ सु० ॥ सु० ॥ नादविदूणी कामिनी रे ॥ सु० ॥ पग पग पामे ते दोष ॥ ० ॥ १९ ॥ सु० ॥ कालजे कउं मेली गयो रे ॥ सु० ॥ निशिदिन रही ते धुखाय ॥ सु० ॥ सु० ॥ नेह सुधारस सिंचिने रे । सु० ॥ उलवे पियु घर या य ॥ सु० ॥ २० ॥ सु० ॥ ते दिन क्यारें देख रे || ॥ सु० ॥ करस्यां मननी रे वात ॥ सु०॥ सु०॥ प्राण जीवन मुंज देखीने रे ॥ सु०॥ कीजें शीतल गात्र ॥ ॥ सु०॥ २१ ॥ सु०॥ दिनकर पहेलां कगते रे ॥ सु०॥ जो प्रीतम घरे याय ॥ सु० ॥ सु० ॥ तो माणसनी उनमें रे ॥ सु० ॥ जीववुं ते जुगताय ॥ सु ॥ २२ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११६ ) ॥ सु०॥ जो कदि नाव्यो कगते रे ॥ सु० ॥ तो ज‍ गि रि ऊंपाय || सु० ॥ सु० ॥ पेट कटारी खाइ मरुं रे ॥ ॥ सु० ॥ के मरूं सही विष खाय ॥ सु० ॥ २३ ॥ ॥ सु० ॥ कंत विना गुं जीववुं रे ॥ सु० ॥ कंत विना किगुं हेज || सु० ॥ ० ॥ कंत विना शुं मालं रे ॥ ॥ सु० ॥ कंत विना शी सेज ॥ सु० ॥ २४ ॥ सु० ॥ दुःख नर बाती फाटती रे ॥० ॥ रही नथी शकती गेह ॥ ० ॥ सु० ॥ विरहानलनी बाफमां रे ॥ सु०॥ दाजी रही बुं तेह ॥ सु० ॥ २५ ॥ सु० ॥ विरहिणी एम विलपे घणुं रे ॥ सु० ॥ वसंतसिरी ससनेह ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ नयरों प्रांसु रेडती रे ॥ सु० ॥ जा ऐ ज्युं नाव मेह ॥ सु० ॥ २६ ॥ सु० ॥ वसंत सि री एम पाठवे रे || सु० ॥ झुकने संदेशा जिवार ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ नारीनुं दुःख सांजली रे ॥ सु० ॥ बोल्यो मत्री तिवार ॥ सु० ॥ २७ ॥ सु० ॥ खोलो कमाड सहेलीयां रे ॥ सु० ॥ मूकी मननी राड ॥ ॥ सु० ॥ सु० ॥ लखियो पति या वियो रे । सु० ॥ हर्षे उघाड्यां कमाड ॥ सु० ॥ २८ ॥ सु० ॥ निजप तिनुं मुख देखतां रे ॥ सु० ॥ कामिनि हर्ष नराय ॥ ॥ ० ॥ ० ॥ हर्ष विनोद जे उपनो रे ॥ सु० ॥ पु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) स्तकें लखियो न जाय ॥ सु० ॥ ॥ सु० ॥ वेधकने मन वघ्नही रे ॥ सु॥ ए पंचदशमी ढाल ॥ सु०॥ ॥सु०॥लब्धे बीजा नन्नासनी रे ॥ सु०॥ कही गुन रंग रसाल ॥ सु० ॥ ३० ॥ सु॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे प्रीतम घरे वतां,वाध्यो नवलो नेह ॥ मुह माग्या पासा ढव्या, अमियें वूा मेद ॥ १ ॥ नव पल्लव थइ अंगना, वसंतसिरी गुणगेह ॥ प्रेम सरोवर जीलता, वानो वधियो देह ॥ २ ॥ दंपति दो रंगें मव्यां, सुख नर कीधी वात ।। फुःख दोहग दूरेंगयां, प्रगटी ते सुख शात ॥३॥ कहे नारी पियु सांजलो, धुरथी कहूँ ससनेह ॥ तुमें चाव्या लंकाजणी, पाल ल वीती जेह ॥ ४ ॥ में तुमने पहेलां कही, ते सं नारो नाथ ॥ नृपने मंदिर दाखव्यू, दीपक ले निज हाथ ॥ ५॥ ते वात यावी आग, जव तुमें चा व्या लंक ॥ तव नृप मुफ के. पडयो, जाणीने निःशं क ॥ ६ ॥ मेहेमंतो कवट थइ, गज शिर नाखे धूल ॥ तिम नृप दासी मोकली, करवा मुफ अनुकूल ॥ ७ ॥ ॥ ढाल शोलमी॥ : ॥ एतो नथडीरो मोती अजब बन्यो॥ ए देशी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) एतो दासी मुफ कने मोकली, एतोलेनूखण साच ।। साहेब मोरा हे॥एतो चूवा रे चंदन अरगजा,ए तो सीं सा नरिया काच ॥ सा ॥ १ ॥ सांजलो प्रीतम मा हरा॥ एतो देवा मुझने लांच ॥सा॥ए आंकणी ॥ ॥ एतो मीठी साकर सूखडी, एतो मीठा मेवा ाख ॥ सा ॥ एतो बाब जरी वली मोकली, एतो मीठी आंबा साख । सा॥२॥सांग॥ एतो जरतारी साचू नला, एतो प्राण्यां नव नवां चीर ॥ सा ॥ जाणे वाघा सुरनारी तणा, एतो सोहे तेजमें हीर ॥सा॥ ॥३॥ सां० ॥ इत्यादिक लेइ नेटणां, एतो मूक्यां चेटी साथ ॥ सा ॥ कहे चेटी मुफ आवीने, तुम नेट करे नूनाथ ॥साधासां॥ एतो दासी कहे वली मुझने, तुमें सांजलो हरिबल नार ॥ सा ॥ एतो नृप राखे तुम परें, एकंगो थइ घणो प्यार ॥ सा॥॥सांग॥ एतो जे दिन तुम घरे आविया, ए तो जोजन करवा सार ॥ सा ॥ एतो ते दिनथी तुमें चित्त वस्यां, मनथी न विसारे लगार ॥ सा॥ ॥ ६ ॥ सांग ॥ एतो ते दिनथी तुमने घj, मिलवा नी राखे हूंश ॥ सा०॥ एतो एहमें जूठ न जाणजो, तुम सत्य करि कढुं सूंस ॥सा॥ ७ ॥सां॥ एतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११७) तव समजी हुं चित्तमां, नृप जाएयो लं कुजात ॥ सा० ॥ एतो पियु मुऊरीश चढी घा ।, नवीने में दीधी लात ॥ सा० ॥ ८ ॥ सां०॥ एतो कुंदीपाक कस्यो घणो, करें जीवित सुधी याद ॥ सा० ॥ एतो नावी दासी नृप कने, जर कधी ते फरियाद ॥ सा० ॥ ए ॥ सां० ॥ एतो सांजली नृप विलखो थयो, एतो समजी रह्यो मनम हि ॥ सा० ॥ एतो वलि राणीने मोकली, लेइ नूख ए सार उबाह ॥ सा० ॥ १०॥ सां०॥ एतो तव में अ वसर उलख्यो, एतो राणीने राजी कीध ॥ सा० ॥ एतो कपटें मासनो वायदो, करी राणीनें शीख में दीध ॥ सा० ॥ ११ ॥ सां० ॥ एतो याज ते मास पूरो थयो, एटले तुमें धाव्या घेर ॥ सा० ॥ एतो फ लीया मनोरथ माहरा, मुऊ वाधी पुण्यनी शेर ॥ सा० ॥ १२ ॥ सां० ॥ एतो पियु तुम मंदिर याव ते, मुऊ शीयल रधुं खंग ॥ सा० ॥ एतो नृपति रह्यो हवे फूलतो, पडि तेहना मुखमें खंम ॥ सा० ॥ १३ ॥ सां० ॥ एतो इत्यादिक पियु यागलें, कही रमणीयें मांगी वात ॥ सा० ॥ एतो हरिबलें सघलुं सांगली, गुण लीधो स्त्रीनो विख्यात ॥ सा० ॥ १४ ॥ सां०॥ हवे हरिबन कहे निज प्यारीने, तुक बेहेन ने वाडी मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सा० ॥ एतो लंकागढथीलावियो, एतो परणीम होटी सलऊ ॥ सा ॥ १५ ॥ सां० ॥ तव वसंतसि री हरखित थर, जलें यावी माहारी बेहेन ॥सा॥ एतो वारे वासे पामगुं, गुण महोटो थयो सुख चेन ॥सा॥१६॥सांग॥ हवे वसंतसिरी सहेलीगुं, गइ वा डीये तेडवा तेह ॥सा॥ कुसुमसिरी निज बेहेनने,घणे हेतें लावी गेह ॥सा॥१७॥सां०॥ एतो वसंतसिरी ने पाय पडी, दीधो कुसुमसिरीयें लाग ॥ सा ।। नखने मांस ज्युं प्रीतडी, तिम बिदुने थयो एक राग ॥सा॥ १७ ॥ सां०॥ एतो दोगुंङक सुरनी परें, दो नारीशुं जोगवे नोग ॥सा॥ एतो हरिबल जीव दया थकी, सुख पाम्यो पुण्य संयोग ॥ सा॥१७॥सां॥ एतो इणिपरें जे दया पालशे,एतो सांजली गुरु उपदेश ॥सा॥ एतो हरिबलनी परेंपामशे,एतो जवोचव सुख विशेष ॥ सा० ॥ २० ॥ सांग ॥ एतो सोहम शुरु परंपरा, तस गादीये हीर सूरिंद ॥ सा ॥ एतो सा ह अकब्बर बूजवी, एतो मेलव्यो सुकत हुंद ॥सा॥ ॥ २१॥सां॥ एतो तस शिष्य पंमित सोहता, धर्म विजय कविराय ॥ सा ॥ एतो तस शिष्य धनहर्ष जग जयो, एतो पंमित मांहे सराय ॥ सा ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ सां० ॥ एतो तस शिष्य कुशल विजय गणि, गणि कमल विजय तस नात ॥सा॥ एतो तस शिष्य ल मी विजय कवि, एतो ज्ञान क्रियामें सरात ॥ सा० ॥ श्शासां० ॥ एतो तस शिष्य केशर अमर दो, एतो जगमां कर्म फिपंत ॥ सा० ॥ एतो सूरज चंड तणी परें, दोय बंधव तेज दीपंत ॥ सा ॥ २४॥ सां॥ एतो तस पद पंकज किंकरु, एतो लब्धिविजय न जमाल ॥सा॥ शोले ढालें पूरो कस्यो, एतो बीजो न लास रसाल ॥सा॥२५॥सां॥ इति श्रीजीवदयापरे हरिबलमबीरासे लंकागमनागमनसंबंधः संपूर्णः॥॥ ॥दोहा॥ ॥शांति सुधामयमें प्रनु, मगन रहे निशिदीस ॥ केवलज्ञान प्रकाशथी, देखे विश्व जगीश ॥ १॥ ज्यो तिवधूना संगमें, निशिदिन रह्यो लपटाय ॥ तस पद पंकज ढुं नमुं, वामानंदनराय ॥ २ ॥ वचनामृत रस वरसती, कविमन महितल जेह ॥ नवपन्नव क विने सदा, करती माता तेह ॥३॥ चरण कमल नमुं तेहनां, बाला त्रिपुरा सोय ॥ गुण गातां ध्यातां सदा, मुफ मन वंडित होय ॥४॥ कोविद केशर अमरना, खरण कमल नमितास ॥ तस सान्निध हरिबत तणो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२२ ) पजणुं त्रीजो उल्लास ॥ ५ ॥ उत्तमना गुण गावतां, होवे उत्तम थाप ॥ खाइनी खेजें नावतां, जाये मल संताप ॥ ६ ॥ धर्मना रसिया जे हशे, ते सुशे एक मन्न ॥ धर्म कथा गुण लेयने, मानशे ते दिन धन्न ॥ ७ ॥ नारे करमी बापडा, गुं जाणे ते धर्म ॥ श्रवगुण जे निंदा करे, साहमुं बांधे कर्म ॥ ८ ॥ ते माटे नावुक तुमें, अवगुण मत व्यो कोय ॥ कीजें व्यवसाय धर्म नो, तेहमें खोट न होय ॥ ए ॥ इम जाली तुमें सांन लो, हरिबल केरुं चरित्र ॥ धर्मकथा सुणतां थकां, प्रतम होवे पवित्र ॥१०॥ दवे सुणजो नविका तमें, हरिबल के ख्यात ॥ लंका ज३ खाव्या पबी, शीशी निपजी वात ॥ ११ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ यारा मोहोला ऊपर मेह, फबूके वीजली ॥ हो लाल ऊबू के वी० ॥ ए देशी ॥ हवे हरिबल पहेरे वेश ते, जाणी प्रेनो हो लाल के ॥ जाणी प्रेनो ॥ दूरथी श्रावतो जाणे, नरेश ते लेकनो हो० ॥ नरे० ॥ एहवो वेश ब पाय, प्रजातें निकल्यो हो० ॥ प्रना० ॥ लोकनी दृष्टें जगाय, ते हरिबल टकल्यो हो| ते० ॥ १ ॥ चडुटे वतां जुहार, जुहार ते सदु करे हो० ॥ जु० ॥ ह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३ ) D रिबलने मनोहार, करे सदु जली परें हो० ॥ क० ॥ इम करतां दरबार, ते मांहे यावियो होते ० ॥ जिहां बेटी परखद त्यांहे, बांहे जावियो हो० ॥ ० ॥२॥ नृपजन यादि परज, ते कठी सढुं मली हो० ॥ ते ॥ एक नृप विना बीजी परज, ते मनमें यह रली हो० ॥ ॥ ते० ॥ पूढे मांहोमांहे, ते कुशलनी वारता हो० ॥ ते ॥ पाठो उत्तर हरिबल, दे दिल धारता हो ० ॥ दे० ॥ ३ ॥ प्रगटी होलीनी जाल ते, नृपना मन्नमें हो० ॥ नृ० ॥ लागी अंगो अंग, अंगीठी तन्नमें हो० ॥ खं० ॥ वलि मंत्री कालसेननुं, कालजुं नीकल्युं हो ० ॥ का ० ॥ श्याम वदन थयुं तास, ज्युं श्याम जाजन तनुं हो ० ॥ ज्युं ० ॥ ४ ॥ जाणे जहाज निमऊ, ययुं दरिया वच्चै हो० ॥ थ० ॥ तिम हरिबलने देखि, दो नृप मंत्री लचे हो० ॥ दो० ॥ कारीमो रंग देखाडी, कहे मुखथी घणुं हो० ॥ कहे ० ॥ हरिबल दे चादर, दे नृप बेसणं हो॥दे ॥ ५॥ या गत स्वागत कीध, घणी हरिबल तणी हो० ॥ घ० पूढे सोज समाचार, नृप हरिबल जणी हो॥ नृ० ॥ कहो हरिबल तुमें लंका, गढ नणि किम गया ॥ हो ० ॥ गणराय बिभीषण केरा, समाचार किम थया हो। स||६|| तव हरिबल ते खडग, करे जेइ नेट ॥ हो । ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) क० ॥ राय बिनीषणे मोकल्यु, ए तुम चेटणुं हो ॥ए॥ हवे हरिबल कहे सांजलो, स्वामी तुम नए हो॥स्वा०॥ लंका गढना समाचार, श्या कहूँ तुम घणुं हो॥श्या॥७॥ विकटा मारग आटां, काटा ते घणा होकां॥पंथें वहेतां आकरो, लाग्यो नही मणा होणाला॥श्म करतां सुःख सहेतां, पूगो जल निधी होण्॥पूणाकालागंबर जल नयां,खारो जलोदधी हो॥ खागाना लांबो पहोलो सहस, इसी योजन कह्यो हो ॥ इसी० ॥ ते परमाणे महोटो, सागर जल लह्यो हो ॥ सा ॥ नाना महोटा मगर, मह ते दीसता दो॥म॥ वाघने सिंहने रूपें, दीसे हिंसता दो ॥दी॥ ए॥ चिढुं दिशिमें जल पूरी, दीसे वसुमती हो ॥दी०॥ माणस पंखीमात्र न, दीसे ए क रती हो ॥ दी० ॥ जलना लोढ चले ते, हिमा ला टक ज्यु हो॥हि ॥ नबलें जल असमान, शिखा चढे हूं कह्यु हो ॥ शि० ॥ १० ॥ जाणे अषाढो मेह, ज्युं दरियो गाजतो हो॥ ज्युं ॥ शूर सुनटनां मान, ते दूरें जांजतो हो ॥ ते ॥ एहवो जलधि जयंकर, देखी बिहामणो हो० ॥ दे० ॥ जल में पगलुं देतां, मन धूज्यो घणो हो ॥म॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२५) पण गुं करीयें स्वामी, तुमारा कामने हो ॥ तु०॥ कठिण कयुं तिहां मन, संजारी रामने हो॥सं०॥ पालु केम वलाय जे, कामें नीकल्यो हो ॥ के ॥ ॥ जे ॥ मरण कबूल कस्युं पण, पाडो नवि टल्यो हो० ॥ पा० ॥ १३ ॥ उत्तमना जे बोल, ते गजदंत नीलस्या हो ॥ ते ॥ ते पाबा किम सरे, पंचमें सदस्या हो ॥ पं० ॥ पंचनी साखें बोल, जे बोली यो ते टले हो॥ जे ॥ ते नरनारी जीवतां, मूया मां जले हो ॥ मु० ॥ १३॥ वयण चूकां ते मान वी, लेखे नवि गणे हो ॥ ले० ॥ इहलव परनव कार, गयो तस जिन जणे हो ॥ग ॥ श्म जाणीने स्वामी, तुमारा काजने हो ॥ तु० ॥ वाल्यो जसमे जीव, कठिण करी लाजने हो ॥क० ॥१४॥ वलि एक हरिबल कौतुक, नी नृप आगलें हो० ॥ नी॥ कल्पित वात करी कहे, ते सदु सांजले होते ॥ जलमें गयोज न आघो, ते दुं मन संवरी हो० ॥ ते ॥ तब एक राखस आव्यो ते, साहामो जल तरी हो ॥ सा ॥ १५॥ ऊंचो तो जाणीयें सप्त ए, ता र प्रमाण ज्यु हो ॥ ता० ॥ लांबो होत ते जाणी में, वंशसमान ज्युं हो ॥ वं० ॥ दंता लोढा ताल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) करे करी कलमली हो॥क ॥ अवली सवली दो ट, दीये धसी ऊलफली हो ॥ दी० ॥ १६ ॥ जाणे आंखो दो उमी, नूमी हुंगर दरी दो॥j० ॥ माधु महोटुं ते जाणीयें, हलपले धूसरी हो ॥ ह ॥मा थे काबरा केश, ते जाणीयें झांखरां हो ॥ ते ॥ देताली समा दांत, ते विरला याकरा हो ॥ वि० ॥ १७ ॥ ताडसमा दो हाथ ते, राखस शेहना हो ॥ रा०॥ अंगुलीना नख जाणीयें, पावडा लोहना हो ॥ पा ॥ पेट तो जाणिये नमो, कूवो फूडनो हो ॥ कू० ॥ थंन समान दो चरण ते, राखस नूं मनो हो ॥ ते ॥ १७ ॥ काल कंकाल समान, न यंकर नैरवो हो ॥ न ॥ जाणे यमनो बंधव, प्रग ट्यो अनिनवो हो ॥ ॥ क्रोधानलनी काल ते, मुखथी काढतो हो० ॥ मु॥ करतो अट्ट हास, ते कर दो पबाडतो हो ॥ ते ॥ १५ ॥ मुत्रा साप ज्युं गंध, गंधाय उर्वातनो हो ॥ गं० ॥ न दरथी निकले आहार जे, ते दिन सातनो होगाते॥ एहवो बिहामणो रादस, ते साहामो मल्यो हो ॥ते॥ एक तो जलधि बीजो, राक्षस देखी बल्यो हो ॥रा॥२०॥ म्हें तव जाणियो जूनो, पूर्वज आवियो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२७) ॥ हो॥पू०॥ विवानीवच्चो, घर्घरणो जगाडियो दो ॥१०॥राज्यनुं काम सधावा में, तव बुद्धिकरी हो। में॥मामो कहिने बोलाव्यो, राखसने म्हें फरी हो॥ रा॥१॥आवो मामा जुहार,नाणेज तुमने करे हो ॥ ना० ॥ द्यो अनेदान ते मामा, नाणेजने नलि परें हो॥नास्वामी तुम्ह प्रसादथी,बुदिएकली हो० ॥बु॥राजी थयो तव राखस,वाणी सुणी नली हो ॥वा ॥२२॥ पूछे राखस जाणेज, तुं हां किहां थ की हो० ॥ तु०॥ कम तु आव्यो जलधिमें, ते मुज कहे बकी हो ॥ ते॥ तव हरिबल कहे मामा, मुफ लंका तणो हो॥ मु० ॥ दाखवो मारग माह रे, काम तिहां घणो हो ॥ का ॥ २३ ॥ जावं में नृप कारज, शीघ्र उतावलो हो ॥ शी० ॥ तव रा खस कहे जाणेज, दीसे तुं बावलो हो० ॥ दी० ॥ मीयां वादे चावे, चणा तुंए नई हो ॥चा०॥ श्यो तुम आशरो नाणेज, लंकामें जq हो० ॥ सं० ॥२४॥ चूसी ले तुक राखस, धोले दी बतां दो० ॥ धो० ॥ किम तुज पूर जाणेज,लंका गढ जतां हो ॥सं॥ जेहथी निपजे काम,ते तेह करी शके हो ते॥ बांध्यो गझो खाइ, बुधां त्यां बदु बके हो० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) ॥० ॥ २५ ॥ चमक्यो चित्तमें स्वामि चखाणो सांजली हो० ॥ ० ॥ घर सरखि नहि यात्र, ए वात में श्र टकली हो० ॥ ए० ॥ तव में पूब्धुं स्वामी, राखसने ते वलि हो० ॥ रा० ॥ मुऊने बतावो मामा, लंका कूंची गली हो० ॥ लं० ॥ २६ ॥ किलिविधें मामा जवाये, लंका गढ़ हुं लहुं हो० ॥ लं० ॥ तव राखस कहे जाणेज, सांजलो हुं कहुं हो० ॥ सां० ॥ त्रीजा उल्लासनी ढाल, ए पहेली उच्चरी हो० ॥ ए० ॥ लब्धि कहे नवि सांगतो, यागें नजम धरी हो० ॥ श्रा० ॥ २७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे राखस कहे महिने, सांजल तुं जाणेज || जो जावुं तुऊ लंकमें, तो करि कहुं ते हेज ॥ १ ॥ अगनी तुज काया दही, कर तुं रहा ह ॥ ते रक्षा पडी लेइने, सोपुं लंका तब ॥ २ ॥ इषि विधि तुं लंका लहे, बीजी विधि नवि कांय ॥ जो तुम बसें लंका गयो, तो तुम राक्षस खाय ॥ ३ ॥ राक्षस वय एते सांगली, में धाखुं मनमांहि ॥ जीवित जो वाहालुं करूं, तो पण न रहे कांहि ॥ ४ ॥ रमणी राज्य ने क द्धि ते, तन धन जे वलि प्राण ॥ एतां करे अलखाम यां, वाक्यवबलना जाए ॥ ५ ॥ ते जाणी तुम कार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 1 Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) जे, कीधु मरण कबूल ॥ इंधण काष्ठ मेली करी, करवा मांमधु सूल ॥ ६ ॥ चिता रची दोयजण मिली, कीधो अग्नि प्रगट्ट ॥ सलगाडी चय चिहुँ दिशे, प्रगटी जाल त्यां जट्ट ॥ ७ ॥ तिण विचमें तुम किंकरें, ऊं पापात ते कीध ॥ देह दही तुम कारणे, करवा काज प्रसि ॥ ७ ॥ सामधर्मि थश्ने प्रनु, कीधी काया होम ॥ घृत मधलं ते परजली, जालज कती धोम॥ ॥ ए॥ तेहनी जे रक्षा थर, बांधी पोटकी बार ॥ राखस ले गयो लंकमें, करवा मुज उपगार ॥ १० ॥ राखस ते लेइ पोटकी, नृप नजरें करि नेट ॥ राय बिनीषणें पूछियु, शी करि तें ए नेट ॥११॥ ॥ढाल बीजी॥ ॥जटियाणीनी देशी ॥ हवे राखस कर जोडी हो कहे आलस बोडी रायने, ए तो लंकापति अवधार ॥ हुँ जव सायर कंठें हो उपकं ब्रेक ते जायने, मुंज वलियो आगार ॥ हवे॥१॥ तव एक पंथी बेगे हो में दीगो निग्रंथी पणे, ए तो सायर पेले पार ॥ हुँ गयो जव ते साहामो हो ते पण कहि मामो जणे, तुमें आवो मामा जुहार ॥ हवे ॥२॥ में पण पूनियुं तेहने हो तुं केहने नरोंसे वहां रह्यो, तव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) बोल्यो पंथी सार ॥ राय बिनीषण केलं होने शर| जलेलं मुफ कयुं, ए तो नाणेज बोल्यो विचार । ॥ हवे ॥३॥ तुम दरिसणनो अर्थी हो करि कर थी बारनी पोटकी, मुफ बांधी दीधी एह ॥ कहे रा खस तुम सयणे हो तुम नयणे मूकि ए पोटकी, ए तो नेट करी में तेह ॥ हवे॥४॥ श्म राखस गयो कहिने दो ए तो वहीने फरी निज थानकें, तव चिंतवे बिनीषण चित्त ॥ विस्मय पाम्यो मनमें दो राय जनमें बोडी जाणके, ए तो राखसनी पोटकी दीत ॥ ५॥ .एम हरिबल कहे नृपने हो घणे यत्ने जस्म करें ग्रही, मुफ बांटे अमृत तोय ॥ ए आंकणी॥ विद्याबलें करी शुको हो मुफ कीधो जी वतो देखता, तिणे दीधी फरि अवतार ॥ सनमान्यो मुने स्वामी हो घणुं अंतरजामी पेखतां, मुफ कीधो बहु उपगार ॥ ए. ॥ ६ ॥ लंकापति मुज. पूढे हो ए शुं तें काया दही, मुफ मामी कहो विरतांत ॥ तव में लंकापतिने हो कहि यतने मामीने सही,एतो आपणा घरनी वात ॥ ए॥ ७॥ वीशालापुर नग री हो दे सघरी सघसा देशमें, ए तो महोटी पुण्य पवित्र ॥ मदनवेग त्यां राया हो सुखदाया सघला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१ ) नरेशमें, ए तो सोहे प्रजामें बत्र ॥ एवं ॥ ८ ॥ अंग जने परणावा हो जस पावा चिहुं दिशिमें प्रभु, एतो मांमधो व रंग ॥ तिय कारण नृप मेजे हो मन जेले सघलाएं विभु, एतो तेडी ते खमंग ॥ ए० ॥ ॥ ए ॥ तेणें तुम यामंत्रवा हो ए तो मंत्रवा हर्ष हि ये धरी, तिणे तेडवा मूक्यो मुऊ ॥ ते माटे तुमें वे ला हो ए तो लगननी पहेला परवरी, तुमें यावोज्युं पडे सूऊ ॥ ० ॥ १०॥ तव लंकापति बोल्यो हो मन खोली कहे मुफ यागलें, तुं सांजल पंथी सुजाए ॥ में किम तिहां अवराय हो न जवराये निज नागलें, तो किम थाय प्रयाण ॥ ए० ॥ ११ ॥ तें माटे तुमें कहेंजो दो मुफ मुजरो लेजो दिन प्रतें, तिहां बेठा विशाला मऊ ॥ खड्गनी या सहनाएणी हो गुण खाली मूकी तुम प्रतें, ए तो सघले कामें सकऊ ॥ ॥ ० ॥ १२ ॥ एम कहिने बिभीषणें हो मुने नूष ए देइ जडावनां, वली पूत्री पण मुफ दीध ॥ तुम परसादें सांई हो प्रभु मुफ़ अंतर मां नावना, मुफ कीधी बिनीष वृद्ध ॥ ए० ॥ १३ ॥ घणे आमं बरें करीने हो जस वरीने मुफ वोलावियो, निज पुत्री सहित महाराज ॥ वनि निज सेवक साधें हो ए Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) तो मूकी हाथे जलावियो, मुफ लंकापति शुन था ज ॥ ए॥ १४॥ विद्याबलें पंथ काप्यो हो सुख व्याप्यो पलकमें इकडे, एतो जब थइ प्रजुनी लहेर ॥ रजनी मध्य प्रदीपें हो निज नगरी समीचे रूंखडे, ए तो मूकी वलिया घेर ॥ ए॥१५॥ ढुंपण मंदिर था यो हो सुख पायो प्रनुनी महेरथी,हुँतोजे गयो बीडंग बेय॥फति मुज चाकरी लंका हो देश का आयो तुम लहेरथी,दूं तो लंकालाडी लेय॥ए॥१६॥ए सहना णी खगनी हो जे निपनी सर्गनी तुम नणी,एतो मूकी बिनीषणें साच ॥ वलि तुमने कर जोडी हो मान मोडी प्रणिपत करी घणी, तुम सपगो कह्यो ए मुख वाच ॥ ए ॥ १७॥ ए सहनाणी देखी हो मुने पेखी आव्या जाणजो, एतो अमने विवाहमांहि ॥ वलि तुम सेवक जांखे हो मुख वचने दाखे तेमा नजो, तुम मदनवेग उडांहि ॥ ए०॥ १७ ॥ इणि प रें व्यतिकर सघलो हो नृप आगल मांमि परगलो, ए तो सपगो मनि कहेय॥ते नृप सांजली वाणी हो मन जाणी हरिबल अटकटयो, ए तो साहस धैर्य धरेय ॥ ए॥१५॥ सघती परषदा निमणि दो मन हर णि सांजली वातडी, ए तो हरखित परषद होय ॥ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३३) न्य करणी दरिबलनी हो गयगमणि लंका जातडी, ए तो परणी आणी सोय ॥ ए० ॥ २०॥ नृप पण थ यो मन राजी हो गुज देजाजी वधामणी, ए तो ह रिबल कीध प्रसन्न ॥ घणे आम्बरें करीने हो हरिब लने काध पहेरामणी, ए तो मूक्यो निज आसन्न । ए७ ॥ १ ॥ गोखें बेठी देखे हो पियु श्रावतो पेखें रंगगु, थनारी दो उल्लास ॥ दंपतीनी दो दृष्टि हो थइ सुधावृष्टि चंगा, ए तो पहोती सघली आश ॥ ए॥ ॥ २२ ॥ हवे हरिबल मतवालो होए तो दो गोरीनो नाहलो, ए तो सुख विलसे संसार ॥ प्रेम सुधारस प्यालो हो एतो पियुने वालो वाहलो, ए तो सफल करे अवतार ॥ए० ॥ २३॥ जुवो नविया प्राणी हो मन जाणी जीव ऊगारीयो, एक जलचर जीव जो मज ॥ तो तस पुण्य प्रजावें हो गुन जावें जनम सुधारि यो,लह्यो मही लखि सुलह ॥ए ॥२४॥ ढुं बलिहा रीतेहने हो जे जेहने लेश्या धर्मनी, तस होवे सुर नर दास ॥ त्रिजा नन्नासनी पूरी हो बीजी ढाल स नूरी मर्मनी, ए तो पनणी लब्धि सुवास ए॥२५॥ ॥दोहा॥ . ॥ हवे नृपें दरिबल नारीनी, उविधा मूकी दूर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) ॥ जाग्यो जव मंदिर धणी, लाज्यो चोर मजूर ॥१॥ तिम नृप समजी मन्नमें, हरिबलयु करे प्यार ॥ हरि बल पण सेवा करे, नृपनी ते दरबार ॥॥ हरिब लनी थइ वातडी, नगरि विशालामऊ ॥ लंका लाडी लावियो, परणी लऊ सुलऊ ॥३॥ ते वातो श्रव एवं सुणी, कालसेन परधान ॥ परजले मनमें पापी यो, हरिबल सुणि जस वाण ॥४॥ दिनकर देखी चूक ज्यु, रजनीपति ज्युं चोर ॥ जलधर देखि जवास ज्यु, त्यु बले सचिव ते जोर ॥ ५॥ पण गुं करे पज्यो एकलो, जोर न चाले कोय ॥ जेहना दीहा पाधरा, तस अरि अंधज होय ॥ ६ ॥ कर क्रम धोई वांसे थ यो, हरिबलने ते उष्ट ॥ बल ताके बलवा नणी, कालसेन नञ्चिष्ट ॥ ७ ॥ एक दिन बेगे मालीये, मद नवेग ते राय ॥ कालसेन तिहां आवियो, बेगे प्रण मी पाय ॥ ॥ कानें लाग्यो चाडियो, कालसेन की राड ॥ हरिबलने कुःख दाखवा, नृपने पाले राड ॥॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ण सरोवरीयांरी पाल,आंबा दोय रानला ॥ल लना ॥ ए देशी ॥ हवे हरिबलनां वयण, वखाण ते नृप करे ॥ लम् ॥ खागी त्यागी निकलंक के, शूर सु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) जट सरे ॥ ल० ॥ जो परधान ते एकलो, लंका गढ गयो || ल० ॥ माहरूं काज सुधारवा, बली नस्म थ यो ॥ ज० ॥ १ ॥ काढ्यो आपणे दो जणें, मलीने स्त्रीवती ॥ ज० ॥ टाढे पाणी यें वेगली, खस काढी ह ती ॥ ज०॥ पण ते साहामुं लाडी, लंका लेइने ॥०॥ श्राव्यो यपणे मंदिर, मंका देने ॥ लणाशा तो में जाएयो ए पूरण, नाग्य बली घणो ॥ ल० ॥ जामा ता यइ याव्यो ए, लंका गढतणो ॥ ल० ॥ नाव्यो सहनाणी खड्गनी, नृपचं मत करी ॥ ल० ॥ लंका पतिनी माहरी, दो राखी सरनरी ॥ ल० ॥ ३ ॥ बुद्धि कल परपंच ए, में दीठो सही ॥ ल० ॥ मद नवेगें मंत्रि धागल, वात ए सवि कही ॥ ज० ॥ काल सेनने पगथी, मांगी माथा लगें ॥ ल० ॥ प्रगटी जा ल ते सांजली, जागी अंगो अंगें ॥ ल० ॥ ४ ॥ बोल्यो मंत्री ताम, कहे रोशें बली ॥ ल० ॥ नलि तुम अ कल जे नरपति, हरिबलनी कली ॥ ल० ॥ गुं तुमें जाणो स्वामी, ए धूरतनी कला || ल० ॥ मानो स घलुं धोलुं ते, दूध करी जला ॥ ज० ॥ ५ ॥ मारें मिंग असंबंधने, अणघडीयां वली ॥ ज० ॥ गजनुं कलिंग तेमांहे, गज तेरनी कली ॥ ल० ॥ अंधे दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६ ) तो चंद, यमासनी रातडी ॥ ल० ॥ तिम हरिबल नी ए मानजो, नृप तुम वातडी ॥ ल० ॥ ६ ॥ शुं जाली प्रभु वयण, वखाण करो तुमें ॥ ज० ॥ ए दं जीनां सयल, चरित्र नहुं में ॥ ज० ॥ जे परदेशी लोक ते, दीसे एहवा ॥ ल० ॥ नाटक चेटक जाणे, वादीगर जेहवा ॥ ल० ॥ ७ ॥ कूड कपट परपंच, क कला केलवे ॥ ल० ॥ कल्पित वात करी, कडीयें कडी मेलवे ॥ ० ॥ परगामें परदेशी, फरे थइ बेल सा ॥ ज० ॥ मोडा मोडी करे घरणा, धोबी बेलसा ॥ ॥ ० ॥ ॥ बेसी परजमें वातो, करें महोटी करी ॥ ॥ ल० ॥ मिंगे मिंग चलावे ते, लोक जाणे खरी ॥ ॥ ज० ॥ साची जूठी करे ते, मुखें न लगाडीयें ॥ ॥ ज० ॥ श्वान बोलाव्युं चाटे ते, वदन बिगाड़ीयें ॥ ॥ ल० ॥ ए ॥ ते माटे तुमें स्वामि, सही करी मान जो ॥ ज० ॥ कपटीमां शिरदार ए, हरिबल जाणजो ॥ ज० ॥ किहां लंका किहां लंक, पतिनी पुत्रिका ॥ ॥॥ श्रणमलती ए वात, घडी एणें बुत्रिका ॥लं ॥ ॥१०॥ ए तो कोक धूर्त, पणे करी वातडी ॥ ॥ परस्यो नारी ए उत्तम, मध्यम जातडी ॥ ल० ॥ ना म लिये निज थाप, वधारवा खणघडी ॥ ० ॥ 4 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ (१३७) किहां ए लंकापतिनी, पुत्री रली पडील॥११॥ शी उनियामें खोट, पडी हती पुरुषनी ॥ल ॥ लं कापति कीध, सगाइ ए पुरुषनी ॥ल ॥ नवकुल नाग विच्छेद, गया जब महितलें ॥ ॥ आव्युं का कीडाने, राजसरे ते अणमिले ॥ ल॥ १२ ॥ एन खाणो सांगली, नृप तुमें धारजो ॥ल ॥ तिम ह रिबलनी वातो ए, साची गरजो ॥ल ॥ जो लंका पति केरो, जमाई साचो दशे ॥ल ॥ तो तुम नोतरी मंदिरें, जमवा तेडशे ॥लम्॥१३॥ तेहने मिशे जर आपणे, नारी दो जोश्य ॥ ॥ उत्तम मध्यमनी गति, दो कुल सोहियें ॥ल ॥ इणि परें मंत्रिये नृपना, कान नंगेरीया ॥ ॥ नृपना मन ना कषाय, नुजंग बंजेरीया ॥ ॥ १४॥ जू कु बुद्धी मंत्रीयें, चकमक पाडीयो ॥ ॥ हरिबल न पर क्षेषनो, सिंह जगाडीयो ॥ लम् ॥ इणि परें मंत्रि ये हरिबल, नी कुबुधिये ॥ल०॥ नृप मन फेरव्युं जा णे, हरिबल धिये ॥ल ॥ १५॥ श्म नृप मंत्री दो जण, मलि गोमो रचे ॥ल ॥ जमण मिशें दो नारीने, जोवा नृप लचे ॥ल ॥ एहवो संकेत करे जिहां, नृप मंत्री मती ॥ल॥ तिण अवसर तिहां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) आव्यो, अजाणे हरिबली ॥ल ॥ १६॥ श्रागत स्वागत हरिबल,नी ते नृप करे॥ल॥ बांह पसारी आवो, आधा आसण धरे ॥ ल० ॥ बेठा एकण गा दीयें, हरिबल नृप जिहां ॥ल ॥ मुखथी साकर घोलतो, बोल्यो मंत्री तिहां ॥ ल० ॥१७॥ हवे करे मंत्री हरिबलनी, खुश मशकरी ॥ ॥ हरिबल हर्षे एहवी, बोली उच्चरी ॥ ॥ कहो हरिबल तुमें लंका, लाडी लाविया ॥ल ॥ राय बिनीषण केरा, जमाई नाविया ॥ल ॥ १७ ॥ पण एक नो तरुं तेहनु, तुम कने मागीयें ॥ ॥ लेखावटनी सागति, ते नवि नांगी ॥ ॥ लाखनी बगसिस कोडि, हिसाब न चूकीयें ॥ ल॥ संसारमा री तिए, ते किम मूकियें ॥ ॥ १५ ॥ गडदानो पण नाग, नथी को मूकता ल०॥ तो किम मूकशुं जम प, अमारु बतावतां ॥ल ॥ बाश्ना कात्यामां ना ग ते, कोनो पाड ॥ल॥ श्म हरिबलने मंत्री, कहे हस्त चाड डे ॥ल ॥२०॥ इणि परें हास्य कु तुहल, नी करी मंत्री ॥ल ॥ समज्यो मनमां हरिबल, सांगली गंत्री ॥ ॥ पापी कुमति में त्रीयें, चकमक फेरियो ॥ ॥ जमण तणो मिश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काढी, नृपने जनेरियो ॥ल ॥१॥ एहेवा उष्ट कुबुद्धि ते, कां जगें अवतया ॥ल ॥ यमने मंदिरें कांन, गया जे गलि जया ॥ल॥ परनिंदा करता फरे, पुष्ट सुसाधनी ॥ ॥ खावे उखर निंदकी, काक ज्यु वाधनी ॥ला ॥२२॥ तप जप किया क ट, करे जे निंदकी ॥ ॥ ते मरि जाये नरग, नि गोदें ए वकील ॥ नारे कर्मी जीव, कह्या ए जि नवरें ॥ल ॥ इह नव परजव सुखने न, देखे जली परें ॥ल ॥ १३ ॥ पारकां विश् जूवे ते, निंदकी बोकडा ॥ल ॥ देवकीवंशे ते ऊपजे, ए फल रोक गं॥ ॥ समजू थश्ने जीव, करे निंदा पारकी। ॥ल॥ते जीवने किम लेती नथी, चंमा बारकी॥ ॥ल॥ २४ ॥ श्म हरिबल मन समजी, खुणस रा खी रह्यो ॥ लम् ॥ खेलगुं दाव ते अवसर, आवे जे लह्यो । ल॥ गुडथी मरे जे जीव ते, विषथी न मारीयें ॥ ल॥ए नवाणो लोक, कहे ते संनारियें ॥०॥५॥म धारी मनमोहिते, हरिबत बो खीयो ॥ ॥ व्यो प्रजु लंकानोजन, वचन ए खो लीयो ॥ल ॥ नगरि समेत जे परखद, लेइ पधा रजो ॥ ल० ॥ करां टहेल ते सगति, सारु अवधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) रजोल ॥ २६ ॥ श्म कही नृपने प्रणमी, हरि बल उठीयो ल०॥ पण हवे नृपने मंत्रीने, जगदीश रूतीयो ॥ल ॥ त्रीजा नल्लासनी ढाल ए, त्रीजीपू री थई ॥ल ॥ लब्धि कहे नवि सांजलो, जे आगे नई॥ ॥२७॥ ॥दोहा॥ ॥हवे हरिबल घरे आवियो, बेटी नारी दोय ॥ यावतो दीगो नांदने, कती प्रगमे सोय ॥१॥निश जर बेग रंगमें, दंपति करे कल्लोल ॥ प्रेम सरोवर जीलतां, निगमे राति टकोल ॥२॥ हरिबल कहे प टनारीने, सांजल प्रिया मुफ वात ॥ लंका लाडी ने हणुं, ते नृप मागे लांच ॥३॥ पंच समदं मंत्रीय, माग्युं जोजन सार ॥ तव ढुं नृपने नोतरी, आव्यो बुं आगार ॥४॥ तव पटनारी कंतने, कहे पियु सां नल मुज ॥ एक वार नृप तेडतां, लाज वली नही तुज ॥ ५॥ नकटी देवी देवलें, सरड पूजारो जेम॥ लोक उखाणो जे कहे, प्रीतम जो तुमें तेम ॥ ६ ॥ वलि शी शक तुम धाइयो,प्रीतम बीजी वार ॥ ते ढुं इम जाणुं अg, शान ग तुम सार ॥ ७॥ देखी पे खी कूपमें, दीपक ले पडो हब ॥ नृप मंत्री मीतुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) चवे, ते तमें मानो सच ॥७॥ मीतां बोला मान वी, केम पतीजां जाय ॥ नीलकंठ मधुरं लवे, साप सपुतो खाय ॥॥ तेहनी ने ए जातडी, नृप मंत्री दो.लंत ॥ चूक करी तुमने प्रनु, करशे स्त्री दो नंग ॥१०॥ ते माटे स्वामी तुमें, म करो को विसास ॥ एतां कबहि न धीरियें, जो वंडो तन आश ॥११॥ नेष जुजंगम नामिनी,महेत ने नूपाल ॥ ए पांचने जे धीरशे, ते नर पामशे काल ॥१२॥ यम वेश्या दा सी नदी, अग्नि जूधारी काल ॥ ए साते नही आप णां, प्रीतम निज संजाल ॥१३॥ तव प्रीतम वसतुं कहे, हरिलंकी निसुणेह ॥ जो मुफ दीहा पाधरा, झुं नृप करशे तेह ॥ १४ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ . ॥प्रीतमसेंती वीनवे ॥ अथवा हो मत बोले सा जनां ॥ ए देशी ॥ हारे लाल एहवो जबाप ते धीवरें, वसंत सिरीने दीध ॥ मोरालाल ॥ भोजननी जे जो श्ये, मेली सामग्री सुसि ॥ मोरा लोल ॥ १ ॥ सार निपाई रसवती, जेहवी कही सूर्यपाक ॥मो॥ एक जो कवल तेपेटमां, उतरे तो चढी रहे बाक ॥ । मो० ॥ २॥ हारे लाल सागर देंव पसायथी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४३) नोतस्यां नगरी लोक ॥ मो० ॥ नृपने पण दिये नोतलं, श्रीफल लेइ करे ढोक । मो० ॥ सा ॥ ॥३॥ हां ॥ साला करि चल चिहुँ दिशें, पंचरंगी बनात ॥ मो० ॥ जरतारी मेरा किया, के. बांधिक नात ॥ मो० ॥ सा ॥४॥ हां। नर नारीनी पांत मां, मांमधा सोवन थाल ॥ मो॥ रतन कचोलां शाकनां, मांमया काक जमाल ॥ मो० ॥सायम ॥ दां०॥ कुमर कुमारी पांतमां, तिहां पण मांमधा थाल ॥मो०॥ बार दरवाजे ज, तंउल ठवे उज माल ॥मो० ॥सा०॥६॥हा॥नोजन वेलाने समे, दरिबलें तेडां कीध ॥ मो०॥ राउ राणा नग रीजना, बेठी पांत प्रसि ॥ मो० ॥सा ॥७॥ ॥हां ॥ बयत बबीला बोगानुथा, रसिया वालम जेह ॥मो०॥ नांग अमल चढाइने, खाश्म फेरा तेह । मो० ॥ सा॥ ॥ हां०॥ प्रीसे पांतें प्रीस णां, सुखडी एकविश जाति ॥ मो० ॥ मेवा मीठी जातना, प्रीसे पांतिमा खांति ॥ मो॥सा॥ए॥ ॥ हां ॥ घेवर पेंडा मोतीया, कसमसीया कर्णसाई ॥मो॥ फरमरीया सिंह केसरी, लाखणसाइ स वाई। मो० ॥ सा॥१०॥हां ॥ सिरा मुंहाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) लापशी, गुंदवड गुंदपाक ॥ मो० ॥ मर्कि जलेबी हे समी, मेहेसु पतासां चाक ॥ मो० ॥ सा ॥ ११ ॥ ॥ हां ॥ व्यंजन केही जातिनां, खारां खाटां तिरक ॥मो० ॥ खडका ने ब्रडका घणा, हिंग वघाखा हविख ॥ मो० ॥ सा ॥ १२॥ हां ॥ मांदोमांहि ते एकमना, मांमे रसिया वाद ॥ मो० ॥ अवला सवला जूता, करे ते नोजन स्वाद ॥मो॥सा०॥ ॥१३॥ हां ॥ शूर सुजट रण खेतमें, ज्यु लडे कर ता चोट ॥ मो० ॥ तिम रसिया लडें नोजनें, कर मुखयुं करें दोट ॥ मो० ॥ सा॥१४॥ हां ॥ शाल दाल ने घृतसरा, चाली ज्युं नदीनीक। मो०॥ रसिया राजन जन जम्या, स्वादें करीने ठीक ॥मो॥ ॥सा ॥ १५॥ हां० ॥ सारनी नीपाइ रसवती, जे हमा कांश नवि सुख ॥ मो० ॥ नगरी जन सदुको जमी, काढी सघली नूख ॥ मो० ॥सा ॥ १६ ॥ ॥ हां० ॥ कपूर कस्तूरी वासिया, जला करे मुख ६ ॥मो ॥ पान सोपारी एलची, तंबोल दे मन शुभ ॥ मो० ॥ सा ॥ १७॥हा॥ पहेरामणी सद्भु ने करी, नर नारी विस्तार ॥ मो॥ मुज्ञनी करी द क्षिणा, वरताव्यो जयकार ॥ मो० ॥ सा ॥ १७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) ॥ हां०॥ जशपडही वजडावियो, नगरीमांहे विख्या त॥ मो० ॥ वातडी चाली चिढुं दिशें, दरिबल केरी ख्यात ॥ मो० ॥सा ॥ १५ ॥ हां ॥ हवे सुपजो रसीया तुमें, जमता जे थ वात मो० ॥ नृपने प्रिसवा नारी दो, भावी शोनित गात ॥मोसा ॥ २० ॥ हां ॥ नृप जमतां नूली गयो, निरखी दो स्त्री रूप ॥ मो० ॥ विकलेंश्यि थयो राजवी, पडियो मोहने कूप ॥मो० ॥ सा ॥१॥हां ॥ काम ज्वर व्याप्यो घणो, नृपने तेह अथाह । मो० ॥ प जाणे दो कर ग्रही, ले जाउं मंदिरमांह ॥मो०॥ ॥ सा॥२॥ हां०॥ मूर्तीगत थयो राजवी, मोह बाण लागा असेच ॥ मो० ॥ विषयारसने कारणे; पडियो गडदापेच ॥ मो॥सा० ॥ २३ ॥ हां०॥ नृपने घाली पालखी, ले गया निज दरबार ॥मो॥ जाणें जमने मंदिरें, नृप गयो जाणे संसार ॥मो॥ ॥सा ॥ २४॥ हां ॥ पूरव जवनी वेरणी, वसंत सिरी दो नारि ॥ मो० ॥ चित्त हयुं हरिणाहीये, तृ पर्नु उतायुं वारि ॥मो०॥ सा॥२५॥ हां ॥ वैद्य बोलाव्या तिहां कणे, पकडी जुए बांह ॥ मो० ॥वै द्य बिचारा झुं करे, करक ते कालजामांह ॥ मो० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) ॥सा ॥ २६ ॥ हां०॥ आय उपाय करे घणा, टे की न लागे कोय ॥ मो० ॥ जेणें दीधी वेदना, दूर करेशे सोय ॥ मो० ॥ सा ॥ २७॥ हां ॥ जो जो करणी करमनी, नृप थयो ते असरात ॥मो० ॥ त्रीजा उन्नासनी ए कही, लब्धं चोथी ढाल ॥मो॥ ॥ सा० ॥॥ ॥दोहा॥ ॥ जाणा जोषी जाण जे, परबंधी कहे पाय ॥मु ख पोयां दूर रह्यां, जोर न चाल्यु काय ॥१॥ तिण समे मेहर मंत्रवी, फरि कीधो उपचार ॥ कोकशास्त्र तणे बलें, नृपने कस्यो करार ॥२॥ मेहरमंत्री जस लह्यो, नगरी विशाला मज ॥ वाह वाह सदु को क हे, मंत्री महोटो सकऊ ॥३॥ मेहर चिंते चित्तमें, नृपने न वली शान ॥ न वले ज्युं खटमासनी, पाध री पूंबडी श्वान ॥४॥ वली केताश्क दिन गया, पने करतां केलि ॥ वली नृप कामें व्यापियो, वसंत श्रीनी चढि वेलि ॥५॥ तिण अवसर नृप मंत्रीने, तेडाव्यो ते उष्ट ॥ ते पण आव्यो नृप कने, काल सेन ते कुष्ठ ॥ ६ ॥ प्रणमी नपने मंत्रवी, बेगे पासें मजीक ॥ नृप कहे मंत्री आगलें, सांजल मंत्री तीक। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) ॥ ७ ॥ प्यारी प्राण ते जे गइ, पिरसण यावि जिवा र ॥ तन मन सुध जुली गयो, मंत्री देखत वार ॥ ॥ ८ ॥ मन लाग्युं ते ऊपरें, जिम मन केतकी जंग ॥ तिम मंत्री तुं जाणजे, रह्यो मुऊ जिन तस संग ॥ ॥ लागी लगन ललना तणी, गुं कहुँ मंत्री तु ॥ लालच रहे मुफ तेहनी, सुण तुं मंत्री गुरू ॥ १० ॥ ते माटे मंत्री तुमें, कोइक करो विचार ॥ बल बल कल ते केलवी, मेलवो ते दो नार ॥ ११ ॥ मानिश . तुक उपगारडो, थाइश नही गुंण चोर ॥ जीवित सूधी ताहरी, ग्रहनिश राखिश होर ॥ १२ ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ थारे माथे पचरंगी पाग, सोनारो बोगलो ॥ मा रुजी ॥ ए देशी || हवे बोल्यो मंत्री ताम, कुटिल का लसेन ते ॥ साहेबजी ॥ तुमें सांननो स्वामी नाथ, 'प्रजाना पाल ते ॥ साहेबजी ॥ प्रभु गुं तुमें एहने ते डी, याघो गुण करो ॥ सा० ॥ निज घरनुं सघलुं सोंपी, यापोपुं गुं वरो ॥ सा० ॥ १ ॥ एतो गर्छनने जिम, गुरव रंगी देवो ॥ सा० ॥ तिम हरिबलने प्र मान, देइ जरा लेयवो ॥ सा० ॥ वलि गर्छन पासें शालि, नेजाव्यानी करो ॥ सा० ॥ ए तो पाइ दूध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) ने व्याल, उमेरो जनहरो ॥ सा० ॥ ॥ तुमें इणि परें राजन साचो, नखाणो मेलव्यो ॥ सा ॥ परदे शी अजाण ते उर्जन, श्वानने हेलव्यो ॥ सा॥ ए तो वेरी तुमचो प्रगट्यो, रुधिरने शोषवा ॥सा॥ तुम हृदये नारीनी काल ते, घाली दोषवा ॥सा॥ ॥ ३ ॥ ए तो ते माटे प्रनु, गतो वैरी बेदीयें । ॥सा॥ ए तो काल कंटकने वेदतां, धर्म न वेदीयें ॥ सा॥ ए तो गुं तुमें स्वामी, मोढे लगाडो एहने॥ ॥ सा०॥ ए तो कपटीमां शिरदार, में दीठो तेहने ॥ ॥ सा० ॥ ४ ॥ ए तो कपटें करीने काढी, लाव्यो नारी दो ॥ सा ॥ वली लाव्यो अखूट खजानो, धू ती सारी दो ॥ सा ॥ ए तो जाजो स्वामी महो टोने, जगनो चोर ते ॥ सा ॥ तुम आगें मारे मि ग, असंबंध जोर ते ॥सा॥ ५ ॥ ए तो प्रनु तुमें मा नी साची, जाणि सवी कही ॥सा॥ पण ढुं जाएं इणे कल्पित, वात करी सही ॥सा॥ ए तो एहनो शो विशवास, करो तुमें राजवी ॥ सा॥ ए तो एह ना खाधामां पाणी, न मागे ते मानवी ॥सा॥६॥ ए तो शीलंका शी लंका, गढना नाथनी ॥ सा ॥ ए तो समुश् ननंघी जावं, ते मुश्कल सायनी ॥सा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) ए तो जो जलमें गयो होत तो, पालो नावतो सा॥ ए तो महोटा मगरमह, मुखें गली जावतो ॥सा॥ ।। ७॥ तव आपणुं नाथजी महोटुं, जोर ते फावतुं ॥ सा ॥ ए तो आपणुं चिंतव्युं थावत, सघर्बु जावतुं ॥ सा० ॥ पण ए तो नाटक चेटक, करीने आवियो ॥ सा॥ ए तो नारीने चंडहास्य, खड्ग दो सावियो ॥ सा॥७॥ जिम श्वान अजाण्यो धा इने, रोटी ले गयो ॥ सा० ॥ वली काकतालीनो न्याय, उखाणो तिम थयो ॥ सा ॥ तिम आव्यो जाणजो हरिबल, लंका गढ जश् ॥सा ॥ तुम बागल फूल्यो ए वृक्ष, चोलो मोमर थइ ॥ सा ॥ ॥ए॥ए तो एहवा नरने मूकीय, स्वामी यमघरे ॥ ॥सा॥ ए तो काढीयें आनड डेट ते, दूरें नली परें ॥ सा ॥ ए तो हवे तुमें स्वामी माहरी, बुझे चाल शो ॥ सा० ॥ ए तो प्रनु तुमें शीघ्र दो नारी, साथें मालशो ॥ सा॥१०॥ तव नरपति जंपे सांजल, मंत्री माहरी ॥ सा ॥ हवे आज पढ़ें कदि आण न, लोपुं ताहरी ॥सा ॥ ए तो जेटली वात करी तें, मंत्री ते खरी ॥सा॥ ए तो चोकस बेठी माहरे, मनडे सहचरी ॥ सा ॥ ११ ॥ पण ते हवे मंत्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४ए) वात, घडो कोई अभिनवी ॥ सा॥ ए तो आपणुं जेहथी कार्य, सीके सुगुणवी ॥ सा ॥ ए तो हरिब लनो जे शव्य डे, ते काढो परो ॥सा॥ ए तो आप ऐ मंदिर रामा, दो यावे ते करो ॥ सा० ॥१२॥ तव मंत्री बोल्यो नृपने, प्रामी उष्ट ते ॥सा ॥ एह वातनुं बीईं उबूं बूं, दुं थइ पुष्ट ते ॥ सा ॥ तुम बुद्धि बताईं स्वामी, एहवी दिल ठरे ॥ ॥ सा ॥ ए तो जे बलथी नवि सीजे, काम ते कल करे ॥ सा॥१३॥ हवे ते माटे तुमें सना, मध्ये बेसीने ॥सा॥ तुमें यम नोतरवा हरिबल, मूको विह सिनेसा॥जव बीई बबशे दरिबल.ते चित्त राखरां॥ सा०॥ तव बाली जाली खाख, करीने नाखयुं ॥ सा ॥ १४ ॥ विण पशे अापणि दूर, विराध ते जा यशे ॥ सा ॥ तव शशिवयणी मृगनयणी, आप णी थायशे ॥ सा ॥ नवि शोने वायस कंठे, रयण नो हार ते ॥ सा ॥ ए तो तुम लायक नाथजी, नारि श्रीकार ते ॥ सा० ॥ १५॥ मन हरव्यो महि पति मंत्रिनी. वाणी सांजली ॥ सा ॥ ए तो जली बुद्धि बता ते, सुखदायीमां नली ॥सा०॥इम दो ज से मलीने परत, कस्यो नृप मंत्रीयें ॥ सा० ॥ यम नो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) तरवानो मिश करि, हरिबल यंत्रीयें। सा॥१६॥ म उमति दीधि नृपने, काल सेन ते ॥ सा ॥ हरिब लने चुकवा दो जन, रहे लय लीन ते ॥ सा ॥ पण एतुं न जाणे मूरख, दो जण खूट ते ॥सा॥ किण ग णे किणेकडणे,बेसशे ऊंट ते॥सा॥१७॥जीवलालचि यो थाकरि,बांधी मोहन।सापकोडा कोडी साग र सत्त्वर, लहे कुःख हनी॥ सा ॥ लाख चोराशी जीवा जोनिमें, जीव ते बहु रले ॥सा० ॥ पण तो हि पाप जोगवतां, साटुं नवि वले ॥ सा० ॥ १७ ॥ ए तो काटें काट वले जिम, लोहने नाजनें ॥ सा॥ तेम जीवने कर्मे कर्म, वधे सूसाजने ॥सा॥ ए तो पर निंदा परोह, करे जे आकरा ॥सा ॥ तेणें दीधां शिवपद बारणे, आडां झांखरां ॥सा॥ १७ ॥ ए तो कंचन कामिनी ए दो, सारु बापडा ॥ सा ॥ जीव बांधे निकाचित कर्म, गल्लीनां कापडां ॥ सा ॥ जी व नटके वार अनंती, नरक निगोदमां ॥सा॥ ए तो सूक्ष्म बादर थइ फरे, राज ते चौदमां ॥ सा ॥ २०॥ ए तो कंचन कामिनी सारु, जीव नंमाय ॥ सा० ॥ ए तो शहनव परनव चोर, थई दंमाय ३ ॥ सा० ॥ जिम मीनी देखे दूध, न देखे मांगडी ॥सा० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५१) ॥तिम जीव न देखे करणी, आगे अघलाकडी ॥ सा॥१॥श्म जाणतो जीव चेते नहिं, कर्मना जोर थी।सा॥ए तो ज्ञान क्रिया दो नवि गमे, कर्म को रथी ॥ सा॥म मंत्री बांधे निकाचित, कर्मने काल ते ॥सा॥ ए तो हरिबल उपर ष, धरे चंमाल ते॥ सा० ॥ २२ ॥ विण खुने मंत्रि वांसे थयो, दीशाशू ल ते ॥ सा॥ पण नृप मंत्रीना मुखमें, पडशे धूल ते ॥ सा॥ कोइ वा पापी बीहे नही, मंत्री व्याल ते ॥ सा ॥ पण अंतें जातां वहेशे, पाणी ढाल ते ॥सा॥ २३ ॥ ए तो साहिबने घरे जोतां,ले एक ने ॥सा॥ रूडी मीनो जोनारो, प्रनू नेक ॥सा ए तो काल प्रस्तावने योगें, करणी संजालशे सा॥ तव दूधने जलनो वेहरो, करि देखाडशे ॥सा॥४॥ एक समकित विना जे जीवने, घोर अंधार ॥साए निशि दिन घन घाती कर्मनो, नर्म वधार ॥सान पुद्गल परावर्तन काल, अनंतो ते करे ॥ सा ॥ जप तप क्रिया कष्ट करे ते, सवि निःफल वरे ॥ सा० ॥२५॥जेहने घट न्यंतर समकित, कर। ज्योत बे॥ सा०॥ तस अनुनव सुरमणि वंडित, सुख उद्योत डे ॥सा॥ तस जोगें ज्योति सरूपीनु, रूप ते उलखे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) सा० ॥ चिदानंद ते आनंदमें लहे, शिव सुख जिन लखे ॥ सा ॥२६॥ जेहनी करणी गुन महोटी, संसारमें ॥सा॥ तस वास कह्यो नगवाने, सुख या गारमें ॥ सा ॥ ए तो ढाल कही शुज पांचमी, त्री जा उन्नासनी ॥ सा ॥ एतो लब्धि कहे नवि सुण जो, आगे सुवासनी ॥ सा ॥ १७ ॥ ॥दोहा॥ ॥णि परें परत करी नलो,नृप मंत्री जण दोय॥ पहोता निज निज मंदिरें, चूप धरी मन सोय ॥ ॥१॥ बीजे दिन नृप मंत्रियें, किधी कचेरी सार । चामर बत्र बिराजते, बेगे तखत उदार ॥ २ ॥ त्रिश राजकुली मली, वड वडा ते सामंत ॥ खान उमराव ते आविया, परखदमें माहंत ॥३॥ ह रिबल पण तिहां बावियो, बेगे नृपनी संग ॥ एक ए गादी बिराजता, जाणे शशि रवि चंग ॥ ४ ॥ हवे नृप तेडु मोकले, वणिकनें घर घर सार ॥ महा जन समसत मेलियां, मूकी निज तलार ॥५॥ वड व खती व्यवहारिया, माही माना जेह ॥माही मति ने जेहनी, मलिया ते गुणगेह ॥६॥ दाने माने आगला, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) दीसंता जडधार ॥ धनद नंमारी सारिखा, राखे वड व्यवहार ॥ ७ ॥ ॥ ढाल बही॥ ॥सूदारण जायो दीकरो॥सोनागी हे॥आयो मास वसंत के॥लाल सोनागी हे ॥ ए देशी ॥ माहाजन साथें सहू मली ॥ सो० ॥ पहेरी जला शणगार के ॥सा॥ निज निज घरनां नेटणां ॥ सो॥ले आ या दरबार के ॥ ला॥१॥ श्रीवंत श्रीमंत सातशें ॥ सो० ॥ शंकर शंजु सगाल के ॥ला ॥ सूरचंद सूरो सूरजी ॥सो ॥ सोनागी सुंदर साल के ॥ ॥ला ॥२॥ मानो मीठो मालजी ॥ सो० ॥ मा एक मोतीलाल के ॥ला ॥ जेठो जगसी जीवो ॥ सो ॥ जगजीवन जगमाल के ॥ ला ॥३॥ थानो योनण थावरु ॥ सो ॥ नाणो जीमो जवा न के ॥ला ॥ कीको केशव करमसी ॥ सो० ॥ क व्याण करमी कान के ॥ला ॥४॥ दूदो देवो देव सी॥ सो०॥ दीपो दानो दयाल के ॥ ला ॥ प्रेमो प्रेमजी पोमसी ॥सो॥ पूरो ने पुण्य पाल के ॥ ॥सा॥५॥ नेणो नेगसी नागजी ॥ सो० ॥ ना थो नथमल नील के ॥ला ॥ रेवो रवजी रंगजी ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) . ॥ सो॥रांको रंगो रंगील के ॥ला ॥६॥ वाघो वेलो वालजी ॥ सो० ॥ वीरो ने वीरचंद के ॥ला॥ हेमो हीरो हर्षसी ॥ सो ॥ हंसो ने हरचंद के ॥ ॥ला ॥७॥ गोडीदास गलालजी ॥ सो०॥ गांगो ने गोपाल के ॥ ला ॥ गणजी गणेश ने गांगजी ॥ ॥ सो० ॥ गोविंद गोरो गलाल के ला॥ ॥ ख बो खीमो खेमजी ।। सो० ॥ खागोने खुशाल के ॥ ॥ला ॥ तारो तुलशी त्रीकमो ॥ सो ॥ त्र्यंबकने त्रिजुवन्न के ॥ला॥ए || शिवो सेवक श्यामजी।। ॥ सो॥ शामो ने शिवचंद के ॥ला ॥ सारो शिव शी शामजी ॥ सो ॥ साचो साकर लूंद के ॥ ला॥ ॥ १०॥ इत्यादिक व्यवहारिया ॥ सो०॥ मलिया माहाजन साथ के ॥ ला॥ नेट नली नृपने करी॥ ॥सो॥ बेता प्रणमी नाथ के ॥ला॥११॥ इणि परें सदु नगरी जमा ॥ सो०॥ मेव्या वर्ण अढार के ॥ला ॥ बेठी परखद सदु मली ॥ सो० ॥ नृपने करीने जुहार के ॥ ला ॥ १२॥ हवे नृप अवसर जोश्ने ॥ सो ॥ बोल्यो वयण विचद के ॥ ला॥ बीडुं यम आमंत्रवा ॥ सो ॥ मूके पंच समद के ॥ला ॥१३॥ रे सामंतो सजिलो ॥ सो॥ बीडं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५ ) ग्रहो तुम एह के ॥ ना० ॥ यमने नोतरुं देने ॥ ॥ सो० ॥ तेडी खावो तेह के ॥ ला० ॥ १४ ॥ वैशा ख शुदि पांचम लगें ॥ सो० ॥ तेडी लावे जेह के ॥ ॥ जा० ॥ माहरी रीऊ ते पामशे ॥ सो० ॥ मनोवं बित ससनेह के || ला ० ॥ १५ ॥ ते माटे बीडं ग्रहो ॥ सो० ॥ जेहमां होवे साच के । ला० ॥ जीवित लगें हुं तेहनी ॥ सो० ॥ पालीश सुपरें वाच के ॥ ॥ ला० ॥ १६ ॥ इम नृप वाणी सांजली ॥ सो० ॥ सना थई विल के ॥ जा० ॥ पर्षद मौन की रही ॥ सो० ॥ जाणे तेलमें बूडी मद के ॥ ला० ॥ ॥ १७ ॥ निज निज मुख सामुं जुवे ॥ सो० ॥ परषद थइ मन नूर के || ला० ॥ उपडे को नहिं जीनडी ॥ ॥ सो० ॥ जाणे गजे देवालो सिंदूर के | ना० ॥ ॥ १८ ॥ परषद जाणे मन्नमें ॥ सो० ॥ ए शुं बोल्यो राय के || जा० ॥ देखी पेखी यम घरें ॥ सो० ॥ क हो किम तिहां जवराय के । ला० ॥ १९ ॥ सहि तो ए परजले सहि ॥ सो० ॥ नृपनी दृष्टि फरेय के ॥ ला ॥ लूंटी धनने लेयो ॥ सो० ॥ यमनुं मसलूं करेय के । ला० ॥ २० ॥ खागें तो नृप जाणतो ॥ ॥ सो० ॥ मिनि कंकण पहेयां केदार के || ला० ॥ , Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) पण काम पडे मीनी मुंषकने ॥ सो॥ मुनने मिश करे संहार के ॥ला ॥१॥ ए दृष्टांत ते नृपें क यो । सो०॥ मांझयो बिडानो ए पास के ॥ ला॥ कोश्कनी ते फरी दिशा ॥ सो० ॥ लुसी मुसी लेशे तास के ॥ ला ॥ २ ॥ श्म समजी मनमें रही । ॥ सो० ॥ सदु परजा मौन धरेय के ॥ ला० ॥ स्व र्ग मटा मट जोइ रही ॥ सो ॥ पण उत्तर कोइ न देय के ॥ला ॥ १३ ॥ तव नृप बोल्यो घरकीने ॥ ॥ सो० ॥ ए तो लमणे नृकुटी चढाय के । ला॥ ग्रास खा तुमें अम तणा ॥ सो॥ हवे बेठा कान ढलाय के ॥ ला ॥ २४ ॥ जो अम ग्रासनो खप क रो॥ सो०॥ तो तुमें ग्रहो बीईं एह के ॥ला ॥ नहितर को मारग ग्रहो ॥ सो० ॥ अन्य मूलकनो होय जेह के ॥ ला॥ २५॥ इणि परें नरपति बोलि यो।सो॥ थरकी परखद त्यांहि के आला ॥ चम क्यां सदुनां शीश ते ॥ सो ॥ नप मूकशे के यम ज्यांहि के ॥ला ॥२६ ॥ मावित्र द्ये फुःख बोरुने ॥ ॥ सो० ॥ कहो तस कुण राखणहार के ॥ ला॥ वाड जो गलशे चीनडां ॥सो०॥ कहां होवे तास पुकार के ॥ला ॥ २७ ॥ हवे सुणजो नवियण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) तुमें ॥ सो॥ जे बोलशे मंत्री काल के ॥ला॥ ए कहि लब्धि बही सही ॥सो॥ एतो त्रीजा नन्ना सनी ढाल के ॥ ला॥७॥ ॥दोहा॥ ॥अवसर लहि कालसेन ते,बोल्यो तव कर जोडि ॥ अरज सुणो प्रनु माहरी, कहुँ तुम आलस बोडि ॥ ॥१॥ यम नोतरवा नाथजी, बीडं ग्रहावो जेह ।। देखत मरवा कुण ग्रहे, मरणर्नु बीडं एह ॥२॥ बोरनुं बीट जे नवि लहे, जाणे ते यम्म ॥ गज पाखर जंबुकशिरें, नाखी स्वामि तुम्म ॥३॥ देव रूप जे मानवी, तेहनां ए काम ॥ शुं जाणे शश कीडलां, यम राजानुं गम ॥ ४ ॥ आगे काम सुधा रियां, लंका केरां जेह ॥ ते जाशे यम तेडवा, हरि बल ने गुणगेह ॥ ५ ॥ साहासिक शिरोमणी, संघ ले कामें सज ॥ वीरबल केरो पुत्रडो, ते करशे तुम कऊ॥६॥ इणि परें परखद देखतां,महा उष्ट ते काल॥ शीशथी चरण उतारीने, दूर रह्यो ते व्याल ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सातमी॥ काली ने पीलीवादली राजिंद ॥ए देशी॥ हवे हरि बलने नृप कहे, लाला सांजल जीवन गुज ॥ यमरा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) जाने तेडवा, लाला सोंपुं ए बीडुं तुऊ ॥१॥ पंथी डारे यमपंथ पंथें वहे तुं वेगें हो प्यारा साल ॥ए आंकणी ॥ माहीं काज सुधारवा, लाला तुज विण बीजुं न कोय ॥ स्वारथीया सदु को मल्या, लाला रोटीतोडा तुं जोय ॥२॥५०॥ जगदीश जेहमें साच जे, लाला पाने ते निजवेण ॥ परछुःख नांगे जे पल कमें,लाला साचा कहिये ते सेण ॥३॥ पं० ॥ वयण विलुज्ञ मानवी, लाला अगनी ऊंपे.समशान॥दो पखें उजाल दाखवा, लाला तन मन करे खुरबान ॥४॥ पं०॥ शिर ढे एक वयणथी, लाला रूंडी नमी गाल ॥ सुख दुःख न गणे मन्नमें, लाला वयण तणा प्रति पाल ॥५॥५०॥श्रेणिक ज्युं वयणे करी, लाला पर गावी निज धीय ॥ मेतारज मातंगने, लाला कीधो जमाइ जीय ॥ ६ ॥५०॥ तेमाटे हरिबल तुमें, लाला बीडं ग्रहो ए पान ॥ वैशाख शुदि पांचम लगें, लाला तेडी यम घरे बाण ॥ ७ ॥५॥श्म नृपवाणी सां नली, लाला हरिबल चिंते ताम ॥ जो नाकारो ढुं करूं, लाला तो न रहे मुज मान ॥ ७ ॥ पं० ॥ जा मगरी सलगाडीने, लाला उष्ठ रह्यो ते दूर ॥ जरी गोलिमें कोश ते, लाला नाखी नृपनी हजूर ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५ए) ॥पं०॥ कोक नवनो नीमड्यो, लाला मंत्री वैरी व्या ल॥मरणतुंबीडं ग्रहावता,लाला कीधो महोटो जंजा ल ॥ १० ॥६॥ तो झुं थयुं प्रनु माहरो, लाला जो ने पाधरो तेह ॥ तास पसायें कालने, लाला जीव थी टालुं देह ॥ ११ ॥ पं० ॥ तो मुजरो खरो माह रो, लाला जग सर चाले वात ॥ महिषी नीत ते म दिषीने, लाला पाईने करूं ख्यात ॥ १२ ॥ पं० ॥ एम विचारी चित्तमें, लाला हरिबल उठ्यो त्यांहि ॥ नृपने प्रणमी हाथरों, लाला बी९ ग्रयुं ते उडांहि ॥ ॥ १३॥॥ तव परजा कर जोडीने, लाला विनवें त्यां महिनाथ ॥ हरिबलने उगारीयें, राज बांह करी दो हाथ ॥ १४ ॥ राजनजी रे अम वयण वि शेषे मानो हो राज प्राणाधार ॥ एआंकणी ॥ कटकी कीडी उपरें, राज तृण पर ज्युं कूतार ॥ ते उखा यो नाथजी, राज मेलो ते निरधार ॥ १५॥रा०॥ ए परदेशी पाहुणो, राज आव्यो वायु ऊकोल ॥ आप णी नगरी जमाडीने, राज देखाड्यो रंग चोल ॥ १६ ॥रा ॥ ते नरने किम दूवियें, राज गुण ग ण रयण करंग॥ देव करीने प्रजी राज होवे लान अ खंग ॥ १७ ॥ राणा ते माटे तुमें नाथजी, राज दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०) जें वंबित दान ॥ प्रजा मली सदु वीनवे, राज मा गे एतुं मान ॥ १७ ॥ रा॥ ए बी९ यमदूतर्नु,राज यो बीजाने जोय ॥ तुम सुखने जे वांडशे, राज करशे काज ते सोय ॥ १ए ॥ रा० ॥ परियागतना माल जे, राज खाता हशे तुम जेह ॥ ते किम पा बा देयशे, राज काम पडे पग तेह ॥ २०॥ रा० तव नृप रीष चढाइने, राज बोल्यो नृकुटी चढाय ॥ रहो अणबोली परज ते, राज समझो नही तुमें कांय ॥ २१ ॥रा ॥ तव परजा बानी रहि, राज समजी ते मनमांहि ॥ विण खूटे नृप कोपियो, रा ज सुगुणने करशे यांहि ॥ २२ ॥रा ॥ ये नृप पर्जने शीखडी, राज करतो क्रोध अपार ॥ याव्यो चांपलदे शिरें, राज मालव केरो नार॥ २३ ॥रा॥ ए नखाणो दाखवी, राज पर्जने कीध विदाय ॥ वि लखी थश्ने परज ते, राज उठी मन उलझाय ॥ ॥ २४ ॥ रा० ॥ चहुटे चढुटे चाचरें, राज मलीयां लोक अनेक ॥ टोलें टोलें सदु मली, राज करतां वात विवेक ॥ १५॥ रा ॥ कहे केतांक मानवी, राज नृप बिगड्यो स्त्री देख ॥ राखे हरिबल नपरें, राज ते लालचथी क्षेष ॥ २६ ॥ रा ॥ कहे केता Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१ ) इक मेंतजो, राज कालसेन विनिष्ट ॥ साची जूठी ते करे, राज काग परें ते उचिष्ट ॥ २७ ॥ रा० ॥ नृप मंत्री दो पापीया, राज महोटा दीठा कुजात ॥ हरि बलने दुःख देयशे, राज युग लगे रहेशे बात ॥ २८ ॥ रा० ॥ इणि परें साजन सहु मलि, राज वार्ता थोकें थोक ॥ करता हाहारव करे, राज सघली नगरीनां लोक ॥ २५ ॥ रा० ॥ पण जो प्रभु बे पाधरो, राज मटशे दुःख जंजाल ॥ लब्धि कहे इम सातमी, राज त्रीजा नल्लासनी ढाल ॥ ३० ॥ रा० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ दवे हरिबलने नृप कहे, सांजल तुं मुफ जीव ॥ पंथ ग्रहो यम राजनो, पहोंचो जेम सदीव ॥ १ ॥ तव हरिबल बोल्यो दसि, सांजलो स्वामी सूल ॥ कामें शे ते व्यावशे, शिवने न चढे फूल ॥ २ ॥ तिम तुम कारजमें प्रभु, पाठो देशे कूपण || दशरा अश्व न दोडियो, कुरा देशे वश तू ॥ ३ ॥ सेवक जे साचो दशे, ते तुम करशे काम || ढील रखे तुम जाता, धीरज धरजो स्वाम || ४ || एम कही उठ्यो तुरत, हरि बल करी प्रणाम || बीडं ग्रही यमदूतनुं श्राव्यो ते निज धाम ॥ ५॥ निज नारी दो यागलें, हरिबलें मागी ११ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) शीख ॥ यमने नोतरवा नणी, जावुं बे सहि इव ॥ ६ ॥ नृपनुं कारज साधवा, बीडं ग्रयुं वे एह ॥ यम तेडी नृप मंदिरें, यावी सोंपूं तेह ॥ ७ ॥ ते माटे तुमें शीख द्यो, तुमें बो चक्कु दोय ॥ होशे मेलो पुष्यथी, लिखित जो पानें होय ॥ ८ ॥ ए मंदिर सोंपूं खं, तुम दो नारी ह ॥ दान सुपात्रें पोषजो, करजो पुण्य कय ॥ ए ॥ देव गुरु समरी सदा, धरजो नव पद ध्यान || पूजा नक्ति प्रभावना, करजो रहि साव धान ॥ १० ॥ कुल मर्यादें चालजो, धरजो श्री जि नधर्म ॥ करजो नज्ज्वल पक्ष दो, राखजो निज गृ ह नर्म ॥ ११ ॥ शीख जलामण इलि परें, निज ना रीने की ॥ पंथ जणी संबाहिने, गमन जणी पग दीध ||१२|| पियुनां वयण ते सांजली, नारी दो अकु जाय ॥ जाणे रंजा ढलि पडी, तिम नारी मूर्द्धाय ॥ १.३ ॥ ॥ ढाल प्राठमी ॥ ॥ राम जो हरि उठीयें ॥ ए देशी ॥ चेतन लहि नारी तदा, पल्लव पियुनो ते साही रे || गदगद कंठ स्वरें करी, कहे नारी यहि बांही रे || गृहमें रहो तुमें वाह रे, म करो मरणनो राह रे, बो प्रतिम सुख बा हू रे, लीजें जोबन लाह रे, होवे ज्युं नारी उछाह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६३) रे, होवे गजबनो घाह रे, नारीनो कुण नाह रे ॥१॥ ॥प्रीतम प्यारा रे सांजलो ॥ ए आंकणी ॥ नाह वि दूणी ते नारीने,न गमे वात सोबाह रे॥ जीवित सुधी धखती रहे, जाणे इंटनो दाह रे ॥ लागे रोमें रोमें दाह रे, विरहनी जाल असाह रे ॥ पीडे मदन थ थाह रे, न रही शके ते क्यांह रे ॥२॥प्री० ॥ ए सुख मंदिर मालियां, नरियां ले धन धान्य रे ॥ कंत विना ते कामिनी, जाणे अणुं ते धान रे ॥ न दिये को तस मान रे, सूकां जिम तरुपान रे, कोह्या काननुं श्वान रे, जाय तिहां लहे अपमान रे,श्म स्त्री विरही ते जाण रे ॥३॥त्री० ॥ दे दोष कुमरी दो दे वने, श्यो तुझ कीधो अपराध रे, विण खूने मुज कंत ने, यमगृह मूके असाध रे, शी तें कीधी ए व्याध रे, काढि ते को नवनी दाध रे, पाडे वियोग अगाध रे, पीडे संतने साध रे ॥ ४ ॥ प्री० ॥ तेहने मुख म हिपुत्री पडो,जेह पाडे ने वियोग रे ॥ गण्या दिनमा ते नाथजी, कां नथी लेतो बलिनोग रे, जाये सघ लाना रोग रे, नांगे मनना ते सोग रे,जाणे ज्युं सघ ला ते लोग रे ॥ ५॥प्री० ॥ कंत विना ते विजोग खी, पामे कुःख अपार रे ॥ विरहानलनी ते बाफ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) मां, सीजी रहे तनसार रे, होवे बबूलाकार रे, खावे थावे ते गर रे, जावे कोने आगार रे, नव दे शकुन श्रीकार रे, धिग ते.स्त्री अवतार रे, जीवती निधन ते भार रे॥ ६ ॥जी॥ विरहिणी नारीने कंतर्नु, ध्यान रहे तस जीव रे ॥ तंउलम परें कर्मने, बांधे निकाचि सदीव रे, शमतारस नवि पीव रे, मोहनी कर्म अतीव रे, जीवतो उर्जन थाजीव रे, चिन्ह ए विरही लदीव रे ॥ ७॥त्री॥ एणि परें प्यारी के तमे,कहे वाली ससनेह रे॥ नयणें जलधर वरसती, जाणे नाश्व मेह रे, रहो प्रीतम तुमें गेह रे, म ददो सुरंगी देह रे, नोगवो तन धन एह रे, पामी पुण्यनी रेहरे ॥७॥प्री०॥ हरिषज कहे दोय प्यारीने, नांखी अमृत वाण रे ॥ म करो मन कोइ सोच ना, तुमें बो जीवन प्राण रे, आंखनी कीकी समान रे, पण नृपनी ते बाण रे, बीडुं प्रयुं में ते जाण रे, होवे ज्यु कोडि कल्याण रे, तुमें बो घरना मंमाण रे,म करो खांचा ए ताण रे,अमें पंथी केकाण रे, करवु शीघ्र प्रयाण रे ॥ए॥ सांनल गोरी रे मा हरी॥ए श्रांकणी ॥ एम कही मही चालीयो, रो तो मूकी ते नार रे, नृपर्नु वयण ते पालवा, श्राव्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५) वहि दरबार रे, नृपने कीथ जुहार रे, कहे मी ति णि वार रे, करो तुमें चिता तैय्यार रे, म करो दीन जगार रे, सुणी नृप चि मकार रे, पाम्यो हर्ष धपा र रे, तेडाव्यो ते तलार रे, चिता विरचायी साररे ॥ ॥ १० ॥ सां० ॥ दरिबल बले नृप कारणें ॥ ए बांक ली | अगर चंदन काउन।, रचना चयनी ते कीध सुगंध इव्य से होमतां, नृप करे मनोरथ बीध रे, जाणे रमणी ने रिद्ध रे, प्रभुयें मुफ्ने ते दी रे, थइ मुऊ पुण्यनी वृद्ध रे, आजथी वंडित सि ॥ ११ ॥ ह० ॥ हरिबल चय सुधी खावीयो, पहेरी वस्त्र विशाल रे ॥ खंगें नूपल शोजतां, पहेयां जाक जमाल रे, कीधां तिलक ते जाल रे. करमां श्रीफल जाल रे, जोवे मनुष्यनी माल रे, प्रगटी चयनी ते जा मरे, दीसंती महा विकराल रे ॥ १२ ॥ ० ॥ ति समे सागर देवता, हरिबल समरे ले चित्त रे ॥ तत कृष्ण जलनिधि नाथजी, धान्यो सुपरें करि हीत रे, जायां सयल चरित रे, बोल्यो सुर थइ मित्त रे, हरि बल मननो पवित्त रे, राखजे अविचल चित्त रे ॥ #. १३ ॥ ६० ॥ एम कही सुर ते समे, हरिबल सम क रूप रे ॥ नृपजन यादि ते देखतां बेो चयमें ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) चूप रे, जन सदु देखे सरूप रे, जलतो मही अनूप रे, हरख्यो मंत्री ते नूप रे, पण ते पडियो नवकूप रे॥१४॥हा॥हरिबल बलतो जन देखिने, सय ला थया दिलगीर रे॥ हा हा करता ते मानवी,रोवे याकंद वीर रे, नयणें वहे नदी नीर रे, वहियां जल निधितीर रे, सऊन मन लहे पीर रे, न रह्यां मन कोश्नां धीर रे ॥१५॥हा होमी काया ते जालमें, चरणथी शीश सराड रे॥ त्रट त्रट त्रटके तन चा मडी, कट कट कटते हाड रे, नट नट नटके ते ना ड रे, हरखे नृपने किराड रे, रोवे मृग वनजाड रे, रोवे पंखी पहाड रे ॥१६॥हा॥हरिबल बलता नी जाल ते, लागी नन लगें चोट रे॥श्याम थयुं नन ते थकी, दीसे कालो ते धोट रे, रविरथने पण दोट रे, दीधीजालें ते फोट रे, थयो रवि आकरोनोट रे, वरुणें अरुणनी उँट रे, वरसे अगनीनो गोट रे, थयो ते दिनथी तपकोट रे ॥ १७ ॥ ह ।। इणि परें वैक्रिय रूप ते, हरिबलन करी त्यांहि रे ॥ कारिमो हरिबल जालियो, जोतां खिण एकमांहि रे, नस्म करी सदु साही रे, जन कहे मांहो मांहि रे, थयो अक राकर ज्यांहि रे, रहे, न घटे ते हि रे, देखत थ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६७ ) न्याय याहि रे ॥ १८ ॥ ६० ॥ नस्म थइ जे चिता तणी, बांटी जलयुं ते लाय रे ॥ जलशरणें करी जस्म ते, हरख्या मंत्रीने राय रे, काढ्युं शल्य ते प्राय रे, रमणी रि६ दो खाय रे, हवे मुक वंबित थाय रे, वाहवा मंत्रीनुं नाय रे, जली तें बुद्धि उपाय रे, इम जपतां घर खाय रे, यानंद अंग न माय रे ॥ १९ ॥ ह० ॥ फिट फिट करे नृप मंत्रीने, सघला नगरीनां लोय रे ॥ श्रमरपटो कोण लावियो, यावर मरकुं सदु कोय रे, गुं ले जाशो ते दोय रे, थिर धन रामा नवि होय रे, जावुं मूकीने सोय रे, चुं कीधुं ते जोय रे, एम कहे लोक सकोय रे ॥ २० ॥ ६० ॥ पुरजन सद्रु वव्यां मंदिरें, मुखमें अंगुलि देय रे ॥ धर्मीजन धर्म रागथी, हरिबलनुं दुःख जेय रे, कीधा उप वास ते केय रे, व्रत पञ्चरकाण धरेय रे, केहि जप माला जपेय रे, कर्मना बंध कटेय रे, वंडित सुख लहे रे ॥ २१ ॥ ० ॥ सागरदेवें मया करी, हरि बल कीधो लो रे ॥ जइ मूक्यो निजमंदिरें, जिहां बे नारी दो जोप रे, हरखी नारी दो चूप रे, विरहा नलनी गइ हूंफ रे, ययुं मन शीतल कूप रे, दंपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) इंच ज्यु कप रे, त्रीजा उल्लासनी चूंप रे, बातमी ढाल अनूप रे,लब्धि कहि निर्वाणरूप रे ॥शाह॥ ॥दोहा॥ । तटिनीनाथनो नाथजी, मनगुं थइ सुप्रसन्न ॥ हरिषस मूकी मंदिरें, पहोतो निज आसन्न ॥ १ ॥ जो जो नवियां पुण्यथी, हरिबल केरी ख्यात । देशे परदेशे चली, प्रबल ए पुण्यनी वात ॥ ३ ॥ दया सहित पुण्य जे करे, पामी मनु अवतार ॥ इह नव परनव-सुख घणां, पामे ते निरधार.॥३॥नेद कह्या नव पुण्यना, गणंगसूत्र मकार ॥इव्य जावथी सां धतां, सहियें सुख संसार ॥ ४ ॥ अन्न उदक वस्त्र सयण जे, शाला धर्म विशाल ॥ नमवू मण वय कायथी, ए नव पुण्य रसाल ॥ ५ ॥ जस घर पुण्य सखायी दे, तस घर लीलविलास ॥ शक्रपरें थश्नोगवे, रमणि शदि सुवास ॥६॥श्म जाणी नाविक तुमें,नि सुणी पुण्य प्रनाव ॥ हरिबलनी परें साथजो, प्रगटें पुरवसे नाव ॥ ७ ॥ ते नावें बेसी करि, तरी नव दधितीर ॥ ज्योतिरूप जगदीश जे, तेहमें करीयें शीर ॥ ७ ॥ परतख देखो पारिखं, लोक कहे श्रारख्या त॥ पोसार्नु परतखपणु, दल पामे परमात ॥ ८ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥ ढाल नवमी ॥ ॥माहारी सहि रे समाणी॥ ए देशी॥ पांचे दें दान प्रकाश्युं, केवलीये जे आरव्यु रे ॥ नवि ते पुण्य कहिये ॥ साते खेत्रे जे इव्य वावे, सुरूत करणी उपावे रे ॥ १॥ न ॥ श्रीजिन मंदिर बिंब नरावे, पुस्तकें ज्ञान लखावे रे ॥ न ॥ साहामीवबल नाव धरीने, जे करे चाह करीने रे ॥ ॥ ॥ श्रीजिनकेरी भक्ति करेवा,रुत पाप हरेवा रे नि॥ वध बंधनादिक जीव बोडावे, करुणा श्राशी नावे रे॥३॥ ज० ॥ शेजादिक तीरथ जात्रा, जे करे निर्मल गात्रा रे ॥ ॥ परियागतनां नाम रखावे, संघवी तितक धरावे रे ॥॥न ॥ तप जप सं यम ज्ञान क्रिया दो, पाले करि मरियादो रे ॥न॥ नप विवहारथी व्रत पञ्चरकाण, जे करे चतुर सुजाण रे॥ ॥ ॥ इत्यादिक शुज करणी नाखी, स घली ए पुष्पनी साखी रे ॥नाइव्यथी नावथी जे फरे करणी, ते नरे पुण्यनी जरणी रे ॥६॥ ॥ इव्य स्तवथी बारमे स्वर्ग, नपजे सुर उपवर्गे रे॥०॥ नाव स्तवथी केबल नाणी, अ बरे मुक्ति ते प्राणी रे॥७॥ ॥ व्यथी श्राशी पणे जे करणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) करे ते लहे रिक्ष रमणी रे ॥ ॥ जे करे जावथी करणी निराशी, होवे ते ज्योति विलासी रे ॥ ७ ॥ ज॥ पुण्यथी हरि हर सुर नर इंदा,हलधर चक्री जि वंदा रे ॥०॥ त्रिशठ शलाका पुरुष कहावे,उत्तम प दवी पावे रे ॥ ए॥॥ ते नव सिदि जिनवर जांखे, शिव पदनां सुख चाखे रे ॥ न ॥ देव दा नव पण सदु वश थावे, अरियण सवि गलि जावे रे ॥ १० ॥॥ अष्ट माहा नय कदिय न देखे, नि जय सघले चेखे रे ॥ ज० ॥ इति नपश्व रोग न हो वं, पातक सघना रखाव रे ॥११॥नम् ॥पंचमेस घले बोल सुबोला, वाधे जसतरु मोला रे ॥२०॥ सूत्र सिद्धांतमें २ नर चावा, दुधा ते पुण्यरा नावा रे ॥१॥ न०॥ ते नावाथी नवोदधि तरीया, नप शम रसथी नरीया रे॥नम्॥ अन्यंतरनी गांव विडो डी, शिवरमणी वरी दोडी रे ॥ १३ ॥ ज ॥स वा कोडी साधर्मी जमाडी, समकित शुरु जगाडी रे॥ ॥ नए ॥ श्री जरतेसरदर्पण गेहें, केवल लडं ते नेहें रे ॥१४॥ ॥ कयवन्नो वत्ती धन्नो वखाण्यो, शालिनश्नोगी जाएयो रे । न०॥ ते पण दान प्रनावथी तरिया, संजम नारी वरिया रे ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७१ ) ॥ ज० ॥ इत्यादिक अवदात सुणीने, नवि व्यो ते गु ए चूणीने रे ॥ ज० ॥ तुमें पण इणिपरें सूत्र सिद्धां तें, जवियां चढशो विख्यातें रे ॥ १६ ॥ ज० ॥ गुरु उपदेश सुणीने नवियां, जुन हरिबल चित्तमें वि यां रे ॥ ज० ॥ तो ते जीवदयाने प्रजावें, मन वं छित फल पावे रे ॥ १७ ॥ ज० ॥ जीवदयाथी दधि पति मलियो, दुःख दोनागथी टलीयो रे ॥ ज० ॥ रमणि द्विनो थयो जुगतारी, चिहुं दिशें लाज वधा री रे ॥ १८ ॥ ज० ॥ धीवर जातमां थयो अवतारी, थयो शुद्ध समकितधारी रे ॥ ज० ॥ गुरु उपदेशें जीवदयाथी, थयो जिनधर्ममां हाथी रे ॥ १ ॥ ॥ देव प्रजावें नृपजन दृष्टी, बांधी ज्युं करी मुष्टी रे ॥ ॥ ज० ॥ कारिमो हरिबल जलतो देखाडी, निजगृह मूक्यो उपाडी रे ॥ २० ॥ ज० ॥ गुप्त रहे निज ना री दो संगें, सुख विलसे ते अनंगें रे ॥ ज० ॥ निज मंदिरमें साते खेत्रे, वावरे इव्य सुपात्रे रे ॥ २१ ॥ ॥ ज० ॥ नृपजन जाणे मी न जीवे, यममंदिर ज‍ रीवे रे ॥ ज० ॥ पण हरिबलने पुण्य प्रमाणें, जन सदु नयरी वखाणे रे ॥ २२ ॥ ज० ॥ हवे तुमें सुणजो आागल प्राणी, वारता अमिय समाणी रे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) ॥०॥ पुण्य प्रनावथी अतिहे विशाला, होशे मंग जमाला रे ॥ २३॥०॥ गुरु परंपर सोहम स्वा मा, दुधा मुफ अंतरजामी रे ॥ज ॥ तस पाटें गु रुहीर सूरिंदा, उपजे तेज दिणंदा रे ॥२॥5॥ तस शिष्य धर्मविजय धर्मधोरी, निशिदिन जरे पुण्य 3री रे ॥ ॥ तस शिष्य धनहर्ष झानना दरि या, कवि जनमें अनुसरिया रे ॥२५॥न लस शिष्य कुशतविजय कविराया, जैनमारग दीपाया रेन ॥ तस लघु बंधव आज्ञाकारी, कमलविज य जयकारी रे ॥ २६ ॥ ज०॥ तस शिष्य सक्सी विजय गुणगेही, श्रुत चारित्रना नेही रे॥जा तस शिष्य केशर अमर दो नाता, पंमित जनने विख्याता रे॥२७॥०॥ तस पद किंकर लब्धि कहावे, ह रिवलना गुण गावे रे ॥०॥ उत्तम नरना ते गुण गातां. बांधियें पुस्यना खातां रे ॥॥जगात्रीजो उनास कस्यो ए पूरो, नव ढालें ते सनूरो रे ॥जा सम्धे कही ए वारता मीठी, जेहवी शास्त्रमा दीती रे। एन० ॥ इति श्री जीवदयापरे हरिबलच रित्रे पुण्याधिकारे तृतीय उल्लासः संपूर्णः ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७३ ) ॥ श्रथ चतुर्थ वल्लासः प्रारभ्यते ॥. ॥ दोहा ॥ ॥ शांति सुधामय चंद ज्युं, सोहे शांति जिणंद ॥ दुःख तिमिर दूरें हरे, देवे मन सुख वृंद ॥ १ ॥ तस पदपंकज हुं नमुं, नित्य नठी परजात ॥ केवल कमला पामियें, देखियें विश्व विख्यात ॥ २ ॥ सुखदायी वर सरसती, वरसति वचन विलास ॥ कविजन घटमें चंद ज्युं, करती बुद्धि प्रकाश ॥ ३ ॥ ते बाला त्रिपुरा नमुं, विनवुं बे कर जोडि ॥ मुफ मन मंदिरमें बसी, पूरो वंबित कोडि ॥ ४ ॥ कोविद केशर अमरना, चरण कमल नमि तास ॥ हरिबल मी रायनो, प नणं चोथो उल्लास ॥ ५ ॥ वेधक रसिया जे दुवो, ते सुजो इक मन्न ॥ हरिबल गुण सुणतां थकां दोवे पावन कन्न ॥ ६ ॥ दवे नृप जाणे मन्नमें, दरिबल की बार ॥ काढयुं राज्य जीवित लगें, उपनो दर्ष अपार ॥ ७ ॥ दो नारी मुऊ अपबरा, प्रनुयें दीधी हुब || तो हुं जइ सफलुं करूं, मुऊ जीवित सुकयत्र ॥ ८ ॥ इम जाणी ते सज थयो, मदनवेग ते राय ॥ वज्री सम ते नृप थयो, चूवा चंदन लगाय ॥ ए ॥ को नवि जाणे राजमें, तिम चाल्यो घरी धारा ॥ रज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) नथ घडि दो समे, पहोतो मी खावास ॥१०॥ दू रथी नूधणी यावतो, वसंतसिरीयें दीव ॥ ज्ञान करी निजकंतने, हरिबलगृह में प३४ ॥ ११ ॥ एटले महिपति यावियो, दो नारीनी पास ॥ कुमरी तव नवी तुरत, खासन याप्युं तास ॥ १२ ॥ खागत स्वागत घणि करी, मुखथी साकर घोल || कर जोडी दो उजी रही, कारिमो करी रंगचोल ॥ १३ ॥ कामिनी कहे महि नाथने, केम पधारया स्वाम ॥ ते कारण मुऊने कहो, खोली मन अभिराम ॥ १४ ॥ हृमणां पियु गयो य म घरे, राखवो लोकाचार | अध्यवसाय जे मन त या, कही पहोंचो दरबार || १५ || मुऊ मंदिर स्वामी तुमें, श्राष्या हो महाराय ॥ पण मोशीने घर वाघ लो, कहो ते केम समाय ॥ १६ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ मेंदी रंग लागो । ए देशी ॥ तव हर खित थइ रा जवी रे, बोल्यो ते मदनवेग || विषयी वसुधाता ॥ कोइक पुण्यना योगयी रे,थयो तुमचं गुन नेग ॥ १ ॥ वि० ॥ जव आव्यो हुं मंदिरें रे, तुमचे नोजन काज ॥ वि० ॥ मोहनी लागी ते थकी रे, ते जाणे जिनराज ॥ २ ॥ वि०॥ जगमां बे नारी घणी रें, पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७५ ) तुमची नावे जोड | वि० ॥ तुम सुघडाइ देखीने रे, वाध्यो मोहनो बोड ॥ ३ ॥ वि० ॥ ते दिनथी नवि वीसरो रे, दो नारी तुमें चित्त ॥वि०॥ जीव रहे चरणां बुजें रे, तुमचे विहड हीत ॥ ४ ॥ वि० ॥ ज्युं धरे ध्यान जोगीसरा रे, तिम धरूं तुमचो ध्यान ॥ वि० ॥ सास उसासमें सांजरो रे, शत वार तुम गुण थान ॥ ॥ ५ ॥ वि० ॥ ते गुणनो लीनो थको रे, थाव्यो बुं धरी हूंश ॥ वि० ॥ एहमां जूठ न जाणजो रे, सत्य कहुँ तुम सूंस ॥ ६ ॥ वि० ॥ कां न करशो शोचना चतुर तु गुणधाम ॥ वि० ॥ वाली सुधारस सां मली रे, यो मन सुख अभिराम ॥ ७ ॥ वि० ॥ सन धन जोबन पामीने रे, लीजें मनुनव लाह ॥ वि० ॥ पामी अवसर नूलशे रे, तस रहेशे दिन दाह ॥ ८ ॥ वि०॥ यौवनवथ सुख पामीने रे, जे नही माणे पूर ॥ वि०॥ वममां कुसुम तणी परें रे,ते रहेशे मन फूर ॥ ॥९॥वि॥ जीवित सूधी तुम तणुं रे, पालगुं निशिदिन वेण ॥ वि० ॥ हरिबलनी परें राखनुं रे, तन मन क रीने सेा ॥ १० ॥ वि० ॥ तुम श्रम व कोइ वातनो रे, वहेरो न राखियें कोय ॥ वि०॥ मुक मन प्राणनि कुंज में रे, राखुं तुमने दोय ॥ ११ ॥ वि० ॥ माहारी roll Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६ ) बती जे राजनी रे, आजभी सोंपी तुम्म ॥वि० ॥ जो तुमें चापशो हेत रे, ते सही जमनुं अम्म॥ १२ ॥ वि० ॥ कोइ बातें दवुं नदी रे, मादरी करीने जी द ॥ वि० ॥ सवलुं कमल हवें धरी रे, जाव रह्यो मुज गीह ॥ १३ ॥ वि० ॥ इम नारी दो यागलें रें, नृप कहे मूकी मान ॥ वि० ॥ कामातुर थइ खाकलो रे, खोई सघजी शान ॥ १४ ॥ वि० ॥ धिग धिग काम विटंबना रे, धिग धिग मदनविकार ॥ वि० ॥ सुर नर नारी यागलें रे, नवि रहे लका लगार ॥ १५ ॥ ॥ वि० ॥ कामें के नर बेतस्या रे, कहेतां नावे पार ॥ ॥ वि० ॥ काम वशें मल कूपकें रे, पड्यो ललितांग कुमार ॥ १६ ॥ वि० ॥ कामवरों थयो नारकी सोनी सुवनकुमार ॥ वि० ॥ हास्य प्रहासाकारणें रे, पहोतो दरीया पार ॥ १७ ॥ वि० ॥ कामिनी यागें ईश्वरु रे, नाच्या ते निःशंक ॥ वि० ॥ काममां बूड्या बापडा रे, कुण ते रांक ने ढीक ॥ १८ ॥ बि० ॥ उत्तम मध्यम गीतमां रे, गावे ते पण काम || वि० ॥ नर नारीनां जोडलां रे, गावे उच्चव ठाम ॥ १९ ॥ वि० ॥ कामिनी कामना कूपमें रें, बूड्यो सदु संसार ॥ ॥ वि० ॥ केवलरयणने खोजवा रे, दीवो कामकुमार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) ॥२०॥ वि०॥ श्रेणिक रायनी रागिणी रे, चीलणा रूप अपार ॥ वि० ॥ ते देखी शिष्य वीरना रे, ख ती चनद हजार ॥१॥वि०॥ वलि जुन श्रेणिक रायन रे, रूप अनोपम सार ॥ वि०॥ निरखी ते वीरनी चेलकी रे, वली बत्रीश हजार ॥ २२ ॥ वि०॥ समवसरणे अशुचिता रे, थइ ते जाणी ताम॥वि०॥ वीरें दीधी देशना रे, मन प्राण्यां तस ठाम ॥ २३॥ ॥ वि० ॥ मत को कोई नेतं गयो रे, म करो निंदा कोय ॥ वि० ॥ त्रस थावर सवि जीवने रे, विषयनी संज्ञा होय ॥ २४॥ वि०॥ निशिदिन रहे जस धा खना रे, कामिनी काम विकार ॥ वि० ॥ मरण लही ते प्राणीया रे, जीवे एकेंदि मजार ॥ २५ ॥ वि०॥ कामिनी रस आगलें रे, त्रिजग रहे थ दास ॥ वि०॥ तो शो मदनवेगनो रे,आशरो कहीयें तास ॥ २६॥ ॥ वि० ॥ धन धन ते नव्य जीवने रे, जे रह्या का मथी दूर ॥ वि० ॥ ढुं बलिहारी तेहनी रे, प्रणमुं चढते सूर ॥ २७॥ वि०॥ चोथा नन्नासनी एकही रे, पूरण पहेली ढाल ॥ वि० ॥ लब्धि कहे जवि सांजलो रे, बोले दो कुमरी बाल ॥ २७ ॥ वि०॥ १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७८ ) ॥ दोहा ॥ ॥ नृपनी वाणी सांजली, बोली कुमरी ताम ॥ ए गुं बोल्या नाथजी, असमंजस विष काम ॥ १ ॥ महो टी मतिना बो धणी, एशी कीधि प्रकन ॥ वि तेडें स्वामी तुमें, थाव्या थइ वेकल्ल ॥ २ ॥ एम न कीजें नाथजी, ढोकरवाली मत्त ॥ विए कहे कोई गेहमें, नवि पेसीजें ऊत्त ॥ ३ ॥ ए तो काम बे लंग्नुं, जेहमें जांगे जार ॥ ते करणी एहवी करे, करवा नरगमे सार ॥ ४ ॥ परणी धरणी जे दुवे, तेहने चढावो पाड ॥ खाशे ते खमशे प्रभु, रहेवा द्यो ए लाड ॥ ५ ॥ परदुःख जंजन राजवी, ए बे तुम्म बिरुद्द | परनारी सहोदरु, ते किम ढंगो हद ॥ ६ ॥ बुं परजा में तुम तणी, बेटा बेटी समान ॥ ण घटती ए वातडी, केम करो राजान ॥ ७ ॥ वाहार जोइयें जिहांथकी, तिहांथी आवे धाड ॥ कहो ते कुण श्रागल कहे, जे निज दुःखनी राड ॥ ८ ॥ थाबला जाणी ए कली, जाएयुं ते माखी म६ ॥ शुं जाणीने यावी या, लेवा रमणी क६ ॥ ए ॥ कंत विदूणी कामिनी, जायुं ते महिराण ॥ पण मुऊ मनडुं हाथ बे, तेणें बुं सपरा ॥१०॥ लोक नखाणो पण कहे, जो होय · Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) हैय्युं हाथ ॥ काम दुवे तो चिहुं दिशे, जय धिंगा साथ ॥११॥ एक तो माहरा कंतने, मूक्यो जम घर अऊ ॥ वली झुं करवा आवीया, थइ नकटा निर्लज ॥१॥ तुमें तो महारा तात बो, एवा म कहो बोल॥ सो वातें एक वातडी, सती न चूके तोल ॥ १३ ॥ एहवां वयण ते सांजली, प्रगटी नृपने जाल ॥ क्रोधा नसनी बाफमां, सीफि गयो ततकाल ॥ १४ ॥ ॥ ढाल बीजी॥ ॥तुं तो पाधलं बोल शीपाश्डा ॥ ए देशी ॥ तव खी ज्यो नूप जराडो,जिम आगे हाथी हराडो, बोल्यो थलाडो रे.दो कुमरी रोष धर। खरो। तुम सजिलो दोय सहेली, तुम लेखg मोहनवेली, चालो थवे हेली रे, मुफ मंदिर महेल मूकी परो ॥ १ ॥ तुमें पा धरु बोलो राजनजी, तुमें वांकुं म बोलो राजनजी, नारी पीयारी रे, राजनजी थाहरी को नही । सेना विद्रणी जाणी, पण मनथी बु सपराणी, नांखे श्म वाणी रे, दो कुमरी नृपने मुखें रही ॥ २ ॥ तु ॥ तुम मन तो रहेशे दूरें,अम जाण्यं थाशे सनरें, नांखे मद पूरें रे,नृप कामातुर थइ घणो ॥ नृप याकुल व्या कुल थाय, जिम जल विना मब तडफाय, देखी तव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) थाय रे, दो कुमरीन रूप सोहामणुं ॥३॥तु॥ वली जंपे ते महिनाथ, तुमें सांजलो कुमरी साथ, कुंची तुम हाथें रे, मृगनयणी दीधी में आजथी॥तुमें कहे शो ते विध करगं,तुम आतमकमलमें धरगुं;मन सुख वरशे रे, मारी मृगानयणी लाजथी ॥४॥तु॥ तव जंपे कुमरी वयणां, तुमें सांजलो नरपति सयणा,दृष दयं रयणां रे,राजनजी नहीं जांगे सही ॥ ए तो जो फरे पथिवी सारी, ए तो जो फरे ध्रुनी तारी, तो पण नार। रे,नरपतिजी न फरे सतं। कही ॥५॥तु॥ तव जंपे महिपति एम, बल बांधो मुफY केम, कहोजी ते जेम रे,बल बांधो बो ते शे गजे॥ तव कुमरी बोले ह सती, नृप सांजलो कहुँ तुम रसती,राखो मन वसती रे, महिपतिजी प्रनु सदु नजे ॥६॥ तु०॥ फरी जंपे वली नृप ताम, नथी प्यारी हग्नुं काम, जोरें करी धामें रे, मुज मृगानयणीले चर्बु ॥ तव शुं करो तुमें यहां जोरो, तुम ना तोडी तोरो, ते बल फोरो रे, मुफ आगल गोरी केटलुं ॥ ७॥ तु०॥ तुम प्रीतमने करी कपटें, में बाल्यो अगनी ऊपटें, तो झुं मन लपटे रे.करी बारने जल शरणे करीमुकदासीने दीधो मार, मुफ नूषण राख्यां सार, नाव्यां मुफ लारें रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) तव में ए दाऊ काढी परी ॥ ८ ॥ तु० ॥ मुऊ यागल हवे किहां जाशो, तुम करणी तुमेंहिज पाशो, मा क घणुं थाशो रे, जिम तस्कर संधि मुखें ग्रहे ॥ जो मुऊने करशो राजी, तुम राखिश होनिश ता जी, रहेशो तुमें गाजी रे, गंजी मुफ चित्तशुं वहे ॥ || || तु । यहि यागें मेडकुं जेते, हरि यागें मृग जाय केते, जाय कहो केतें रे, बाऊ खागें चडकली दोडीने ॥ ति म तुमेंहीज नामिनी जोली, तुमें रहेशो यांख्यो चोली, जाशो किहां रोजी रे, मुऊ यागलें िंग ते बोडीने ॥ १० ॥०॥ तव कुमरी जांखे बोल, नृप दीसो बो फूटा ढोल, निगुण निटोल रे, वडा दीसो बो कोई तुमें ॥ क हे कुमरी रीषें नंनेरी, जिम कूदे कही वळेरी, नाखुं नस वेरी रे, नरपतिजी बुं अबला में ॥ ११ ॥ तु ॥ के चुं नृप दियडो फूटो, के शुं तुम जगदीश रू ठो, के शुं कां खूटो रे, तुम सासोसास हतो जिके ॥ तुमें शुं नृप आप वखाणो, तुमें अबलाएं मत ताणो, अबलाथी जागो रे, के हाखा नर बलीया तिके ॥ १२ ॥ तु ॥ तुमें सुलो परदेशी राजा, जे हनी हती महोटी माजा, तेहनी ते नार्या रे, सूरीकं तोयें नख देश दयो || वली जितशत्रु महिनाथ, हतो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) परजनी महोटी बाथ, राणी नरी बाथ रे, पियु ना ख्यो जलनिधिमें सुण्यो ॥ १३ ॥ तु० ॥ ए तो इत्या दिक नर बलीया, पण नारी आगलें गलीया, तो गुं तमें बलीया रे,अम आगल नरपति शुंबको॥अम च रित्रथी को नवि जीत्यो, त्रीजगने नाख्यो चीतो, सु र नर खूतो रे, स्त्री आगल को नवि जक्यो ॥१॥ ॥ तु ॥ सिम साधक जे होय जाण, तेहनां अमें चुकवु गण, एकादश गुणठाणे रे, अमें पाईं तिहाथी नरजणी ॥ अमें जातें 5 स्त्री नूंमी, अमें चालती नरकनी कूमी, लु अमें हूंमी रे, ए तो चाल ती नव दंमक तणी ॥ १५ ॥ तु० ॥ तेमाटें नृप तु म आ, अमें कूडं कदिय न जां, चपटीमें नाखू रे, नमाडी खो नहि जडे॥अमें सतोय न चुकुं गई, अमें दीठो ते बाराद्धं, बीजो न चाहुं रे, नरपतिजी सुरगिरि जो पडे ॥ १६ ॥ तु० ॥ तुम करवू दोय . ते करजो, धन लेई पोतुं जरजो, पण में तुम वर ज्यो रे, ए तो पहेलो दासी आवी हती ॥ तव में तस काढी कूटी, जिम घरथी हांकी फूटी, दासीने में लूंटी रे, में मूकी तुम घर दी बते ॥ १७ ॥ तु० ॥ तुम असिबल म्यानमा राखो, तुम बल तुम स्त्रीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) दाखो,बांधी मूठी राखो रे, नरपतिजी मत लेडो कोई ने ॥ तुम कुल मरजादायें चालो,जिम सुखें मंदिरमा मालो, मूको तुमें ख्यालो रे, नरपतिजी परस्त्री जोश्ने ॥ १७ ॥ तुं० ॥ तव सांजली नरपति कोप्यो, को धारुण अनिमें रोप्यो, कामें करी लोप्यो रे,नृप विर हानल दाजी गयो ॥ तव नृपनी उर्मति हाली, मुख कुमरीने कर जाल, कीधीनृपें काली रे, दो कुमरीयं षी थयो ॥ १७ ॥ तु० ॥ तव कुमरी रोषे दाधी, नृपने तिहां काढयो बांधी, जकडबंध बांधी रे, नृप नाख्यो उंधे मस्तकें ॥ ये गडदा पाटु प्रहार, करे मुद्द गरना प्रहार ॥ दासी मली मारे रे, ए तो नपने जबड जस्त के ॥ २० ॥ तु०॥ नृप पाडे बदुली चीस, कहे तोबां मुख जगदीश, कुमरी ते रीचे रे, ए तो नृपना पाड्या दांतडा ॥ वली रोडे नृपनी मूब, फल लेतो जा तुं जुन्छ, कुमरी दो पूढे रे, नृप किहां गयुं बल तुम जातडा ॥ २१ ॥ तु० ॥ ए तो कुमरीयें नृपने रांक, कस्यो पूरो कुंदीपाक, काने पडीधाक रे, सुन कारें नृप चढयो हेडकी॥ कुमरी हणे नृपने तमाचे, तेतो हरिबल केरी साचें, गारुडीथी नाचे रे, ए तो फणिधर माथे देडको ॥ २२ ॥ तु० ॥ नृपने करो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) घणो नपसर्ग,नृप जाणे पडीयो नर्ग, स्त्रीजन ते वर्ग रे,नृपपाणी उताओँ खरं ॥ कहे कुमरी कर जोडी, नृप बोल्यो मान संकोडी, मूको मुज बोडी रे, हुँ आज थी अनीति नहिं करुं ॥ तु० ॥ इम करतां थयो प रजात, जाणीधीवरें सघली वात, महीनी जाती रें, हुँ पाम्यो स्त्री मरयादनी ॥ ए तो चोथा उनासनी मीठी, कही शास्त्रमें जेदवी दीती, लब्धि लखी चीही रे, कही बीजी ढाल संवादनी ॥ २३ ॥ तु० ॥ इति ॥दोहा॥ ॥ श्म करतां ते प्रह थयो, वाज्यां मंगल तूर ॥ ऊलरिना कपकार तिम, प्रगट्या उगते सूर ॥ १ ॥ दीन वचन नरपति कहे, कुमरीने कर जोड ॥ हुँ अ पराधी तुम तणो, तुं मुफ बंधन बोड ॥२॥ हुँ मूरख तुमयुं थयो, सतीशुं घाली बाथ ॥ जेहवी करि ते हवी लही,१६ पणानी बाथ ॥३॥ जाणगुं तो घणी ए थइ, कीजें करुणा सार ॥ गुप्त पणे जाउं गृहे, जि म रहे लोकाचार ॥ ४ ॥ वांको चुंको ढुंहतो, पड्यो कुबुदि क्षेत्र॥ कुंदीपाक दे खरो, कीधो पाधरो नेत्र॥ ५॥ सतीयोने दुःख दाखवी, जे कीधो अपराध ॥ ते तुमें खमजो मातजी,हुँ बुं तुम सुत साध ॥६।। इत्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) दिक वचनें करी, रीझवी कुमरी दोय ॥ बंधनथी हो ड्यो परो, मदनवेग नृप सोय ॥ ७ ॥ गुप्त पणे नृ प तिहां थकी, आव्यो निज गृह मद्य ॥ मुख पो थावी आवियो, निगुण थइ निलऊ ॥ ७॥ जिम कोठीमें मुख घालीने, रोवे तस्कर मात ॥ तिम नप रोवे मन्नमें, जे लह्यो प्रचन्न घात ॥ ए॥ जाण्यं हतुं सुख माला, दो प्यारीनी साथ ॥ लेणेथी देणे पडी, खाली पडीनरी बाथ ॥ १० ॥ जे नर मूरख बापडो, देखी परायो माल ॥ लेवा जाये दोडीने, ते थाये पे माल ॥ ११ ॥ ते करणी नृपने थइ, मनमें रहियो फूर ॥ मुख दीवाली दाखवे, वहे मन होलीपूर ॥ १२ ॥ रमणीथी मन वालीयु, मूकी ममता दूर ॥ राज काज नृप चालवे, दिन दिन चढते नूर ॥१३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥धा समरथ पियु नानडो॥ ए देशी॥हवे कुम री दो कंतने,कहे कर जोडी सुणो सुलतान ॥ सजनी नृपने काढयो कूटीने, जिम हांकोटी काढे श्वान ॥१॥ सांजलो प्रीतम माहरा, तुम परसा वाध्युं जोर ॥ ढिंक पाटूना प्रहारथी,मजबुत काढयो ज्युं करी ढोर ॥ २॥ सां० ॥ जीवित लगें नृप जाणशे,खटकशे निशि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८६) दिन कालजे साल ॥ निराशी थर दीन ते मारनी, पूंजी ले गयो माल ॥ ३ ॥ सां॥ साजी हलदर फट कडी, सेववी पडशे मास बेचार ॥ मम्म अशेलीयो, खाशे त्यारें थाशे करार ॥ ४ ॥ सां०॥ इत्यादिक श्रवणें सुगी, हरिबल नारीनां करय वखाण ॥ सुकुतीणी साची तुमें,पणधारी में दीठी सुजाण ॥५॥ सांनलो प्यारी माहरी ॥ एकणी ॥ तुमें दो बात म जीवन प्राण ॥ आंखनो कीकी हो तुमें, तुमें बो महोटां घरनां मंमाण ॥ ६ ॥ सां० ॥ कुलवधूनां ए चिन्ह , पियुगुं राखे मनह पवित्त ॥ कष्ट पडे के ३ नातिनां, तो पण सतीय न मूके सत्त ॥ ७ ॥ सां० ॥ सत्य वडं संसारमां, सत्यथा वरशे जग ज लधार ॥ सत्यथी पथिवी थिर रहे, धूतारी रहे सत्य आधार ॥ ७ ॥ सां० ॥ सुरगिरि पण रहे सत्यथी, सत्यथी शशि रवि चाले आकाश ॥ दृथिवी पण फ ले सत्यर्थी, वपसनार अढार नन्नास ॥ए । सां० ॥ वज व्यापार चाले बहु, ढुंमी चाले देश प्रदेश ॥ ते पण सत्यथी जाणजो, त्रिजग कयुं सत्य विशेष ॥ १० ॥सांगावली केवल सत्यने,त्रिगडे बे सी करेय प्रकाश ॥धर्मनुं मर्म ते सत्य ,सत्यथी पामे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) ज्योति निवास ॥११॥सां॥ नर नारी सोहे सत्यथी, सत्यथी माने सदु संसार ॥ सत्यथी चूके जे मानवी, नव दमक लहे ते निरधार ॥ १२॥ सांग ॥ शिरनामें लखे कागलें,साडी चम्मोतेर यांक जे दोय॥तेहमें पण जन पंमितें, सत्य तराव्युं लोकमे जोय ॥ १३॥सां॥ सत्य मत बोडे मित्र तुं, चोगडे लबी चोगणी होय ॥ सुख फुःख रेखा दो कर्मनी, टाले पण न टले होय ॥ १४॥सां॥णि परें पण लौकिक मतें,सत्यथी पामे सु खनी रेख ॥ मानवी चूके जो सत्यथी,तो लहे मुख नी रेखा देख ॥१५॥सांग॥ सतीया सत्त न बोडीयें, सत्त बोडे पत जाय ॥ सत्तनी बांधि लही ते, आवे सन्मुख धाय ॥ १६ ॥सांग ॥ नूदेव नामें विजय यो, तेणें न मूक्युं सत्य लगार ॥ दश दोकडा नृप दानथी, सत्यथी लह्यो ते अखुट नंमार ॥१७॥ ॥सांग ॥धण कण कंचण पामीयें, ते पण सत्य तणो परजाव ॥ मनवंडित महिला मिले, सतिय शिरोमणि गुम सुनाव ॥ १७ ॥सांग ॥ शोल सती थइमोटकी, ते पण अद्यापी गवराय ॥ सत्य जो राखे आपथी, जिनवर ते पण सूत्रे चढाय ॥१॥सां०॥ त्रेशठ शिलाका पुरुष ते, सत्यवादी थया थाशे अने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) क॥श्म जाणी प्राणी तुमें, राखजो पूरो सत्य वि वेक ॥ २० ॥ सांग ॥ इणि परें हरिबलें नारीने, सत्य उपर देई दृष्टांत ॥ कामिनी दो हरखित करी, दंपती मांदोमां हरखात ॥ २१॥ सां० ॥ सुखें समाधे दंप ती रहे, निज मंदिर मांहे उहाह ॥ दो गुंडक सुरनी परें, पंच विषय सुख जोगवे त्यांह ॥ २२ ॥सांग ॥ निज मंदिर रहेतां थकां, जव थयो पूरण एक मास ॥ तव हरिबल चित्त चिंतवे, निकलुं किंगमें मनने उ लास ॥ २३ ॥ सांग ॥ नृपने ते जडी शीखडी, फरी पानी सर सांधे न सोय ॥ पण मंत्री कालसेन ते, एवं कीधी ते न करे कोय ॥ २५ ॥ सांग ॥ जो जग दीशनुं चायुं ,तो करूं कालकंटकने दूर ॥ बाली जा ली ते बारने, लेइ जना ते वहेते पूर ॥२५॥सां॥ विण अपराधे मो परें,अहनिशि करतो खेद अथाह ॥ नृपना कान नंनेरीने, मुजने मूक्यो यमने ठगह ॥ ॥ २६ ॥ सां० ॥ तो हुँ खरो ए मंत्रीने, नृपने हाथे कराईं बार ॥ शल्य काढुं याखा जमतनुं, मो मननो पण काढुं खार ॥ २७ ॥ सांग ॥ हणतागुं हणीय सही, तेहनु पाप न गणीये काय ॥ जेहवी देवी ते हवी पातरी, एम उखाणो जगा कहाय ॥ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए) ॥सां०॥ ए मुझयें कामिनी, कालने बाल्यानुं जे का म ॥ काल नूंमो ने संसारमां, कालथी बिगडे केदिनां ठाम ॥२ए ॥ सां० ॥ श्म जाणी हरिबल तिहां, स मखो सागरसुर उजमाल ॥लब्धि कहे गुन सत्यनी, चोथा उनासनी त्रीजी ढाल ॥ ३० ॥ सां० ॥ इति॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे हरिबल हरखें करी, समस्यो सागर देव ॥ ते पण ततखिण आवियो, कहो वह किम समरेव ॥ ॥१॥ तव हरिबन कर जोडिने, सुरने कहे सोहाह॥ कालसेन कम जातिने, यो तुमें अग्निमांद ॥२॥ शल्य काढो प्रनु माहरु, जिम लढुं सुख नरपूर ॥ वि ए खूने मुझने नडे, तेहने टालो दूर ॥३॥ हरिब लनी वाणी सुणी, थयो तव सुर परसन्न ॥ हरिबल केरी कांतिमें, संक्रम्यो सुर तस तन्न ॥४॥ दिव्यां बर पहेरी करी, पहेरी नूषण चंग ॥ दिव्य रूप हरि बल तणुं, की सुरसम अंग ॥ ५॥ हरिबल पासें सुर करे, वैक्रिय बीजुं रूप ॥ नन मारगथकी उतरी, श्रावि दो बेटे नूप ॥६॥ चमत्कार चित्तमें सही, हरखित परखद सार॥ हरिबलने देखी तिहां,मलिया बांह पसार ॥७॥ नृप मंत्रीने प्रगटीयुं, महोटुं कुःख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3 200) अपार ॥ जिम रोगीने दीजीयें, चांदा उपर खार ॥ ॥ ८ ॥ हरिबलने बाली परो, जलमें नारखी बार ॥ ते किम पाठो खावीयो, कुशलें करि शणगार ॥ ए॥ हरिबलने सही लख्यो, मदनवेग ते राय ॥ श्रागत स्वागत नृप करे, बेठा प्रणमी पाय ॥ १० ॥ पूढे नृप हरिबल प्रतें, कहो यमराजनी वात ॥ शीशी हकी गत लाविया, कुण ए तुम संघात ॥ ११ ॥ ॥ ढाल चोथी ॥ ॥ रंगरों रसीयो रे, फूल गुलाबरो हे सुंदर ॥ ए देशी || हवे हरिबल नृपने कहे, सांगली प्राणाधार हे ॥ जेवी नोपन तेहवी कहुं, तुम यागल सार हे ॥ १ ॥ रंगनी रे तमने रे, जांखं ते सांजलो ॥ ए यां कणी ॥ जव थ करुणा तुम तणी, कीधो में अगनी प्यार हे ॥ तव तुम कारणें नाथजी, देही दही करी बार है || २ || रं० ॥ ततखिण तुम परसादथी, पहोतो ए स्वर्ग मजार हे ॥ इंड्पुरि श्रवणें सुणी, दी वी नजरें श्रीकार हे ॥ ३ ॥ ० ॥ ते पुरीना ना थजी, केतां कीजें वखाण हे ॥ तेजें फलामल जल कती, जाणे कोडी गमे कग्या जाल हे ॥ ४ ॥ रं० ॥ पंचरंगी रतने करी, बत्रीश लाख विमान हे ॥ लघु ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ ) जोजन सदनां, नवि नवि नातिनां जाण हे॥५॥०॥ तेहमां एक विमान ले, पण चनलस्क प्रमाण हे ॥ को रणी धोरणी शी कढुं, सोहमवासीनुंगण हे॥६॥२०॥ तेह विमानें शोनता, ने महोटां चन हार हे ॥ तेहमें चार दक्षिण दिशे, ने तिहां यम दरबार हे ॥ ७ ॥ ॥२०॥ स्वर्गपुरी हूँ इणि परें, जोतां महोटां मंमाण हे॥ तेह सनामां दुं गयो, जिहां बेगे यमराण हे ॥ ॥ ॥ २० ॥ सुर असुर नर खेचरा, मेली परखद तत्र हे ॥ न्याय अन्याय खीर नीर ज्युं, बेटो करे यम यत्र हे ॥ ए॥२०॥जे ते यम नडवाथकी, बीहे इंदने चंद हे ॥ ब्रह्मा विष्प महेश्वरा. देव दाणव दि णंद हे ॥ १० ॥ २० ॥ कुण राणा कुण रांकने, स दुने गणे एक पाड हे ॥जे जेहवी करणी करे, तेहनां ते पूरे लाड हे ॥ ११॥ २० ॥ लौकिक मतें यम रा नो, कहे सदु सूरय तात हे ॥ शनि यमुना ना बहेन , श्रीसंग न्यात समात हे ॥ १२ ॥ २० ॥ धर्माणी तस नार्या, पट्टराणी तास हे ॥ असवारी तस महिषनी, चं प्रचंम दास हे ॥ १३ ॥२०॥ बल ने माहाबल जाइ दो, ए ने यमना पूत हे ॥ ज नक सवार दो बेटडा, चलवे घरनां सूत हे ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१ए) ॥ २० ॥ दो मंत्री यमरायना, काल अने माहाकाल हे ॥ चित्र विचित्र दो दफतरी, पुण्य पाप लिखत विशाल हे ॥ १५ ॥ रंग ॥ उनीयां जे करणी करे, सुकत फुकत देख हे ॥ चित्र विचित्र ते मामिने, दा खवे यमने लेख हे ॥ १६ ॥ २० ॥ ते करणी यम देखीने, ये दुनियाने शीख हे ॥ सुकतने सुख दाखवे, मुकतने दे नीख हे ॥१॥९॥ इति उपश्व जगतने, मीना जे रोग हे ॥ काल उकाल ते जे पडे, ज्वरना मेलवे जोग हे ॥ १७ ॥२०॥पूर्वज व्यंतरी व्यंतरा, वलगे ते सनमुख हे ॥ ए सवि करणी यम तणी, 5 नियां जे लहें कुःख हे ॥१॥रं ॥ रूसे जो यम जगतने, दाखवी नारकी घात हे ॥ तूसे तो यम ने हरां, आपे ते सुख शात हे ॥२०॥रं ॥ जोरो घ जो यमराजनो, कहेतां नावें पार हे ॥ यमनो वि चार विशेष ले, नगवतीमांहे विस्तार हे ॥ १ ॥ ॥रं ॥ लौकिकने मते जे सुणो, तेह में दीतो सत्य हे॥ तेह सनामें दुं गयो, यमने करी प्रणिपत्य हे ॥ ॥ ॥२०॥ ततखिण यमें मुज उलयो, अवधि झानें सार हे ॥ देव शक्ति करी मुझने, फरी दीधो अवतार हे ॥ २३ ॥॥ नौतन काया माहरी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०३ ) मुजने जीवित दीध हे ॥ २४ ॥ ० ॥ श्रागत स्वागत घणि करी, मुकने ते धर्मराज हे ॥ सोऊ समाचार तुम तपा, पूढे ते यमराज हें ॥ २५ ॥ ० ॥ तव में तिहां कर जोडीने, यमने करि अरदास हे ॥ श्राव्यो ढुं एक राजथी, तेडवा तुम उल्लास हे ॥ २६ ॥ ० ॥ विशाला पुरनो धणी, मदनवेग ते राय हे ॥ अंग जने परणाववा, व महोटो कराय हे ॥ २७ ॥ || रं० ॥ देश देशावरि राजवी, मेलशे महोटा राज न हे ॥ वैशाख शुदि पांचम दिनें, परणशे पुत्र रत न्न हे ॥ २७ ॥ ० ॥ ते माटे तुम तेडवा, मूक्यो बे मु याज हे ॥ तुम यावे प्रभु जगधणी, वधशे म होटी लाज हे ॥ २५ ॥ ० ॥ इलि परें अरज ते सां नली, बोल्यो यम ततकाल हे ॥ चोथी चोथा उल्ला सनी, लब्धि कही ए ढाल हे ॥ ३० ॥ ० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हर खित थइ यमराजजी, बोल्यो मुखथी मि ष्ट ॥ यम कहें हरिबन तुम धणी, वे मुफ मननो इष्ट ॥ १ ॥ पण तुम नृप मुऊ मंदिरें, जो श्रावे इक वार ॥ त्यार पढें मुऊ आववुं थाशे तव निरधार ॥२॥ अवली गंगा जो वहें, तो मुकथी प्रवराय ॥ डुनियां १३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) माने मुजने,करि परमेसर गय ॥३॥ तेमाटे हरिबल तुमें, कहेजो नृपने एम ॥ एक वार मुज मंदिरें,आवो ज्युं करि तेम ॥ ॥ जो सेवक साचो दुवे, तो ले नगरी साथ ॥ शीघ्रगते तुम आवजो, मदनवेग महि नाथ ॥ ५॥ मुफ मंदिरनी रसवती, कबुल करेशो आय ॥ तव तुम मंदिर चाहिने,आवीअमें धाय॥ ॥६॥ एह संदेशो अम तणो, हरिबल कहेजो तु म्म ॥ तुम नृपने अम तेडवा, मूकुं ए नृत्य अम्म ॥ ७ ॥ वलि तुमें शाता पूजो, कहेजो अम्म जु हार॥जो आशा करो अम तणी,आवजो सर्ग मकार ॥॥ एम कही सनमानिने, पहेरावी शणगार ॥ वो लावी अमने वव्या, यमराजा हितकार ॥णा देव प्र जावें ततखिएँ, जोतां एक पलक्क ॥ तुम पासें अमें आविया, जोई सर्ग हलक्क ॥१०॥ यमनृपनो ए नृत्य , आसोम नामें सनूर ॥ आमंत्रण करवा नणी, याव्यो तुम्म हजूर ॥११॥ इणिपरें हरिबलें मामीने, कह्या संदेशा जाम ॥मदनवेग राजी थयो, ते निसुणी अनिराम ॥ १५॥ तिणे अवसर तक जोश्ने, सुरने कीधी शान ॥ सुर बोल्यो जमनो थर, सांजलो तुमें राजान॥१३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९५) ॥ ढाल पांचमी॥ ॥ फतमलनी देशी ॥ नरपति सजिलो माहरी वा ण, आसोमन वेधक कहे ॥ना ने जगमें यमराण, त्रिजग आणा शिर वहे ॥ १ ॥ न० ॥ तेणें मुफ तु म संग, मूक्यो तुम आमंत्रवा ॥न॥राखी मने बहु रंग, चालो तुमें स्वर्ग यंत्रवा ॥शान॥ मनमें घणी होंश,मिलवा तुम यम नाथने ॥न॥ दीधा घणा संस, वेगें पधारो ले साथने ॥ ३॥ न० ॥ मंत्रि प्र मुंख परिवार, तुम नगरीमें जे होवे ॥ न० ॥ व्यो तुम साथ विस्तार, सुरलोक नर नारी जोवे ॥ ४ ॥ न ॥ तुम मन वंबित होय, रमणी हि दो पावशो ॥ न ॥ अजरामर पद जोय, सो पण लहेशो जो यावशो ॥ ॥ न ॥ म करो ढील लगार, शीघ्र था तुमें जूधणी॥ न ॥ यम नृप तुमगुंजी प्यार, राखे ये एकंगो तुम नणी ॥ ६ ॥ न ॥ इणिपरें सुर ते वदंत, हरिबल शाखा नेदथी । न॥ सांजली मन हरखंत, यमना संदेशा नमेदथी ॥ ७ ॥ न० ॥ धन घडी धन मुफ दीस, यमझुं थयो मुफ नेहलो॥ ॥ न० ॥ सज थइ विशवावीश, यम कने जाउं जो वेहलो॥ ७ ॥ न॥ पूबी यमने संदेश, मननी ब्रांति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) टालुं परी || न० ॥ यमचं वधारी नेह, अमरपएं ते लहुँ खरी ॥ ९ ॥ न० ॥ नगरमां पडही वजाय, घरोघर लोकने नोतस्यां ॥ न०॥ नर नारी हर्ष नराय, यमघर जावाने परवस्था ॥ १० ॥ न० ॥ निर्धन वि रहिणी नार, बालरंगादि दो जागिया ॥ ० ॥ जाणे जम दरबार, जाइने थइयें सोना गियां ॥ ११ ॥ ०॥ वां जीया वांढा बेकार, दुःखीया स्त्री सुत कारणें ॥ ॥ न० ॥ ते पण नमह्या अपार, जावाने यम बा रणें ॥ १२ ॥ न० ॥ रोगीने दुःखीया जेह, लुला दूं टा ने पांगला ॥ ० ॥ कोढीया काला तेह, काणा कों चाने प्रांधला ॥ १३ ॥ न०॥ बाल तरुण जे वृद्ध, सऊ ययां मोकर मोकरी ॥ न० ॥ अमर पदवी पर सिद्ध, जे खावो यमने नोरो करी ॥ १४ ॥ न० ॥ इक इकनी माहोमांहे, उपरा उपर पडी वहे || न० ॥ जावाने स्वर्ग वाह, जमण लाडु खावा गह गहे ॥ ॥ १५ ॥ न० ॥ इणिपरें नगरीनां लोक, यमनणी जावाने हलफले ॥ न० ॥ नृप पण यम सारु ढोक, लेने नृप पण नीकले ॥ १६ ॥ न० ॥ अंतेवरी पण साथ, नृप संगें करी परवरी ॥ न० ॥ नेटवा ते य मनाथ, त्रीश नृपकुली संचरी ॥ १७ ॥ न० ॥ धक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १९७ ) मक करतां रें एम, नागर जन सहु संचयां ॥ न० ॥ हरिबल ने सुर तेम, ते पण साधें नीसखा ॥ १८ ॥ ॥ न० ॥ तिल जेटलो नहि माग, एटली मांधाता म ली ॥ न० ॥ चय सुधी पामी ते लाग, तव हरिबल मन टकली ॥ १९ ॥ न० ॥ महीयें जाली ते वात, सही तो ए नृप कांठे चढे | न० ॥ अंतेवरी पण साथ, ते पण जर वासें चढे ॥ २० ॥ न० ॥ बीजा नगरजन सर्व, ते पण नृपनी केडें चढे ॥ न॥ तव होवे पापनुं पर्व, घोर करणी बहु जव नडे ॥ २१॥ ॥ न० ॥ हरिबल चिंते रे ताम, बे मुऊ वयरी जे माहरे ॥ न० ॥ बीजानुं शुं काम, काम ने एकनुं मा हरे ||२||न || देनं उपाडी तास, चिता यग्नीनी जा लमां ॥ न० ॥ निकले जमनो पास, एव जायें यम शालमां ॥ २३ ॥ न० ॥ चिंतवी इम अनेदान, देवं नृपादिक जंतुने | न० ॥ गुरु उपदेशने मान, जी वित देनं बीजा संतने ॥ २४ ॥ न० ॥ इम जाणी ततकाल, सजगाडी चिंता तिण समे ॥ न० ॥ नन प्रगटी त्यां जाल, देखत कायर मन नमे ॥ २५ ॥ ॥ न० ॥ नृप कहें करी शणगार, वाजित्र महोटे बाजते ॥ न० ॥ पेसे ते अगनी मजार, तव हरिबल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) कहे गाजते ॥ २६ ॥ न० ॥ खमो एक स्वामी ल गार, वात विचारीने कीजियें ॥ न० ॥ पूबी जम प डिहार, विल पूढे पगलुं न दीजीयें ॥२॥न० ॥ तव पूबे महिपाल, यम पडिहारने तक नहीं ॥० ॥ चोथा उल्लासनी ढाल, पांचमी लब्धिविजय कही ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कर जोडी परिहारने, पूबे तव महिपाल ॥ जो तुम हुकम हुवे खरो, तो वरुं अम्मीजान ॥ १ ॥ तव कहे सुर परिहार ते, सांजलो कहुं नृप तुम्म ॥ दुष्ट कुबुद्धि घटारडो, बे यम राणो अम्म ॥२॥ तुम नगरीनां मानवी, जोवा थयां सहु सऊ ॥ पण यम आागल नवि रहे, तुमची महोटी लऊ ॥३ ॥ तेमाटे तुमें मोकलो, जे तुम वल्लन होय ॥ यमने पूढी उ तावलो, आवे स्थानक जोय ॥ ४ ॥ त्यार पढें पें सहु, जइ यम नृप प्रणमेय | तेहना हुकमथी उतस्या, जिहां कतारो देय ॥ ५ ॥ वि पूढे जो जाइयें, तो खीजे यमराय || जीवथि यम जूदा करे, तुम सहु साथने धाय ॥ ६ ॥ इम नृपने ते सुर कहे, यमनुं ए बे शूल ॥ काज विचारी कीजियें, तो वधे यापं मूल ॥ ७ ॥ ते वाणी नृप सांजली, चमक्यो चित Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१एए) मजार ॥ नली कही इण नाकिये, आणी मन नप गार ॥॥ तव नरपति कहे मंत्रिने, सांजल तुंकालसे न ॥ जमदरबारें जायवा, शीघ्र था तुम तेण ॥ए। ॥ ढाल बही॥ ॥ नयन हमारे लालनां ॥ए देशी ॥ तव हरखित मंत्री थयो, सानति नृपनी वात ॥ सनेही ॥ यमने में दिर जायवा, थयो नत्सुक हरवात ॥ स०॥त॥१॥ जाणे मंत्री मन्नमें, तूठा मुफ नगवान ॥ स० ॥ यम मंदिर हुँ जाश्ने, मागुं वंबित दान ॥ स॥ त॥२॥ राजी करूं श्रादेवने, लटपट करी गुण गेह ॥स॥ अमर पटोले मागीने, रमणी कधि सुदेह ॥स०॥ त॥३॥ इणिपरें मंत्री आलोचीने, सऊ थयो ति णिवार ।। स० ॥ कर जोडी कहे रायने, मंत्री वयण उदार ॥ स॥त॥ ॥ यमनो जे पडिहार , ते आवे मुफ साथ ॥ स ॥ तो जर यमने नेटीयें, न रीयें वंबित बाथ ॥ स ॥ त ॥ ५॥ तव नृप कहे पडिहारने, मुज मंत्रीले संग ॥स॥ सर्ग जुवन पद दाखवा, मेलवो यमनो रंग ॥स ॥ त० ॥६॥ करी प्रणिपत माहरी तिहां, करजो मुज अरदास ॥स॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५ ) कहो तो बडी अस्वारीगुं, खावुं तुमचे विसास ॥ ॥ ० ॥ ० ॥ ७ ॥ कहो तो सदु नगरी तणो, सघ लो यावे साथ ॥ स० ॥ यम राजाने नेटवा, यावे विशालानाथ ॥ सं० ॥ त० ॥ ८ ॥ इणिपरें विनती माहरी, यम नृपने करेय ॥ स० ॥ शीघ्रगतें तुम या वजो, यमनी रजा जेय ॥ स० ॥ त० ॥ ए ॥ तव सु र कहे ते रायने, नली कही तुमें गुज ॥ स० ॥ मुफ स्वामी यमनाथने, मेलवं मंत्री तु ॥ स० ॥ त० ॥ ॥ १० ॥ एम कही पडिहार ते, मागी नृपनी शीख ॥ स० ॥ बेो अगनी जालमां, सहु जन देखत ईख ॥ स० ॥ ० ॥ ११ ॥ मंत्री पण कालसेन ते, नृपने कीध जुहार ॥ स०॥ नगरी जन सहु साथने, प्रणमी करे मनुहार ॥ स० ॥ त० ॥ १२ ॥ बेठो च यनी जालमां, मंत्री पण तेणि वार ॥ स० ॥ सुर संगें कालसेन ते, मंत्री बली थयो बार ॥ स०॥ त०॥ ॥ १३ ॥ नगरी जन सहु देखतां मंत्री सुर थयो बार ॥ स०॥ जोतां खिरा एक पलकमें, पहोता यम दरबार || स० ॥ त० ॥ १४ ॥ नगरीजन नृप यदि ते, मंत्रीनी जोवे वाट ॥ स० ॥ जाणे मंत्री यावशे, यम जी करी गहगाट ॥ स०॥ ० ॥ १५ ॥ इलिपरें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०१) दो घडी चौ घडी, मंत्रीनी जोई वाट ॥ सना हंजीय लगण थाव्यो नही, नृप कहे शो थयो घाट ॥ स०॥ ॥ त० ॥ १६ ॥ तव हरिबल कहे नूपने, शुं कहो स मफू थाय ॥ स० ॥ जे गयो यमने मंदिरें, ते किम यावे धाय ॥ स० ॥ त० ॥ १७ ॥ जे गयां मडदां मशाणमां, ते जो जीवतां थाय ॥ स० ॥ तो पाठो मंत्री इहां, यावे तुमचे पाय ॥ स० ॥ त० ॥ १८ ॥ शी हवे एहनी चिंता करो, म करो मंत्रिनी तांत ॥ ॥ स० ॥ करणी जेहवी इणें करी, तेहवो लह्यो ते घात ॥ स० ॥ त० ॥ १५ ॥ वि खूने तुम मंत्रवी, लीधी माहरी केड ॥स०॥ तव में दीधो ए अनिमें, यम मिशें ए करि जेड ॥ स० ॥ त० ॥ २० ॥ वली तुमने इणे कुमतियें, तुमचां जंगव्यां हाड ॥ स० ॥ दांत पडाव्या जे तुम तणा, ते तुम मंत्रीनो पाड ॥ ॥ स० ॥ त० ॥ २१ ॥ ए गुण मंत्री तुम तणा, करूं केतां वखाय ॥ स० ॥ इष्ट कुबुद्धि जे हतो, ते हनां में काढ्यां प्राण ॥ स० ॥ त० ॥ २२ ॥ एहनो धोखो मत करो, राखो मन नृप ठोर ॥ स०॥ मूक्यो में नारकी पांतिमां, सातमी जे कही घोर ॥ स० ॥ ॥ त० ॥ १३ ॥ जे जेहवी करणी करे, तेहवी नहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०१ ) फलपत्य ॥ स० ॥ टंकण भुंकणनी परें, मेव्यो उखा यो सत्य ॥ सणात ॥२४॥ कुण राणा कुरा दूंबला, करणी सारु होय ॥ स० ॥ कुगति सुगति लहे कर एपीयें, उत्तम मध्यम जोय ॥ स० ॥ त० ॥ २५ ॥ इणिपरें नरपतिजी तुमें, जो करशो अन्याय ॥ स॥ तो तुमची गति इणि परें, होशे ताजकी राय ॥ स०॥ ॥ त० ॥ २६ ॥ इणिपरें वाणी सांजली, चमक्यो न रपति चित्त ॥ स०॥ सांचल रे जीत नाटिका, जाणी महीनी रीत ॥ स०॥ ॥ २७ ॥ मंत्रीनी लइ जस्म ते, जल शरणें करी राय ॥ स० ॥ हरिबल कहे नृप पुर तणी, जाय अलाय बलाय ॥ स ० ॥त ॥२८॥ इम कहि नृप मंदिरें, वलियो ते महिपाल ॥ स ० ॥ लब्धि कही बही मर्मनी, चोथा उल्लासनी ढाल ॥ सणात ॥२॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नूपादिक नगरी जना, सदु समज्या मनमांहि ॥ ए करणी हरिबन तणी, जाली सघले त्यांहि ॥ १ ॥ जली थई जावठ गई, विण उपधें विराध ॥ हरिबल केरा धर्मथी, हवे थइ सुरक समाध ॥ २ ॥ इम कहेतां नगरी जनां, वलीयां निज घर लोक ॥ हरिबल साचो हीरलो, पुण्य तलो ए थोक ॥ ३ ॥ कालसेन कुपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०३ ) त्रने, बाल्यो हरिबलें बीप ॥ जन दिये रंग वधामणां, घर घर घृतना दीप ॥ ४ ॥ सर्ग नरग दुनियां मुखें, जाखे सघली वात ॥ जे जेहवी करणी करे, ते तेह वी वहे ख्यात ॥ ५ ॥ ज्ञानी तो कहे ज्ञानथी, देखी स्वर्ग ने नर्ग | पण कहे लोक मतें करि, करणीयें नर्ग ने सर्ग ॥ ६ ॥ सागरदेव पसायथी, कीधुं जाएयुं का म ॥ हरिबल चरित्र ते देखिने, लाज्यो नरपति ताम ॥ ७ ॥ तव हरिबन कहे रायने, म करो मनमें सो च ॥ तुम मंत्री ते कुमतियें, तुमचो कराव्यो लोच ॥ ॥ ८ ॥ लंकायें मुफ मोकव्यो, वति मूक्यो यम घेर ॥ तुमें चूक्या मुऊ नारीगुं तव में करिए पेर ॥ ए ॥ तुम मंत्रीनी संगतें, करता तुमें पण साथ ॥ पण में राख्या जीवता, करुणा प्राणी नाथ ॥ १०॥ ए गुप लेजो माहरो, जीवित सूधी नूप ॥ एम कही हरिब न तिहां, श्राव्यो निज घर चूंप ॥ ११ ॥ वसंत सिरी कुसुम सिरी, दो प्यारी गुणवंत || पियु मुखचंद विलो कतां, दो कुमरी हरखंत ॥ १२ ॥ सुख विलसे संसा रमां, टाली सघलां शव्य ॥ करणी करे जिन धर्मनी, हरिबल मी तील ॥ १३ ॥ परतख देखी पारखं, हरिबल केरो धर्म ॥ पुरजन सदु धर्मी थया, टाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) मिथ्या नर्म ॥ १४॥ नरपति पण मन लाजियो, जे निज कीधां चरित्र ॥ ते देखी धोखो करे, नरपति म नशुं विचित्र ॥१५॥ ॥ ढाल सातमी ॥ ॥नानो नाहलो रे ॥ ए देशी ॥ महिपति नांखे प रजने रे, बेतो ते निज धाम ॥ साजन सांजलो रे ॥ हा हा में ए झुं कां रे, अपघटतुं ए काम ॥१॥सा ॥ गुणवंत ले गुण धाम, मूकी आमलो रे ॥ ए आं कणी ॥ किया नवनी मोहनी रे, जागीण नव मां हि॥ सा ॥ ए नारीथी कुःख लघु रे, विण कामें निरुजाहि ॥ २ ॥ सा ॥ तन धन खोयां नृप कहें रे, खोइ नारीथी लाज ॥ सा ॥ वात चलावी चिटुं दिशे रे, वाजते ढोल आवाज ॥ ३ ॥ सा ॥ प्रव जवनी वैरिणी रे, पोष्यु वयर विशेष ॥ सा ॥ जेह वी करणी में करी रे, तेहवी लही तस रेख ॥४॥ सा० ॥ दोष नही को एहनो रे, वे सघलो मुफ दोष ॥सा॥पी पाणी घर पूबीने रे, शो तस करवो शोष ॥॥सा॥ कुलमर्यादा मूकीने रे, खोटी में मागी जी ख ॥ सा० ॥ गुरु गोत्रज पण नवि गण्यां रे,कोनीन मानी शीख ॥॥ सा॥पारकी मति हं चाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०५) यो रे, मेव्यां कुकर्मनां मूल ॥ सा ॥ कोडीनी गरज सरी नही रे, नृप करे नावी धूल ॥॥ सा ॥ मुज घरे ने बती पदमणी रे, राणी रूप निधान ॥सा॥ ते मूकी होंशी थयो रे, उखर करवा निदान ॥ ७॥ सा० ॥ जे स्त्री अशुचिनी कोथली रे,मल मूत्र नरियां गात्र ॥ सा ॥ बारे चार वही रह्यां रे, पहेत्यां दिसे सुपात्र ॥ ए ॥ सा० ॥ अण बोलाव्यां सुंदरु रे, दीसे ढांक्यां रतन्न ॥ सा ॥काम पडे त्रटकी वहे रे, वि चक विचाडी तन्न॥१॥सा॥जागे योवन वाधे कामनुं जोर ॥ सा ॥ सिम साधक कुण सुर नरा रे, जोवे अंगनां गोर ॥ ११ ॥ सा ॥ पंचास्ति कायमें पण कयां रे, जिनवरें कामनां बाण ॥ सा० ॥ तो मानवतुं शुंगजुं रे, कामें मनावीआण ॥१२॥ सा० ॥ धिग धिग काम विटंबना रे, कामें लाज गमा य॥ सा ॥ कामें खोवे मालने रे, कामें गीत गवाय ॥ १३ ॥ सा ॥ वध बंधन कामें लहे रे, कामें चा टंगाय ॥ सा० ॥ कामें दंम नरे सही रे, कामें हां सी कराय ॥ १४ ॥ सा ॥ कामज्वरें बलतो रहें रें, तनथी दीण ते थाय ॥ सा ॥मात पिता दक नवि गणे रे, न गणे कामांध काय ॥ १५ ॥ सा॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) वीती दशे ते जाणशे रे, जे करे परस्त्रीनो संग ॥ सा॥ ते होशे खेरु विकारयुं रे, खोई तन मन रंग ॥ १६ ॥ सा० ॥ शी मुफने ए उपनी रे, पडवा नारकी कुंम ॥ सा० ॥ धिग धिग माहरी बुद्धिने रे, जे थयो व्यसनी मुंम् ॥१॥सा॥ धन हरिबलनी बुधिने रे, दीधुं जीवित दान ॥सा॥अजर प्यालो श्ण जीरव्यो रे, दीठो वडो सावधान ॥ १७ ॥ सा ॥ जो कोपे मुफ नपरें रे, तो करे मंत्रीनी रीत ॥सा॥राज ती ये मुज एकलो रे, तो शी रहे परतीत ॥१॥ सा ॥ में महारे हाथे करी रे, करणी खोटी कीध ॥ सा० ॥ नीति मारग लोपी करी रे, हरिबलने सुख दीध ॥ २० ॥ सा ॥ ते किम सांई सांसहे रे, जे दुं चाल्यो अनीत ॥ सा० ॥ तो शीखामण नली ज डी रे, कदि नहि विसरे चित्त ॥ २१ ॥ सा० ॥ अव गुण उपर गुण करे रे, ते तो हरिबल एक ।सा॥ मुंफने राख्यो जीवतो रे, दयावंत विवेक ॥ २२ ॥ सा ॥ सुगुण पुरुष में दीवडो रे, हरिबल साहस धीर ॥ सा ॥ नपगारी शिर सेहरो रे, वीर शिरोम णि वीर ॥ २३ ॥ सा ॥ धन हरिबलना तातने रे, धन हरिबलनी मात ॥ सा ॥ त्रिवंशमां दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०७) पतो रे, सुनट शिरोमणि जात ॥ २४ ॥ सा॥ धन धन ते गुरुदेवने रे, जेणें बताव्यो धर्म ॥ सा ॥ई बलिहारी तेहनी रे, जे राखी मज शर्म ॥ २५ ॥ सा ॥ श्म हरिबलना गुण स्तवे रे, परजामें मद नवेग ॥ सा० ॥ तोल वधारयो माहरो रे, हरिबला करि नेग ॥ २६ ॥ सा ॥ तो ढुं पुत्री माहरी रे, परगावु गुन काज ॥सा॥ कर मूकामण वली दीयु रे, महीयल महोटुं राज ॥ २७ ॥ सा० ॥ गुण उशीगण ए था रे, हवे था निःपाप ॥सा॥ पढ़ें हुँ संयम आदरूं रे, ज्युं मटे नवनो संताप ॥२७॥ सा ॥ एता दिन नूलो जम्यो रे, विण दर्शन मुफ जीव ॥ सा० ॥ हवे करणी एहवी करुं रे, जिम ल ढुं सूख सदीव ॥ २५ ॥ सा० ॥ श्म आलोचना परजमें रे, कीधी ते महिपाल ॥ सा ॥ चोथा उ हनासनी ए कही रे,लब्धि सातमी ढाल ॥३०॥सा॥ ॥दोहा॥ ॥इणिपरें नृप बालोचनी, आलोयां निज पाप ॥ हलुाकर्मी नृप थयो, करवा शिव मेलाप ॥१॥ जिहां सूधी अज्ञानतम, व्यापी रमु घटमांहि ॥ ति हां सूधी ते जीवडो, पाम्यो शान न क्यांहि ॥॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०७) हज गुणे जग जीवने, आवे गुम खनाव ॥ तव घट में दर्शन रवि, प्रगटे तेज प्रनाव ॥३॥ तव मेथ झान तम, प्रगटे ज्ञान उद्योत ॥ अष्ट करम दलले दिने, जजले ज्योतिमें ज्योत ॥धा हवे करणी करूं धर्मनी, बेहडो समारं शुरू ॥ वणकर पण ते वस्त्र नो, बेहडो समारे गुरु ॥५॥ श्म जाणी हरिबल प्रत्ये,तेडाव्यो नृत्यपास ॥ हरिबल पण तिहांवीयो, ततखिण नृप यावास ॥६॥ अरg आसन आपीने, कर जोडी कहे नाथ ॥ अरज सुणो एक माहरी, ह रिबल बो तुमें आथ ॥ ७॥ ॥ढाल आठमी॥ ॥हांजी रामपुरा बाजारमां॥ए देशी॥ हांजी हरि बलप्रत्ये हवे नृप कहे,तुमें सांजलो गुणधि अगाध ॥ तोरी बलिहारी रे हरिबल माहरा ॥एमांकणी॥ हांजी ढुं खूनी थयो तुम तो, मुफ खमजो ते अपराध ॥१॥ तो॥ हांजी लांबां जाखांशा करूं, तो बूं तुम नवोनव चोर ॥ तो ॥ हांजी में तुमगुं एहवी करी, तिण नही मुज सातमी ठगेर ॥ २ ॥ तो ॥ हांजी विषयारसनो लोलुपी, थयो ते बती वस्ते न चूक ॥ तो॥ हांजी लंकागढ यमने घरे, में मूक्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २०५ ) तुम करी चूक ॥ ३ ॥ तो० ॥ हांजी ए पातक किहां लूटस्यां में कीधो जेह अन्याय ॥ तो० ॥ हांजी ते रखे रोष चित्तें धरो, तुम कहुं बुं गोद बिछाय ॥४॥ तो० ॥ हांजी हुं तुम खामुखां थयो, मत राखजो अंतर वेर ॥ तो० ॥ हांजी इम नृप कहे हरिबल तु में, मुऊ उपर राखजो महेर ॥ ५ ॥ नो० ॥ हांजी तव हरिबल नृपने कहे, तुमें ए चुं बोब्या नाथ ॥ तोरी बलिहारी रे नरपति माहरा ॥ ए यांकी ॥ हांजी हुं सेवक बुं तुम तणो, मुफ तुमें बो महोटी श्रथ ॥ ६ ॥ तो० ॥ हांजी माहरे तुमशुं को नही, कांही अंतरगत में द्वेष | तो ॥ हांजी तुम मंत्री काल सेन जे, तेरो चंनेखो तुम बेक ॥ ७ ॥ तो० ॥ हांजी तुम यम वचें विगताविने, तुम कुमतियें घाली राड ॥ तो० ॥ पण जेवी करी तेहवी लह्यो, बल्यो जीव तो तेह किराड ॥ ८ ॥ तो० ॥ हांजी तुम यम हवें कोई वातनो, मत सखोजी अंतर कोय ॥ तो० ॥ हांजी तुम श्रम जीवडो एक बे, ए तो देखत बे तन दोय ॥ एए ॥ तो० ॥ हांजी मिण्याः कृत मुजथकी, तुमें मानजो नृप करि साच ॥ तो० ॥ हांजी राग द्वेषना योगथी, जेह बांध्यां निकाचित वाच ॥ १० ॥ तो० ॥ ૪ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१०) हांजी इत्यादिक वचनें करि,दांजी हरिबलें खामणां की धतो॥ हांजी अन्यो अन्य राजी थया, नृप हरिबल दोय प्रसि ॥११॥तो ॥ हांजी हवे हरिबल प्रत्ये नृप कहे, तुमें सांजलो मुफ अरदास ॥ तो॥ हांजीमुज पुत्री जयसुंदरी,तुम पालव बांधु उन्नास ॥१२॥ तोरी बलिहारी रे हरिबल माहरा रे ॥ ए आंकणी ॥ हांजी कर मूकामण में दीयुं, वली मुज नगरीनुं राज ॥ तो॥ हांजी आण मनावो तुम तणी, मुफ म होटी वधारो लाज ॥१३॥तो॥ हांजी एम कहीने ततखिणे, हांजी मेली परखद त्यांह ॥ तो॥ हांजी पंचनी साखें महीने, करे तिलक ते नृप नन्हाह ॥ ॥ १४ ॥ तो० ॥ हांजी गुज चोघडीयुं जोश्ने, करि थापना गवरीपुत्र ॥ तो ॥ हांजी धवल मंगल वज डावीयां, करपीडन करवा सूत्र ॥ १५ ॥तो॥ हांजी गुज लगनें गुज मुहूरतें, हरिबलने नृप पद दीध ॥ ॥ तो० ॥ हांजी पद महोत्सव अतिही करे, जिम जाणे लोक प्रसि ॥ १६ ॥ तो० ॥ हांजी नगरी विशाला साचली, शणगारी थर जमाल ॥ तो० ॥ जाणे स्वर्गपुरी आवी वसी, ए तो तेजें फाकफमाल ॥ १७ ॥ तो ॥ हांजी स्वयंवर मंझप रोपीने, नृप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) देशनां तेडां कीध ॥ तो ॥ हांजी सोवनमय चोरी रची, वर कन्या वरवा सुसि ॥ १७ ॥ तो॥ हांजी वाजिंत्र महोटे वाजते, हांजी वाजते यंत्र मृदंग ॥ ॥ तो० ॥ हांजी तत थे। नटु नाचता, हांजी करता नवनवा रंग ॥१॥तो॥ हांजी सोनागिणी साहेलीयो, मली सरखा सरखी बाल ॥तो॥ हांजी कोकिल खरें करी सोहली, जलां गावे गीत रसाल ॥ २० ॥ तो॥ हांजी ते गीत नादना स्वादथी, रहे थंनी अमर विमान ॥ तो० ॥ हांजी इणि परें नारी टोलें मली, ए तो गावे रूप निधान ॥ २१॥ तो॥ हांजी मंगल वाजां वाजते, हांजी गाजते गुहिर निशाण ॥ तो० ॥ हांजी इण आमबरें धीवरु, च ढयो परणवा चतुर सुजाण ॥ ११ ॥ तो ॥ हांजी अलबेला जानी थया, हांजी जाणीयें देवकुमार ॥ तो० ॥ हांजी हरिबलने परणाववा, हांजी श्राव्या नृप दरबार ॥ २३॥ तो॥ हांजी घणे बाबरें सो हता, हांजी करता नृत्य हजार ॥ तो॥ हांजी जीव दयाना प्रनावथी, बबे तोरण हरिबल सार ॥ २४ ॥ ॥ तो॥ हांजी प्रीतिमती पट्टरागिणी, तीर धूसरें पोखे जमा ॥ तो ॥ हांजी चोरीमां पधरावीयां, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) वर कन्या कर मेला॥ २५॥ तो० ॥ हाजी पालव बांधी दोयना, हांजी फेरा फेरव्या चार ॥ तो॥हां जी वर कन्यायें आरोगीयो,हांजी सुंदर मिठो कंसार॥ ॥ २६ ॥ तो॥ हांजी जयसुंदरी परणावीने, दरिब लने दी● राज ॥ तो ॥ हांजी पायक सप्त लक्ष्य श्वनी, ठकुराइदीधि समाज ॥ २७ ॥ तो॥ हांजी जो जो नवियां पुण्यथी, लहि मही सुस्त माल ॥ तो॥ हांजी चोथा नन्नासनी ए कहि, शुज लब्धे आतमी ढाल ॥ २७ ॥ तो० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ मदनवेग हरखें करी, कीधो नन्नव सार ॥ सोनुं रूपुं सामटुं, वरसे ज्युं जलधार ॥१॥ जसपडहो वज डावियो, नगरी जमाडी सार ॥ हरिबलने राजें तव्यो, वरत्यो जय जयकार ॥२॥ बंदीजन मूक्या परा, आ णी मन उपगार ॥ आसीजन तृपता कखा, दाने देदे कार ॥३॥ पद महोडव अतिहे कस्या, राखी जुग लगें ख्यात ॥ हरिबल जे राजा थयो, चाली चिहुं दिशि वात ॥ ४ ॥ नगरी जन सदु हरखीयां, जव थयो हरिबल राय ॥ देश देशातरि नेटणां, ले आवे नृप धाय ॥ ५ ॥ इणिपरें पद महोत्सव करी, जे नृप मद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११३ ) नवेग | हरिबलने राज्यें तवी, प्रबल वधायो नेग || ॥ ६ ॥ हरिबल पण सुख जोगवे, पाले राज्य अखं म ॥ ण मनावी चिहुं दिशें, जबलि नीम प्रचं म ॥ ७ ॥ दवे नृप जामाता कने, ससरो मागे शी ख ॥ जो स्वामी राजी हुवो, तो हुं हुं दीख ॥ ॥ ८ ॥ निजातमने तारवा, बेढुं संयमनार ॥ शिव रमणीगुं नेहलो, करवा थयो दुशियार ॥ ए ॥ एम कही नृप सज थयो, चढते ते परिणाम ॥ दीक्षा महोत्सव न करे, हरिबल तव गुणधाम ॥ १०॥ ॥ दाल नवमी ॥ ॥ अमदावादना खेड्या रे, वालम यावजो रे ॥ ए देशी ॥ संयमनारी बरवा रे, नृप मन उन्नस्यो रे ॥ पापस्थान अढारथी रे, नृप दूरें खस्यो रे ॥ आणी समता जाव रसाल, राणी पण थइ साथै विशाल ॥ पंचम गतिने देतें रे, संयम यादरे रे ॥ १ ॥ साते क्षेत्रे नावें रे, धन बहु वावरे रे ॥ निर्मल चित्तें थइने रे, सुकृत करणी खाचरे रे ॥ समकित निर्मल शुद्ध करेय, प्रवचन रचना चित्त धरेय ॥ घणे यामंबरें वे रे, सुविहित गुरु कने रे ॥ २ ॥ बाह्या चिंतर केरा रे, मल सवि बांगिया रे || परमातमने गेहें रे, संकेत मांदिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) रे ॥ मूकी घरनो सघलो शोच, पंच मुष्टियुं कस्यो तिहां लोच ॥ राजा राणी आदें रे, चारित्रने ग्रहे रे ॥ ३ ॥ तव हरिबल गुन नावें रे, ससराने कजवे रे॥दीदा महोत्सव नावें रे, कयो जन संस्तवे रे ।। वरसे ज्युं नादरवानो जलधार, वरसे त्युं हरिबल सोवन धार ॥ कविजन जेता तेता रे, श्लोक जणे घणा रे ॥ ४ ॥ सुरपतिनी परें कीधो रे, महोत्सव दीदनो रे ॥ दायिक समकित केरो रे, ग्रह्यो दंग दिनो रे॥ दीक्षा नन्नवर्नु फल एह, हरिबल पाम्यो ते गुणगेह ॥ शिव रमणीनो साचो रे, पालव बांधियो रे ॥ ५ ॥ धन धन मदनषिजी रे, बलिहारी ता हरी रे ॥ संजम नारी प्यारी रे, वरी तुमें जाहरी रे ॥ धन धन स्वामी तुमचो नेख, धन धन जीत्या राग ने शेष ॥ ते गुण लीगो तुमचो रे, ढुं किंकर थ रह्यो रे ॥ ६ ॥ धन्य स्वामी करुणारसें रे, मन संतो षियो रे ॥ संवेंग रसें करी आतम रे, निर्मल पोषि यो रे ॥धन धन्य स्वामी तुम दृढ चित्त रे, गंमयां धण कण राजनी नीत ॥ धन धन्य स्वामी तुमचा रे,मनो बल नावनें रे ॥ ७ ॥ श्म गुण महोटा रे, मदन वेग ऋषिराजना रे ॥ धन्य धन्य मुखथी जपता रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) हरिबल पुरजना रे ॥ इणि परें करता स्तवनां अपार, कृषिजन प्रणमी निज आगार ॥ हरिबल राजा आदि रे, सहु वांदी वव्या रे ॥ ७ ॥ हवे ऋषि म दनवेगजी रे, गुरुसंगें नणे रे ॥ चौद पूर्वना अर्थ रे, विचार ते संधुणे रे ॥ पाले पूरा पंचाचार, चालें सूधा नय व्यवहार ॥ दंपति दोये साचां रे, जिन म तमें वहे रे ॥॥ अध्यातमपुर सुंदर रे, निरखी तिहां रहे रे ॥ विवेक तणां जे मंदिर रे, महोटां गह गहे रे॥ तेहमें कीधो दोजणें वास, करे तिहां बेन झान अन्यास ॥झान ने दरिसण चरणझुं रे, रहे नीनां थकां रे ॥ १० ॥ ध्यान सुतखतें बेग रे, दो वखतें इक मनां रे ॥ समकित बत्र धरावि रे,हरखें दो जणां रे॥ सोहे चामर श्रुत चारित्र, पाले महोटां आठ मावि त्र॥ धर्म सना दश मेले रे, सत्य दरबारमां रे ॥११॥ संयम हाथी शुन मन रे, घोडा दीपता रे ॥ अष्टक रमना दलने रे, वेगें जीपता रे ॥ शीलांगरथ गुन महा गुणवंत, संवर सुजट सुतेज अनंत ॥ मदन वेग जे कृषिने रे, दरबारें बाजता रे ॥१२॥ नेद वि झाननी घंटा रे, बांधी न्यायनी रे ॥ खीर ने नीर ज्यु रे, न्याय करे संजायनी रे ॥ सातमे गुणगणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) चिस लाय, मारग श्री जिनकल्पी धराय ॥ जीवनो कारिमो जगडो रे, मिटाड्यो खिण एकमां रे॥१३॥ तेरमे गुणगाणे रे, सजोगीय आविया रे ॥ शुक्ल ध्यानमे दंपति रे, दो ते नावियां रे ॥ तव तिहां पा न्या केवल नाण, तीन नुवनमें थयां ते जाण ॥ के वल महोबव महोटुं रे, इंशदि सघला करे रे ॥१॥ बारे परषदा मेली रे, दे धर्म देशना रे ॥ कोई जव्य जीवने दीधी रे, समकित वासना रे॥तायां नवोदधि थी के जीव,ज्योति वधूमूंप्रीति अतीव ॥ दंपति दोयें बणारे, केवल नाणथी रे ॥ १५॥ विशमा जिनने वारें रे, मदनकृषि रायजी रे ॥ वसुधा पावन करता रे, फरे सुखदायजी रे ॥ आयु वरष तेत्रीश हजार, पाली पूरूं दंपति सार ॥ शैलेशी गुणयोगें रे, दो मुगति गयां रे ॥ १६ ॥ जनम मरणना नय सवि रे, दरें बंमिया रे, शिवरमणिना संगमें रे, निशिदिन में मिया रे ॥ चौद नुवननां नाटक चंग, निरखे ज्यु करजल रेह सुरंग ॥ लोक अलोकने अंतें रे, जावे तिहां रही रे ॥ १७ ॥ जो जो नवियां बागें रे, शी करणी हती रे ॥ मोह नृप जोरें शिखडी रे, मानीन को रती रे ॥ तेहना धणी थइ बेग सिम, तिन जुव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१७ ) नमें मानीता कीध ॥ ए सवि गुण तुम लेजो रे, नबि समकित तथा रे ॥ १८ ॥ समकित रयण बे जगमें रें, जनने तारवा रे ॥ जविक जीवने निमी रे, वंबित सारवा रे ॥ जाख्युं ए समकित परम निधान, मुगति वधूनुं दाता निदान ॥ जिनवरें जाख्युं सघले रे, सूत्र सिद्धांतमां रे ॥ १७ ॥ एहवा गुण तुमें जाली रे, समकित धारजो रे || निंदा विकथा परनी रे, दूर निवारजो रे ॥ ज्युं लहो जवियां समकित शु.६, जो जगदीश दे तुमने बुद्ध ॥ तो सडशठ बोलें करीने रे, समकित धारजो रे ॥ २० ॥ जविक जीवने समकित रे, जीवनुं मूल बे रे ॥ समकितधारी जीवने रे, शिव अनुकूल बे रे ॥ इम कहे लब्धिविजय उजमाल, चोथा उल्लासनी नवमी ढाल || हलुवा कर्मी जीव ते रे, वयण ए मानशे रे ॥ २१ ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे सुणजो नवियण तुमें, हरिबल केरी वात ॥ वीशाला पुर नयरनुं, विलसे राज विख्यात ॥ १ ॥ बारे दरवाजे प्रबल, मांमी दाननी शाल ॥ नग्न बुनूदित जीवने, देवे दान विशाल || २ || नव नेदें जे पुण्य बे, सूत्र तणे अनुसार ॥ जन्म सफल करवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१७) नणी, मांझयो सत्रुकार ॥ ३ ॥ साते खेत्रे वावरे, के इलख धननी कोड ॥ चैत्य करावे जिन तणां, मामि स्वर्गगुं होड ॥ ॥ अमारि पलावे चिटुं दिशें, जिहां सुधी आणा राय ॥ मारी शब्द को उच्चरे, तो ते खूनी थाय ॥ ५ ॥ विण खूनें को जीवने, को न उपाडे श स्त्र ॥ कीडी कुंजर आपणां, सम करी लेखवे तत्र ॥ ६ ॥ इणि परें हरिबल राजवी, पाले राज्य अखंम् ॥ परजाने ऊ समो, अरिमन नीम प्रचंम् ॥ ७ ॥ ॥ ढाल दशमी॥ ॥ मारुजी साथीडा साथै धग रें. हाथें मदपियो रेलो, मारो माणिगर मारुलो ॥ ए देशी ॥ नवियां नगरी विशाला काक, जमाला सोहती रे तो, मार्नु कैलासपुरी लो ॥ न० ॥ सोहम वासीनी परें खासी, मोहती रे लो ॥ उकुरा उपे सनूरी लो॥ १॥०॥ पुण्य प्रनाउ जावें, जोगवे राजने रेलो. हरिबल नाग्य विशाला लो॥ न० ॥ सुजस वरवा प रजने, करवा साजने रे लो॥ प्रगटयो परम कृपाला लो ॥ ॥ ज० ॥ शोलशे देशे पुण्य, विशेष मही ये रे लो, साध्या देश हठीला लो॥०॥ अनमी राया तेह, नमाया हलिये रे लो, दुता जे मुबाला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) लो ॥ ३ ॥ ज० ॥ करटी काला मद मत, वाला फूल तारें जो, जाणियें ट्रक हिमाला लो ॥ ज० ॥ चैत रें के रंग, नवेचं फूलता रे लो, सोहे सिंदूरें गुंढाला लो ॥ ४ ॥ ज० ॥ घुघर घंटा रण ऊण, घंटा वाजता रे लो, गाजता अंबर सूधी लो ॥ ०॥ एहवा संख्या ता गया नवि, जाता सावता रे लो, गज घंटा श्रेणि विलुश्री लो ॥ ५ ॥ ज० ॥ रवि रथना ज्युं वाजी, ताजी वेगना रे लो, बाजे हरिबल द्वारा लो ॥ ज० ॥ करे खुडताला पद पड, ताला मेघना रे लो, अगणित अश्व अपारा लो ॥ ६ ॥ ज० ॥ वहेन सुखासन मानुं, सुरासन ताकडा रे जो, एहवा रथ रढियाला लो ॥ ज० ॥ रण सुनटाला जे मब, राजा वांकडा रें लो, एहवा गणित पाला लो ॥ ७ ॥ ज० ॥ सुरप ति सरिखी हरिबल, हरखी ग्रामनी रे लो, जोगवे रा ज्यनी लीला लो ॥ ज० ॥ अपवर वरणी पियु मन, हरणी कामिनी रे लो, विलसे शोलरों बाला लो ॥ ८ ॥ ज० ॥ बत्रीश बा नाटक, सुधा स्वादना रे लो, होवे रंग रंगाला लो ॥ ज० ॥ गुणिजन गाता कवि जन, माता लादना रे लो, बोले बिरुद वडाला लो ॥ ५ ॥ ज० ॥ हरिबल केरी अतिही, नजेरी विस्त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) रीरे लो, चिहुं दिशि कीरति चावी लो ॥ ज० ॥ सान र स्वामी अंतर, जामी सुस्तरी रे लो, थापी ठकुराइ ठावी जो ॥ १० ॥ ० ॥ हरिबल धागें पु एय, विनागें नूतलें रे लो, बीजा नृप ढंकाणा लो ॥ ज० ॥ दानें मानें जन सवि, माने जुजाबलें रे लो, हरिबल जगमें पंकाला लो ॥ ११ ॥ ज० ॥ जो जो तोई पुण्यवंत, होइ कगीयो रेलो, एकण जीव दयाथी लो ॥ ज० ॥ जन मन वसियो मधुकर, रसियो जोगी यो रे लो, थयो सुगुरुनी मयाथी लो ॥ १२ ॥ ज० ॥ नाखी जालने ग्रही, मबरालने बेदतो रे लो, नि शिदिन जलमें हस्तो लो ॥ ज०॥ काचलां घस्तो पा पनो, रस्तो वेदतो रे लो, ते थयो नृपमें वस्तो लो ॥ १३ ॥ ज० ॥ एहवी वातो गुण, विख्यातो सांगली रें लो, वसंत सिरीने तातें जो ॥ ज० ॥ बारे वरसें क विजन, खाशें मन रली रे लो, लही सुधी पुत्रीनी मातें लो ॥ १४ ॥ ज० ॥ नूपति निसुणी चिंते, सुगुणी शी थइ रे लो, जो जो धाता करणी जो ॥०॥ पुत्री रूडी पण य, कूडी जुली गइ रे लो, जे थइ जोईनी घरली लो ॥ १५ ॥ ज० ॥ बंही रातना लेख, लख्या जे जा तिना रे लो, कुण ते टाली राके रे लो ॥ ज० ॥ जेह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १११ ) नो संबंध मले पर, बंध ते जातिना रे लो ॥ नावि तेह ज करे रे लो ॥ १६ ॥ ज० ॥ उत्तम मध्यमनुं इहां, कारण को नही रे लो, जाविधी को नहीं माह्यो जो ॥ ना जेहनी लागी लगन, तेहने ते सही रे लो, कोइ न रह्यो साह्यो जो ॥ १७ ॥ ज० ॥ मुजयी बानी गर, निशानी बुत्रीने रे लो, न पड़ी खबर को अंदरें लो ॥ ज० ॥ हवे शा विशासा द5, दिलासा पुत्रीने रे लो, ते हवे निज मंदिरें जो ॥ १८ ॥ ज० ॥ सुपि नृप हरख्यो जमाइ, परख्यो धीवरु रे लो, तुजी बल पुण्यवंतो लो ॥ ज० ॥ धीवर जाति थयो नृप, पांति शूरवरु रे लो, माहरी पुत्रीने संतो लो ॥ १५ ॥ ॥ ज० ॥ मुऊ नगरीनो लोक ए, धीवर जातिनो रे लो, जेहनी दुष्कृत करणी लो ॥ ज० ॥ कुल उ त्रीशें छत्री, वंशें नातिनो रे लो, ते थयो सुकृत कर श्री लो ॥ २० ॥ ज० ॥ रायमें रायां कविजनें, गाया चिहुं जगें रे लो, प्रबल ए पद ले जेहनुं लो ॥ ज० ॥ एहवो जमाई पुण्यवंत पाइ, जली वर्गे रे लो, देखूं दरि स तेहनुं लो ॥ २१ ॥ ज० ॥ इम नृप धारी मन शुं, विचारी प्रेष्यने रे लो, मूकुं नगरी विशाला जो ॥ ज० ॥ बेसी एकांतें लिखे हवे, खांतें लेखने रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२२ ) लो, वसंतसेन नूपाला लो ॥ २२ ॥ ज० ॥ जो जो धर्मी हरिबल, कर्मी अब्धियें रे लो, कीधो जाक ऊ माला लो ॥ ज० ॥ चोथा उल्लासनी पुण्य, प्रकाशनी लब्धियें रे लो, नांखी दशमी ढाला लो ॥ २३ ॥ ज० ॥ दोहा ॥ || इलिपरें चित्तमां चिंतवी, वसंतसेन नूपाल ॥ कागल मश लेखण करी, मांगे लेख रसाल ॥ १ ॥ स्वस्ति श्री श्रीकृषनना, चरण कमल नमि तास ॥ लेख लख्यो रलियामणो, जामाताने उल्लास ॥ २ ॥ नृप तेडावे ततखिणें, मतिसागर मंत्रीश ॥ ते पण ततखिण यावियो, प्रणमी नाथ जगीश ॥ ३ ॥ नू प कहे सुण मंत्रवी, या सोंपूं तुऊ लेख ॥ जामाता सुफ पुत्रिने, देजे लेख विशेष ॥ ४ ॥ कहेजे प्रणि पत माहरी घणी करी मनुहार ॥ कहेजे ससरे तेड वा, मूक्यो मुक्त निरधार ॥ ५ ॥ शीख जलाम इ पिरें, नृपें कीधी जोर ॥ सैननुं मंत्री संचरखो, देइ न गारे ठोर ॥ ६ ॥ कंचन पुरनां मानवी, सघले जाली वात ॥ जामाता निज पुत्रिने, मूक्यो तेडवा साथ ॥ ७ ॥ मंत्री साथै परवरी, सेना पंच हजार ॥ योजन चनसय संघिने, धाव्यो विशाला पार ॥ ८ ॥ वीशालापुर नय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२३ ) रनां, दिवां महोटां मंमाण ॥ जाणे स्वर्गपुरी वसी, आ वीने इस ठग ॥ ए ॥ वाड़ी महोलें मलपति, फुलि चिहुं दिशि वनराय ॥ जाणे वन नंदननी बहेनडी, या वसी इ ठाय ॥ १०॥ इणिपरें सेना मंत्रवी, देखत हर्षित होय || पेसारो पुरमें कस्यो, वेला शुन घडि जोय ॥ ११ ॥ नगरी सखरी जोवतां, धाव्या ते दरबार ॥ हरिबल नृपने जेटिया, उपनो हर्ष अपार ॥ १२ ॥ हरिबल सुरपति सारिखो, बेठो धरावी छत्र ॥ मंत्री पण प्रणिपत करी, दीधो नृप कर पत्र ॥ १३ ॥ ॥ ढाल प्रग्यारमी ॥ ॥ शेत्रुंजानो वासी साहेब, माहारे दिल बस्यो रे ॥ मोरा साहेबा ॥ खादिजिन करूं रे जुहार ॥ ए देशी ॥ कागल देश हर्ष धरे चित्तनुं रे ॥ मोरा साहिबा ॥ ए तो विनवे मंत्री विशेष || तेडवा तुमने मुक्या अ म त रे ॥ मो० ॥ तुमचे ससरेजीयें लेख ॥ १ ॥ कागल० ॥ ए यांकणी ॥ निशिदिन तुमचो राखे म मचो मव्या तणो रे ॥ मो० ॥ तुम ससरोजी नूपाल ॥ दरिस दीजें पावन कीजें खांगलो रे ॥ मो॥ तुम ची सासुनो कपाल ॥ ॥ का० ॥ ससरो जमाई यानंद पाई एकठा रे || मो० ॥ बेसी करो रंग रोल ॥ नेह सुधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) रस वरसे पावस.गहघटा रे मो॥ उपजे ज्युं रंगचो ल॥३॥ का॥ अमचो स्वामी तुम शिर नामीप्रेम गुं रे ॥ मो० ॥ कयुं मुख वचनें एम ॥ तेमाटे स्वामी अंतरजामी नेगगुं रे ॥ मो० ॥पान धरो धरी प्रेम ॥ ॥ ४ ॥का० ॥ ससरो ने सासु नही कांहि फासु था वती रे ॥ मो० ॥ याव्या विना प्राणाधार ॥ पं जर तिहां वे जीव इहां नावथी रे॥ मो॥इणि परें राखे ने प्यार ॥ ५॥ का॥ तेमाटे तुमने कद्वं गुं प्रजुने घणु करी रे ॥ मो० ॥ दंपति थइ एक रंग। वेगा था वार मला सहचरी रे ॥ मो० ॥ व्यो सेना तुम संग ॥ ६ ॥ का॥ इणि परें सयणा मंत्री वयणां सांजली रे ॥मो० ॥ हरख्यो हरिबल ताम। कागल वांची मनमां माची मन रली रे ॥ मो० ॥ सेना सजि अनिराम ॥ ७ ॥ का ॥ तिहांथी मंत्री उन्यो गंत्री शीघ्रथी रे ॥ मो० ॥ आव्यो ते कुमरी पास ॥ तातनो मंत्री लख्यो यंत्री अग्रथी रे ॥ ॥ मो० ॥ वसंतसिरीयें नन्नास ॥ ७ ॥ का० ॥ म लवा कती कुमरी वूती नयणथी रे ॥ मो० ॥ हर्षनां प्रांस जोर ॥ जनकने ही परें मलियां नलि परें स यणथी रे॥ मो०॥ मंत्री कुमरी समोर ॥ ए ॥ का॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१५) बेसि एकांतें कुमरी खांतें पूंढती रे ॥ मो० ॥ कुशल खेमनी रे वात ॥ मात पितानां सुख शाता जे बती रे ॥ मो० ॥ ते कहो मुऊ अवदात ॥ १०॥ का० ॥ तव मंत्री जंपे पत्र समय तातनो रे । मो० ॥ वलि मुखी कहे एम ॥ बे बहु तुमचं मलवा मनशुं मातनो रे ॥ मो० ॥ चातक जलधर जेम ॥ ११ ॥ ॥ का० ॥ सो वातें एकण वातें मानजो रे ॥ मो० ॥ जंतु वे तुम संग ॥ मत जाणो काचुं सहि करि साधुं जाएजो रे ॥ मो० ॥ तुम यावे होशे रंग ॥ ॥ १२ ॥ का० ॥ एहवो उत्तर मंत्री पहुंत्तर दीधलो रे ॥ मो० ॥ हरखी कुमरी ताम ॥ सचिवने राजी कुमरीयें मांजी कीधलो रे || मो० ॥ देइ वधामणी उद्दाम ॥ १३ ॥ का० ॥ दंपति दोइ मुहूरत जोइ हरखयं रे ॥ मो० ॥ शोलों राणी समेत ॥ सस राने मलवा सगपण कलवा दर्षनुं रे ॥ मो० ॥ उमाह्या जनमनें खेत ॥ १४ ॥ का० ॥ श्री पति नामें वणिक सुधामें महीने रे । मो० ॥ राख्या जे पूर्वे ते जाण ॥ तेहने तेडी पूर निगेडी लहीने रे ॥ मो० ॥ सोंपी कस्यो कुन दिवाण ॥ १५ ॥ का० ॥ जरतारी मेरा यतिही घरोरा सोहता रे ॥ मो० ॥ १५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२६) ताण्या तंबू जडाव ॥ रवि शशी सरखा निरखी हरख्या मोहता रे॥ मो० ॥ देखी तंबू बणाव ॥ १६॥ का॥ गज रथ घोडा सुनट सजोडा साबता रे ॥मो॥ शण गाथा नाश्व रंग ॥ वहेल सुखासण जाणे सुरासण फावतां रे ॥मो॥ श्म सजी सेना चंग ॥१७॥का॥ पंचरंगी नेजा नजना डेजा जोवता रे ॥ मो० ॥ प्या नेजा उत्तंग ॥ पवनें फरके सुरपति घमके दो नता रे॥ मो० ॥ देखी ऊंमा अमंग ॥१७॥का॥ गवरीजाया मेंदी रंगाया दीपता रे ॥ मो० ॥ कन कमें जडीया शिंगाल ॥ घूघरमाला घमके रढाला जीपता रे ॥ मो० ॥ सुरधोरी सुकमाल ॥ १५॥ ॥ का० ॥ इणिपरें सेन्या मानवसेना राखता रे ॥ ॥ मोमवाये साजसंना नद्दाम ॥हरिबल राजा चढतरिवाजां वाजते रे ॥ मो॥ चाव्या जनमनी नूम ॥ ५० ॥ का० ॥ ससरानो मंत्री पुण्यपवित्री नेयता रे ॥ मो॥ ले चाल्यो दंपति सार ।। शीघ्र प्र याणे था निशाणे देयता रे॥ मो॥ श्राव्या ज्यां परणी नार ॥ १ ॥ का० ॥ ते वन देखी दंपति ह रखी दीधला रे ॥ मो॥ मेरा ते वनमांहि ॥ किधा उतारा जीमण सारां कीधलां रे ॥ मो० ॥ चरंगी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२७ ) सेना उबाहि ॥ २२ ॥ का० ॥ प्यारि पयंपे पियुने जंपे देतनी रे ॥ मो० ॥ वाणीयें वीनवे नूप ॥ इंद्रपुरी सम नाम रहे तिम वेतनी रे ॥ मो० ॥ नगरी व सावो चूंप ॥ २३ ॥ का० ॥ श्रीजिनमंदिर यतिही सुंदर चोंपशुं रे || मो० ॥ करो इहां तीरथ ठाम ॥ जे मुंऊ परणी ते करो करणी रूपचं रे ॥ मो० ॥ जिम रहे जगमें नाम ॥ २४ ॥ का० ॥ तव ते मी प्यारी सुली वयणथी रे ॥ मो० ॥ समस्यो त्यां सा गर देव ॥ गुणनो रागी पुष्यविनागी सयाथी रे ॥ ॥ मो० ॥ श्राव्यो सुर ततखेव ॥ २५ ॥ का० ॥ सुर कहे शाने तेडो माने ते कहो रे । मो० ॥ जे होय मननी दूब ॥ तव कहे हरिबल दाखो सुरबल मनें वहो रे । मो० ॥ नगरी वसावो खूब ॥ २६ ॥ का० ॥ तव तिहां नाकी बाकि न राखी पलकमें रें ॥ मो० ॥ वासी त्यां नगरी विस्तार | गढ मढ मंदिर पोलगुं सुंदर हलकमें रे ॥ मो० ॥ रचना कीध अपार ॥ ॥ २७ ॥ का० ॥ श्रीमुनि सुव्रत त्रीजग उद्धृत सो हंती रे ॥ मो० ॥ बिंब ठव्युं करि चैत । दंपति दोनी मूरति कीनी मोहती रे ॥ मो० ॥ पूर्वे जे लघुं देवत्त ॥ १८ ॥ का० ॥ रान वेलावल पिंग ने देवल देखिने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२८ ) रे ॥ मो० ॥ दंपति थयां उजमाल ॥ चोथा उल्लासनी प्रेम प्रकाशनी पेखिने रे । मो० ॥ कहि लब्धियें अग्यारमी ढाल ॥ २९ ॥ का० ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नव जोयण लांबी वसी, पहोली योजन बा र ॥ जाणुं लंकानी बनडी, वसी इहां वनद मजा र ॥ १ ॥ सजल सरोवर जल नखां, वाडी तिम लह कंत || जाएं सुरवाडी इहां, प्रगट थइ महकंत ॥ ॥ २ ॥ पटराणीना नामनी, वासी नगरी सार ॥ व संतपुरी नामें जली, चावी यइ संसार ॥ ३ ॥ इि परें नगरी वासिने, हरिबल राजी कीध ॥ पहोतो ते निज थानकें, जलधी नाथ प्रसि६ ॥ ४ ॥ वसंत सिरीना सचिवने, सोंपी नगरी तास ॥ केताई दिन तिहां रही, आागल चाव्या उल्लास ॥ ५ ॥ दल वाद ल हरिबल तणुं, चाले ज्युं जलपूर | धरणी तलथी सलसल्यो, शेषनाग जयनर ॥ ६ ॥ के शुं लेशें लंकने, के सुं जेशे स्वर्ग ॥ के गुं जेशे जगतने, इम जाणे ज नवर्ग ॥ ७ ॥ इणिपरें हरिबल राजवी, चाल्यो प्रति ही चंप || सीमाडाना जे धणी, यावी नमिया नूप ॥ ८ ॥ इषि परें प्राण मनावतो, आव्यो चारज दे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) श॥ वात वधामणी ससुरने, मूक्यो मंत्रि विशेष ।। ॥ए ॥ ते पण अतिही उतावलो, मतिसागर मंत्री श ॥ श्राव्यो निज कंचनपुरी, पहोती मनद जगीश ॥१०॥ शीघ्र जई प्रणिपत करी, दीध वधाई ना थ॥ जामाता तुम पुत्रीने. तेडी अाव्यो साथ॥११॥ वात वधामणी सांगली, हरख्यो कुमरी तात ॥ स न्मान्यो मंत्रीशने, दर वधाइ विख्यात ॥१२॥ हरि बल पण उतावलो, आव्यो जलधि तीर ॥ जिहां ल युं समकित गुरुकने, दें त्यां मेरा सधीर ॥१३॥ देखी जनमनी नूमिका, दंपति दो हरखात ॥ा सा चूं के सोहणुं, मिलश्यां जननी तात ॥ १४ ॥ खूनी थापण दो जणां, दूतां नृपनां चोर ॥ ते थयां साचा पुण्यथी, जव मिव्या गुरु ण ठोर ॥१५॥ ॥ ढाल बारमी॥ . ॥ मोतीयारां हे तुंबक कुंबखां ॥ अथवा ॥ अजि त जिणंदझुं प्रीतडी । ए देशी ॥ एम चिंतवी दंपति दो जणां, कालिकाने देवल आय ॥ सहि दुआं रंग वधामणां ॥ ए आंकणी॥ एतो पूजा नक्ति करीघ पी, एंतो प्रणम्या देवीना पाय ॥१॥ स ॥ धन धन मावडी जगतमां, प्रगटी तुं जन सुख हेत ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३० ) ॥ स० ॥ दीन दुःखीया जीवने उदरी, करी पावन संपद हेत ॥ २ ॥ स० ॥ इम वासना वासना देवी नी, करि दंपती बोले श्राशीष ॥ स० ॥ माता जीव जे सुरगिरिनी परें, अम पुहची सघली जगीश ॥३॥ ॥ स० ॥ हवे हरख्यो कंचनपुर धणी, एतो वसंत सेन नूपाल ॥ स० ॥ तेम वसंतसेना रागिणी, पट्ट राणी थइ उजमाल ॥ ४ ॥ स० ॥ निज पुत्रीने वर कारणें, शणगारी नगरी ते सार ॥ स० ॥ एतो देव दाराव विद्याधरा, एतो जोवा मलिया अपार ॥ ५ ॥ ॥ स० ॥ एतो गजरथ घोडा पालखी, शणगारखा ते बहु ठाठ ॥ स० ॥ राज मारगमां विराजता, पथरा व्या सोवन पाट ॥ ६ ॥ स० ॥ डर्वानां हे तोरण बांधियां, बच्चें सुरतरु दल महकंत ॥ स० ॥ एतो घ र घर चटुटे चाचरे, फुलमालापुंज सोहंत ॥ ७ ॥ स ० ॥ टोडे टोडे मोतीना ऊमणां, लहकी रह्यां तेजमें तें ज ॥ स० ॥ मानुं कुमरी वरने निरखवा, यावी स्व र्गपुरी नेहेज ॥ ८ ॥ स० ॥ शणगारी नगरी इणि परें, दरखी नृप वसंतसेन ॥ स० ॥ चतुरंगी सेना स ज करी, वर कुमरीने तेडवा तेणं ॥ ए ॥ स० ॥ गय यांग गूडी बले, गुंजालां गुंजे निशाण ॥ स० ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) साबेला सबल ते सज करयां, नगरीजन कुमर सुजा ण ॥१०॥स० ॥ श्म आमंबरशुं नरपति, सामश्यु सबल सजेय ॥ स०॥ चाल्यो कुमरी वरने तेडवा, पुरजन हर्ष धरेय ॥११॥ स॥ नवयोवन नारी सोहामणी, मली गावे मधुरां गीत ॥ स॥ रंना न वंशीना मद गालती, गावे कोकिल स्वरनी रीत ॥ ॥१५॥ स० ॥ दलवादल देखी पुत्री, नृप पुरज न हरख जरात ॥स ॥ जिम नविकने समकित मले, तिम मलिया ससरो जमात ॥१३॥ स ॥ वर कन्या आदि सदु मल्यां, नृप राणी हर्ष जराय ॥स ॥ तिण वेला हर्ष जे उपनो, ते तो पुस्तक ल खियो न जाय ॥१४॥स ॥ कुमरी ने जनकी जनक तणो, वर्ष बारनो नांग्यो वियोग ॥स० ॥ आ ते साचुं के सुहणुं थयु, कुमरी वरनो संयोग ॥ ॥१५॥स॥धन दिवस धन वेला घडी, मुफ पु त्रीय जे लघु मान ॥ स ॥ एम मावित्र हरखे म नमें, जिम कुमक लहे सुनिधान ॥ १६ ॥ स ॥ ह रिबल ए जोश्नी जातिमा, प्रगट्यो वडो पुरस्य निधान ॥ स ॥ मुफ पुत्रीनी संगतें, थयो उंच ए जग सुल सान ॥ १७ ॥ स ॥ हवे हरिबलने ससरो कहे, न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१ ) ली मीठी अमृत वाण ॥ स० ॥ स्वामी पधारो गज शिर चढी, पुर पावन करो प्रमाण ॥ १८ ॥ स० ॥ शेठ सेनापति सारथ मलि, करे विनती हर्ष विख्या त ॥ स० ॥ तव हरिबल हर्ष विनोदथी, गजशिर च ढया ससरो जमात ॥ १५ ॥ स० ॥ यामां साहामां वाजित्र वाजते, गावे गुणिजन शब्द खंम ॥ स० ॥ होवे नाटक बत्रीश ब६ जे, तेणें गाजी रधुं ब्रह्मम ॥ २० ॥ स० ॥ कस्यो उष्ठव विवाह जेटलो, कुमरी नी वधारवा लाज ॥ स० ॥ नृपें करमूकामों म बीने, दीधुं कंचनपुरनुं राज ॥ २१ ॥ स० ॥ मणि सोवन रूपुं सावटुं, गुणिजनने कीध पसाय ॥ स०॥ करि पृथ्वी उरण दानमें, याश्रीजन बहु तृपति कराय ॥ २२ ॥ स० ॥ जलां नेटणां लावे पुरजना, वर क न्याने करे नेट ॥ स० ॥ मन वंबित सुखनिधि नल टीयो, तेणें नारख्यां दुःखने उबेट ॥ २३ ॥ स०॥ निवास नी जायगा मोटकी, रहेवाने दीधीजी खास ॥ स० ॥ रंग महोलमें वास्यो कुमरीने, दीधो एकविरा भूमि यावास ॥ २४ ॥ स० ॥ जसपडहो वजाड्यो नयर मां, वरतावी महीनी खाए ॥ स० ॥ वीरबल केरो हरिबल पुत्रो, ठव्यो राज्ये लिखित प्रमाण ॥ २५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३३) स ॥ जो जो नवियां साधुनी संगते, लह्यो जीवद यानो धर्म ॥ स ॥ थयो परसन जलनिधि देवता, तिणे वधायो महीनो नर्म ॥२६॥स॥ थयो चावो ते चिढं खूटमें, जोगवे शुन दि समृ६ ॥ स ॥ जाणे सुरपतिनो समोवडी, थइ बेठो मही प्रतिम ॥ २७ ॥ सा जलें प्रगव्या सद्गुरु जगतमें, उपगा री परम कृपाल ॥ स ॥ कहि चोथा ननासन। बा रमी, लब्धे संयोगनी ढाल ॥ २७ ॥ स० ॥ ॥दोहा॥ ॥ एहवा सशुरु वयणथी, पाम्यो जिनवर धर्म ॥ थयो परसन जल देवता, वधियो मढी नर्म ॥१॥ हरिबल दो पदवी लह्यो, सागरदेव पसाय ॥ उकुरा बत्रीश लाखनी, पायकें अश्व सुहाय ॥२॥ गुंढा दम विराजता, दिसता जाणे पहाड ॥ गजशालामें गज घटा, सोहे सहस अढार ॥३॥ सुख विलसे संसारनां, शोलशे राणी सब ॥ पटराणी थापी व डी. वसंतसिरी सुकयब ॥४॥ मलगीजे परिणेतनी. काली कर्कशा नार ॥ ते पण हरिबलें संग्रही, करि अपर अवतार ॥ ५॥ अमारि पलावे चिहुँ दिशे, जिहां सूधी आण ॥ तिहां सूधी को जीवनां, का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) ढी न शके प्राण ॥ ६ ॥ इणिपरें लीला जोगवे, पूरव पुण्य पसाय ॥ चावो थयो चिटुं खूटमें, महोटों ह रिबल राय ॥७॥ हवे ससरो हरखें करी, वसंतसेन नूपाल ॥ जामाताने वीनवे, कर जोडी नजमाल ॥ ॥ ॥ यो अनुमति दीदा तणी, पाणी वर्ष अपा र॥ शिव रमणी वरवा अमें, लेगुं संजम नार ॥॥ एम कही या लही, सासू ससरो दोय ॥ पंच महाव्रत नच्चयां, सुविहित सद्गुरु जोय ॥१०॥च ढते परिणामें करी, पाले पंचाचार ॥ उग्र तपस्यानां धणी, थयां सूधां अणगार ॥११॥ रूपक श्रेणी चढ तां थकां, तेरमुं लघु गुणगाण ॥ शुक्त ध्यानना जो गथी, पाम्यां केवल नाण ॥१२॥ चोशठ इंशदिक मली, अंबुज नंद रचेण ॥ नाविकने प्रतिबोधतां, लहे बिजबोध विशेण ॥ १३॥ केवल कमला नोग वी, पाली पूरण आय ॥ कर्म कुटिल दूरे करी, पहो तां शिवपुर गय ॥ १४ ॥ धन धन वसंतसेनने, धन वसंतपट नार ॥ दंपति दो मुगतें गया, चढियां मुक्ति मकार ॥१५॥ ॥ ढाल तेरमी॥ ॥ नथरो नगीनो महारो,हाररो हीरो महारो, नण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३५) दीरो वीरो महारो साहेबो,पनामारु घडी एक करहो फुकाय हो॥ ए देशी ॥ दवे हरिबल सुख जोगवें॥ पुण्य वंत ॥ पाले राज अखंम हो ॥ सागर देव पसायथी। पुण्यवंत ॥ थयो गुण मणिनो करम हो ॥१॥ सुगुण सनेही प्यारो, धर्मनो मोही शुन, अनुनव गेही सु ख सागर ॥पु०॥ हरिबल परजा पाल हो ॥ए यांक णी॥ आण मनावी चिहुं दिशें ॥ पु॥ षोडश देश विशेष हो ॥ षोडश देशनी अंगजा ॥पु॥ विलसे ज्यु सुख सुरेश हो ॥ २ ॥ सु०॥ गुण लिये जीव दया तणो ॥पु०॥ गुण ले गुरु उपदेश दो ॥ परतख देखी पारख्यु ॥ पु० ॥ हरख्यो मही नरेश हो ॥३॥सु॥ तो हवे महिमा धर्मनो ॥पु०॥ प्रगट करूं नजमाल हो ॥ मानव नव सफलो करी ॥ पुं०॥ मेली सुकत माल हो ।मासु॥ श्म जागी जल कांउडे ॥पु॥ जिहां लह्यो गुरु उपदेश दो॥ तिहां कणे चैत्य रची जलुंगपु॥राखं तिहां नाम विशेष हो ॥५॥सु॥षोड श देश सुहामणापुकीधा जिन प्रासाद हो॥ बिंब जराख्यां रयणमें ॥ पु ॥ बंमी सघलो प्रमाद हो ॥ ६ ॥ सु० ॥ अमारि पलावे आपथी॥ पु० ॥षोड श देश मजार हो ॥मार शब्द को नवि उच्चरे ॥पु०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सघली परजा विचार हो॥७॥सु० ॥ नव जेदें जे पुण्य ॥ पु० ॥ गणांग सूत्र मकार हो ॥ तिण वि धे हरिबल केलवे ॥ पु० ॥ गुरुमुखी थश्ने विस्तार हो ॥ ॥ सु० ॥ जीव दया फल देखीने ॥ पु० ॥ सदुजन धर्म दीपाय हो ॥ लोक कहे जेहवा रा जवी ॥ पु०॥ एहवी परजा कहाय हो॥ए॥सु॥ इणि परें रंग विनोदमें ॥पुण॥ काढे सुखमें दीह हो। तिण समे मजीरायने ॥ पु० ॥ प्रेष्य याव्यो अबीह हो ॥ १० ॥ सु० ॥ विशाला नगरी तणो ॥ पु० ॥ आप्यो प्रेष्ये लेख हो ॥ श्रीपति मंत्री तुम तणो । ॥पुण॥ तेडवा मूक्यो विशेष हो ॥११॥सु॥ए अधि कार ते सांजली ॥ पु० ॥वांच्यो विशालालेख हो॥ सन्मानी ते प्रेष्यने । पु॥ दीधो उतारो अशेष हो। ॥१२॥ सु०॥ मतिसागर मंत्रीसरु ॥ पु०॥ मन्त्री यें तेज्यो सुजाण हो ॥ कनक पुरी रखवालवा ॥ ॥ पु० ॥ कीधो कुल्ल दीवाण हो ॥ १३ ॥ सु० ॥ बांध डोड दरबारनी ॥ पु० ॥ में सोंपी तुज या ज हो ॥ परजा जिम सुखमें रहे ॥ पु० ॥ ते तुमें क रजो काज हो॥ १४ ॥ सु ॥ शीख जलामण इणि परें ॥पु॥ महीयें कीधी चंग दो ॥ हरिबल चाल्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३७ ) पुर नगी ॥ पु० ॥ सचिवने सोंपी झिंग हो ॥ १५ ॥ सु० ॥ चतुरंगी सेना सज करी ॥ पु० ॥ जाणियें ना इव रंग हो ॥ दलवादल जलपूर ज्युं ॥ ५० ॥ जें च ल्यो घणे यामंग हो ॥ १६ ॥ सु० ॥ वसंत पुरी पट नारीनी ॥ ५० ॥ पूर्वे वसावी जेह हो ॥ ते नगरीयें श्रावीया ॥ पुं० ॥ पामी परजानेह हो ॥ १७ ॥ सु० ॥ दिन केताक तिहां रह्या ॥ ५० ॥ खागल चाल्या शीघ्र हो । विशालापुर संनिधें ॥ पु० ॥ या व्यो हरिबल तिग्र दो ॥ १८ ॥ सु० ॥ गुन लग्ने गु न मुहूरतें ॥ ५० ॥ नगरी में कीध प्रवेश हो ॥ जाली यें हर्षपयोधिमा || पु० ॥ किधो प्रवेश नरेश हो ॥ ॥ १५ ॥ सु० ॥ पुर जन सहु राजी थयां ॥ ५० ॥ नयरों निरखी नाथ हो ॥ सोहवें मली शुन मोती यें || पु० ॥ नृपने वधाव्यो सनाथ हो ॥ २० ॥ सु० ॥ नलें खामंबरें हवें ॥ पु० ॥ पहोतो नृप द रंबार हो ॥ बत्रीश राजकुली मल्या | पु० ॥ मलि या बांद पसार हो ॥ २१ ॥ सु० ॥ जल नलां लावे जेटणां ॥ पु० ॥ नृप पण ते करे अंग हो । सनमा नी मी तेहने || पुं० ॥ देइ शिरपान ते रंग हो || ॥ २२ ॥ ० ॥ इणिपरें लीला राजनी ॥ ५० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) जोगवे मजीराय दो ॥ रहे जीनो रसतानमें ॥ पुग॥ वीशाला पुरताय हो ॥ १३ ॥सु० ॥ शोल कलामें चंमा ॥ पु० ॥ सोहे ज्यु कजास हो ॥ तिमहरिबल शोल जनपदें ॥ पु०॥ सोहे तेजप्रकाश हो ॥ २४ ॥ सु० ॥ ए गुण जीवदया तणो ॥ पु०॥ फलिया मनोरथ सिम हो । लब्धे चोथा उनासनी ॥ पु॥ तेरमी कही परसिद हो ॥ २५ ॥ सु० ॥ इति ॥ ॥दोहा॥... ॥ पंच विषय सुख विलसतां, वीता केता दिन्न । वसंतसिरी पटनारीयें, जन्म्यो पुत्र रतन्न ॥ १ ॥ श्री बल नामें सिंह ज्युं, प्रगट्यो माहाबलवंत ॥ हरिबल केरो पुत्रडो, सकलकला जीपंत ॥ २ ॥ कुसुमसिरी जे संकनी, तिणे पण जन्म्यो पुत्र ॥ मात पिताने सुख दिये, चलवे घरनां सूत्र ॥ ३॥ सुबलनामें पुत्र जे, प्रगट्यो ज्यु रवितेज ॥ मातपिता हरखे घj, देखी दो सुत हेज ॥४॥रामने लखमण जोड ज्यु,सो हे त्युं दो बात ॥ दाने माने आगला, पुहवीमां करें ख्यात ॥ ५॥ जोड मली दो चातनी, श्रीबल सूबल नाम ॥ राज काजमें तत्परा, राखे मन अनिराम ॥ ॥ ६ ॥ बीजी राणी जे अने, षोडशे जे गुन मन्न। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) तिणें पण पुण्यना योगथी, जन्म्यो पुत्र रतन्न ॥ ७ ॥ इणिपरें लीला जोगवे, हरिबल पुण्य विख्यात ॥ सं सारिक जे सुख कह्यां, विजसे ते सुख सात ॥ ८ ॥ तन धन स्त्री सुत सस्यनी, अंबर रस ए सात ॥ जेहने घरें पुष्यवेल बे, तेहने ए सुख शात ॥ ॥ इणि परें काल ते नीगम्यो, वर्ष सहस पचवीश ॥ नृप राणी सरखे मनें, पाले धर्म जगीश ॥ १० ॥ जैन दरीसनमें थइ, नृपनी जगती कहाय ॥ तिहां सूधी कृषि विचरता, पुहवि पवित्र कराय ॥ ११ ॥ देव गु रुने वांदिने, सांजलि गुरु उपदेश ॥ त्यार पढें ते के लवे, घरनां काज विशेष ॥ १२ ॥ इलिपरें हर्ष विनो दमें, श्री जिनधर्म दीपाय || ति समे विशमा जिन तणा, धाव्या मुनिजन राय ॥ १३ ॥ पंचसया परवस्था, गणधर सुस्थित नाम ॥ वीशाला पुर परि सरें, उतरखा निरखी गम ॥ १४ ॥ साधु वधामणी मालीयें, नृपने दीधी ताम ॥ नृप पण निसुली मालीने, देवे महर्द्धिक गाम ॥ १५ ॥ . ॥ ढाल चनदमी ॥ ॥ सुडला संदेशो कहेजे महारा पूज्यने रे । अथवा ॥ जीव जीवन प्रभु किहां गया रे ॥ ए देशी ॥ वात वधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५० ) मणी गुरुनी सांजली रे, हरखित यया नृप लोक रे । धव धव धाई गुरुने वांदवा रे, याव्या ते जोगी चातुर कोक रे ॥ १ ॥ सांजले मीठी गुरुनी देशना रे ॥ ए यांकणी ॥ जेद थकी पाप पुलाय रे ॥ पावन होवे जीवित थाप रे, अक्षय पद ते लहाय रे ॥ ॥ सां० ॥ २ ॥ निगमन पांचे साचवी रे, बेग ते गुरुना वंदि पाय रे ॥ एकल चित्तें एकण ध्यानथी रे, सांजले दो कर जोडी राय रे ॥ ३ ॥ सां०॥ तिय समे गुरु पण अवसर उलखी रे, देशना देवे ज्युं जल धार रे ॥ जिनवरें जांखी जेहवी देशना रें, तेहवी ते वाणीयें कीधो उच्चार रे ॥ ४ ॥ सां० ॥ सांजनो नवियां मीठी देशना रे ॥ पामी ते मानवनो व्यव तार रे॥एजें कांहारो मनुजव पामीने रे, सऊन संधी सारो सार रे ||५|| सां०॥ पंखी परें रे मेलो ए मव्यो रे, मतां शी लागे तस वार रे ॥ तेम रे सगाइ स्वारथनी जणी रे, मटतां शी लागे तेहनी वार रे ॥ ६ ॥ सां०॥ को कहो तात ने को कहो मात ने रे, को कहो नात ने को कहो जात रे ॥ लिपरें सयण संबंध ते वयाथी रे, स गपण वेंची लीधुं ख्यात रे ॥ ७ ॥ सां० ॥ को करो प्रीत को करो वेरने रे, को करो साच ने को करो कूड रे ॥ थावुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३१) बे अंतें सदुने कालथी रे, बाखरे प्राणी धूड जेली बूंड रे ॥ ॥ सां० ॥ कूडी माया ने कूडी कामिनी रे, कूड डे अर्थी बंधव लोक रे । कूडी ने उनियां वा दल बांह ज्यु रे,ते पण यंतें होवे फोक रे ॥णासा॥ प्राणथी वाहालो जेहने जाणिये रे,राखीये तेहने ज्यु करि ग्रंथ रे ॥ ते पण न रहे उनो पूबवा रे, जातां ते लांबे महोटे पंथ रे ॥ १०॥ सां॥ केहि गया ने केहि जायशे रे, केहि ने प्राणी जावणहार रे ॥ पुण्य विहूणा इण वाटडी रे, जाशे ते प्राणी हाथ पसार रे ॥११॥ सां० ॥ कुण ते राणा ने कुण ते रांकने रे, बाखर एहिज एक ने वाट रे ॥ वशे साथें सु कत कीधलां रे, उतरतां ते नवनो घाट रे ॥१॥ ॥सां॥श्यो रे नरोंसो काचा कुंजनो रे, श्यो वली क रवो धननो मह रे ॥ देखत संध्याराग तणी परें रे, उडी ते जावे खिणमें अबह रे ॥ १३ ॥ सांग ॥ दश रे दृष्टांतें मानव जव तणो रे, पाम्यो जो जनम क दाय रे ॥ तो वली फरि फरि पामवो दोहिलो रे, जिम करी घूणादरने न्याय रे ॥१४॥सां॥ दान शीयल तप नावना रे, नांख्यो जे जिनवरें चनविद धर्म रे ॥ तेहनो जो कीजें खप शुजनावथी रे, बूटीयें खिणमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४९) निज निज कर्म रे ॥ १५॥ सांग ॥ होवे ते सहस गणुं पुण्य जाचतां रे,लाख गणुं ते अजाची होय रे ॥ कोडी गणुं फल गुप्त ए दानथी रे, ए फल पुण्यनु इणि परें जोय रे ॥ १६॥ सांव्याजें दीये ते धन बमएं लहे रे, चोगणुं पामे धन व्यवसाय रे ॥ शत गणुं पामे एकण देवथी रे, दान सुपात्रनी सं ख्या न थाय रे ॥ १७॥ सां० ॥ परनव जातांए म होटी सूखडी रे, बांधीये नातुं यावे काम रे ॥ सुर नर अक्ष्य पदवी सुख पामियें रे, वाधे ज्युं नरनव केरी माम रें॥ १७॥ सां०॥ एह जाणीने पुण्य की जीयें रे, दीजीये नावें दान सुपात्र रे ॥ नूगति मुंगति दो पदवी लहे रे, कीजीये आपणुं निर्मल गात्र रे ॥ ॥ १५ ॥ सां० ॥ आपज आपणे तरशो तुंबडे रे, नही को आवे परनव साथ रे॥ एह जाणीने प्रा णी चेतजो रे, जइ समकित वृदनी नरजो बाथ रें ॥२०॥सां॥ इणि परें उपदेश सुणिने नावियां रे, व्रत पचरकाणनी सुखडी लीध रे॥ राजा ने राणी पण थ कमनां रे, वचन सुधारस कानें पीध रे ॥ २१ ॥ ॥ सांग ॥ विषय कषायना मत सवि मीने रे, या दरे दंपति सुरुतमाल रे ॥ चोथा उनासनी लब्धि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४३ ) विजयें कही रे, सुंदर महोटी चौदमी ढाल रे ॥ ॥ २२ ॥ सां० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥इम उपदेश ते सांगली, हरखी परषद सार ॥ गुरुनें वांदी थानकें, पहोता सदु यागार ॥ १॥ तव कहे नृप कर जोडीने, सांजलो गुरु गुणगेह ॥ नव स्थिति क्यारें पाकरों, माहरी कहो ससनेह ॥ २ ॥ तव गं धर सुस्थित कहें, सांजलो तुमें माहाराय ॥ पांग व सहस्र ते वर्षनुं, वे महोदुं तुम खाय ॥ ३ ॥ तिहां सूधी तुमने घणुं, बे नोगावलि कर्म ॥ जव ते स्थिति पूरी थशे, तव वधशे तुम जर्म ॥ ४ ॥ पूरव जव तु म सांजली, केवली मुनिचंद पास ॥ संयम नृपशर युं ग्रही, लेहशो शिव पदवास ॥ ५ ॥ ए अधिका र ते सांगली, हरण्यां राणी राय ॥ पहोतां सहु निज मंदिरें, वंदी गुरुना पाय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल पन्नरमी ॥ ॥ बेडो नांजी ॥ ए देशी || हवे हरिबल निज मं दिर यावी, करे निज सुकृत करणी ॥ वसंत सिरी पट्टराणी यादें, करें सघली पुण्यतरणी ॥ १ ॥ नवि यां सुणजो, हरिबलनी जे करी ॥ ज० ॥ चडवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) मोक्ष निसरणी ॥ ॥ए अांकणी॥ पहेलाथी चोथे गुणगणे, आवे हरिबल लेदतो॥प्रकति सात नो क्ष्य ते करिने, हायक समकित ग्रहेतो ॥ २ ॥ जा श्रावकना गुण एकवीश महोटा, जे कह्या सूत्र सिमांतें ॥ ते गुण श्रावकना गुज पाले, नृप राणी मन खांतें ॥३॥०॥ चैत्य करावे श्रीजिन केरा, षोडशें देश मकार ॥ देशे देशे सुंदर दीपे, देउल शोत हजार ॥ ४ ॥ न० ॥ कोटि एक ते कनक रयणमें, उपर बप्पन लाख ॥ ए संख्या कहि जिनमंदिरनी, शोलशे देशनी साख ॥ ५॥न ॥ चैत्ये चैत्यें पांचे रंगें, थाप्या जिन चोविश ॥ कोटि एकशन लाख चु म्मालीश, बिंब जराव्यां अधीश ॥ ६ ॥ ॥ साधु जनने रहेवा सारु,रजतमें जाक जमाला ॥ सवा को डि ते धर्मने हेते, कीधी पोषध शाला ॥ ७॥ न०॥ साव सोवनमें अदर रचना, लखीयां पुस्तक सार ॥ झानोपगरण करिने महोटां, मूके पुण्य नंमार ॥॥ न॥ साहामीवबल दिनप्रतें मजी, पोषे नाव विशे ष॥ जनमतिनां साते ए खेत्रे,वावे ऽव्य अशेष ॥॥ न॥श्रीजिन नक्तितणी लय आणी, करे नित त्रिटंक सेवा ॥ बत्रिशब नृत्य करावे, प्रनु बागल जश लेवा For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४५) ॥ १ ॥ ॥ खट दरशनने जावें पोखे, जाएगी लान धनं सा ॥ दान तणां दश दूषण टाली, दें खादर बहु संता ॥ ॥ ११ ॥ ज० ॥ चोथा गुणवाणानी ए करणी, करें हरिबल दिल साच ॥ सिदवधू वरवा जणी सारु, जापीयें देवे लांच ॥ १२ ॥ ज० ॥ देश विरति गुण ठाणे चढीने, करे पंचपर्वी पोषा ॥ चनद नियम सं नारी संखे, काढे मनना शेषा ॥ १३ ॥ ज०॥ श्रा वकनां जे कह्यां व्रत बारे, ते पण साचवे रूडां ॥ यावश्यक दो टंकनां साचां, साचवे मन नहीं कूडा ॥ १४ ॥ ज० ॥ बह अहम वली दशम डवालस, करें तप चढतां शक्ति ॥ ष्ट करम दल दुर्बल कीधां, बेसवा सिवनी पंक्ति ॥ १५ ॥ ज० ॥ एकादश जे श्राद्धनी प्रतिमा, नांखी जे जगवानें ॥ विधि पूर्वक जिन अरचीने, ते पण वहि एक तानें ॥ १६ ॥ ज० ॥ सा तमे अंगें पाठ ए चावो, जो जो नवियां रंगें ॥ दश श्रावकें जिम वहि गुन प्रतिमा, तिम वहि मठिय जंगें ॥ १७ ॥ ज० ॥ पट यावश्यक नवकार यादें, तेनां वहे उपधान ॥ शिवरमणी वरवाने देतें, प हेरी माल प्रधान ॥ १८ ॥ ज० ॥ श्रावकने उपधान क्या विण, नवकार क्रिया न सुजे ॥ साधूने पण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४६ ) योग वह्या विण, वांच सूत्र न सूजे ॥ १९॥ानना पंचांगी में जोजो सघले, बे दर परगट्ट ॥ ते जा पीने हरिबल पोतें, करे करणी गरगट्ट ॥ २०॥ ॥ इणिपरें नृप राणी गृह बेगं, नाव संयमने पाले ॥ त्रिकरण शुद्धे नावें करीने, प्रातम जव अजुवाले ॥ ॥ २१ ॥ ज० ॥ हरिबल जे करे चैत्यनी करणी, ते कोइ कदेशे खोटी ॥ ते उपर तुमें सुणजो प्राणी, साखी कहुं हुं महोटी ॥ २२ ॥ ज० ॥ पांचमे खारे वीरने वारे, जे हुनु संप्रतिराजा ॥ सहस बत्रीश तें जीरण देहरां, सहस पचविश ते ताजां ॥ २३॥ ज०॥ ए संख्यायें चैत्य कराव्यां, बत्रीश थडां प्रासाद ॥ को टि सवा जंगली संख्यातां, बिंब जराव्यां वनाद ॥ ॥ २४ ॥ ज० ॥ पाटणराजें सिद्ध, सिंघपाटें जे दु कुमारपाल || बावन जीनालां तिथे पण कीधां, जीवित सूधी विशाल ॥ २५ ॥ ज० ॥ श्राबू उपरें र जत समोवड, देवल महोटां दीपे || श्रीश्रादीसर मूरति थापी, शा विमलो जग जीपे ॥ २६ ॥ ज० ॥ साते धातें चन्दे मानी, चन जिन पडिमा जरावी ॥ शा जीमे गढ आबूयें थापी, ते जुन नजरें चावी ॥ ॥ २७ ॥ ज० ॥ लाख नवाणुं खरची देवल, राणक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४७ ) पूरें जे कीधो ॥ शा धरणो पोरवाड वखाएयो, चड मु ख जइ जुन सीधो ॥ २८ ॥ ज० ॥ शोलमो उद्धार शेत्रुंजा उपरें, त्रिजगमें परसिद्धो ॥ मानवनव लहि श्रावक कुलमें, शा करमें जस लीधो ॥ २५ ॥ न ॥ याजने समयें एहवा प्राणी, जे हुआ रतन सरी खा ॥ तो चुं तदा ते कालनुं कहेतुं, शी तस करवी प रीखा ॥ ३० ॥ ज० ॥ ए दृष्टांत सुणीने नवियां, मानजो सघनुं सानुं ॥ धर्मी जनना जे गुण नां ख्या, ते मत जाणजो काचुं ॥ ३१ ॥ ज० ॥ ए अधि कार सुणी जे सर्वहे, ते लहे मंगलमाल ॥ चोथा उ ल्लासनी ढाल पन्नरमी, लब्धें ए नांखी रसाल ॥ ३२ ॥ ॥ दोहा ॥ " ॥ इम करणी करतां थकां वोल्यां सहसचन वर्ष ॥ एटले मुनिचंद केवली, पान धारया उत्कर्ष ॥ १ ॥ वाजां नाकी वाजीयां, मलिया चोरात इंड् ॥ नंद क मल रचना करी, थाप्या ज्ञानदीपंद ॥ २॥ गुरुनी व धामणी मालीयें, खावी नृपने दीध ॥ सन्मानें नृप मा लीने, ग्राम पसायो कीध ॥ ३ ॥ जिम तृषातुर प्रा एलीया, धाइ सरोवर जाय ॥ तिम नृप निज परिवा रशुं प्रणम्या निज गुरु पाय ॥ ४ ॥ चातुक जन श्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७) वणे सुणी, पीवे श्रुत जल हेत ॥ वचनामृत जलय र गुरु, वरसे नवि मन खेत ॥५॥ ॥ ढाल शोलमी॥ ॥ देशीयाख्याननी॥ चेतो चेतो चेतो रे प्राणी, जाणी संसार असार ॥ अंजलि जल ज्युं आउखं जाणी, म करो प्रमाद लगार ॥ १ ॥ परमाद पांचे परम वैरी, घेरी संसारी जीव ॥ नरग निगोड़े नाखे कुःखमें, विण खूने ते अतीव ॥॥ यावे मद माहा महोटा थश्ने, पहेलो प्रमाद वखाणो ॥ चोवीश दं मकें जीव दंमावे, परमाद एहवो जाणो ॥३॥ पांचे इंडियना थइ सघला,नांख्या विषय त्रेवीश॥ए बीजो प्रमाद जे सेवे, ते लहे थान चोविश ॥४॥ एकेक इंघिय मोकली मूके, जीव आहे ते घात ॥ ते उपर कढुं ज्ञानी जांखे, सांजलजो दृष्टांत ॥ ५॥ आंखने विषे दीपक देखी, चौरिंडि करे ऊंपापात ॥ चर चर तन दहे हेमने लोनें, पतंग लहे उपघात ॥ ६ ॥ध्रा गोंडियनो जो थयो विषयी, रोलंब पंकजवासी ॥ सुंढा दंमें दंतियें ग्रही कज, आबट्यो चमर तनुराशि ॥७॥ कानना रसिया नादना लीणा, नाग कुरंगम जेह ॥ बाजीगरने पारधि जालें, पासमें पडिया ते बेह ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए) रसनानो थयो लोलुपी मडलो, जल कनोल जे क रतो ॥ धीवरें गहुँ गुड लोन देखाडी, तालुएं ग्रह्यो मुचि धरतो ॥ ए॥ हाथणी देखी मातंग महोटो, थयो कामातुर कूल ॥ कामवरों करि पडियो अका डि, निज शिर नाखें धूल ॥ १० ॥ इणिपरें पांचे इिना रसथी, जे थया विषयाध ॥ तंउलमल परें कर्म निकाचित, बांधि जोगवे धंध ॥ ११ ॥ शोल क षाय ने नव नोकषाय, ए दो मलीने पचवीश ॥ त्रिजो प्रमाद ए जाणिने सेवे, पाडे ते नरकमें चीस ॥१२॥ अनर्थकारी पांचे निश, सेवे जे चोथो प्रमाद ॥ बा विस सागर बध्ये जाये, जोगवे नरकनो स्वाद ॥१३॥ राजकथादिक चारे विकथा, परमाद पांचमो कर ता ॥ नारे कर्मी थश्ने प्राणी, लहे कुःख चन गई फरता ॥ १४ ॥ पंच प्रमाद ए उष्ट जयंकर, सुव्रत हरे ते सदीवो ॥ लद चोराशि योनी फरतां, ए में संसारनो दीवो ॥ १५ ॥ पंच प्रमादना ए गुण जी वडा, मनगुरू नावमें प्राणी ॥ प्रमाद पांचे दूरें बैं मो, जिम था केवल नाणी ॥१६॥ प्रमादने वरों जाणे जीवडो, जे सघलु ए महासं॥पण ते न्यंतर नि रखी जोतां, गुं देखे ने तहारुं ॥१७॥ दिवस निशा घट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५०) मालने जोगें, बायु सलील घटाडे ॥ चंद ने सूरय ह पन धोरीथी, काल रहट्ट नमाडे ॥१७॥ इणिपरें न्यंतरमें निशिदिन वहे,नवकँपक घटमाल ॥काल अनं तो परमाद संगें, पडियो मोहनी जाल ॥१॥ मो हनी जालमांजे नर पडिया,ते कदि नावे ऊंचा ॥सागर कोडाकोडी सित्तेर सुधी, धस्मगुं मांझे खूचा ॥ २० ॥ कंचन कामिनी अरथें मेले, माया महोटुं माणुं॥पण ते निशिदिन रहे जीव धखतो, जिम शघडीनुं बाणुं ॥ ॥ २१ ॥ स्वारथनूत संबंध ए मलीयो, पोषवा पिंमने धाइ ॥ काम पडे कोइ टुकडो नावे, जो जो जगनी कमाइ ॥ ॥ पोतानो करि गणिये जेहने, ते दोवे साहामो वैरी ॥ जो जो नवियां सगपण सा चुं, ज्ञाननी दृष्टें हेरी ॥२३॥ मात पिता बंधु जात सुता पति, लेखवे साचि सगाई ॥ पण तस ावी अदल पोहोंचे, नवि रहे पूजवा कां ॥ २ ॥ संसार विचारी जोतां, बाजीगरना गोटा॥ कृष्णनं गुर ले जीवित तो पण, माने वंबित पोटा ॥२५॥ जल परपोटा समान ए काया, शी तस कूडी माया ॥ य मने मंदिर जावू सदने, कुण पुर्बल कुण राया ।। ॥ २६ ॥ वांजणीयें जिम सुहणुं दीहूं, जाणे में ज For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५१) न्म्यो बेटो || नाम विश्वंभर देइ एहवं, वंध्या मेहं मेट्यो ॥ २७ ॥ जब जाग। तब रोवा लागी, किहां गयो माहरो पुत्र ॥ वृद्ध कालें मुऊने सुखदाता, राखे घरनां सूत्र ॥ १८ ॥ वंध्यानुं जिम सुहणुं खोटं, तिम संसार बे खोटो || एवं जाणी प्राणी चेतो, टाली मोहनो गोटो ॥ २५ ॥ ए संसार असार वखायो, जेहवो गरनो ह ॥ माननी प्रणीयें ज्युं जल कलिया, तिम बें जगमें नेदं ॥ ३० ॥ ऋषि ने रमणी आपणी तिहां लगें, जिहां लगें यांख्यो साजी ॥ यांख मीचाणे को नहीं ताहरु, इम कहे जिनवर गाजी ॥ ३१ ॥ एटलामांहे समजी लेजो, जो दुवो मोहना अर्थी । तो ए प्रमाद पांचे ढंकीने, करो सुकृत निज करथी ॥ ३२ ॥ चोथा न लासनी शोलमी ढालें, दीघो एम उपदेश ॥ लब्धि कहें जवि परखद बूजी, बृज्यो मही नरेश ॥ ३३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ इम उपदेश ते सांगली, विनवे वे कर जोडि ॥ कहो स्वामी मुऊ बागडें, पूरव जवनी होडि ॥ १ ॥ शीकरणीयें हुं लह्यो, धीवर कुलनी जात ॥ शी कर पी नृप पद लयुं, शे लहि नृपधी ख्यात ॥ २ ॥ शी करणी मुकने मव्यो, तटिनीनाथनो नाथ ॥ सुरम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५१ ) यिनी परें मुने, पूरी वंडित श्राय ॥ ३ ॥ शी करशि कालसेन जे, खेल्यो मुगुं घाता में पण पाठी तेहमें, उपजावी घणी घात ॥ ४॥ शी करणी सद्गुरु मल्या, झुंजने दीधो धर्म ॥ जीवदया मुंऊ दाखवी, प्रबल व धारी शर्म ॥ ५ ॥ तव कहे मुनिचं केवली, सांनजो तुमें राजान ॥ पूरव जव करणी करी ते कटुं तुमची निदान ॥ ६ ॥ जे जेहवी करणी करे, ते तेहवं फल पाय || शुनाशुनना बंध जे, ते तेहवा जोगवाय ॥ ७ ॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥ " ॥ जनम्यो जेसल मेर ॥ श्रथवा ॥ प्रणमी सद्गुरु पा य ॥ ए देश । ॥ चौल जोजन सार, धातकी खंम विदेह में जी ॥ विजय पुप्फावर मनोहार, नद्दिलपुर वसे तेहमें जी ॥ १ ॥ तेहज पिंग मजार, विप्र वसे जयदे वता जी ॥ जय सिरी नामें ते नार, जारिया विप्रणी ठेव ता जी ॥ २ ॥ प्रसव्या ते दिजीयें बाल, पुत्रजुगल दो सोहामणा जी ॥ नयण वयल सुरसाल, रूप रंग में कोइ नहिं मणा जी ॥ ३ ॥ सूनंद उपनंद दोय, ना म तव्यां दो पुत्रनां जी ॥ बाधे शशि परें सोय, मन ह रखें मावीत्रनां जी ॥ ४ ॥ पाम्या ते जोबन बाल, प स्पावी दो अंगना जी ॥ रूपें ते जाक ऊमाल, जा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५३) लीयें नाकि वामांगना जी ॥ ५ ॥ पंच विषय सुख जोग, विलसे से केतकी भ्रंग ज्युं जी ॥ पूरव पुण्य सं योग, रहे जीना सुखरंगशुं जी ॥ ६ ॥ एक दिन दो मलि जात, वसंत जोवाने नीकल्या जी ॥ तव तिहां दीगे सुज्ञात, उपशम रसमें जे नव्या जी ॥ ७ ॥ श्री जिनवरनो जे छात्र, ध्यान धरी रह्यों का स्सगें जी ॥ देखी ते नवली हो यात्र, याव्या दो बंधव त स पगें जी ॥ ८ ॥ वंदि ते मुनिना हो पाय, सुनंद हिज स्तवना करे जी ॥ उपनंद घेषें जराय, मुंम पशुं ते देखी सरे जी || || काली ते काय कशांग, मलम लीन पणे दीठडो जी ॥ जाएणीयें जोई भुजंग, दुर्गंध गंधा अधीoडो जी ॥ १० ॥ ष्ट दरिङ्गीनो वेश, दी सतो जाणीयें वाघरी जी ॥ न मर्द न स्त्रीनो वेश, एक मां नही एपसागरी जी॥ ११ ॥ मा वित्रें मूक्या निसास, नूखने जाडे करी रजा जी ॥ दाखवी पापनी राशि, सहुने करावे धर्गला जी ॥ १२ ॥ नीची ते दृष्टि घरे य, बगपरे हिंने रसातला जी ॥ वदनें हो ते कर देई, बो ले मुखथी धरतकला जी ॥ १३ ॥ मधुरां नांखे हो वेण, नर नारी विप्रतारवा जी ॥ मेले टोली ते से, जठरनुं काज सुधारवा जी ॥ १४ ॥ इणिपरें मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५४) धरी क्षेष, उपनंदें साधुनिंदा करी जी ॥ करि वली 5 गंडा विशेष, नीच कुलीनुं पोतुंजरीजी ॥१५॥ बांधी ज्यु रेशम गांठ, उपर मीण लपेटियें जी॥ तिम एवं बांधीजी गाउ, जोगव्या विण किम बूटियें जी॥१६॥ तव तिहां सूनंद चात, रीश धरी कहे बंधुने जी॥ मत करो साधुनी तांत, नाव धरी नमो साधुने जी ॥ १७ ॥ साधु के जगमा उद्योत, झान दीवो कर दाखवे जी॥ बांधे तीर्थकर गोत, साधु वचन चित्त राखवे जी ॥ १७ ॥ मेले ते सकल संयोग, जो क वि यावे हलकमें जी॥ टाली ते कर्मना रोग, ज्यो तिवधू मेले पलकमें जी ॥१ए ॥ चिलाती पुत्र जे 5 ष्ट, ते गयो सुरलोक आम्मे जी ॥ अढी दिन मांदि ते पुष्ट, ऋषि वचनें थयो गठमें जी ॥ २० ॥ करें नव कल्पी विहार, नाविकने पडिबोहवा जी॥ सूज तो लेवे आहार, निज आतमने सोहवा जी ॥ १ ॥ जीती ते रागने औष, उपशम रसमें जे नल्या जी ॥ स्वारथीयो जग देख, अहिकंचुकि परें नीकल्या जी ॥ २२ ॥ एहवा जे मुनिराज, तेहने किम करी नंदी यें जी ॥प्रबल वधारी हो लाज, साधुने कर जोडी वंदिये जी॥ २३ ॥ साधुवंदाथी तुं जोय, नरग च Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५ ) बेदी विष्णुयें जी ॥ जिन पदवी तिहां सोय, नाव श्री बांधी जिष्णुयें जी ॥ २४ ॥ नंदमणियारनो जीव, दर्डर वाव्य जे सेवतां जी ॥ वीरने नमतां अतीव, ते थयो दर्डर देवता जी ॥ २५ ॥ एहवा ते ऋषि गु ए जाए, इव्यथी नावथी सेवी यें जी ॥ म करो को निंदा सुजाण, साधुने करी देव देवीयें जी ॥ २६ ॥ इम उपदेश ते देय, सूनंदें समजावीयो जी ॥ तव क र जोडीने बेय, उपनंदें साधु खमावीयो जी ॥ २७ ॥ बो तुमें गिरुत्रा जी साध, पर उपगारी जंतुना जी ॥ खमजो मुफ अपराध, जे में कीधी खाशातना जी ॥ ॥ २८ ॥ साधुनी स्तवना जो कीध, तो बांधि सुनंदें सुरगई जी ॥ उपनंदें नीच पद लीध, साधु निंद्या निजमई जी ॥ २९ ॥ इम ते चालोइ हो पाप, बांधव दो ऋषिने नमी जी ॥ टाली ते सघलो संताप, चाव्या दो निज गृह वन रमी जी ॥ ३० ॥ चोथा उल्लासनी ढाल, सतरमी लब्धिविजय कही जी ॥ सुणजो जवि उजमा ल, आागल शीशी कथा नही जी ॥ ३१ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे दो नाता मंदिरें, यावी करे गुन काम ॥ खट दरिसन पोखे सदा, लेहवां स्वर्गनां धाम ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५६) हवे जयदेवना घरथकी, साहामी ने एक पोल ॥ तेहमें दो बसे वाडवा, सुदेव जूदेव उल ॥ ॥ साढ़ थपासें वसे, सुदेव नूदेव नह ॥ खंमा स्त्री सुदें वनी, विशाखा नूदेवनी गट्ट ॥३॥ ते दो नारीने थयो, पूर्वकर्म संयोग ॥ दाघ ज्वर बलतर तणो, उप नो तेहने रोग ॥४॥ तव ते चिकित्सा जणी, तेड्या बदु वैद्यराज ॥ पण टेकी लागे नही, कोन सरीयु काज ॥ ५ ॥ तव सुदेव नूदेव विप्र दो, मनझुं कीध विचार ॥ किम वहेशे घरणी विना, किम वहेशे घर जार ॥६॥ म दो विप्र विचारीने. बीजी परण्या नार ॥खंमा विशाखा दो प्रिया, मूकी पीयर सार ॥ ७॥ परहरी दो स्त्री रोगिणी, जुमा थया दो विप्र ॥ जिम मांखी. घृतमें पडी, काढी नाखे नि ॥॥ ते स्थिति करिश्ण वाडवें, नवि शोच्या ते लगार ॥ नवि बिही ना कहोनाथकी, नवि बिहिना किरतार ॥ ए ॥ मद वाया दो विप्र ते, न करी सार संजाल ॥ तव दो स्त्री ते रोगिणी, तेहने उपनी काल ॥१०॥क्रोध वों दो रोगिणी, दे दो पतिने शाप ॥ तुमें दो अम पातें पडी, लेहजो तुमें संताप ॥ ११ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५७ ) ॥ ढाल ढारमी ॥ || दिल लगा रे बादल वरणी ॥ ए देशी ॥ इम क हेती गइ तातने गेहें, जिहां बे हरिजह नामा ॥ नवि जोजो रे कर्मनी करणी, जोगवे जे फल धरणी ॥ ज० ॥ बे तेहनी हरिजहणी दिजणी, तस कुखनी दो रामा ॥ १ ॥ ज० ॥ पीयर पण वे एकल झिंगें, नद्दिलपुर जे नामें ॥ ज० ॥ काढी पतियें पीयर या वी, रोगिणी मावित्र गमे ॥ २ ॥ ज० ॥ मात पिता तव निरखी मलीयां, पूछें कुशलनी वातो ॥ ज० ॥ कुशल तो नजरें जुवो बो पिता जी, शी कहुं दिजनी ख्यातो ॥ ३ ॥ ज० ॥ जब म बेने रोगिष्ट जाणी, बीजी परणी आणी ॥ ज० ॥ ते उपर यम बेहुने काढी, शोक्यनी करि तिहां टाढी ॥ ४॥न ॥ तव में याव्यां तातजी चरणे, जाणी पीयर शरणें ॥ ज० ॥ स्त्रीने पक्ष कह्या दो वारु, वास पीयर चरतारु ॥ ५ ॥ ॥नए अधिकार सुणीने पितायें, यांखें धांसू त्राएयां ॥ ज० ॥ फिट रे जमाई दो कुल हीणा, एहवा न होता जाएया ॥ ६ ॥ ॥ धिग धिग बे तुम जीवित जाति, कीधो विश्वास घात ॥ ज० ॥ एहवा प्राणीनुं मुख महीयें, नजरें नावशो कहीये ॥ ७ ॥ ॥ पण शुं क १७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ) री श्री भगवानें, लेख लख्या जे पानें ॥० ॥ यण चिं तव जब माथे वाणी, जोगवे पुत्री ते प्राणी ॥८॥ ॥ ज० ॥ इणिपरें वचन कहींने तातें, राखी दो कुमरी तें ॥० ॥ उषध वेषध करवा लाग्या, जे जिम यावे वेतें ॥ ए ॥ ज० ॥ श्राय उपाय करी बहु थाका, वैद्यने मुख पड्या फांका ॥ ज० ॥ पण जो जो वैद्य प्रगटे जाग्यें, कंथा ज्युं गोरख जागे ॥ १० ॥ ज० ॥ एक दिन हरिह जयदेव गेहें, मलवा गयो बहु नेहें ॥ ज० ॥ सुनंद उपनंद जयदेव यादें, हरिने मन्या कर बेहें ॥ ११ ॥ ० ॥ बेग सहु को एक ठारों, हरिने वि लखो जाये ॥ ज० ॥ तव हरिजने जयदेव पूबे, शे पड्या शोचने तूबे ॥ १२ ॥ ज० ॥ तव हरिनह कहि सघली मांगी, पुत्री जे दुःखणी बांमी ॥ ज० ॥ ए दुःख महोढुं साले मने, शी कहुं जयदेव तुमने ॥ १३ ॥ ज० ॥ ते वात सांजली जयदेव बोल्यो, सां जलो हरिनह नाइ ॥ ज० ॥ याजथी रोग गयो तुम जाणो, जो बे पाधरो सांई ॥ १४ ॥ ज० ॥ एम कहि उपनंदने मूके, बेटो हरिजह सायें ॥ ज० ॥ जा शीघ्र थ जस लेशो, नेपज करजो दायें ॥ १५ ॥ ॥ ज० ॥ याव्या मंदिर ततखिएा हर्षे, हरिजट्ट उप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) नंद दो॥न ॥ नाडी जो शिलाजित देश, तत खिण बलतर खोइ ॥१६॥ ॥ श्राव्यो जस उप नंदने वखतें,थ कुमरी दो साजी ॥न॥ देखी गुण नपनंदनो महोटो, मातपिता थयां राजी ॥ १७ ॥ ॥ न ॥ हरखी हरिनट्ट कहे कर जोडी, सांजलो उपनंद स्वामी ॥ न ॥ जीवित दान दीधुं तुमें अ मने, तिणें थया अंतरजामी ॥ १७ ॥ ॥ माण स उलें प्राण्या अमने, कीधा जगमें महोटा ॥1॥ नावत सघली जनमनी काढी, देई वंबित पोटा ॥ ॥१॥ज॥ए उपगार कदी न विसारूं, जो अम जाति ने सागी ॥ न० ॥ थया अम पुत्रीना सुख दाता, कीधा अम वडनागी ॥ २० ॥न॥ए तुम गुण सिंगण थावा, संकल्पुं आ ऋदि घरनी ॥ ॥ न० ॥ तन धन मन डे सघर्बु तुमारूं, मत गण जो तुमें परनी ॥२१॥न॥ साथें जश्ने अम चन जीवडा, जो वेचो तो वेचानं ॥ ॥ जीवित सूधी इणिपरें वहिये, तो तुम शाबास पानं ॥ १२॥०॥ तव कुमरी कहे खंमा विशाखा, सांजलो उपनंद वा णी ॥ ज० ॥ नवो नव अम जीव तुमारा, मूक्यु तस कर पाणी ॥ २३ ॥ ज० ॥ इणिपरें वयणे केहि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६० ) दो कुमरी, रागनी गांठ त्यां पाडी ॥ ज० ॥ उपनंदें पण अनुमोदी पोतें, बांधी मोहनी वाडी ॥ २४ ॥ ॥ ज० ॥ इणिपरें वयरों राजी करीने, उपनंदने सन मानी ॥ ज० ॥ हरिजट्ट साधें उपनंद गेहें, धाव्यो चढती पांती ॥ २५ ॥ ज० ॥ हरिनह कहे जयदेवने प्रणमी, धन्य धन्य स्वामी तुमने ॥ ज० ॥ तुम पुत्रे मुऊ पुत्री जीवाडी, लेखे यस्या यमनें ॥ २६ ॥ ॥ ज० ॥ इलिपरें कहीने लघुताइ पाई, हरिनह मं दिर आव्यो ॥ ज० ॥ उपनंदनो जस पुरमें वाध्यो, सजनजनमन जाव्यो ॥ २७ ॥ ज० ॥ चोथे नासें अढारमी ढालें, धातायें जेह बनावी ॥ ज० ॥ लब्धि कहे नवि सुजो यागें, ए थइ ते कहुं चावी ॥ २८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हरिजट्ट केरी धीयने, कीधो जे उपगार ॥ थयो महिमा उपनंदनो, नद्दिल पुरमें सार ॥ १ ॥ ते वा यक श्रवणें सुणी, सुदेव जूदेव विप्र ॥ उपनंद उपरें परजव्या, ज्युं जले नि दि ॥ २ ॥ जायुं हतुं दो नारीयो, मरशे रोगथी एह ॥ उपनंदें जो सज करी, आपणा वयरी तेह ॥ ३ ॥ एम विचारी दो जणें, यो मनमें रोष ॥ उपनंदने हणवो सही, जो जो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६१ ) गुणनो दोष ॥ ४ ॥ देवी पडशे बाजरी, के तेडवी पडशे घेर ॥ ते जाणी उपनंदसुं दो विप्र राखे वेर ॥ ५ ॥ एहवे एक यावी मल्यो, तपसी विरु वेश ॥ तेहने जइ चरणे नम्या, करी यादेश विशेष ॥ ६ ॥ यासन वासन देश करी, तपसी कस्यो निज हाथ ॥ तव तपसी कहे सेवको, शी वंबो मुऊ याथ ॥ ७ ॥ तव दिज कहे कर जोडीने, दो में नूदेव ष्ट ॥ उपनं दने एह करो, हुवे ज्युं यम तस रुष्ट ॥ ८ ॥ ॥ ढाल उगणीशमी ॥ ॥ गोकुल गामने गोंदरे रे ॥ ए देशी ॥ तव तपसी समी कहे रे, सांगलो दो तुमें थाप ॥ मोरा वाला रे ॥ ए पातक किहां बूटीयें रे, श्यो दीजें प्रभुने जबाप ॥ १ ॥ मो० ॥ इम तपसी कहे विप्रने रे, म करो ए हनी तांत || मो० ॥ पापनी बांहेडी मत रहो रे, जो वो विप्रनी जात ॥ मो० ॥ २ ॥ ३० ॥ महिष गवा मृगने हो रे, हणे सूयर पंखी बाग || मो० ॥ खट दर्शन शास्त्र कह्यो रे, तेह पापनो नावे ताग ॥ मो० ॥ ३ ॥ ३० ॥ एकेक जीव तन उपरें रे, जेती रोमरा जी होय ॥ मो० ॥ वरष सहस तेतां गुणी रे, ए शैव मततो ज्ञेय ॥ मो० ॥ ४ ॥ ३० ॥ होय विपाकें दश गुणुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६५) रे, एकण कीधे कर्म ॥मो॥ सत सहस लख कोडी गमे रे,तीव्र नावना मर्म ॥मो॥॥३०॥ जुन एक बीज कोतिबनुं रे, बोली गन्युं जीने गेर ॥ मो० ॥ तो नृप जित शत्रुतणुं रे, लीधुं दशगुणुं वेर ॥ मो० ॥ ६ ॥ ३० ॥ जैन मते पण श्म कयुं रे, जे करे पंचेंदि घात मो० ॥ तो तस पूरव कोडिनु रे, चारित्र दूर जात ॥ मो० ॥ ७ ॥ ३० ॥ ए अधिकार जाणी करी रे, अमें किम करियें पाप ॥मो॥ रामें रोमें कीडा पडे रे, दे खत कुण ले संताप ॥ मो० ॥ ७॥ ३० ॥ तुम दोने मरवू नथी रे, जाणो अमर ने तन्न ॥ मो० ॥ पण य मदंम सदुशिरें रे, देवो ने एक दिन्न ॥मो॥॥॥ एहवो जबाप ते सांजली रे, जे कयुं कृषियें वचन ॥ मो॥ तव दो विप्र फांखा थया रे, विलखाणा दो मन्न ॥ मो० ॥१०॥३०॥ तव मुख ले पाग वव्या रे, ज्युं थया शीतल हीम ॥ मो० ॥ दो वि प्रने घरे धावतां रे, शो जोजन थर सीम ॥ मो० ॥ ॥११॥०॥ विण खूने उपनंदद्युरे, राखे ते वेरनाथ ॥ ॥ मो० ॥ पण हेवे जो जो तेहनी रे, शी गति होवे सहाव ॥ मो० ॥ १२ ॥ ३० ॥ हवे हरिनट्टे निज मंदिरें रे, मेली हिजनी नाति ॥ मो॥अशन वसन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६३) घृत घोललं रे, संतोषी नली जाति ॥ मो०॥ १३ ॥ ॥३०॥राजी थया सदु नातना रे, जेता हिज कहे वाय ॥ मो० ॥ पण ते दो कुमति प्रतें रे, रह्यां ते व दन विडाय ॥ मो॥१४॥३० ॥ तेहवे हरिनट्ट बो लियो रे, कहे वर्गो मुफ कन ॥ मो० ॥ आ दो उष्ट पापिष्टीयें रे, शे मुज तातजी खून ॥ मो० ॥ १५ ॥ ॥३०॥ तव तिहां हिज सघला कहे रे,महारंगणीना जाति ॥ मो॥ हीणा चौदशना जण्या रे, शै न करी स्त्री तांत ॥ मो० ॥ १६ ॥ ३० ॥ श्म कहि हिज सघ ला मली रे, कुटिलने कहे समजाय ॥ मो० ॥ हवे मत रहो अम न्यातिमां रे, देखत कीधो अन्याय ॥ ॥ मो० ॥ १७ ॥ ३० ॥ हवे तुमें ए पुरमा रही रे,मत करजो अन्न पान ॥ मो० ॥ जो ए वचन संघशो रे, तो घणा जडशे नपान ॥मो॥१॥ ३०॥ श्म कहिने दो काढिया रे, देई धक्का जोर ॥ मो०॥ श्याम वदन ले। मंदिरें रे, आव्या दो नातिना चोर ॥ मो० ॥ ॥ १५ ॥३०॥ तिणे पण जावा सज कस्या रे, गाडां ऊंट बलद्द ॥मो॥ ले सजा आपणी रे,निकल्या पुं रथीअबद॥मो॥२॥३०॥नीकलतां पुरमा थकी रे, लागी दो विप्रने हींग ॥मो॥ गया कोइक देशांतरें रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६४ ) ज्युं गयां नंटनां शिंग || मो० ॥ २१ ॥ ३० ॥ दो कुमरीनी बाती तरी रे, तस्यां वलि मावित्र मन्न ॥ मो० ॥ नली थर जे शब्य नीकल्युं रे, नलसि रोम राजी तन्न ॥ ॥ मो० ॥ २२ ॥ ३०॥ इम दरखी कहे नातिने रे, हरि न ते कर जोड | मो० ॥ बे नाति महीमें मोटकी रे, नाति बे शिरनो मोड | मो० ॥ २३ ॥ ५० ॥ नातिथकी तरियें सदा रे, जो चाले कुलवह ॥ मो० ॥ जो वहे चाडो नातिथी रे, तो होवे दहवट्ट || मो० ॥ २४ ॥ ३०|| जे निजवर्ग दूरें तजी रे, करे वल्लन परवर्ग ॥मो० ॥ ते नृप कुकर्दम परें रे, पामे ते दुःख अपवर्ग ॥ मो० ॥ ॥ २५ ॥ ३० ॥ नातिथी अधिको को नहिं रे, नाति बे गंग प्रवाह || मो० ॥ तरीयें बूडीयें नातिथी रे, नातिथी लहियें उबाह || मो० ॥ २६ ॥ ३० ॥ इम स्तवना करी नातिनी रे, हरिनहें द्विजनी प्रसिद्ध ॥ ॥ मो० ॥ संप्रेडी निज वर्गने रे, राजी करि जस ली ध ॥ मो० ॥ २७ ॥ २० ॥ ढाल कहि जंगलीशमी रें, चोथा उल्लासनी एह || मो० ॥ लब्धि कहे नवि सां जनो रें, धागल होवे जेह || मो० ॥ २८ ॥ ६० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ ॥ हवे हरिह पासें रहे, पाडोशी ससनेह ॥ सुद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६५) त नामा हिज जलो, सकल कला गुणगेह ॥ १ ॥ सगपण तो काई नथी, जे सगपणथी अधीक ॥ पा डोशीने नेहले, सगपण जाणे नजीक ॥ २ ॥ तस घर अहोनिश दो धिया, खंमा विशाखा जेह ॥ सुख फुःखनी जे वातडी, करवा आवे तेह ॥ ३ ॥ सुदत्त नो एक पुत्र ,वसुदत्त एहवे नाम ॥ रूप कला गुण चातुरी, उपे ते अनिराम ॥ ४ ॥ ते दो माहे विशेष बे, खंमानो घणो राग ॥ दास कुतूहल वातनो, कर तां नावे ताग ॥५॥ दो नारी वसुदत्तगुं, राखे ताली एक ॥ सरखा सरखी जोडली,तिणे करे हास्य विवेक ॥ ६ ॥ एक दिन ते वसुदत्तरां, खंमा डेडी वात ॥ कर्म कुतूहल वारता, करतां थयो प्रजात ॥ ॥ ७ ॥ प्रह फाटो तव आपणे, आवी खंमा घेर । रीष करी माता कहे, शी होशे तुझ पेर ॥ ७ ॥ एह वचन कह्याथकी, खंमा रीसाणी मात ॥ अणबोली रहि मातथी, बार घडी निज धाम ॥ ए ॥ जोजन वेला अवसरें,खंमा न जमे कांय॥रीष उतारीमावडी, सदु जमियां तिण ठाय ॥ १० ॥ एक दिन हरिनट्ट ने घरे, सुदत्त ले परिवार ॥ मिजलस करी बेग तिहां, करवा वातो सार ॥ ११॥ तेहवे पण याव्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६६) तिहां, उपनंद मलवा रूप ॥ साथ सदु नठी मल्यो, बेसाड्यो करी चूंप ॥ १२॥ हवे सहु बेठा रंगमें, क रतां वात टकोल ॥ तिण समें आव्या साधुजी, देवा समकित गोल ॥ १३ ॥ ॥ ढाल वीशमी ॥ ॥ सूडा रे तुं जर कहेजे. संदेशडो रे ॥ए देशी ॥ तव हरखे सन नतीने, कर जोडी नामें शीशो रे ॥ गुरु पण नाविक देखीने रे, देवे सहुने धर्माशीषो रे ॥ १ ॥ नवि सुजो रे, इहां गुरु पण लान कमावे रे ॥ ए बांकणी ॥ मास खमण- पारगुं, करी बेग त्यां चित्रशाली रे ॥ साथ सदु पण तिहां कणे, गुरु पासें बेग संजाली रे ॥ ५॥ न० ॥ धर्मकथा यथा स्थित कहि, सदु ब्रूजव्या प्राणी सुजाणो रे ॥ सम कित वासना पामीया, गुरुमुखथी सुणी वखाणो रे ॥ ३ ॥ न ॥ तव हिजणी कर जोडीने, पूले खंमा विशाखानी माता रे ॥ या दो पुत्री दोनागिणी, त स कदि होशे सुख शाता रे ॥ ४ ॥ ज० ॥ तव क विदो कुमरी तणी, तस कर्मनी रेखा जोय रे ॥ था जथा ले एक वर्षमुं, गुरु नांखे आनवू होय रे ॥ ५॥न॥ त्यारपनी सुख पामशे, जो जिन मारगमें वहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६७) शे रे ॥ मिथ्या मत जो बंमशे, तो मन वंबित लेहेशे रे ॥ ६ ॥ ज० ॥ श्म ऋषि कहे सुण जट्टणी, तुम मा रग शुक्षबतावू रे॥जो ते मारगें चालशो, तो कुःखनी दोरी कपावू रे ॥ ७ ॥न ॥ तव नट्टणी कहे साधु जी, तुमें मारग शुम नांखो रे ॥ काज सरे जेहथी घj, अम करुणा करी ते दाखो रे ॥७॥ न०॥ तव गुरु कहे सुणो जावुको, तुमें पूजो प्रनु शुन जाणी रे॥प्रनु पूज्या ते पामीया,श्म लोकमें पण वाणी रे ॥ ए ॥ न ॥ सद्गुरुवचन हृदे धरी, तुमें आपथी मनशुं जाणो रे ॥ प्रनु वंदन फल सांजली, तुमें मनु जव लेखें आयो रे ॥ १० ॥ नवियां रे तुमें जिन वंदन जणी जावो रे, ए तो मीठा मेवा पावो रे ॥ए आंकणी ॥ वासरें उठी खाटथी हारे,मनझुं जिन जणी जावु रे ॥ उलट आणी नावथी तो, चोथ तणुं फल पावू रे ॥ ११ ॥ ज० ॥ उठे चैत्य गमण जणी ए तो, पहेरी गुरु ते वेशो रे॥बह तणुं फल पामी ते लहे, एम केवली दे उपदेशो रे ॥ १२ ॥न ॥ चोखा सोपारी कर लीया, तव अमर्नु फल पावे रे ॥ पगर्बु दे जावाने देहरे, तव दशम तणुं फल आवे रे ॥१३॥ ज० ॥ हादश तप सम फल लहे, ए तो देहरा मारग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६८ ) जातां रे ॥ पंथें लहे देहरे, ए तो मास खमण फल यातां रे ॥ १४ ॥ ज० ॥ देहरुं देखे दृष्टिमें, तव मा स खमण फल लाने रे । जव पहोंचे चैत्य बांहडी, तव खटमासी फल लाने रे ॥ १५ ॥ ज० ॥ जिन वर बारना फरसथी, ए तो वरसी तप फल होवे रें ॥ त्रण प्रदक्षिणा देयतां, तस शत वर्ष तप फल जो वें रे ॥ १६ ॥ ज० ॥ सहस ते वर्ष उपवास जे, फल होवे जिन पूजे एतो रे ॥ पुण्य अनंतुं ते वरे, जिनस्त वना जावें करे तो रे ॥ १७ ॥ ज० ॥ चैत्यमें काजो काढतां, फल शो उपवासनुं थावे रे || यांगी रचे जो विलेपनें, सहस पोषण लाज उपावे रे ॥ १८ ॥ ज० ॥ लाख उपोषण फल लहे, एक फूलनी माला चढा वे रे || वाजित्र गीत प्रभु यागलें, कीधे लान अनंत गुण नावे रे ॥ १९॥०॥ घृतदीपक प्रभु यागलें, करतां लहे मंगलमाला रे ॥ रति करे प्रभु जिन तणी, तस जाये यारति वाला रे ॥ २० ॥ ज० ॥ न्द्रवण करे जि नजी शिरें, तस होवे श्रातम शुद्ध रे ॥ धूप नखेवें प्रभु यागलें, ते सुरगुरु सम लहें बुद्ध रे ॥ २१ ॥ ॥०॥ नाटक करतां पदवी लहे, जिन चक्रि हरिबल देवा रे || गणधर सुर नृप पद लहे, प्रभु सेवाथी लहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६ए) मीना मेवा रे ॥ २२॥ न ॥ जो त्रण काल पूजा करे, नवसागर पार उतारे रे ॥ हलुवा कर्मी सर्दहे, ते जावे मुगति उंवारें रे ॥ २३ ॥ ज० ॥ रावण ने मंदोदरी, करी अष्टापद ते नृत्तो रे ॥ ता थै तान न चूकियां, जिन पदवीनी लहेवातो रे ॥२४॥नम् ॥ श्रेणिकरायें वीरनी, करी हेममे जवनी पूजा रे ॥ पद्म नान तीर्थकरु, होशे आवति चोवीशी राजा रे ॥ ॥ २५॥ न०॥ कुमारपाल पूरव नवें, कोडी पांचनी फूल चढावे रे ॥ देश अढारनो अधिपति, थयो फूल अढारथी फावे रे ॥ २६ ॥ ॥ इणि परें प्रनुनीपू जायकी,ए तो सघलां संकट नाजे रे॥स्वर्ग मुगति सुख पामीयें, वली संसारिक सुख बाजे रे ॥ २७॥ज॥ ए अधिकार ते सांजली, सदुनां मन नावें नेदाणां रे ॥ जिन वंदन जिन नक्तिमां, तस आतम रंग रंगा णा रे ॥ २७ ॥ न ॥ गुरुनी शीख सोहामणी, मानी विप्रै सघली साची रे ॥ चोथा नन्नासनी वी शमी, कहि लब्धं शास्त्रे राची रे ॥ २ ॥ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ कृषिनी शीख सोहामणी, सांजलि सघला वि प्र॥ जिन वंदन अर्चानणी, विज हिजणी थयां दि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७० ) प्र ॥ १ ॥ कहे उपनंद सुणो प्रभु, शी विध कीजें सेव ॥ ते विधि कहो यमनें प्रभु, ति विध पूजा देव ॥ २ ॥ तव गुरु देव ते दाखवे, दोष रहित य ढार | जिन वंदन खर्चा तो, शिखवे गुरु याचार | ॥ ३ ॥ रमणी ऋद्धि तजी करी, जीत्या राग ने द्वेष ॥ देव तेहनुं नाम बे, बीजा देव ते रेख ॥ ४ ॥ देव तें नाम धरावीने, राखे कामिनी संग ॥ ते संसारी सुर कह्या, लुब्धाणा तस रंग ॥ ५ ॥ जे सुर जीवता जे दुवे, ते जें राखे नारि ॥ पण थइ मूरति शैलनी, शे स्त्री राखे सार ॥ ६ ॥ मूखा गया परलोकमें, तो पण न गयो विकार ॥ ते गुं तारक तारशे, पडिया मोह म कार ॥ ७ ॥ वाहालो वयरी एकसम, लेखवे ते खरो देव ॥ तस चरणांबुज सेवतां, जहियें शिव ततखेव ॥ ८ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ ॥ तुमें पीतांबर पहेरो जी, मुखने मरकलडे ॥ ए देशी ॥ सांजली गुरुनी वाणी जी ॥ हरिबल सांनलो ॥ बूजिया ते दिज प्राणी जी ॥ ह० ॥ देवनी नांति उ जांति जी ॥ ० ॥ जाणी काढी चांति जी ॥ ६० ॥ १ ॥ तेहमां त्रणे जीव जी ॥ ६० ॥ लीधुं पण ते प्रतीव जी ॥ ह० ॥ चाकरी जिननी कीजें जी ॥ ह०॥ तव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७१) मुखमें अन्न दीजें जी ॥ द० ॥ ॥ दो कुमरी नप नंदें जी ॥६॥ एत्रणे आणंदे जी॥३०॥ उत्लखी गु ६ आचरणे जी ॥ ह ॥ थया पणधारी त्रणे जी ॥ ह ॥३॥श्म नपदेश ते देश जी ॥हण॥ चाव्या गुरु लान देश जी ॥६॥ हरिजट्ट सुदत्त आदें जी॥हा॥ सदु जिन पूजे आव्हादें जी ॥ ह॥॥ नव नवी पू जा बनावे जी ॥ ६ ॥ नव नवी आंगी रचावे जी ॥ह ॥ नव नवां नृत्य करावे जी ॥ ह ॥ श्म नित्य नावना नावे जी ॥ ह ॥५॥ सहसने षटरों एंशी जी ॥हा॥ सोवन मुज्ञ विहसी जी ॥ ह० ॥ प्रनुने मारें हरखें जी॥ह ॥ उपनंद मूके एक वर्षे जी॥हा॥ ६ ॥ शोलशे फूल चढावे जी॥ह॥ हेम रजतनां जे कहावे जी ॥ ४० ॥ शोलों में गट जरावी जी॥हण॥ कुंमल हार करावे जी॥हा॥ ॥ ७ ॥ कटिसूत्र ने करें कडली जी ॥ ह ॥ बांहे बाजुबंध जडली जी॥हा॥इणिपरें नूषण सारां जी ॥ ह ॥ प्रजुने चढावे प्यारां जी ॥ ६ ॥॥णपरे हिजणी टोली जी ॥ ६ ॥ पहेरी पंचरंगी चोली जी ॥ ६ ॥ पूजे जिनवर देवा जी ॥ ह ॥ लें हवा शिवसुख मेवा जी ॥ ६ ॥ ॥ तेहमें उपनंदें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७२ ) साध्युं जी ॥ ० ॥ पूजा नामकर्म बांध्यूँ जी ॥ ६० ॥ गुरुमुखें जे पण लीधुं जी ॥ ६० ॥ सार्थे ते त्रिहुं जीव सीधुं जी ॥ ह० ॥ १० ॥ जवो जवनां दुःख टाली जी ॥ ६० ॥ थया त्रणे एक अवतारी जी ॥ ॥ हृ० ॥ गुरुवचनें जे चाले जी ॥ ६० ॥ ते शिव रमणीयुं माले जी ॥ ० ॥ ११ ॥ इम करतां दिन केता जी ॥ ६० ॥ सुकृतमें दिन वीता जी ॥ ६० ॥ सांगलो यागे जे होवे जी ॥ ६० ॥ नावि जिहां तिहां जोवे जी ॥ ६० ॥ १२ ॥ हवे सुदेव नूदेव दोइ जी ॥ ॥ ८० ॥ रोगिणीना जे धव होइ जी ॥ ६० ॥ ना तिना खूनी जाएगी जी ॥ ६० ॥ काढ्या ते इष्ट प्राणी जी ॥ ६० ॥ १३ ॥ निकल्या नातिथी हाथा जी ॥ ॥ द० ॥ क्रोधानलमें ते गाव्या जी ॥ ह ॥ गया ते कप देशें जी ॥ ८० ॥ न जाणे को नामनी विशे जी ॥ ६० ॥ १४ ॥ तिहां जइ एक कापडी जेटी जी ॥ ॥ ० ॥ तिरों शिखवी विद्या महोटी जी ॥ ६० ॥ बहुरूपिणी विद्या शिखी जी ॥ ६० ॥ श्राव्या ते दो जीखी जी ॥ ह० ॥ १५ ॥ कापडी वेश ते लेइ जी ॥ ६० ॥ याव्या ते गिमें बेइ जी ॥ हृ० ॥ उपनं दने घर यागें जी ॥ ६० ॥ कपटें दो निक्षा मागे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७३) जी॥ ह ॥ १६ ॥ मधुरी धुनें गीत गावे जी ॥ ॥द ॥ उपनंदनी पोल रीफावे जी॥हा॥रूपिणी विद्याजोगें जी। ह॥ नलखे नहि तस नोगें जी॥ ॥ ह ॥१७॥ एक दिन रातें ते पोलें जी ॥ हा ॥ निदुक गावे दो नो जी॥हा॥ एहवे उपनंद आ व्यो जी ॥ ह ॥ कपटीयें दाव ते पाव्यो जी ॥ ह॥१॥ फरसीयें घाव त्यां घाल्यो जी॥हा॥ उपनंद यमघरे चाल्यो जी॥हण॥ श्वाननां रूप करी नाता जी ॥ह ॥ कपटी दो त्यांथी त्राता जी॥ह ॥ १॥ धान रे ना धाइ जु जी ॥ ह ॥ उपनंद हरिश रणें दु जी॥ह ॥ जयदेव आदें कुटुंब जी॥ह॥ आव्या सद् करीबुंब जी॥हा॥रोगिणी देखी दो मेटे जी ॥ ह ॥ फाल पडी तस पेटें जी ॥ ह ॥ जयदेव कहे जर देखो जी॥ह ॥ हणनारं कुण तस पेखो जी ॥ ह ॥ १ ॥ धाया जन बटु के. जी ॥ ह ॥ न लाधा गया कोई चेडे जी ॥ ह ॥ आरतिनगर कुंवारी जी ॥हा॥ न पडे सुध कांड जारी जी ॥६० ॥ २२ ॥ राते सामले राम जी । ॥ ह ॥ ले गई पाशेर खांम जी ॥ ह ॥ आमथी गई याम आवी जी॥ह ॥ ते रीत थ शहां तावी १८ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७४) जी ॥ ह ॥ २३ ॥ आव्या जन बदु जोश जी ॥ ॥ हं० ॥ कहे हणी गयो को जी॥ह ॥ सजन कुटुंब सदु रोवे जी ॥ ६ ॥ जावे ज्युं खाल होवे जी॥ ह ॥ २४ ॥ फट रे देव तुं उष्ट जी ॥हा॥ विण खूने शे रुष्ट जी॥ ह० ॥ सुनंद कहे रे नाई जी॥ह॥ शुं गयो देह देखाई जी ह॥२॥ इणि परें याकंद करतां जी॥हण॥ मृत कारज तस धरतां जी॥ह ॥ धिग संसार असार जी॥ह ॥ धिग जे लेखवे सार जी ॥ ह ॥ २६॥ श्म ते मनमें वि चारी जी॥ह ॥ जयदेव आप संजारी जी ॥६॥ जयदेव सूनंद साथें जी ॥ ६ ॥ ले दीदा मुनि हाथें जीह॥७॥ खंमा विशाखा दो कुमरी जी॥ह॥ नपनंदनुं सुख समरी जी॥ ह ॥ दीदा अजा पासें जी॥हा॥ ले व्रत पाले उल्लासें जी॥हा॥२॥ हरि नह सुदत्त जेह जी॥हा॥ ले दीदा पण तेह जी॥ ॥ह ॥ मोहनीकर्म संबंधे जी ॥ ह ॥ नपनं दशुं मन बंधे जी ॥ ह ॥ २ ॥ चोथा नन्नासनी ढाल जी॥हा॥ एकवीशमी गुणमाल जी॥हा॥ लब्धी नवनय मेली जी ॥ ह ॥ कहुँ उपनय मन नेली जी ॥ ह ॥ ३० ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७५) ॥ दोहा ॥ ॥ श्म कहे मुनिचं केवली, सांजलो हरिबल रा य ॥ नावी माहापण आगलें, को नवि अधिको थाय ॥ १ ॥ जीती न शके नाविने, अनंत बली अरिहंत ॥ ते सरखा पण हारिया, नावि प्रबल वदंत ॥ २ ॥ पंच महाव्रत नचरी, पामे केवल नाण ॥ तो पण नावी नहि मिटे, जीवित सूधी जाण ॥ ३॥ केवली आयु ने समे, जे करे समुदघात ॥ ते पण नावि जोगथी, जागजो नवि विख्यात ॥ ४ ॥ सुख कुःख पाने जे लख्यां, कुण टाले तस दूर ॥त्रीजगमें व्यापी रह्यां,जि हां तिहां नावि हजूर ॥ ५ ॥ वीर जिणंदने पण र ह्यो, बम्मासी अतिसार ॥ केवल पाम्या तोहि पण, नावी न मटयुं लगार ॥ ६ ॥ नावीथी पूरव नवें, जे बांध्युं अंतराय ॥ वर्ष संधी नूख्या रह्या, जे श्री रुष न कहाय ॥ ७ ॥ कृषीकर्म करतां थकां, कूर्मापुत्र सु जाण ॥ केवल लही घरमें रह्यो, त्रण रति नावि प्रमा ण ॥ ७॥ ते माटे हरिबल तुमें, जाणजो करीने ठीक ॥ जावी आगेवान , सदु ते जंतु नजीक ॥ ए॥ जे जिम नावी नीपजे, टाली न शके कोय ॥ रोगिणी दोनी दाऊथी, जुदेवें दणियो सोय ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७६) ॥ ढाल बावीशमी॥ ॥ तट जमुनानुं रे अति रलीयामणुं रे ॥ए देशी ॥ ते उपनंदनो रे जीव चवी इहां रे, थया तमें हरिब ल महोटे नाम ॥ साधुनी निंदा रे कीधी घणी रे, तव लमु धीवर कुलनुं धाम ॥ १॥ हरिबल सुजो रे, तुम नवनी कथा रे ॥ ए आंकणी ॥ जे जीव मेले ले ते दल कर्म ॥ शुनागुनना जे बंध बांधाया रे, जोगवे ते जीव निज निज मर्म ॥॥हण॥ जलचर जंतु रे तुमें हणता सदा रे, ते निज नदरने कारणे जोर ॥हरिनट्ट संगी रे सुदत्तहिज चवी रे, थयो इहां तुम तणो सा चो गोर ॥३॥हा॥ तिणे तुमें दाख्यो रे जलने कांउडे रे, जीव दयानो महोटो धर्म ॥ तुमें पण साचा रे पण धारी थया रे, राख्यो जीवदयानो नर्म ॥४॥६॥ तस पुण्य योगें रे, जलनिधि देवता रे, प्रगट थयो तु म पूरव जात ॥ सुनंदनामें रे बंधु चवी इहां रे, सुर थ पूरी तुम मन खांत ॥ ५ ॥ ह ॥ पूरव जवनी रे तुम दो रागिणी रे, खंमा विशाखा नामें जेह ॥ ते दो नारी रे था तुम मोहथी रे, वसंतसिरी कुसमसिरी ते ह ॥ ६ ॥ ॥ श्री जिनकेरी रे नक्ति करी घणी रे, दो गोरी तुमें त्रण जीवाशोलशे फूलें रे शोलशे देशनी रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७७) परण्या नारी तेणें अतीव॥॥॥श्रीदत्तनामें रेवड व खती थयो रे,व्यवहारी जे विशाला मझाते तुम तात रे जयदेव चवि थयो रे,तिणे दी● रहेवा गृह तुम कङ॥७ ॥हण॥ नगरि विशाला रे जे पुरनो धणी रे, जे थयो कामी पूरव नेग ॥ सुदेव नामें रे खंमानो. धणी रे, ते थयो चवीने मदन वेग ॥ ए ॥ ह ॥ माहाअष्ट बु दिरे नूदेव वाडवो रे, नारि विशाखानो पति जाण ॥ ते हिज चविने रे हीणी लेशथी रे, थयो कालसेन ते उष्ट प्रधान ॥ १० ॥ ह ॥ तिणे तुम मूक्या रे पूर व वयरथी रे, लंका गढ वली जमने घेर ॥ पूरव नव ना रे वयर प्रनावथी रे, तुमें पण वाल्युं सवायुं वेर ॥ ११ ॥ ४० ॥ नृप पण मोह्यो रे तुम स्त्री देखतां रे, पूरव जवनो मोह विकार ॥ ते दो नारी रे वय र संजालीने रे, मंत्री नृपने कीध खुधार ॥१॥हण॥ तव नृप समजी रे बूजी मनमां रे, जाणी महो टो तुम उपगार ॥ राज समप्र्यु रे जलनिधि देवथी रे, परणावी तुम कुमरी सार ॥ १३ ॥ ह ॥ हरि जट्ट सुणजो रे दो फुःखणी पिता रे, थयो ते वसंत सेन नूपाल ॥ हरिनट्ट नारी रे हरिनहिणी चवी रे, थते वसंतसेना गुणमाल ॥ १४ ॥ ह॥ तस कुखें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७७) जाई रे वसंतसिरी नली रे, खंमा नामें कुःखणी जी व ॥ वर्षे एक सुधीरे जिन पूजा रचं। रे, तव थइकु मरी नृपनी अतीव ॥ १५॥ ह ॥ वसुदत्त नामें रे सुत सुदत्तनो रे, थयो चवि हरिबल वणिक उहाह॥ वसंतसिरीने रे हरिबल नंदगुं रे, प्रगट्यो पूरव मोह अथाह ॥ १६ ॥ ६ ॥ पण ते साथे रे संबंध पूरो नही रे, वणिज कुमरी बंमी ताम ॥ तव तुम मली यो रे योग कुमरी तणो रे, जलसुरें मेव्यो ईश्वरि जम ॥१७॥ह ॥ तव तुम साथे रे कुमरी ले चली रे, जव आव्या तुमें नर कांतार ॥ रवि जव कग्यो रे त व तुम देखतां रे, थइ मूरबागत कुमरी तिवार ॥१७॥ ॥हा॥ तव तुम साजें रे सागर देवता रे, आव्यो पूरव नवनो त्रात ॥ तेणे सज कीधी रे कुमरी तत खिणे रे, परणावी तुम मन विख्यात ॥ १ए ॥ ह॥ खंमा नामें रे राख्या अबोलडा रे, मावडी साथें ति णे घडी बार ॥ तेहने जोगें रे मावित्रगुं रह्यो रे, वि जोग कुमरीने वर्ष बार ॥ २० ॥६० ॥ विशाला पुर थी रे वली तुम तेडीया रे, तुम ससरो जे वसंतसे ण ॥ तिणे तुम तेडी रे पूरवनेगेगुं रे, दे तुम राज्यने कुमरी विशेण ॥ २१॥ हे ॥ कति ने रमणी रे रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) ज्य दो पामीयां रे, पूज्या पूर्वे जिन जगवान ॥ तस पुण्य जोगें रे सागर देवथी रे, जगमा वजाव्यां जीत नीशाण ॥॥हा॥ इणिपरें ना रे हरिबल आगलें रे, पूरव नवनुं जे वृत्तांत ॥ मन्बीयें दोढुं रे तेहबु ज्ञानथी रे, जाति समरणे लह्यो उपशांत ॥ ॥२३॥ह ॥धीवर बायो रे केवली वयणथी रे, संजम लेवा थयो उजमाल ॥ चोथे नन्नासें रे ढाल बावीशमी रे, कही लब्धे जो शास्त्र संजाल ॥२॥ ॥दोहा॥ ॥धीवर नृप मन चिंतवी, प्रणमी गुरुना पाय॥ आव्यो आपण मंदिरें, समतागुं चित्त लाय ॥१॥ श्रीबल सुबल निज पुत्रने,राज्य जलावी दोय॥अनग्गज लइ संजम तणी, हरिबल मही सोय ॥१५ वागुल सिरी कुसुमसिरी, दो पट्टराणी एह ॥ तस जन नुमति लीये, संजम वरवा तेह ॥३॥ तव दो रे ॥ कंतने, नांखे प्राणाधार ॥ संयम पालवु द्रोतिश जटा वहेवो करितार ॥ ४ ॥ मदन दशनें अयचणा, कंसा तां जिम उर्लन ॥ तिम पियु संजम दोहिद्यु, पालवे जाणो अचंन ॥५॥ सुरगिरि तोलवो त्राजुवे, चढवो लेश गिरि नार ॥ चालवु खंमा धार ज्यु, तिम वहेवो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८० ) मुनि चार ॥ ६ ॥ पंच महाव्रत उच्चरी, रहेतुं वनह कार ॥ बावीश परिसह फोजनुं, लडवुं थ जूजार ॥ ७१ ॥ ॥ ढाल त्रेवीशमी ॥ || हरियालो श्रावण यावियो | ए देशी ॥ जीरे वसंत सिरी कहे इणि परें, तुमें सांजलो प्रीतम वातो रे ॥ घरे बेट मन थिर राखीने, पालो नाव चारित्र विख्यातो रे ॥ १ ॥ इम वसंत सिरी कहे कंतने ॥ ए यांक यी ॥ घरे बेगं चालतो धर्म बे, जेहनुं मन बे गुंद चंगा रे ॥ हांजी लोक नखाणो पण कहे, मन शुद्ध कथोटी में गंगा रे ॥ २ ॥ ३० ॥ हांजी एक घरे बेठो तप करे, एक जइ सेवे वनवासो रे ॥ पण कह्यो अ ॥ हो घरे तप करे, हांजी पण न कह्यो जजो वन पूरव जो ॥ ३ ॥ ३० ॥ हांजी पाराशर विश्वामित्र खि रेप करे वनमां जाई रे ॥ हांजी मास मास खंमा लें, रहे वनपत्र सुकां खाई रे ॥ ४ ॥ ३० ॥ ो घडी बड़ी तपस्या ते दो करे, लोही मांस गयां ते जोग रे ॥ हांजी ते सरखा पण स्त्री थकी, चलीया अंति विषयनी पाइ रे ॥ ५ ॥ ३० ॥ हांजी खटरस जोजन जे करे, तेहनुं मन किम होवे शुद्धो रे ॥ हांजी मन वश राखे जे घरे रही, तेहनी कहे जिन नली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७१) बुदो रे ॥ ६ ॥ ३० ॥ हांजी देश कब जाणीयें, शेठ विजय ने विजया नारी रे ॥ हांजी एकण श य्यायें रंगमें रहे, गृहमें थइ व्रतधारी रे॥७॥३०॥ हांजी शुद्ध वनाव को नवि दिये, ए तो प्रगटे सहज स्वजावें रे॥ हांजी शुरू स्वनाव जव उलखे, तव पर माणंद पद पावे रे ॥ ॥३०॥ हांजी लौकिकने म ते पण कहे, बार नूंसे के तन शीशो रे ॥ हांजी तो पण शुरू होवे नही, लोटे बारमें अश्व चक्री ढुंशो रे॥ए॥३०॥ हाजी गंगाजलें जीले केइ जना, करे मांहे तप शुरू होवा रे ॥ हांजी तो पण गुरू होवे नही, रहे मेडकां मही जल लेवा रे ॥ १० ॥३०॥ हांजी नंधे मस्तकें के जना, करे तपस्या था नज मालो रे ॥ हांजी इम जोतां बंधे मस्तकें, रहे वागुल जर तरुमालो रे ॥११॥३०॥ हांजी के जन जटा वधारता, करे तपस्या गुज चित्त लाई रे ॥ हांजी श्म तप होवे तो न्यग्रोधे, वधे अहनिश जटा वडवा रे॥१२॥ ३० ॥ दांजी के जन मुंम मुंमा वता, करे मस्तकें चीयां टीलां रे ॥ हांजी श्म धर्म जो होवे नेकने, केश लूंचे खटमासें चीला रे ॥१३॥ ॥३॥ हांजी निजनिज मतने पोषवा, ए तो चलवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८२ ) 11 सह शुद्ध धर्मो रे ॥ हांजी त्र्यंतर शुद्ध न ल ख्यो, तब तिहां वधे मिथ्या नर्मो रे ॥ १४ ॥ ५० ॥ हांजी जब शुद्धतम धावे जीवने, तव केवलकम ला पावे रे ॥ हांजी ज्योतिमां ज्योति मले तदा, जि नमुखथी चिदानंद कहावे रे ॥ १५ ॥ ३० ॥ हांजी ते माटे तुमें नाथजी, तुमें बो घणा महोटा नारे रे ॥ हांजी बो तुमें सुकुमाल केलि ज्युं तन तपयी गली जाय क्यारें रे ॥ १६ ॥ ३० ॥ हांजी घरे बेठां सुख जोगवो, करो जमणो हाथ ते श्राघो रे ॥ हांजी मन शुद नाव संजम नही, तुमें बांधो समकित पाघो ॥ १७ ॥ ५० ॥ हांजी इव्य चारित्र ते लेइने, फरे म टक वैरागी थाइ रे ॥ हांजी उर्भर नरवाने केलवे, करणी कपटीनी संवेग लाइ रे ॥ १८ ॥ ५० ॥ हांजी प्रीतम तिणे न कघडे, ए तो उघडे चारित्र नावें रे ॥ हांजी नावचारित्र्थी केइ तथा नवजलधि दर्शन नावें ॥ १९ ॥ ० ॥ हांजी इव्य चारित्रना योग रे थी, जाये नवमा ग्रैवेयक सूधी रे ॥ हांजी नाव चा रित्रना संगथी, पामे अजरामर पद बुद्धि रे ॥ २० ॥ ॥ ५० ॥ हांजी जरत यारीसा भुवनमां, हुआ नाव श्री केवल नाणी रे ॥ हांजी याषाढनूति एलाचीयें, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) लघु नाटकें केवल प्राणी रे ॥ २१ ॥ ॥ हांजी कू मापुत्र कृषि खेडतां, पाम्यो केवलनाण स्वनावें रे ॥ हांजी वलकलचीरी पण इणि परें, पात्र ढुंबतां के वल पावे रे ॥ २२ ॥ ३० ॥ हांजी मरुदेवी माता जे षजनी, गज बेठां केवल पाम्यां रे॥ हांजी इत्या दिक मन शुध्थी, नवो नवनां मुख सवि वाम्यां रें ॥ २३ ॥३०॥ हांजी ते माटे तुमें नूधणी, कह्यु मा नो अमारूं ए साचु रे ॥ हांजी पंच महाव्रत पालतां, घणुं दोहिलु होवे मन काचुं रे ॥२४॥३०॥ हांजी इत्यादिक वचनें करी, कहे वसंतरिसती उजमालो रे॥ हांजी चोथा उल्लासनी ए कही, विशमी लब्धे ढा लो रे ॥ २५॥३०॥ इति ।। ॥दोहा॥ ॥वचन सुणी पट्टराणीनां, बोल्यो हरिबल ताम॥ सुणो नई तुमें जे कही, ते मार्नु अनिराम ॥१॥ पण मन माहरुं शुरू , जिम गंगानुं नीर ॥ तिम में संजम लेहवो, तरवा नवदधि तीर ॥२॥ उत्तर मेह न उनहे, उनहे तो वरसंत ॥ शा पुरुष वयण न उच्चरे,उच्चरे तो ते करंत ॥३॥ एम कही जत्यो तु रत, संजम लेवा सार ॥ संसार कारागृहथकी, निक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) व्यो ते निरधार ॥३॥ तव दो कुमरी चिंतवें, प्रीतम थयो दृढचित्त ॥ अहिकंचूकि परें बंमशे, वरशे सं यम मित्त ॥ ५ ॥ सिवधूनो लालची, थयो आप यो जूनाथ ॥ तो हवे आपण दो जणी, वही प्रीत म साथ ॥ ६ ॥ जिहां काया तिहां बांहडी, वहे ज्यु निशिदिन संग ॥ त्युं दंपति व्रतगेहमें, वहेगुं अवि हड रंग ॥ ७॥ श्म जाणी दो रागिणी, पतिसाथें करि नाव ॥ जवजलधि तरवा ग्रहे, संजम महोटुं नाव ॥ ॥ वली बीजी जे राणीयो, जे नव सिदि जीव ॥ ते पण पतिसाथें थइ, व्रत ग्रहवाने अतीव ॥ ॥ ए॥ हरिबल केरो जे अने, श्रीपति कुन दिवान ॥ ते पण साथें सज थयो, लेहवा पद निर्वाण ॥१०॥ इणिपरें नाविक जीवडा, राणी यादें केय ॥ पंच स यां परिवारगुं, हरिबल संयम लेय ॥११॥ दीदा महोत्सव नत्ति परें, श्रीबल सुबलें कीध ॥ मणि मा णिक सोवन घणां, आशी जनने दीध ॥ १२ ॥ हवे हरिबल मोह नपरें,कोप्यो अतिही पूर ॥ काढयो कूटी मोहने, आत्मइिंगथी दूर ॥ १३॥ ॥ ढाल चोवीशमी ॥ ॥ कडखानी देशी ॥ मोह नृप नपरें चढतरी वा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) जीयां, गाजीयां सूत्र नीसाण गडीयां ॥ पहेरीयां शीलसन्नाह ते हरिबलें मनोबलें समकित अश्व चढिया मो॥१॥ कुहकी करुणाल सुरसाल समकित तणी, नेद विज्ञान रणतूर महोटा ॥ आतमा इिंगमें शब्द ए प्रगटीया, मोह नृप सैननां चरण छूटा ॥ मो० ॥ ॥ ५ ॥ गज घटा गुण एकविश ते सज कस्या, तोड वा उर्ग जे दंन केरो ॥ सहज नालें करी ज्ञान गो ला जरी, चालियो मोह परें मही सेरो ॥ मो॥३॥ बार जे व्रत्त उमराव साथें लीया, सज किया संव र सुजट साचा ॥ राग ने देष दोय चोर जगतना, तेहने दवा नहीथ काचा ॥मो०॥४॥ फोज घj नियमनी, सोज घणुं दीपती, जीपती मोहनी सैन कोडी ॥ नाव नृप सैनझुं मही चढयो रंग\, जीपवा मोह नृप सैन्य दोडी ॥ मो० ॥ ५ ॥ ज्ञानने दर्शन चरण तीने करी, अखुट नंमार ग्रह्यो मन शु॥ दादनी चूकवी आपवा जीवने, अनुनव रयण लश् सब ल बुझे।मो॥६॥एहवे मोहने आवीचुगली करी,आश्र व पंच अति उष्ट बुद्धी॥ जाग रे जाग तुं मोह उता वलो, सबल आयो तुम परें मही बुद्धी ॥ मो० ॥ ॥ ७ ॥ मोह तव कोपियो थन रण रोपियो, उपियो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७६) मोह निज सैन्य मेली ॥ पांच मिथ्यात नीशा शब्द करी, मही नृप ऊपरें चढत वेली ॥ मो०॥ ॥ अष्ट मद हाथिया सुकत घन घातीया, पातीया मान ज ग जंतु केरा ॥ एहवा हस्ती मदमस्त जकारिया, नावनृप सेनमें करत खेरा ॥ मो० ॥ ए ॥ साथें नमराव ले अष्ठ दश अघ तणा, नही मणा कां त्रिनुवन्न हरता ॥ फोज नव नोहकषायनी महाबली, साबली मोहनी जीत करता ॥ १० ॥ मो० ॥ राग ने देष दो पुत्र ते मोहना, दोनना करत संसारमाहे ॥ काम मंत्री प्रबल सबल दल मेलीयो, हेलीयो जि 0 मनुराज प्राहें ॥ मो० ॥ ११ ॥ पांच पचवी शनी नालि किरिया करी, शोल कषायना कीध गोला ॥ दंन दारू जरी क्रोध अगनें करी, नाव नृप सैन्यमें करत होला ।मो॥१२॥ इणि परेंमोह नृप सैन्य बेलु करी, चालीयो महीयुं युद्ध करवा ॥ यामुही सामुही फोज दोये मली,मनसरें फोज दो मंमि लडवा॥मो॥ १३॥ मोहनृप नावनृप दोय पोरस चढया, आखड्या युझमें पूर बे॥ लद चोराशि जे जोनि चोगानमें,युद करतां गयो काल के ॥ मो० ॥ १४ ॥ तो पण मो हनुं जोर वाध्यु घणुं, नाव नृप सैन्यनो अंत आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) यो॥ तेहवे महीनो नावनृप गुरु चढी, मोह नृप सैन्यने दर ढायो॥मो० ॥१५॥ सहज नालें करी झान गोला जरी, गुप्तदारू तपतें तमाडी ॥ आकना तूल ज्यु मोहना सैन्यने, नाव नृप महीनो दे नमा डी॥मो॥१६॥ सत्य गुण हाथीयें अष्टमद हाथीया, पातिया ज्ञानअंकूश रें॥दंन गढ तोडियो उरित किंग मोडियो, फोडीयो मोहमद कुंन दूरें ॥ मो० ॥ १७ ॥ बार जे व्रत उमराव साथे चढया,सगवन संवर सुनट बूटा ॥ उरित उमराव जे अष्टदश आकरा, बाकरी बां धता तेह खूटा ॥ मो० ॥ १७॥ राग ने शेष दो पुत्र मोहरायना, काम मंत्री सबल जगत रुंधी ॥ ध्यान कबाणथी विरति शर सांधीयां, वींधीयां तीन ते पुष्ट बुद्धी ॥मो०॥ १॥ ढाल खीमा तणी खडग ले तप तणी, मडीये मूलथी मोह बेद्यो ॥ बातम इिंगथी शव्य काढी परु, अनुनव रंगमें महि नेद्यो ॥ मो० ॥ ॥२०॥काल अनादि जे. दंम चोवीशमें, पीड़तो.जी वने मोह सिसी ॥ तेहने जीती मदमस्त मची थयो, नाव नृप शरणथी जीत कीधी। मो० ॥१॥शि परें धीवरु सबल परिवारथी, गुरु कने आयो कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२ ) जीत मंका ॥ चोथा उन्नासनी ढाल चोवीशमी,लब्धि कहे युक्नी स्वर्ण टंका ॥ मो० ॥ २ ॥ ॥दोहा॥ ॥ जित नीशाण वजावतो, इव्यथी नावथी जे ह ॥ विरबल केरो पुत्रडो, आव्यो जिन चरणेह ॥१॥ श्री मुनिचं जे केवली, तेहना प्रणमी पाय ॥ कहें मही कर जोडिने, संयम नारि मेलाय ॥ २ ॥ तव तिहां मुनिचं केवली, विलंब न कीध लगार ॥ क लशा चन करी धर्मना, रची चोरी सुखकार ॥३॥ पंच सया परिवारलॅ, मूकी मननो शोच ॥ स्वहस्तें पंच मुष्टिनो, हरिबलें कीधो लोच ॥॥ अध्यातमनी पीलिका,तस मंमाण करेह ॥ मस्तकें वास ते जिन व वी, करवा शिखगुण गेह ॥ ५ ॥ पंच माहा व्रत उच्चरी, फेरा फरीया चार ॥ वर नारी पारोगियां, सं वेग जे कंसार ॥६॥ गुरुना मुखथि कथा सुणी, शेठ तणो दृष्टांत ॥ चार वद चिद पुत्रनी, सरखी जोई तांत ॥ ७ ॥ पंचकण दीधावली तणा, दीधा वढूने हार ॥ एकें नारख्या एक खाइ गश्रारख्या एक विस्तार ॥७॥ गम वेदनी कामिका,करे मुख जिन उच्चार ॥ संयम स्त्री मबीयें वरी,वरत्या जय जयकार ॥ ए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८९ ) ॥ ढाल पच्चीशमी ॥ समदम खंतितणा गुण पूरा, संगम रंगरगाण है। ए देशी ॥ राग धन्याश्री ॥ श्री मुनिचं जे केवली पासें, संजम नासें रे ॥ केवलीयें पण ढील न कीधी, जिननी शिक्षा दीधी रे ॥ १ ॥ सुपो नवियां हरिबल, जे ऋषिराया ॥ ए यांकणी ॥ जैन मारग दीपाया रे ॥ पंच सयानुं संयम बेइ, मनु जव सफल करेई रे ||२|| सु०॥ पंच महाव्रत सुरगिरि केरो, नार उपा ड्यो जलेरो रे ॥ पंच सयाशुं हरिबल साधु, यया मुनिजनमें वाधु रे ॥ ३ ॥ सु० ॥ चौद पूर्वनी विद्या यापी, श्रुत केवली पद थापी रे ॥ विहार करे मुनि चंदजी संगें, हरिऋषि पंचरों रंगें रे ॥ ४ ॥ सु० ॥ दशविध जतिनो धर्म ते पाली, यातम नव अजु वाली रे ॥ तप गर्ने करी कर्म प्रजाली, मोहनी जाल ते बाली रे ॥ ५ ॥ सु० ॥ कल ध्यानने चोथे पढ़ें ते, हरिबल ऋषि गुन चडीया रे ॥ हरिकृषि परि कर चुकल ध्यानें, ते पण कर्मशुं नडिया रे ॥ ६ ॥ ॥ सु० ॥ तेरमें गुणठाणे ते खाया, केवल कमला पाया रे || सुर करे नंद कमलनी रचना, ज्ञानी दीवा कर वाया रे || ७ || सु० ॥ तिन नुवन ज्युं करजल १९ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) देखे, शिवरमणी पण चेखे रे ॥ पांव सहस्त्र ते वर्षज सूधी, ये नविने बोधबुद्धि रे ॥ ७ ॥ सु० ॥ मासनी संलेषणा करि अंतें, ज बेग शिव पंतें रे ॥ धन धन हरिबल परिकर करणी, जय शिवरमणी प रणी रे ॥ए ॥ सु० ॥ जो जो नवियां जीव दयाथी, शा शा गुण ए प्रगट्या रे ॥ धीवर कुलमा जन्म ल हीने, ज्योतिवधूमां उमट्या रे॥१०॥सुतुमें पण न वियां इणिपरें निसुणी, जीवदयारे राचो रे ॥ नदरने कारण करणी करतां, बंधन न पडे साचो रे ॥११॥ ॥सु० ॥ धर्मनो मर्म ते जीवदया ने, खट दरिशणमें जाचो रे॥हरिबलनी परें दिलहो तुमें, जीवदयागुं माचो रे ॥१२॥ सु॥ जीवदयाथी नवनिधि सहि यें, सघले सूत्र ने साखी रे ॥ हरिबलन पण चरित्र महोटुं, जुन निषिधमें कांखी रे ॥ पाठांतर ॥ जु विचार सार कारवरे ॥१३॥सु०॥ ते अधिकार में नयणें निरख्यो, जेहवो शास्त्र में दीठो रे। तेहवो में अधिकार वखाण्यो, देशीयें करीने मीठो रे ॥१४॥ ॥सु०॥ लाटापल्ली पुरनो वासी, पूनिम गहें सोहे रे॥ पंमित नरसिंह धनजी केरो, तप गुणें करी मो हे रे ॥ १५॥ सु०॥ तस आग्रहथी सयणा चारे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५१) रास रच्यो में रूडो रे ।। वेधक रसिया धर्मी जनने, ए मधुनो पूडो रे ॥१६॥ सु० ॥ में तो करी बा लक कीडा, ढुं झुं जाणुं जोडी रे ॥ पंमित होय ते शुक्ष करेजो, मत कोई नाखो विखोडी रे ॥१७॥ ॥ सु०॥ रसनाने रसें अधिकुं , जे में नारख्युं अ नारख्युं रे॥ ते मिनाउक्कड कर जोडी, देखें पंच सम दे रे ॥ १७ ॥ सु०॥ शुद्ध परंपर सोहम तखतें, प्रग व्या हीरसूरिंदो रे ॥ तस शिष्य धर्मविजय ध्रमधोरी, दीपे ज्युं शारदचंदो रे ॥१ए ॥ सु०॥ तस शिष्य पंमित धनहर्ष ज्ञानी, सुमति सदा चित्त मानी रे ॥ तस शिष्य पंमित कुशल विजय कवि, प्रतिबोध्या अ नुमानी रे ॥ २० ॥सु०॥ तस नाता गणि कमल विजयगुन, ज्ञान विज्ञानमें लीना रे ॥ तस शिष्य पं मित लखमिविजय गुरु, संवेग रसमें जीना रे ॥२१॥ ॥ सु० ॥ तस शिष्य पंमित दो गुण ग्याता, केसर अ मर दो नाता रे ॥ तस पदकिंकर सब्धिविजय कहे, चार नन्नास विख्याता रे ॥ २२ ॥सु०॥ शीलांगरथ संवत्सर दशकें, १७१ ० महाशुदि बीज नृगुवारें रे॥ हरिबलना गुण जीवदया पर, गाया में एक तारें रे ॥ २३ ॥ सु० ॥ श्रीतपगढ नन दिनमणि सोहे, श्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ए ) विजयधर्म सूरीशो // तस गणधरना राजमां रसि यो, गायो महि विशेषो रे // 24 // सु॥ वाव्य बंदर श्रीअजित प्रसादें, रही सीमाणा वासें रे॥रा या श्रीगजसिंहने राज्ये,रास रच्यो में नन्नासें रे॥२५॥ // सु०॥ हरिबलना गुण सुणतां पामे, जीवी सिम समाणी रे // ढाल पचवीशमी चोथे उल्लासें, लब्धि कहे गुण खाणी रे // 26 // सु० // ढाल उगणसाउ सातशे दोहा, हरिबल चरित्रथीनांख्या रे॥ साडात्रण सहस्त्र श्लोक एकावन, ग्रंथाग्रंथ ए दाख्या रे // // 27 // सु०॥ ज्ञाता जुगता दाता सारु, संबंध र च्यो में वारु रे // हलुआकर्मी जे हशे साचा, मान शे सघली ए वाचा रे // 27 ॥सु॥ चनविह संघने मंगल होजो, दिन दिन लबिमें जलजो रे // हरिबल नी परें संपद लेहेजो, सब्धिनी वाचा फलजो रे॥ // 25 // सु०॥ इतिश्री हरिबल चरित्रे जीवदयापरे चतुर्थ ननासः समाप्तः // 4 // // इति जीवदयापरे हरिबलरासः समाप्तः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only