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(२७) पय प्रणमी हरिबल तणा, देई वर ससनेह ॥ सागर सुर निज थानकें, पहोतो ते गुणगेह ॥ १०॥ मान व नव सफलो करी, दंपती नोगवे नोग ॥ रामनुं सु हणुं नरतने, फलियुं पुण्य संयोग ॥ ११ ॥
॥ ढाल सातमी॥ ॥ शीयालो नलें आवियो ॥ ए देशी ॥ दुआ हे ह रख वधामणां, बेदु जणनां हे मनवंबित सीध के ॥ कुमरी हरिबल वर वरी, मनुनवनो हे फल लाहो लोध के ॥१॥ दु० ॥ किहां नृपनंदिनी सुंदरी, किहां हरिबल हे मही अवतार के ॥ अणमलतो ए ताक डो, पुण्यजोगें हे मेल्यो किरतार के ॥ २॥ दु० ॥ एक में जीव उगारीयो, तस पुण्यथी हे तो निधि राज के ॥ परतख दीतुं पारखू, गुरुवयणथी हे मुफ वाधी लाज के ॥ ३ ॥ दु०॥धन धन गुरुनां वयण ने, मुफ कीधो हे महोटो उपगार के ॥ कीडीथकी कुंजर कस्यो, जलें प्रगट्यो हे सद्गुरु संसार के ॥४॥ दु० ॥ श्म चिंतवतां बे जणां, पंथें चाव्यां हे ते वन हमकार के ॥ रंग विनोदनी वातडी, वहे करतां हे एक चित्त उदार के ॥ ५॥ दु०॥ वाट विषम जे आकरी, गिरि गव्हर हे वली विषमा घाट के ॥
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