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(ए) ऊगि काडी जे रूंखनी, परि उतस्या हे निज पुण्यने थाट के ॥ ६ ॥ दु० ॥ तिण समे कुमरी चिंतवे, न वि जाणुं हे पियुनी कुल नाति के ॥ तो हवे जोवू एहनी, करूं परीक्षा हे ए शी ने जाति के॥॥ ॥ जोवु वली तस पार,पराक्रमें हे केहवो डे सधीर के॥ जीवित सूधी माहरो, मन राखी हे केहवो मेले दीर के ॥ ७ ॥ दु०॥ तव प्यारी पियुने कहे, सुणो प्री तम हे थया खरा बपोर के ॥ पाणीनी तिरषा घ पी, पीयु लागी हे घj अति हे जोर के बाद। तव हरिबल तिहां सज थयो, अबलानां हे सुणी दीन वचन के ॥ केड बांधी काठी खरी, नीर जोवा हे निकल्यो ते वन्न के ॥ १०॥ दु०॥ अटवीमां जो तो फरे, नवि दीसे हे क्यांह नदी नवाण के॥ तव एक तरु कपर चढी, दृष्टं जोवे हे चिढुं दिशि जल ग ण के॥११॥ दु० ॥ तव तिहां दूरथी पेखियो, सरो वर हे जल नरियुं नीर के ॥तिहां ज जल नरि पो यणें, लावि पावे हे निज प्यारीने नीर के ॥ १२ ॥ दु० ॥ अंग तस्यां जल पीवतां, मनथी लह्यो हे पियु माहाबलवंत के ॥ हर खित थइ तव सुंदरी, मुज व खतें हे पियु मलियो संत के ॥ १३॥ दु० ॥ धन्य
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