________________
(३०) दिवस धन ते घडी, धन वेला हे मुज प्रगट्यां नाग्य के ॥ मनवंडित पियुडो मल्यो, थयां परगट हे मुफ सुख सौनाग्य के ॥ १४ ॥ दु०॥ सुरवाणी साची मली, जेवीनावी हे तेहवी नजरें दीठ के॥ मुह मा ग्या पासा ढव्या, राजकुमरी हे मन हरख पश्ठ के ॥ १५ ॥ दु ॥ दंपती बेहुने प्रीतडी, एकतारी हे ब नी ज्युं नख मांस के ॥ एकंगी जल मीन ज्यु,तिम बे दुने हे बनीयुं तन हंस के ॥ १६ ॥ दु० ॥ श्म क रतां ते अनुक्रमें, विघनाटवी हे परि उतस्यां तेह के॥ दूरथी दीढं सोहामएं, एक मोटकुं हे शोनित किं ग जेह के ॥ १७ ॥ दु॥ कनकजडित इिंग उर्ग , कोशीसां हे मणिमय दीपंत के॥ जाणीयें नूरमणी करें, सोहे कंकण हे रवितेज फिपंत के॥१॥दु०॥नं दन वन सम वाटिका,फलि फूली हे चिढुं दिशि सोहंत के ॥ सजल सरोवर जल जयां, देखीने हे वर नारी मोहंत के ॥ १९ ॥ दु० ॥ नगर समीपें भावीयां, वाडीमां हे उतारा कीध के ॥ तिण समे तिहां एक आवियो, वैताल कहे नलि आशिष दीध के॥२०॥ दु ॥ पूछे हरिबल तेहने, कहो बारोट हे ा नग रीनुं नाम के ॥ कुण नृप राज्य करे इहां, अधिकारी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org