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________________ (३१) हे बे कुण अनिराम के ॥ २१ ॥ हु० ॥ तव हरि बलने ते कहे, वेतालक हे सुप्पो पंथी साथ के ॥ म नवेग बे नूपति, वीशाला हे नगरी नो नाथ के ॥१२॥ दु० ॥ यरियण सघला वश करी, राज्य जोगवे हे सुरपतिनी समान के ॥ पायक गज तुरी बे घणा, सप्त लकनी हे ठकुराइएं मान के || १३ || हु० ॥ व रण अढार वसे इहां, पुण्य करणी हे करतां सहु लो क के ॥ पापनी बुद्धि मजे नही, जोगीजन हे बसे चा तुर कोक के ॥ २४ ॥ ० ॥ बार जोया पोली कही, नव जोयण हे दीर्घ शोजित पोल के ॥ कनक रयणमय मालियां, चोराशी हे चटानी उल के ॥ २५ हु० ॥ जालीयें स्वर्गपुरी जली, वीशाला हे नगरीनुं नाम के ॥ सुखीयां लोक वसे सहु, दुःखीयानुं हे नवि दीसे वा म के ॥ २६ ॥ ० ॥ एहवो व्यतिकर मांगीने, वैता लकें हे कह्यो थर जमाल के ॥ सांजलि बेहु राजी थयां, लब्धि कहे हे ए तो सातमी ढाल के ॥ २७ ॥ हु ० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ नगरी नृपनी वारता, वैतालें कहि जाम ॥ वात वधामपि हरिबलें, दीधी मुद्दा ताम ॥ १ ॥ चित व रियुं वैतालनुं, देखी पीली वस्त ॥ हरिबलने चरणे न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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