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मेहली तेह ॥ हरिबल वांची समझियो, वस्य तुं मुक ससनेह ॥ ७ ॥ उंची दृष्टि जोइने, करी समस्या सा र ॥ वाचा देश बावियो, हरिबल निज आगार ॥॥ कुमरीयें पत्री जे लखी, ते सुणजो अधिकार ॥राम नुं सुहणुं जरत परि, फलशे ते श्रीकार ॥ १० ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ निड्डी वेरण दुश्रही ॥ ए देशी ॥ हांजी काली चनदशने दिने, कालिकानुं हो देवल ने ज्यांह के ॥ अखुट खजानो लेश्ने, मध्यरात्रै हो ढुं आबुं बुं त्यां ह के ॥१॥ कुमरीयें पत्रीयें लखी, हरि बलने हो तिहां कीधो संकेत के ॥ शीघ्रगति तुमें बावजो, व रवाने हो घणुं याणी देत के ॥ कु०॥ ॥ व्यवहा री हरख्यो घj, कुमरीनु हो देखीने चित्त के ॥ एतो साचें बावशे, निज घर, हो लेईने वित्त के ॥ कु०॥ ॥३॥ पण ए नृपनी नंदिनी,मुझथी केम हो निरवाहो थाय के ॥ किहां शशली किहां सिंहनी, किहां हंसि पी हो किहां बगलं कहाय के ॥ कु० ॥ ॥ किहां अ लसी किहां नागणी,किहां हाथणी हो किहां अज बल वंत के ॥ किहां कुमरीने ढुं कीहां, किहां सरशव हो किहां मेरु महंत के ॥ कु० ॥ ५ ॥ जाति गरीब वणी
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