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(१३०) आव्यो, अजाणे हरिबली ॥ल ॥ १६॥ श्रागत स्वागत हरिबल,नी ते नृप करे॥ल॥ बांह पसारी आवो, आधा आसण धरे ॥ ल० ॥ बेठा एकण गा दीयें, हरिबल नृप जिहां ॥ल ॥ मुखथी साकर घोलतो, बोल्यो मंत्री तिहां ॥ ल० ॥१७॥ हवे करे मंत्री हरिबलनी, खुश मशकरी ॥ ॥ हरिबल हर्षे एहवी, बोली उच्चरी ॥ ॥ कहो हरिबल तुमें लंका, लाडी लाविया ॥ल ॥ राय बिनीषण केरा, जमाई नाविया ॥ल ॥ १७ ॥ पण एक नो तरुं तेहनु, तुम कने मागीयें ॥ ॥ लेखावटनी सागति, ते नवि नांगी ॥ ॥ लाखनी बगसिस कोडि, हिसाब न चूकीयें ॥ ल॥ संसारमा री तिए, ते किम मूकियें ॥ ॥ १५ ॥ गडदानो पण नाग, नथी को मूकता ल०॥ तो किम मूकशुं जम प, अमारु बतावतां ॥ल ॥ बाश्ना कात्यामां ना ग ते, कोनो पाड ॥ल॥ श्म हरिबलने मंत्री, कहे हस्त चाड डे ॥ल ॥२०॥ इणि परें हास्य कु तुहल, नी करी मंत्री ॥ल ॥ समज्यो मनमां हरिबल, सांगली गंत्री ॥ ॥ पापी कुमति में त्रीयें, चकमक फेरियो ॥ ॥ जमण तणो मिश
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