SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काढी, नृपने जनेरियो ॥ल ॥१॥ एहेवा उष्ट कुबुद्धि ते, कां जगें अवतया ॥ल ॥ यमने मंदिरें कांन, गया जे गलि जया ॥ल॥ परनिंदा करता फरे, पुष्ट सुसाधनी ॥ ॥ खावे उखर निंदकी, काक ज्यु वाधनी ॥ला ॥२२॥ तप जप किया क ट, करे जे निंदकी ॥ ॥ ते मरि जाये नरग, नि गोदें ए वकील ॥ नारे कर्मी जीव, कह्या ए जि नवरें ॥ल ॥ इह नव परजव सुखने न, देखे जली परें ॥ल ॥ १३ ॥ पारकां विश् जूवे ते, निंदकी बोकडा ॥ल ॥ देवकीवंशे ते ऊपजे, ए फल रोक गं॥ ॥ समजू थश्ने जीव, करे निंदा पारकी। ॥ल॥ते जीवने किम लेती नथी, चंमा बारकी॥ ॥ल॥ २४ ॥ श्म हरिबल मन समजी, खुणस रा खी रह्यो ॥ लम् ॥ खेलगुं दाव ते अवसर, आवे जे लह्यो । ल॥ गुडथी मरे जे जीव ते, विषथी न मारीयें ॥ ल॥ए नवाणो लोक, कहे ते संनारियें ॥०॥५॥म धारी मनमोहिते, हरिबत बो खीयो ॥ ॥ व्यो प्रजु लंकानोजन, वचन ए खो लीयो ॥ल ॥ नगरि समेत जे परखद, लेइ पधा रजो ॥ ल० ॥ करां टहेल ते सगति, सारु अवधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy