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________________ (ए) ते पण वृचज होय ॥ तिम ए नरपति आशामें, कू ले दिन ने रात ॥ वसंतसिरीनुं ध्यान, धरे ते उठी प्रनात ॥ १७॥ आंगुलीना वेढा गणे, निशिदिन मासना दीह ॥ पाशा पासमें विचरे, नरपति जेह अबीह ॥प्रीतिमती पट्टराणी, प्रीति वधारी रेजे ह।। नृपनी रे मननी सुविधा, दूर विदारी तेह ॥१॥ नृप राणी दो रंग,विनोदमें काढे रेदीह ॥राजनां का ज सधारे, मदनवेग ते सिंह ॥ वसंतसिरी पण पोता ने, मंदिरे करे गहगाट ॥ निज सखीयोगुं परवरी, नि जपतिनी जो वाट ॥ २०॥ हवे सुण जो नवियण तु में, जे थई आगल वात ॥ हरिबल चाल्यो संकायें, ते सुणजो अवदात ॥ बीजा नन्नासनी पनणी, पूरण दशमी ढाल ॥ शास्त्रतणे अनुसारें, लब्धि कही उजमाल ॥१॥ ॥दोहा॥ ॥हवे नृप आणा लेग्ने,हरिबल चाल्यो लंक ॥ वि षम पंथ जे आकरो, ते कापे निःशंक ॥ १ ॥ गिरिग व्हर महोटां घणां, विकटां घाटां जेह ॥ मानवनो जि हां पग नही, ते पण उतरे तेह ॥ २ ॥ जंगी काडी वनतणी, चिहुँ दिशि वंशनि जाल ॥ जटाजूट जे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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