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________________ ( ए३ ) वनलता, तिमें वहें उजमाल ॥ ३ ॥ वाघ सिंहने चीतरा, अजगर महोटा व्याज ॥ अष्टापद वलि गज घटा, देता मृग र फाल ॥४ ॥ नूत प्रेतने व्यंतरा, कोटिंग मोहोटा खवीस ॥ हरिबलने बलवा नली, पाडे महोटी चीस ॥ ५ ॥ पण ते मन बीये नही, बा ती वज्रसमान ॥ लोह पंजर सम चालतो, धरतो अरिहंत ध्यान ॥ ६ ॥ सूपडकन्ना हयमुहा, वलि इकटंगा जेह || काला हबसी काबरा, हरिबल निर खे तेह ॥ ७ ॥ अजबगुल मेहरी घणी, निरखे वा मो गम ॥ ऊडपी ले नर पंखमें, सेवे तेहयुं काम ॥८ ॥ हवि वि उजाडमां, हरिबल चाल्यो जाय ॥ ध्यान धरे नवपद तणुं, जेहथी विघन पुलाय ॥ ए ॥ देश नगर जोतो थको, पुर पाटण केइ गाम ॥ धरती के उल्लंघतो, याव्यो दरिया ठाम ॥ १० ॥ जाणे याषाढो गाजतो, गाजतो जाइव मास ॥ तिम ग रव जलनिधि, करतां दीठो तास ॥ ११ ॥ कालामंबर नवली, जलना लोढ चलंत ॥ जाणे हिमाला टूक ज्युं, जल कनोल करंत ॥ १२ ॥ जोजन एंसी सहस्सनो, कोरण विशेष जेण ॥ लवणनिधीनी वेल ते, सगरें आणी ते ॥ १३॥ जल जेहवा मला घणा, दीसे नव न For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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