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________________ (ए) वरूप ॥ वाघ सिंह जलमाणसां, जलमें देखे सरूप ॥ १४॥ एहवो लवणसमु ते, देखी कंपे काय ॥ हरिबल पगलुं जल नणी, देतां सग पच थाय॥१५॥ हाल अग्यारमी॥ ॥कपूर दुवे अति कजलो रे ॥ ए देशी ॥ हरिबल मनमें चिंतवे रे,शो हवे करूं उपाय॥ सहस एंसी जोय ए जलनिधि रे,टथुल उमो देखाय॥१॥प्रनुजी ते केम मुफथी तराय ॥ पगवट पण न जवाय॥प्रानुज बलें पण न तराय॥प्रातो संका केमहलाय रे॥प्राते॥ एयांकणी॥जलना लोढ वहेघणारे,श्यामला जलक जास ।।ज्वाला वडवानल तणी रे, निकसे प्रबल आ काश ॥॥॥ न वहे पंखी मानवी रे,न वहे तारु जहाज ॥ मारग को दीसे नहिं रे, नवि दीसे किहां पाज रे ॥३॥.प्र ॥ शीतल पवन वहे घणो रे, जा णे शीतल हेम ॥थरहर कंपे देहडी रे,खडहडे अस्थि सेम रे॥४॥०॥ एहवो खारो सागरु रे, उबले जलें असमान ॥ ते देखी धीवर घणुं रे, मरप्यो ग तस शान रे॥५॥॥जो फरी पाडो घर नणी रे,जान तो न रहे मान ॥ बीडुं बबी हुँ आवियो रे, की, अजाण्यं काम रे ॥ ६ ॥ ॥ नागें ग्रही ज्युं बुंदरी रे, मूके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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