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________________ (७०) सांजरी, तस थयों नदवेग ॥१॥धिग धिग काम विटं बना, मोहें जोबन जागे॥ए अांकणी॥मोदनी उर्जय जीततां, घणुं दोहेलुं लागे ॥॥धि॥ तिण अवसरें एक मेहेतलो, कालसेन ते नामें ॥ नृपने नमि अति इकडो, बेठो अनिराम ॥३॥ धि० ॥ मननो मेलो मायावियो, मद नसो कंठ सूधी॥ पण ते सर्प तणी परें, माहा उष्ट कुबुद्धि ॥४॥ धि० ॥ नगद आसा मी घणुं, जाणे जरनो मेल ॥ चाडी चुगली क री घणी, काढे लोकनां तेल॥ ५॥ धि०॥ एहवो कु बुद्धि मंत्रीसरु, पेठो नृपने कानें ॥ हरिबल केरी वा रता, मांमी एक तानें ॥ ६ ॥ धिम् ॥ हरिबल कीर्ति विस्तरी, नगरी जन मांहे ॥ ते सांजली मन मेंतलो, रीशे बले तांहे ॥ ७ ॥ धि० ॥ अवसर ले। कालसेन ते, नृपकान नंनेखो ॥ उर्जन मुख बाणे करी, नृपर्नु दिल फेयो ॥ ७॥ धि॥ लटपट नृप आगे करे,पा पी परपंच ॥ हरिबलने उबापवा, ममियो सूधो सं च ॥ ए॥ घि० ॥ स्वामी गुं जाणो अबो, हरिबलनी वातो ॥ नगरजन सदु वश करी, करशे तुम घातो॥ ॥ १० ॥ धि० ॥ त्रीश राजकुली करे, हरिबलनी सेवा ॥ कूडो रचे में एक मली, तुमचो राज लेवा ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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