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________________ (२०७) पतो रे, सुनट शिरोमणि जात ॥ २४ ॥ सा॥ धन धन ते गुरुदेवने रे, जेणें बताव्यो धर्म ॥ सा ॥ई बलिहारी तेहनी रे, जे राखी मज शर्म ॥ २५ ॥ सा ॥ श्म हरिबलना गुण स्तवे रे, परजामें मद नवेग ॥ सा० ॥ तोल वधारयो माहरो रे, हरिबला करि नेग ॥ २६ ॥ सा ॥ तो ढुं पुत्री माहरी रे, परगावु गुन काज ॥सा॥ कर मूकामण वली दीयु रे, महीयल महोटुं राज ॥ २७ ॥ सा० ॥ गुण उशीगण ए था रे, हवे था निःपाप ॥सा॥ पढ़ें हुँ संयम आदरूं रे, ज्युं मटे नवनो संताप ॥२७॥ सा ॥ एता दिन नूलो जम्यो रे, विण दर्शन मुफ जीव ॥ सा० ॥ हवे करणी एहवी करुं रे, जिम ल ढुं सूख सदीव ॥ २५ ॥ सा० ॥ श्म आलोचना परजमें रे, कीधी ते महिपाल ॥ सा ॥ चोथा उ हनासनी ए कही रे,लब्धि सातमी ढाल ॥३०॥सा॥ ॥दोहा॥ ॥इणिपरें नृप बालोचनी, आलोयां निज पाप ॥ हलुाकर्मी नृप थयो, करवा शिव मेलाप ॥१॥ जिहां सूधी अज्ञानतम, व्यापी रमु घटमांहि ॥ ति हां सूधी ते जीवडो, पाम्यो शान न क्यांहि ॥॥ स Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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