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________________ (२०७) हज गुणे जग जीवने, आवे गुम खनाव ॥ तव घट में दर्शन रवि, प्रगटे तेज प्रनाव ॥३॥ तव मेथ झान तम, प्रगटे ज्ञान उद्योत ॥ अष्ट करम दलले दिने, जजले ज्योतिमें ज्योत ॥धा हवे करणी करूं धर्मनी, बेहडो समारं शुरू ॥ वणकर पण ते वस्त्र नो, बेहडो समारे गुरु ॥५॥ श्म जाणी हरिबल प्रत्ये,तेडाव्यो नृत्यपास ॥ हरिबल पण तिहांवीयो, ततखिण नृप यावास ॥६॥ अरg आसन आपीने, कर जोडी कहे नाथ ॥ अरज सुणो एक माहरी, ह रिबल बो तुमें आथ ॥ ७॥ ॥ढाल आठमी॥ ॥हांजी रामपुरा बाजारमां॥ए देशी॥ हांजी हरि बलप्रत्ये हवे नृप कहे,तुमें सांजलो गुणधि अगाध ॥ तोरी बलिहारी रे हरिबल माहरा ॥एमांकणी॥ हांजी ढुं खूनी थयो तुम तो, मुफ खमजो ते अपराध ॥१॥ तो॥ हांजी लांबां जाखांशा करूं, तो बूं तुम नवोनव चोर ॥ तो ॥ हांजी में तुमगुं एहवी करी, तिण नही मुज सातमी ठगेर ॥ २ ॥ तो ॥ हांजी विषयारसनो लोलुपी, थयो ते बती वस्ते न चूक ॥ तो॥ हांजी लंकागढ यमने घरे, में मूक्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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