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तुम करी चूक ॥ ३ ॥ तो० ॥ हांजी ए पातक किहां लूटस्यां में कीधो जेह अन्याय ॥ तो० ॥ हांजी ते रखे रोष चित्तें धरो, तुम कहुं बुं गोद बिछाय ॥४॥ तो० ॥ हांजी हुं तुम खामुखां थयो, मत राखजो अंतर वेर ॥ तो० ॥ हांजी इम नृप कहे हरिबल तु में, मुऊ उपर राखजो महेर ॥ ५ ॥ नो० ॥ हांजी तव हरिबल नृपने कहे, तुमें ए चुं बोब्या नाथ ॥ तोरी बलिहारी रे नरपति माहरा ॥ ए यांकी ॥ हांजी हुं सेवक बुं तुम तणो, मुफ तुमें बो महोटी श्रथ ॥ ६ ॥ तो० ॥ हांजी माहरे तुमशुं को नही, कांही अंतरगत में द्वेष | तो ॥ हांजी तुम मंत्री काल सेन जे, तेरो चंनेखो तुम बेक ॥ ७ ॥ तो० ॥ हांजी तुम यम वचें विगताविने, तुम कुमतियें घाली राड ॥ तो० ॥ पण जेवी करी तेहवी लह्यो, बल्यो जीव तो तेह किराड ॥ ८ ॥ तो० ॥ हांजी तुम यम हवें कोई वातनो, मत सखोजी अंतर कोय ॥ तो० ॥ हांजी तुम श्रम जीवडो एक बे, ए तो देखत बे तन दोय ॥ एए ॥ तो० ॥ हांजी मिण्याः कृत मुजथकी, तुमें मानजो नृप करि साच ॥ तो० ॥ हांजी राग द्वेषना योगथी, जेह बांध्यां निकाचित वाच ॥ १० ॥ तो० ॥
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