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________________ ( २०३ ) त्रने, बाल्यो हरिबलें बीप ॥ जन दिये रंग वधामणां, घर घर घृतना दीप ॥ ४ ॥ सर्ग नरग दुनियां मुखें, जाखे सघली वात ॥ जे जेहवी करणी करे, ते तेह वी वहे ख्यात ॥ ५ ॥ ज्ञानी तो कहे ज्ञानथी, देखी स्वर्ग ने नर्ग | पण कहे लोक मतें करि, करणीयें नर्ग ने सर्ग ॥ ६ ॥ सागरदेव पसायथी, कीधुं जाएयुं का म ॥ हरिबल चरित्र ते देखिने, लाज्यो नरपति ताम ॥ ७ ॥ तव हरिबन कहे रायने, म करो मनमें सो च ॥ तुम मंत्री ते कुमतियें, तुमचो कराव्यो लोच ॥ ॥ ८ ॥ लंकायें मुफ मोकव्यो, वति मूक्यो यम घेर ॥ तुमें चूक्या मुऊ नारीगुं तव में करिए पेर ॥ ए ॥ तुम मंत्रीनी संगतें, करता तुमें पण साथ ॥ पण में राख्या जीवता, करुणा प्राणी नाथ ॥ १०॥ ए गुप लेजो माहरो, जीवित सूधी नूप ॥ एम कही हरिब न तिहां, श्राव्यो निज घर चूंप ॥ ११ ॥ वसंत सिरी कुसुम सिरी, दो प्यारी गुणवंत || पियु मुखचंद विलो कतां, दो कुमरी हरखंत ॥ १२ ॥ सुख विलसे संसा रमां, टाली सघलां शव्य ॥ करणी करे जिन धर्मनी, हरिबल मी तील ॥ १३ ॥ परतख देखी पारखं, हरिबल केरो धर्म ॥ पुरजन सदु धर्मी थया, टाली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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