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________________ ( २१७ ) नमें मानीता कीध ॥ ए सवि गुण तुम लेजो रे, नबि समकित तथा रे ॥ १८ ॥ समकित रयण बे जगमें रें, जनने तारवा रे ॥ जविक जीवने निमी रे, वंबित सारवा रे ॥ जाख्युं ए समकित परम निधान, मुगति वधूनुं दाता निदान ॥ जिनवरें जाख्युं सघले रे, सूत्र सिद्धांतमां रे ॥ १७ ॥ एहवा गुण तुमें जाली रे, समकित धारजो रे || निंदा विकथा परनी रे, दूर निवारजो रे ॥ ज्युं लहो जवियां समकित शु.६, जो जगदीश दे तुमने बुद्ध ॥ तो सडशठ बोलें करीने रे, समकित धारजो रे ॥ २० ॥ जविक जीवने समकित रे, जीवनुं मूल बे रे ॥ समकितधारी जीवने रे, शिव अनुकूल बे रे ॥ इम कहे लब्धिविजय उजमाल, चोथा उल्लासनी नवमी ढाल || हलुवा कर्मी जीव ते रे, वयण ए मानशे रे ॥ २१ ॥ इति ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे सुणजो नवियण तुमें, हरिबल केरी वात ॥ वीशाला पुर नयरनुं, विलसे राज विख्यात ॥ १ ॥ बारे दरवाजे प्रबल, मांमी दाननी शाल ॥ नग्न बुनूदित जीवने, देवे दान विशाल || २ || नव नेदें जे पुण्य बे, सूत्र तणे अनुसार ॥ जन्म सफल करवा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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