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(१६) चिस लाय, मारग श्री जिनकल्पी धराय ॥ जीवनो कारिमो जगडो रे, मिटाड्यो खिण एकमां रे॥१३॥ तेरमे गुणगाणे रे, सजोगीय आविया रे ॥ शुक्ल ध्यानमे दंपति रे, दो ते नावियां रे ॥ तव तिहां पा न्या केवल नाण, तीन नुवनमें थयां ते जाण ॥ के वल महोबव महोटुं रे, इंशदि सघला करे रे ॥१॥ बारे परषदा मेली रे, दे धर्म देशना रे ॥ कोई जव्य जीवने दीधी रे, समकित वासना रे॥तायां नवोदधि थी के जीव,ज्योति वधूमूंप्रीति अतीव ॥ दंपति दोयें बणारे, केवल नाणथी रे ॥ १५॥ विशमा जिनने वारें रे, मदनकृषि रायजी रे ॥ वसुधा पावन करता रे, फरे सुखदायजी रे ॥ आयु वरष तेत्रीश हजार, पाली पूरूं दंपति सार ॥ शैलेशी गुणयोगें रे, दो मुगति गयां रे ॥ १६ ॥ जनम मरणना नय सवि रे, दरें बंमिया रे, शिवरमणिना संगमें रे, निशिदिन में मिया रे ॥ चौद नुवननां नाटक चंग, निरखे ज्यु करजल रेह सुरंग ॥ लोक अलोकने अंतें रे, जावे तिहां रही रे ॥ १७ ॥ जो जो नवियां बागें रे, शी करणी हती रे ॥ मोह नृप जोरें शिखडी रे, मानीन को रती रे ॥ तेहना धणी थइ बेग सिम, तिन जुव
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