SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) हरिबल पुरजना रे ॥ इणि परें करता स्तवनां अपार, कृषिजन प्रणमी निज आगार ॥ हरिबल राजा आदि रे, सहु वांदी वव्या रे ॥ ७ ॥ हवे ऋषि म दनवेगजी रे, गुरुसंगें नणे रे ॥ चौद पूर्वना अर्थ रे, विचार ते संधुणे रे ॥ पाले पूरा पंचाचार, चालें सूधा नय व्यवहार ॥ दंपति दोये साचां रे, जिन म तमें वहे रे ॥॥ अध्यातमपुर सुंदर रे, निरखी तिहां रहे रे ॥ विवेक तणां जे मंदिर रे, महोटां गह गहे रे॥ तेहमें कीधो दोजणें वास, करे तिहां बेन झान अन्यास ॥झान ने दरिसण चरणझुं रे, रहे नीनां थकां रे ॥ १० ॥ ध्यान सुतखतें बेग रे, दो वखतें इक मनां रे ॥ समकित बत्र धरावि रे,हरखें दो जणां रे॥ सोहे चामर श्रुत चारित्र, पाले महोटां आठ मावि त्र॥ धर्म सना दश मेले रे, सत्य दरबारमां रे ॥११॥ संयम हाथी शुन मन रे, घोडा दीपता रे ॥ अष्टक रमना दलने रे, वेगें जीपता रे ॥ शीलांगरथ गुन महा गुणवंत, संवर सुजट सुतेज अनंत ॥ मदन वेग जे कृषिने रे, दरबारें बाजता रे ॥१२॥ नेद वि झाननी घंटा रे, बांधी न्यायनी रे ॥ खीर ने नीर ज्यु रे, न्याय करे संजायनी रे ॥ सातमे गुणगणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy