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(२१७) नणी, मांझयो सत्रुकार ॥ ३ ॥ साते खेत्रे वावरे, के इलख धननी कोड ॥ चैत्य करावे जिन तणां, मामि स्वर्गगुं होड ॥ ॥ अमारि पलावे चिटुं दिशें, जिहां सुधी आणा राय ॥ मारी शब्द को उच्चरे, तो ते खूनी थाय ॥ ५ ॥ विण खूनें को जीवने, को न उपाडे श स्त्र ॥ कीडी कुंजर आपणां, सम करी लेखवे तत्र ॥ ६ ॥ इणि परें हरिबल राजवी, पाले राज्य अखंम् ॥ परजाने ऊ समो, अरिमन नीम प्रचंम् ॥ ७ ॥
॥ ढाल दशमी॥ ॥ मारुजी साथीडा साथै धग रें. हाथें मदपियो रेलो, मारो माणिगर मारुलो ॥ ए देशी ॥ नवियां नगरी विशाला काक, जमाला सोहती रे तो, मार्नु कैलासपुरी लो ॥ न० ॥ सोहम वासीनी परें खासी, मोहती रे लो ॥ उकुरा उपे सनूरी लो॥ १॥०॥ पुण्य प्रनाउ जावें, जोगवे राजने रेलो. हरिबल नाग्य विशाला लो॥ न० ॥ सुजस वरवा प रजने, करवा साजने रे लो॥ प्रगटयो परम कृपाला लो ॥ ॥ ज० ॥ शोलशे देशे पुण्य, विशेष मही ये रे लो, साध्या देश हठीला लो॥०॥ अनमी राया तेह, नमाया हलिये रे लो, दुता जे मुबाला
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