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शीख ॥ यमने नोतरवा नणी, जावुं बे सहि इव ॥ ६ ॥ नृपनुं कारज साधवा, बीडं ग्रयुं वे एह ॥ यम तेडी नृप मंदिरें, यावी सोंपूं तेह ॥ ७ ॥ ते माटे तुमें शीख द्यो, तुमें बो चक्कु दोय ॥ होशे मेलो पुष्यथी, लिखित जो पानें होय ॥ ८ ॥ ए मंदिर सोंपूं खं, तुम दो नारी ह ॥ दान सुपात्रें पोषजो, करजो पुण्य कय ॥ ए ॥ देव गुरु समरी सदा, धरजो नव पद ध्यान || पूजा नक्ति प्रभावना, करजो रहि साव धान ॥ १० ॥ कुल मर्यादें चालजो, धरजो श्री जि नधर्म ॥ करजो नज्ज्वल पक्ष दो, राखजो निज गृ ह नर्म ॥ ११ ॥ शीख जलामण इलि परें, निज ना रीने की ॥ पंथ जणी संबाहिने, गमन जणी पग दीध ||१२|| पियुनां वयण ते सांजली, नारी दो अकु जाय ॥ जाणे रंजा ढलि पडी, तिम नारी मूर्द्धाय ॥ १.३ ॥ ॥ ढाल प्राठमी ॥
॥ राम जो हरि उठीयें ॥ ए देशी ॥ चेतन लहि नारी तदा, पल्लव पियुनो ते साही रे || गदगद कंठ स्वरें करी, कहे नारी यहि बांही रे || गृहमें रहो तुमें वाह रे, म करो मरणनो राह रे, बो प्रतिम सुख बा हू रे, लीजें जोबन लाह रे, होवे ज्युं नारी उछाह
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