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________________ (४३) जलजो चित लाय ॥ पण ते सुणतां मत करो, महि षी किन्नर न्याय ॥ १२ ॥ नृपने तेडी हरिबलें, की धी नक्ति विख्यात ॥ ते सुणजो नवियण तुमें,शीशी निपजे वात ॥ १३ ॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ आले लालनी देशी॥ तेडी नृपने आगार,नोयण देश सार ॥ बाळे लालाहरिबलें कीध पहेरामणी॥ मणि माणक लख लेय, अंग याजूषण देय ॥या॥ वोलाव्यो नृप गृह नणी ॥ १ ॥ मदनवेग नृप ताम, मंदिर वलियो जाम ॥ आ ॥ वसंतसिरी मनमें व सी॥ अंगनारूप निहालि, मनमां था चकचाल ॥ था ॥ नृप मननी मंगली खसी ॥ २ ॥ जीव रह्यो सलचाय, ज्युं मधु खगलपटाय ॥ ०॥ काम व शें करी जूरियो ॥ कामातुर थयो राय, आकुल व्या कुल थाय ॥ श्रा० ॥ कामज्वरें नृप पूरियो॥३॥ परवश था नृप देह, असमंजस बोले तेह ॥धा० ॥ विकलमूर्ति परें जयो॥खिण बाहिर खिण मांहि,जक न पडे खिण क्यांहि ॥ श्रा० ॥ कामिनीवाहण वहि गयो॥४॥न गमे कुसमनी सेज, न गमे अंतेनरी हेज ॥या॥ राज काज पण नवि गमे । न गमे पान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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