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________________ (४२) वान ॥ १ ॥ अविनाशी अव्यय धरुप, अशरीरी य अरिहंत ॥ ज्योतिरूप जगदीश जे, ते प्रणमुं शुन सं त ॥ ॥ कविजन हृदय महीतलें, शारद मात वि शाल ॥ वचनामृत वरसे सदा, प्रगट थई उजमाल ॥३॥ मूरख मूंगां बोबडा, अकलविहूणा जेह ॥ त स घटनीतरमें वसी, सुरगुरु सम करे तेह॥४॥ परउपगारी मातजी, बाला त्रिपुरा सोय ॥ ते ९प्रण मुंजारती, जिम मुज वंडित होय ॥ ५ ॥ कोविद के शर अमरना, चरण कमल नमि तास ॥ हरिबलम हीरायनो, पजणुं बिजो उदास ॥ ६ ॥ रंग रंगीली जनसना, सांजल वेधक जाण ॥ मधुकरनी परें रस लीए, गुणवंत नाव प्रमाण ॥ ७ ॥ सरस नीरस र सिया लहे, चातुर वेधक जेह ॥ पण मूरख पशु बा पडा, झुं जाणे रस तेह ॥ ॥ सरस निरस मधुक र लहे, जे सेवे वनराय ॥ घूण गुंजाणे जीवडो, सू कां लक्कड खाय ॥ ए ॥ खटपद सरिखा चतुर नर, वेधक वचन रसाल ॥ राचे सरस कथा सुणी, विक था तजी विचाल ॥ १०॥ वक्ताने श्रोता सुणी, सा हामो साहामी दृष्ट ॥ एक सरीखी जो दुवे, सु गतां उपजे मिष्ट ॥ ११॥ तेमाटे जावुक तुमें, सां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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