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॥ २६ ॥ तस शिष्य धर्मविजय धर्मधोरी, सयल गु
करि बाजे रे ॥ कोविदशिर मुकुटामणि सोहे, तस शिष्य धनहर्ष राजे रे ॥ ख० ॥ २७ ॥ तस शिष्य कु शलविजय कविराया, दिनमणि तेज सवाया रे ॥ तस बंधव गणि कमल विजय गुन, तस श्रुतज्ञान सुहाया रे ॥ ख० ॥ २८ ॥ तस शिष्य पंमित लक्ष्मी विजय गुरु, सोहे साधु नगीना रे ॥ ज्ञान क्रिया दो विधि खाराधी, यातम साधन कीना रे ॥ ख० ॥ ॥ २५ ॥ तस शिष्य दो दुवा साधु शिरोमणि, कुमती मद जीपंता रे | पंमित केशर खमर दो जाता, रवि शशिपरें दीपंता रे ॥ ख० ॥ ३० ॥ ते गुरुचरण प सायें लब्धि, पुष्य उपर परबंध रे ॥ पहेलो उल्लास को नव ढालें, हरिबल केरो संबंध रे ॥ ख ० ॥ ३१ ॥ ॥ इति श्री हरिबलचरित्रे हरिबल राजर्षि पुरवर्णन नृपवर्णनादि प्रथमउल्लासः संपूर्णः ॥ १ ॥
॥ अथ द्वितीउल्लासः प्रारम्यते ॥ ॥ दोहा ॥
॥ परम ज्योति परकाश कर, त्रिभुवन तिलक स मान || गरिब निवाज गोडी धणी, जयनंजन नम
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