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________________ (२३१) बे अंतें सदुने कालथी रे, बाखरे प्राणी धूड जेली बूंड रे ॥ ॥ सां० ॥ कूडी माया ने कूडी कामिनी रे, कूड डे अर्थी बंधव लोक रे । कूडी ने उनियां वा दल बांह ज्यु रे,ते पण यंतें होवे फोक रे ॥णासा॥ प्राणथी वाहालो जेहने जाणिये रे,राखीये तेहने ज्यु करि ग्रंथ रे ॥ ते पण न रहे उनो पूबवा रे, जातां ते लांबे महोटे पंथ रे ॥ १०॥ सां॥ केहि गया ने केहि जायशे रे, केहि ने प्राणी जावणहार रे ॥ पुण्य विहूणा इण वाटडी रे, जाशे ते प्राणी हाथ पसार रे ॥११॥ सां० ॥ कुण ते राणा ने कुण ते रांकने रे, बाखर एहिज एक ने वाट रे ॥ वशे साथें सु कत कीधलां रे, उतरतां ते नवनो घाट रे ॥१॥ ॥सां॥श्यो रे नरोंसो काचा कुंजनो रे, श्यो वली क रवो धननो मह रे ॥ देखत संध्याराग तणी परें रे, उडी ते जावे खिणमें अबह रे ॥ १३ ॥ सांग ॥ दश रे दृष्टांतें मानव जव तणो रे, पाम्यो जो जनम क दाय रे ॥ तो वली फरि फरि पामवो दोहिलो रे, जिम करी घूणादरने न्याय रे ॥१४॥सां॥ दान शीयल तप नावना रे, नांख्यो जे जिनवरें चनविद धर्म रे ॥ तेहनो जो कीजें खप शुजनावथी रे, बूटीयें खिणमें Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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