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________________ ( 2 ) माल ॥ ७ ॥ जे हुं चाहुं चित्तमें, ते तूं करजे मात ॥ वचननी रचना रस दियो, वाधे तुक याख्यात ॥ ॥ ८ ॥ गुरु ज्ञाता माता पिता, गुरुथी अधिक न कोय ॥ देवधर्म गुरु उलख्या, बलिहारी गुरु सो य ॥ ए ॥ ते गुरु चरण नमी करी, नवियाने हित कार ॥ रास रचुं हरिबन तणो, पुण्य उपर अधि कार ॥ १० ॥ पुण्यें वंबित पामीयें, पुण्यें लहि नव नीध ॥ पुष्यें महिला संपजे, पुण्यें ६ समृ-६ ॥ ११ जीवदया पाली जिणें, तिल उपराज्यं पुष्य ॥ सुर नर तस सानिध करे, माने ते दिन धन्य ॥ १२ ॥ जीव दयाथकी पामियो, हरिबल मही राय ॥ तास संबंध सुतां थकां सघलां पातक जाय ॥ १३ ॥ रासस रस सुतां थकां जे को करशे वात ॥ तेहने तस व नन तणा, सम देनं बरं सात ॥ १४ ॥ जिम मृग नाद लिलो रहे, निसु थइ एकरंग ॥ तिम सुणजो नवि यण तुमें, प्राणी चित्त अनंग ॥ १५ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ ॥ रसीयानी देशी ॥ लक्ष योजननो रे जंबुद्दीप ए कह्यो, शाश्वत वर्तुलाकार || सोनागी ॥ तेहमें दे त्र ए नंद सोहामणुं, कुलगिरि सात कह्या सार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003681
Book TitleHaribal Macchino Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages294
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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