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( ३ )
सो० ॥ १ ॥ जाव धरीने रे नवि तुमें सांजलो ॥ रसि या देई रे कान || सो० ॥ सुतां सुतां रंग रस क पजे, मुखमें राख्यां जिम पान ॥ सो० ॥ २॥ ना० ॥ क्षेत्र तिनमें करमी वसे तिहां, यसि मशि कृषी रोजगार ॥ सो० ॥ याजीविकायें जीव जीवाडवा, याख्या ए तीन व्यापार || सो॥३॥ ना० ॥ बीजां क्षेत्र जे जुगलां धर्मनां, जाख्यां कर मि उदार ॥ सो० ॥ तिहां को व्यापार तीनमें नवि लहें, बे कल्पवृदना चाहार ॥ सो० ॥४॥ ना० ॥ तेहमें पटयुगला दिक क्षेत्र जे, भरत ने ऐरवत विदेह || सो० ॥ ए नव देत्र जंबुद्धीपमां, शो जित शोने ने एह ॥ सो० ॥ ५॥ ना० ॥ ए नव क्षेत्र सात बे कुल गिरि, तेहनो प्रतिही विस्तार ॥ सो० ॥ देत्र समास में गुरुमुख सांगली, धायो तास विचार || सो० ॥ ६ ॥ ना० ॥ पण इहां हरिबल मी रायनुं, चरित्र सु यो चित्त लाय ॥ सो० ॥ लोक खाणो जगमां इम कहे, जे परणे ते गवाय ॥ सो० ॥ ७ ॥ ना० ॥ हवे इहां जंबुद्दीपें यति नलुं, जरत क्षेत्र कहाय ॥ सो० ॥ पांचों वीरा योजन पटकला, धनुषाकारें सोहा य ॥ सो० ॥ ॥ ना० ॥ सहस बत्रीश ते जन पद तेहमां, तेहना खत खंम होय ॥ सो० ॥ तिल
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